आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया Saroj Prajapati द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

नीलम जैसे ही काम करके बैठी, तभी दरवाजे की घंटी बज गई। उसके बेटे ने दरवाजा खोला तो सामने उसके चाचा चाची थे। उसने नमस्ते कर, उन्हें अंदर बुलाया।
उन्हें देखकर नीलम व उसके पति एक साथ बोले "अरे भाई आज घर का रास्ता कैसे भूल गए। कोई आने की खबर भी नहीं दी तुमने!"
"भैया अपने घर आने के लिए खबर कैसे करनी ! चलो यह सब छोड़ो आप मिठाई खाओ।"
"पहले यह तो बता किस चीज की मिठाई खिला रहा है क्या खुशखबरी है!"
"भैया हमने नयी कार ली है। उसी की मिठाई खिलाने आए हैं आपको।" नीलम का देवर रूपेश खुश होते हुए बोला।
"अरे ,अभी 3 साल पहले देख तो तूने नयी कार खरीदी थी। फिर इतनी जल्दी।"
"भैया वह छोटी थी। कहीं घूमने फिरने जाओ तो सामान अच्छे से नहीं आता था। दूसरा मेरे सारे दोस्तों के पास बड़ी कार है इसलिए मुझे भी यह लेनी पड़ी।"
"वह तो ठीक है लेकिन बुरा मत मानना । माना तुम दोनों की अच्छी कमाई है लेकिन इस तरह की फिजूलखर्ची करना सही नहीं। ना जाने कब,क्या जरूरत पड़ जाए।' नीलम के पति राकेश ने समझाते हुए कहा।
"बस भैया, आपकी और भाभी की यही बात हमें समझ नहीं आती। अरे आज मैं जियो ना! कल की फिक्र क्यों करनी ! भाई खाओ पियो मौज करो। "
रुपेश हंसते हुए बोला।
अपने भाई की बात सुन राकेश कुछ ना बोला।
नीलम के देवर और देवरानी दोनों ही अच्छी कंपनियों में ऊंचे पद पर थे और दोनों ही हर महीने लाखों रुपए कमा रहे थे। हां जितना वह कमाते थे। उससे ज्यादा दोनों खुले हाथों से खर्च भी करते । साल में दो बार विदेश यात्रा। ब्रांडेड कपड़े और वीकेंड पर बाहर खाना खाना। उनके लाइफस्टाइल का हिस्सा था। दोनों बच्चों को उन्होंने महंगे बोर्डिंग स्कूल में डाला हुआ था।
ऐसा नहीं कि राकेश और नीलम के पास पैसों की कमी थी। वह दोनों भी सरकारी नौकरी करते थे। हां दोनों की कमाई उनके जितनी नहीं थी लेकिन अपने परिवार की हर जरूरत को वह अच्छे से पूरा कर रहे थे। साल में एक बार वह भी घूमने जाते थे। घर में भी जरूरत का सब सामान मौजूद था लेकिन फिजूलखर्ची ना के बराबर करते थे और यही आदत उन्होंने अपने बच्चों में भी डाली हुई थी।
जब नीलम के देवर देवरानी उनके साथ रहते तो नीलम अपनी देवरानी को समझाती रहती थी तब भी वह यही कहती "दीदी इतना किसके लिए कमा रहे हैं। हमें अपना स्टेटस मेंटेन करके रखना चाहिए। इससे सोसाइटी में इज्जत बनी रहती है।"
"तुम्हारी बात ठीक है अंजलि लेकिन स्टेटस मेंटेन करने का मतलब यह नहीं कि हम लोग दिखावे के लिए जहां हजार रुपए में काम चलता है वहां लाख खर्चें। समय का कुछ नहीं पता। कब क्या जरूरत पड़ जाए। कुछ नहीं कह सकते।"

"दीदी कल के बारे में इतना क्या सोचना। मैं तो आपसे भी यही कहती हूं ,अपने मन का करो। मेरी तरह खूब अच्छे कपड़े व गहने खरीदो, फ्रेंड्स के साथ क्लब जाओ अपना जीवन भरपूर रूप से जियो। कल की फिक्र में अपने आज को क्यों धुआं करना!"
उसकी बात सुन नीलम चुप हो जाती । धीरे धीरे उन्हें समझ आ गया था। इन दोनों को समझाने का कोई लाभ नहीं। कुछ ही दिनों बाद दोनों ने अपना अलग फ्लैट ले लिया। अब तो दोनों पर वैसे भी कोई रोक-टोक ना थी।
एक दिन नीलम के पास अंजली का फोन आया तो वह रो रही थी।
नीलम घबरा गई और बोली "क्या बात है अंजलि! तुम रो क्यों रही हो !क्या परेशानी है! बताओ मुझे।"
"दीदी लॉकडाउन के कारण मेरी कंपनी बंद हो गई और आपके देवर की कंपनी वालों ने 3 महीने से सैलरी नहीं दी है। इस समय हमारा बहुत बुरा हाल है। फ्लैट, कार और दूसरी चीजों की ईएमआई देनी है। समझ नहीं आ रहा कैसे करें। हमारा तो आपको पता ही है। जितना कमाया उससे ज्यादा उड़ाया। सेविंग के बारे में कभी सोचा ही नहीं। आप दोनों ने हमें कितना समझाया लेकिन हम अपने स्टेटस व झूठे दिखावे में लुटाते रहे और आज!" कहते हुए वह फिर रोने लगी।
नीलम ने उसे तसल्ली देते हुए बोली " अंजलि घबराओ मत। धीरज रखो। सब ठीक हो जाएगा। मैं तुम्हारी जेठजी से बात करती हूं। जितना हो सकेगा, हम तुम्हारी मदद करने की कोशिश करेंगे। लेकिन पहले तुम्हें खुद अपनी मदद करनी होगी!"
"वो कैसे दीदी!"
"तुझे पता ही है ना! हम दोनों की आमदनी सीमित है ।जिसमें एक हद तक ही हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं। इससे आगे तुम्हें सोचना होगा। लोक दिखावे के लिए जो तुमने स्टेटस मेंटेन किया हुआ है। उससे बाहर निकलो ।देखो तुम्हारे खर्चे अपने आप कम हो जाएंगे। लोग इस बारें में एक-दो दिन बात करेंगे, फिर चुप हो जाएंगे। अंजलि मैं तुम्हें एक बड़ी बहन के नाते समझा रही हूं। इंसान ही अपनी जरूरतों को बढ़ा व कम कर सकता है। अगर आज तुम यह बात समझ गई तो यह तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी जीत होगी और तुम्हारी परेशानी अपने आप आधे से ज्यादा खत्म हो जाएगी। "
"आप सही कह रही हो दीदी। आप दोनों की बात अगर हम पहले ही मान जाते तो आज यह दिन देखने ना पडते लेकिन इंसान जब तक ठोकर ना खाएं उसे समझ नहीं आता। यह बात आज मैं अच्छे से समझ गई हूं।"
"अच्छा अब तू ज्यादा परेशान मत हो। मैं और तेरे जेठ जी शाम को घर आएंगे फिर मिल बैठकर इस समस्या का समाधान निकालेंगे अपना ध्यान रखना।"
सरोज ✍️