छत और छाता... Dr Vinita Rahurikar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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छत और छाता...

मन भर कर शॉपिंग करने के बाद ढेर सारी शॉपिंग बैग्स से लदी नेहा अपने पाँच वर्षीय बेटे के साथ जूस पीने के लिए एक रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ी। बहुत देर से वह शॉपिंग कर रही थी तो थक भी गई थी और थोड़ी भूख भी लगाई थी। बेटा विवान भी पिछले तीन घंटों से उसके साथ घूम रहा था तो वह भी अब थक गया था। आज नेहा ने अधिकतर शॉपिंग भी अपने लाडले बेटे के लिए ही की थी कपड़े, खिलौने, नए शूज और भी न जाने क्या- क्या खरीदा था उसने विवान के लिए। फिर कुछ अपने काम की चीजें ली और विशाल यानी अपने पति के लिए कुछ ना ले ऐसा तो हो ही नहीं सकता तो उसके लिए भी एक डेशिंग सी टीशर्ट ले ली, एक परफ्यूम भी लगे हाथ ले लिया। हालांकि उन दोनों के जीवन में प्रेम की मधुर सुगंध पहले से ही बिखरी हुई है। लेकिन ऐसे छोटे-छोटे उपहार उस सुगंध को और भी गहरा कर देते हैं। विशाल के बारे में सोचते ही नेहा के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई छह साल हो गए हैं उनकी शादी को लेकिन आज भी विशाल उसे उतना ही प्यार करता है जितना शादी के शुरुआती दिनों में करता था। इस मामले में नेहा खुद को बेहद किस्मत वाली मानती है। और विशाल ने ही उसे संतान रूप में विवान जैसा प्यारा बेटा दे कर उसे परिपूर्ण कर दिया।

प्यार से विवान का हाथ थामे वह आगे बढ़ रही थी कि अचानक एक जाने पहचाने चेहरे पर नजर पड़ते ही वह चौकी। सामने से लगभग उसी की उम्र की एक युवती आ रही थी। नेहा को अधिक जोर नहीं देना पड़ा अपनी याददाश्त पर और उसने पहचान लिया कि यह तो ईशा थी। और पहचानती भी कैसे नहीं जरा भी फर्क नहीं पड़ा था उसके चेहरे में ठीक वैसी ही तो दिख रही थी जैसी कॉलेज के दिनों में दिखती थी।

"अरे ईशा तू कैसी है? कितने सालों के बाद मिल रही है?" जैसे ही ईशा थोड़ा पास आई नेहा उत्साह से उसकी ओर हाथ हिलाकर बोली।

"मैं ठीक हूं नेहा तुम कैसी हो?" ईशा भी अचानक अपने सामने नेहा को देखकर खुश हो गई। वह भी हाथ में खूब सारे शॉपिंग बैग थामे हुए थी। शायद खरीदारी करने के बाद वह भी रेस्टोरेंट में ही जा रही थी।

"कहां जा रही है? शॉपिंग हो गई क्या तेरी?" नेहा ने पूछा।

"हाँ यार हो गई। थक गई थी तो सोचा जूस पी लो फिर जाती हूं घर।" ईशा ने बताया फिर पूछा "और तू? तेरी शॉपिंग हो गई?"

"हां मैं भी जूस पीने ही जा रही थी। चल ना जूस पीते हैं। साथ ही बातें भी हो जाएंगी।" कहते हुए नेहा विवान का हाथ थामे रेस्टोरेंट में चली आई। ईशा भी उसके साथ ही अंदर आ गई।

अंदर का वातावरण बहुत भला था। अच्छी ठंडक थी। दोनों एक कॉर्नर टेबल पर बैठ गई और अपने शॉपिंग बैग दीवार के सहारे टिका दिए। दो-चार टेबलों के ऊपर कुछ युवा जोड़े बैठे हुए अपनी दुनिया में खोए हुए थे।

"तू तो वैसी की वैसी ही रखी है यार जैसी आठ बरस पहले थी। उम्र तो तुझे जरा भी छू नहीं पाई है।" नेहा ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा।

"थैंक्स यार।" ईशा के कपोलों पर लाली छा गई।

"और बता, कब आई यहां, कहां रहती है?" नेहा ने उत्सुकता से पूछा।

"डेढ़ साल हो गया है। जिस कंपनी में जॉब करती थी उसने एक ब्रांच यहां खोली है तो मेरा ट्रांसफर यहां कर दिया तब से यही हूं।" ईशा ने बताया।

