हमारे एक मित्र है , मोहन । बेचारे... कई वर्षों से कुंवारे होने का दर्द झेल रहे थे । आखिर काफी प्रयास और भागदौड़ के बाद एक कन्या ने उन्हें पसन्द कर ही लिया । बात आगे बढ़ी तो स्वाभाविक ही था कि हिन्दी फिल्मों की तरह विवाह पर आकर समाप्त होती । दोनों परिवारों की रज़ामन्दी के साथ हमारे मोहन भाई की विवाह की तिथि निश्चित हो गई । बाजे वाले, वाहन वाले के साथ ही साथ हाल और हलवाई आदि की पूर्व व्यवस्था में दोनों ही पक्ष अपनी -अपनी कार्यवाहियों में जुट गए । सब कुछ योजना के अनुसार ही होता तो कहानी कहाॅं से निकलती ? बस देश की सरकार अचानक ही अविश्वास के चलते धम्म से गिर पड़ी । फिर क्या था... फटा-फट आम चुनाव की घोषणा भी हो गई । अब खास बात यह कि आम चुनाव व मोहन भाई की विवाह तिथियाॅं एक सी हो गई ।
देखा जाए तो देश में आम आदमी को कभी भी कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त है । सो चुनाव के चलते हमारे मोहन भाई को भी विवाह टालने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए थी । मोहन भाई ठहरे सरकारी कर्मचारी .... करें तो क्या करें ? विवाह की तैयारियों के लिए दोनों ही पक्षों द्वारा प्रत्याशियों के टिकट के बयाने की तर्ज पर ही पंड़ाल,भवन ,बाजे और न जाने किस-किस को दे कर रकम फंसा दी गई थी। इन सभी लोगों ने किसी दूसरी तिथि पर सहयोग करने से इंकार कर दिया । अब वे अपने विवाह की तिथि बदलते तो सरकारी सौदे की ही तरह घाटे का सौदा होता । बहुत ही सोच समझ कर विद्वानों की तरह नियत तिथि पर ही विवाह करने का निश्चय किया गया ।
अब उनके सामने समस्याओं का अंबार खड़ा था । सबसे पहली और अहम समस्या थी अवकाश की । कोई और समय होता तो गुठली मारने से भी काम हो जाता लेकिन इस समय.....। वे बेचारे आवेदन ले कर निकल पड़े । उनके विभागीय अधिकारियों ने तो उन्हें टका सा जवाब दे दिया ।फिर भी वे ड़टे रहे तो आवेदन को अग्रेषित करते हुए उन्हें ही दे दिया और कहा कि आप खुद ही प्रयास कर लें । वे बड़े साहब के पास पहुॅंचे तो उन्होंने बिना आवेदन देखे ही कहा ‘‘नो ...नो ’’ । मोहन भाई बोले ‘‘ साहब ... मेरा ही विवाह है ।’’ बड़े साहब बोले ‘‘ तो हम क्या करे... ? आप लोगों के पास तो शादी , बच्चा होना और पत्नी के बीमार होने जैसे बहाने हमेशा ही होते है । .....नो.... छुट्टी नहीं मिल सकती ।’’ मोहन भाई रुआसे हो गए और बोले ‘‘ साहब ... मैं क्या करु ?’’ प्रश्न कौन सुनता है? खास कर ऊंची कुर्सी पर बैठे लोगों तक तो प्रश्न पहुॅंच भी नहीं पाते । पास खड़े बाबू ने इशारे से बाहर जाने को कहा । वे बाहर आए तो पीछे-पीछे बाबू भी आ गया । उसने प्रश्न सुन लिया था । वो बोला ‘‘ आवेदन पर वजन रखो और शाम को आना ।’’ उसी शाम को उन्हें अवकाश प्राप्त हो गया ।
