सूत्रो के हवाले से ....
अभी - अभी सूत्रों के हवाले से खबर लगी है कि "फलाना" भी कोरोना पोजेटिव हो गया । ये फलाने हमारे पूर्वपरिचित थे । हमने सोचा कुशलक्षेम पूछने के बहाने ही सही सूत्रों से मिली खबर की पुष्ठी की जाए । बस हमने उन्हें फोन लगा दिया । पहली बार कोरोना संदेश सुना , फोन नहीं लगा ; दुबारा में बात हुई । हमने औपचारिकता में उनकी कुशलता पूछी तो वे भड़क गए " क्या मिश्रा जी सीधे-सीधे पूछो ना कि हमें कोरोना है या नहीं !" हम हड़बडा़ गए और अपनी सफाई देने लगे ,वे हमारी बात काट कर बोले " आप पहले नहीं है ; सुबह से पचासों फोन आ चुके है । सब यही जानना चाहते है कि हमें कोरोना है या नहीं ? वैसे आपको किसने बताया ? " मै धीरे से बोला " हमें सूत्रों से ज्ञात हुआ था । " वे तो भरे बैठे थे ,हम आगे कुछ बोलते ,वे बात काट कर बोलने लगे " ऐसी- तैसी सूत्रों की..... ये आपके सूत्र हमें मिल जाऐ तो हम उन्हे पूरा ही हल कर दें । " हमनें क्षमा-याचना और लल्लो-पत्तो करके फोन काट दिया । अब खबर का मज़ा जाता रहा ।
हम सोचने लगे आखिर ये सूत्र होते क्या है ? ये गणित के सूत्र जैसे तो न होंगे जो हमेशा ही सही हल देते है । इन सूत्रों को खोजना और इनके बारे में मालूम करना आवश्यक है । हमारी खोजी प्रवृति हमेशा ही हमें कुछ बकवास से काम करने को मजबूर करती है । वैसे आजकल मुम्बई में एक कथित आत्महत्या को चैनलों द्वारा सूत्रों के हवाले से हत्या बता कर जैसे हल किया जा रहा है , उसे देख कर लगता है कि देश में सी.बी.आई. जैसी संस्थाओं की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे चैनल सूत्रों के हवाले सब पता करने में सक्षम है । बस अबकी बार देश में कोई बड़ा केस हो तो इन्हीं चैनलों को जांच दी जाने की मांग होनी चाहिए । वे हल भी कर ही देंगे अपने सूत्रों के हवाले से ; बस सब अलग-अलग व्यक्तियों को दोषी करार देंगे । ये भी कोई बड़ी समस्या नहीं है । इसके लिए एक परिचर्चा याने ड़िबेट (क्या दिन आ गए हिन्दी के ? ) आयोजित कर लेंगे । इसमें जो सबसे अधिक चिल्लाएगा ,दूसरों को बोलने नहीं देगा वही सही होगा । बस मिल गया न दोषी ।
बात सूत्र और हमारी खोजी प्रवृत्ती की थी । हमने एक पत्रकार मित्र से बात की और पूछा " भाई सहाब पत्रकारिता में ये सूत्र क्या होते है ? " हमारे मित्र बोले " बात औपचारिक करनी है या पान ठेले वाली ?" हमने उन्हें आश्वस्थ किया " भाई समझ लो कि हम पान ठेले पर ही है ।" वे वोले " देखो मिश्रा जी कभी पत्रकारिता के अपने सूत्र होते थे ,पत्रकार खुद उन्हीं सूत्रों पर चलते थे और बाद में एक सफल पत्रकार फटेहाल मर जाता था । अब पत्रकारिता के कोई सूत्र नहीं होते । हाँ .. पत्रकारों के होते है । " हमने जिज्ञासू छात्र की तरह कहा " हम समझ नहीं पाए थोड़ा खुल कर बताऐं । " वे वैसे भी बोलने के मूड़ मे थे " बता ही तो रहा हुँ । अब यह एक व्यवसाय है ...व्यवसाय .... कमाई का साधन । बस छोटे-बड़े कार्यालयों के छोटे-बड़े अधिकारी -कर्मचारी अक्सर जाने-अनजाने सूत्र बध जाते है । " वे रूके और फिर बोलने लगे " जैसे अभी का कपड़ा घोटाला ,इसमें एक बाबू सूत्र बना क्योंकि उसे कमीशन में हिस्सा नहीं मिला । बस ऐसे ही हमारे सूत्र आते जाते रहते है ।
हम बोले " प्रभू इस सम्बन्ध में कुछ और ज्ञान दें। " वे बोले मिश्राजी आप कोई शोध- वोध तो नहीं कर रहे हो । खैर , सूत्रों के हवाले से खबर देनें से खबर के सारे सूत्र ही हमारे हाथों में होते है । अब मान लो आपको आतंकवादी बनाना है " हम तो चीख ही पड़े " अब हम से क्या दुश्मनी हो गई भाई ? " वे तो बस बोले ही जा रहे थे " मान लो ना... वैसे आप तो नेक आदमी है । बस सूत्रों कै हवाले से खबर चलाऐंगे कि आपके घर में बम मिला । " "बम ....... बम" हमारी तो चीख ही निकल गई जैसे हम पर ही गिरा हो । वे संयत स्वर में बोले जा रहे थे " आपने विरोध किया तो खण्ड़न ,नहीं तो चार दिन तक चटखारेदार खबर । " हम धीरे से बोले " और सूत्र ... ?" वे अधिकार से बोले " आप भी बड़े भोले हो नहीं समझे ...... , भाई सूत्र कोई हो भी सकता है और नहीं भी । अक्सर तो समाचार को चटपटा करने के लिए काल्पनिक सूत्रों का तड़का लगाया जाता है । सूत्र तो बस पढ़ने और देखने वालों का भ्रम है । लोग इसी भ्रम को सच मान कर खबरों पर विश्वास करते है । " हमने अपने जिज्ञासा प्रगट की " अंत में यह भी बता दो कि इस भ्रम रूपी सूत्र का प्रयोग क्यों होता है ?" वे हंस दिए " सब जान लोगे आज ही । मुझे पैसे मिले आपको अपराधी साबित करने के, बस कुछ हो या न हो सूत्र तो है आपको अपराधी साबित करके ही दम लेंगे । " हम अब घबरा गए " आप लोग तो खतरनाक हो । आपके पास तो ब्रम्हास्त्र है । " इधर- उधर की बात के बाद चर्चा समाप्त कर दी ।
अब हमें समझ में आ गया है कि सूत्र तो स्वार्थ ,राजनीति और पूर्वाग्रह का मानसपुत्र है जिसके पैदा होने पर लोग मजे ले कर नई कहानियों को सुनते और कहते है ।
आलोक मिश्रा " मनमौजी "