"तू डेढ़ साल से यहां है और मुझे पता भी नहीं।" नेहा ने कहा।

"सॉरी यार मेरे फोन में से सारे कांटेक्ट डिलीट हो गए तो किसी से संपर्क ही नहीं रहा पर अच्छा हुआ आज तू मिल गई।" ईशा खुश होते हुए बोली।

"हाँ यार मन की बातें तो दोस्तों के साथ ही साझा करने में मजा आता है। अच्छा हुआ तू भी यही आ गई तेरा साथ हो जाएगा।" नेहा भी खुश थी कि चलो कोई तो पुरानी सहेली मिली जिससे दिल की बातें कर सकें। नेहा और ईशा पाँच साल तक एक ही कॉलेज में साथ पढ़ीं थी। दोनों बहुत पक्की सहेलियां तो नहीं थी लेकिन अच्छी दोस्त थी। नेहा थोड़ी गंभीर प्रकृति की पारिवारिक लड़की थी वहीं ईशा तितली सी उड़ने वाली, खुले स्वभाव की बंधन मुक्त लड़की थी जो बहुत आजाद ख्यालों की थी लेकिन दिल की अच्छी थी।

"और बता क्या-क्या शॉपिंग की आज बैग तो ढेर सारे दिख रहे हैं। लगता है जमकर जीजा जी की जेब खाली की गई है।" ईशा नेहा के ढेर सारे सामान से भरे बैग को देखकर हंसते हुए बोली।

"हाँ आज तो खूब खरीदारी की है लेकिन अपने लिए नहीं विवान के लिए और विशाल के लिए।" नेहा बता ही रही थी कि इतने में वेटर आ गया।

नेहा ने दो ग्लास मिक्स फ्रूट जूस और विवान के लिए आइसक्रीम ऑर्डर की। विवान को बैग से उसकी मनपसंद कार निकालकर खेलने के लिए दे दी। वह कार से खेलने में मगन हो गया।

"ओह तो क्या क्या लिया जीजू के लिए?" ईशा शरारत से मुस्कुराई।

"ज्यादा कुछ नहीं बस एक टी-शर्ट पसंद आई तो ले ली और विशाल की पसंद का एक परफ्यूम।" नेहा ने बताया और साथ ही पूछा "तू अपने बारे में बता ना कुछ। जीजा जी क्या करते हैं? तेरी ही कंपनी में है क्या? बच्चे कहां हैं? कितने साल हुए शादी को?"

 

"अरे बाप रे इतने सारे सवाल। तूने तो सवालों की राइफल ही तान दी मुझ पर। मैंने शादी नहीं की यार तू तो जानती है मैं बंधन पसंद नहीं करती स्वतंत्र रहना चाहती हूं। यह परिवार-वरिवार का झंझट मुझसे नहीं होता।" ईशा बोली।

"परिवार तो सबके लिए जरूरी है यूं अकेले जीवन नहीं काटा जा सकता इशा, शादी तो हमें एक मजबूत नींव प्रदान करती है जिस पर हम अपने सपनों का घर बनाते हैं। फिर बच्चे भी तो जरूरी है उन्ही से तो जीवन की रौनक होती है।" नेहा ने तो उसे समझाया।

"भाई मुझसे तो यह सब होगा नहीं मैं किसी के इशारों पर नाचने वाली गुलाम बनकर नहीं रह सकती। मैं किसी की सेवा टहल नहीं कर सकती। मैं तो स्वतंत्र रहना ही पसंद करती हूं।" ईशा मस्ती से बोली।

"किसने कहा कि शादी का मतलब किसी के इशारों पर नाचना होता है या किसी की गुलामी होता है। यह तो एक खूबसूरत बंधन है जिसमें हमें भी तो अपना सुख-दुख बांटने वाला, परवाह करने वाला साथी मिलता है। आज नहीं तो कल एक साथी की जरूरत तो तुझे भी पड़ेगी ना। सारा जीवन यूं अकेले तो कट नहीं सकता।" नेहा का मन उसकी बातें सुनकर थोड़ा उचट गया था।

"साथी की क्या जरूरत है यार मेरा बॉस संजय मेरी हर जरूरत का ध्यान रखता है। ना पैसे की कमी है ना किसी दूसरी बात की। पता है एक शानदार फ्लैट ले कर दिया है उसने मुझे और आज शॉपिंग करने के लिए पैसे भी उसने ही दिए हैं। डायमंड इयररिंग्स लिए हैं मैंने आज।" ईशा ने बेझिझक बताया।