विवाह हेतु लिए हुए हाल को चुनाव कार्य हेतु ले लिया गया यह सूचना कन्या पक्ष ने दी । अब विवाह स्थल बदल जाने से कार्ड भी पुनः छापने पड़े । अधिकांश नाते रिश्तेदारों ने चुनाव में छुट्टी के न होने के कारण आने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी । मोहन भाई को तो परेशानियों से अधिक खुशी अपने कुवांरेपन से छुटकारे की थी । अब धीरे-धीरे चुनाव जोर पकड़ने लगा और मोहन भाई की विवाह की तैयारियाॅं भी । इधर किसी व्हि.आई.पी की सभा होती उधर वे सूट का नाप दे रहे होते ।शहर में रैलियों के बीच वाहनों की सघन चैकिंग हो रही होती और वे कार्ड़ बांटने के अपने काम में लगे होते । कार्ड़ बांटने के दौरान कुछ स्थानों से उन्हें चुनाव प्रचारक समझ कर बेइज्जत कर के भगाया भी गया। इससे उन्हें नेताओं और प्रचारकों की इज्जत का अंदाज भी हुआ । बीच-बीच में चुनाव में खड़े प्रत्याशी भी उनसे आकर मिलते रहते । प्रत्याशियों को जब ये पता लगता कि ये पचास-साठ मतदाताओं को लेकर बाहर जाएंगे तो वे तरह-तरह की बातें करते ।
बाराती आ गए,घर के सामने बाजे बजने लगे ;बारातियों के लिए बस और दूल्हेराजा के लिए कार भी लग गई । अचानक एक खाकी वर्दी वाले ने आकर बैंड़बाजे बंद करवा दिए । खाकी वाला बोला ‘‘प्रचार अब बंद हो चुका है ।’’ बड़ी मुश्किल से सबने समझाया कि बारात जा रही है तब जाकर कहीं फिर से बाजे बज पाए । सब दस्तूरों के बाद मोहन भाई अपनी सांसों को किसी प्रत्याशी की तरह थाम कर कार में और बाराती बस में सवार हो गए । नाके पर बस को रोक लिया गया । यहाॅं भी खाकी वर्दी थी । वे ड़ंडा हिला कर चिल्ला रहे थे ‘‘ हाॅं....भाई सब लोग बस से उतर जाओ ये बस चुनाव में लगेगी ।’’ मोहन भाई दूल्हे के रुप में उनके सामने हाथ जोड़े खड़े थे । बारातियों को कुछ भी समझ में नहीें आ रहा था । कुछ नेंग-दस्तूर के बाद सब कुछ ठीक हो गया और बारातियों के साथ बस रवाना हुईं। लगा सब कुछ ठीक हो गया । जैसे ही बारात कन्या के घर पहुॅंची फिर दूसरे खाकी वाले आ धमके । वे बोले ‘‘ बस जल्दी खाली करो चुनाव में ले जाना है ।’’ मोहन भाई ने सोचा यहाॅं कौन बेइज्जती करवाए,सो उन्होने बस को जाने दिया ।
विवाह कार्यक्रम चुनाव के किसी सप्लीमेंट्री काम की तरह ही निपट गया । बिदाई के समय यह ज्ञात हुआ कि दूल्हे की कार भी चुनाव कार्य हेतु ले जाई जा चुकी है । अब बारातियों की तो छोड़िए दूल्हा-दुल्हन भी पैदल हो गए थे । मोहन भाई ने सभी बारातियों से माफी मांगी और लौटने की अपनी-अपनी व्यवस्था करने को कहा। बाराती नाराज तो थे ही एक ने पूछ लिया ‘‘तुम्हारी बिदाई कैसे होगी ?’’मोहन भाई बोले ‘‘दहेज की मोटरसाइकिल कब काम आएगी ?’’ रोने -धोने के बाद मोहन भाई दुल्हन को मोटरसाइकिल पर बिदा करा लाए । दहेज की मोटरसाइकिल में पेट्रोल पम्प तक का ही पेट्रोल होता है । अब वे पेट्रोल पम्प पर खड़े है । यहाॅं भी चुनाव के कारण पेट्रोल नहीं है और वे सोच रहे है अब क्या करें........?
आलोक मिश्रा " मनमौजी "
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