तभी बेयरा जूस के गिलास और आइसक्रीम का कप टेबल पर रख गया। नेहा ने विवान को आइसक्रीम दी।

"तू बोल्ड है शुरू से वह तो ठीक है लेकिन तुझे नहीं लगता कि ऐसा अनैतिक संबंध ठीक नहीं है। संजय क्या आगे तुझ से शादी करेगा?" नेहा का मन खिन्न हो गया था।

"वह तो पहले से ही शादीशुदा है और वैसे भी मुझे भी कहां शादी करनी है उससे।" ईशा लापरवाही से जूस के घूँट भरती हुई बोली।

"क्या? शादीशुदा है? तू जानती भी है यह क्या खिलवाड़ कर रही है तू अपने जीवन से।" नेहा चौंक कर बोली।

"छोड़ यार क्या फर्क पड़ता है।" ईशा लापरवाही से बोली "क्या फर्क है तेरे और मेरे जीवन में, रिश्ते में? प्यार तो प्यार है। मैं और संजय एक दूसरे से प्यार करते हैं। अच्छी म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग है हमारे बीच। संजय के साथ जिंदगी बेहद सुकून से बीत रही है। बेहद खुशहाल, मस्ती भरी। संजय हर प्रॉब्लम में छाता बनकर ढक लेता है मुझे, बस और क्या चाहिए?" ईशा उसी लापरवाही से बोली।

"फर्क पड़ता है ईशा बहुत फर्क पड़ता है। मेरे सर पर छत है और तेरे सर पर छाता। घर-परिवार छत के नीचे बनता है छाते के नीचे नहीं। तेज हवा में छाता उड़ जाता है लेकिन छत नहीं उड़ती। अभी जीवन की कठोर वास्तविकता से तेरा सामना नहीं हुआ है। अभी सब नीली रूमानियत की रिमझिम फुहारों के बीच तुझे छाते के नीचे ही रहना रोमांचकारी लग रहा है लेकिन जिस दिन तूफान आएगा और छाता उड़ जाएगा ना उस दिन तुझे पैर टिकाने को जमीन भी नहीं मिलेगी।" नेहा अफसोस से भर कर बोली।

थोड़ी देर पहले ही पुरानी सखी से मिलने का जो उत्साह उसके मन में उमंग आया था वह बुझ चुका था। ईशा के मना करने के बाद भी नेहा ने वेटर को बुलाकर जूस और आइसक्रीम के पैसे चुका दिए और विवान का हाथ पकड़कर रेस्टोरेंट से बाहर आ गई।

ईशा हतप्रभ सी थोड़ी देर वहीं बैठी रही फिर मुंह बिचका कर बाहर आकर एक टैक्सी पकड़कर अपने फ्लैट पर चली आई। यह शहर के एक पॉश इलाके का तीन बेडरूम वाला सर्व सुविधा युक्त आधुनिक तरीके से सुसज्जित आरामदायक फ्लैट था जो संजय ने उसे तोहफे में दिया था। ईशा की अपनी तनख्वाह तो इतनी नहीं थी कि वह ऐसी आरामदायक और चकाचौंध भरी जिंदगी जी सकती। यहां नौकर-चाकर और सुविधा की हर वस्तु उपलब्ध थी और संजय के साथ हर रात रंगीन। उसकी वार्ड रॉब में एक से एक महंगी और आधुनिक ड्रेसेस टंगी थी। ड्रेसिंग टेबल के ड्राइवर में महंगी गोल्ड और डायमंड ज्वेलरी थी जो उसके जन्मदिन पर या वैलेंटाइन डे पर संजय ने उसे गिफ्ट की थी। कुल मिलाकर वह जिंदगी के पूरे मजे लूट रही थी और क्या चाहिए जीने के लिए? ना कोई जिम्मेदारी न फालतू झंझट। ईशा की यही सोच थी कि पूरी जिंदगी बस ऐसे ही चैन और आराम से गुजर जाए। वह जीवन की रंगीनियों में ही खोई रहने वाली लड़की थी।

क्या हुआ अगर संजय शादीशुदा है और उसे अपने परिवार को भी समय देना पड़ता है लेकिन ऑफिस में तो दिन भर दोनों आस-पास रहते हैं। मौका मिलते ही संजय उसे अपने कैबिन में बुला लेता है। और हफ्ते में कम से कम तीन राते तो उसके साथ ही गुजरता है फिर टूर पर भी तो साथ ले जाता है उसे अक्सर ही। तीन साल से वह संजय से प्यार करती है और वह उससे और भला क्या चाहिए? ईशा को फिर से नेहा की बातें याद आ गई लेकिन उसने उन्हें दिमाग से झटक दिया। नौकर उसके लिए चाय बना लाया और रात के खाने में उसकी पसंद पूछने लगा। ईशा अपने भाग्य पर इठलाती चाय का कप लेकर बालकनी में आ बैठी। वह आराम से कुर्सी पर पसर कर गरमा-गरम चाय का आनंद ले रही है और वहां वह बेचारी पति और बच्चे की फरमाइश पूरी करती रात के खाने की तैयारी में जुटी होगी। और ईशा व्यंग से मुस्कुरा दी। कहां ईशा की हाई प्रोफाइल लाइफ और कहां नेहा कि वह मध्यमवर्गीय कोल्हू के बैल जैसी गृहस्थी की चक्की में पिसती जिंदगी।

इधर अपने घर लौटी नेहा ईशा की बातों से व्यथित थी लेकिन उसके लौटने तक विशाल के घर आने का समय हो चला था। सामान रखकर उसने फटाफट चाय चढ़ा दी गैस पर और विवान के कपड़े बदलवा कर हाथ-मुँह दो दिए। खुद भी चेंज करके फ्रेश हो गई। थोड़ी ही देर में विशाल भी आ गया। नेहा अपनी और विशाल की चाय लेकर ड्राइंग रूम में आ गई और चाय पीते हुए बड़े उत्साह से लाया हुआ सामान उसे दिखाने लगी। विवान भी अपने कपड़े और खिलौने दिखाने लगा। विशाल दोनों की खुशी देखकर खुश था।

दिन तेजी से बीत रहे थे। अपने परिवार में मगन नेहा ईशा को कब का भूल चुकी थी। ईशा से मिले हुए भी उसको दो साल बीत चुके थे। एक दिन घर के लिए किराने का सामान लेने वह सुपर मार्केट गई। घर पर विशाल के माता-पिता अर्थात नेहा के सास-ससुर आए हुए थे तो नेहा विवान को घर पर ही छोड़ आई थी। यूं भी वह अपने दादा-दादी के साथ बहुत खुश रहता था। नेहा भी निश्चिंत होकर सामान लेने आ गई। परिवार का यही तो सुख और सुरक्षा है। ट्रॉली भर सामान लेने के बाद नेहा बिलिंग के लिए काउंटर देखने लगी तो एक काउंटर पर भीड़ कम देखकर वह उसी लाइन में लग गई। जब नेहा की बारी आई तो बिलिंग करने वाली लड़की को देखकर वह बुरी तरह से चौंक गई। वह लड़की भी नेहा को देख कर सकापका गई थी। नेहा ने उसे गौर से देखा हां वह ईशा ही थी लेकिन कितनी बदल गई थी। शरीर बेडौल हो गया था, चेहरे की रंगत फीकी पड़ गई थी और अपनी उम्र से दस साल बड़ी लग रही थी। आंखों के नीचे काले घेरे पड़े थे। बीमार भी लग रही थी। वह सिर झुका कर चुपचाप बिलिंग करती रही। जब सारा सामान का बिल बन गया तो नेहा ने पैसे चुकाए और ईशा से साथ आने को कहा। ईशा ने चुपचाप उसकी बात मान ली और काउंटर पर एक दूसरी लड़की को बिठाकर नेहा के साथ चली आई। दोनों पास की एक कॉफी शॉप में आ गई। नेहा ने दो कप कॉफी का आर्डर दिया।

"तू यहां कैसे ईशा वह भी इस हाल में, ऐसी मामूली नौकरी में ? तेरे वह हाईप्रोफाइल महंगे आधुनिक कपड़े और वह डायमंड इयररिंग्स कहां गए?" नेहा ने चुभते स्वर में पूछा।

"बस कर नेहा, मैं पहले ही किस्मत की मार खा चुकी हूं।" ईशा की आंखें छल छला आयीं।

"क्या हुआ, संजय कहां है? और तेरा यह हाल कैसे हुआ?" नेहा ने थोड़ा नरम होते हुए पूछा।

"संजय अब मेरे साथ नहीं रहता उसने मुझे छोड़ दिया है। मुझे नौकरी से भी निकाल दिया। मेरे एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट में भी मेरे काम में इतनी खामियां लिख दी कि मुझे कहीं अच्छी जगह नौकरी नहीं मिली। आखिर बड़ी मुश्किल से मुझे यहां नौकरी मिली। पहली नौकरी मेरी सुंदरता की वजह से संजय ने मुझे दी थी। अब वह बात रही नहीं तो..." ईशा की आंखों से आंसू बह निकले।

"लेकिन ऐसा क्यों? तुम दोनों तो एक दूसरे से प्यार करते थे। अच्छी म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग थी तुम दोनों के बीच।" नेहा ने काफी का घूंट भरते हुए पूछा।

"मैं तो यही समझती थी लेकिन दो साल पहले बाथरूम में पैर फिसल जाने से मेरे पैर की हड्डी टूट गई और साथ ही गिरने की वजह से मेरा गर्भपात भी हो गया। मुझे तो पता ही नहीं था कि मैं गर्भवती हो गई हूं। उसी समय इलाज के दौरान किसी दवाई के रिएक्शन से मेरी यह हालत हो गई। बस तभी संजय का रवैया मेरे प्रति अचानक से बदल गया। मुझे अस्पताल में ही एडमिट करवा कर आठ-दस दिन बाद से उसने मेरी खोज खबर लेनी बंद कर दी। ऑफिस के कुछ सहकर्मियों ने ही मेरी देखभाल की। संजय के बारे में उन्होंने भी कुछ नहीं बताया। संजय ने फोन पर मुझे ब्लॉक कर दिया। दूसरे के फोन पर वह मेरी आवाज सुनकर फोन काट देता। दो महीने बाद जब मैं अस्पताल से छुटी तो बिल भरने में ही मेरी ना सिर्फ जमा पूंजी खत्म हो गई बल्कि मेरी चेन अंगूठी भी बिक गई। जब मैं अपने फ्लैट पर पहुंची तो मेरे ही नौकरों ने मुझे अंदर नहीं जाने दिया। एक नौकर जो थोड़ा भला आदमी था उसने बताया कि संजय ने यह फ्लैट मेरे लिए नहीं बल्कि मेरी जैसी लड़कियों के लिए ले रखा था। मुझसे पहले भी वहां दो लड़कियां रह चुकी थी जिनसे मन भर जाने के बाद संजय ने मुझे रखा। मेरे बाद वहां उसने दूसरी लड़की को अपने जाल में फंसा कर वहां रखा हुआ था। वह नौकर भी उसी के आदमी थे इसलिए किसी लड़की को कुछ नहीं बताते थे।" ईशा ने दो घूंट पानी पिया और आगे बोली "मुझे ना उसने कपड़े लेने दिए ना और कुछ सामान। मेरे पुराने कपड़े वह बैग में भरकर पहले ही अस्पताल पहुंचा चुका था। अब वही कपड़े और इयररिंग्स उसने किसी दूसरी लड़की को दे रखे हैं।"

"तो अब तू रहती कहां है?" नेहा ने पूछा।

"एक परिवार के यहां ऊपर एक छोटा सा कमरा ले रखा है किराए पर, वही रहती हूं।" ईशा ने बताया।

"अपने घर क्यों नहीं चली जाती वापस।" नेहा बोली।

"किस मुँह से जाऊं। तीन साल पहले संजय के कारण उनसे रिश्ता तोड़ रखा था। उनकी उपेक्षा की। तू सच कहती थी नेहा छत और छाते में बहुत फर्क होता है। जरा से तूफान में संजय नाम का वह छाता तपाक से उड़ गया। यही अगर मेरे सर पर छत होती तो क्या मेरा पति, मेरा परिवार मुझे अस्पताल में अकेला छोड़कर चला जाता।" ईशा की आंखों से आंसू बहने लगे।

"काश तू यह बात पहले ही समझ गई होती कि घर छत के नीचे बसते हैं छाते के नीचे नहीं। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा माता-पिता अपने बच्चों को माफ कर देते हैं। तो उनसे माफी मांग ले और घर लौट जा। पिछला सब भूल जा। मुझे विश्वास है जल्दी ही एक छत के नीचे तेरा भी घर बस जाएगा। एक छत तो होगी जरूर तेरे नाम की भी।" नेहा ने उसकी हथेली थपथपाते हुए उसे दिलासा दिया।

नेहा की बातों ने ईशा के दर्द पर मरहम का काम किया। गर्म कॉफी पीते हुए अब वह खुद को काफी हल्का महसूस कर रही थी। छाते के उड़ जाने के दर्द से उबर कर अब उसकी आंखों में एक छत की उम्मीद झिलमिला रही थी।

विनीता राहुरीकर