अनचाहा रिश्ता (एक पहल) - 13 Veena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अनचाहा रिश्ता (एक पहल) - 13

"क्या हुआ?" स्वप्निल ने उसे पूछा.........

स्वप्निल के इस सवाल से मानो वो दंग रह गई। उसने अपने आसपास देखा यहा सिर्फ अनजान लोग थे और एक तरफ स्वप्निल दूसरी ओर समीर था। वो समझ गई जो उसने थोड़ी देर पहले जिया वो हक़ीक़त नहीं सिर्फ एक सपना था। " पर थोड़ा ज्यादा ड्रामा नहीं हो गया।" उसने अपने आपसे सवाल किया।


स्वप्निल अभी भी अपने जवाब के इंतेज़ार मे था उसने वहीं सवाल फिर दोहराया।

" नहीं। मैंने बस अभी अभी कुछ ओर सोचा है। हमारी समस्या के बारे में।" इस बार जवाब देना मीरा को जरूरी लगा।

" अब क्या सोचा तुमने। कहीं अब तुम्हे तलाक तो नहीं चाहिए ? इस तरीके से अगर हर घंटे तुम अपना मन बदलोगी तो कैसे चलेगा मीरा।" स्वप्निल समझ ही नहीं पा रहा था, की नाजाने अब क्या हो गया ?

दूसरी तरफ " अब कैसे समझाऊं आपको की अभी अभी मैंने पूरी पिक्चर देख ली आगे की कहानी क्या होगी इस बारे में" फिर भी सब्र रखते हुए उसने कहा, " नहीं नहीं । मुझे कोई तलाक नहीं चाहिए। पर लगता है आपको बड़ी जल्दी है, मुझसे पीछा छुड़ाने कि जो हर बात मे तलाक ला रहे है।"
"में तो बस...." स्वप्निल आगे कुछ बोल पाए इस से पहले मीरा ने उसकी बात काट दी।


" वो सब जाने दीजिए फिलहाल मेरी बात सुनिए, हम अभी पापा को बताने वाली बात छोड़ देते है। पहले हम आपस में देख लेते है। फिर जब सब ठीक हो जाएगा तो पापा को बता देंगे।" एक सांस मे पूरी बात बताने के बाद आखिरकार उसने चैन की सांस ली।

" ठीक है। लेकिन ये अचानक से हृदय परिवर्तन क्यो?" उसकी झेहन में कई सवाल उठ चुके थे, उसमें से इस वक्त एक ही पूछना उसे सही लगा।

एक प्यारी सी मुस्कान के साथ मीरा ने इस सवाल का जवाब सोचने का समय लिया, " हा याद आया। वो मेरे पापा बुजुर्ग है ना, में उन्हे कोई शॉक देना नहीं चाहती। कहीं उन्हे कुछ हो गया तो, में आपको उम्र भर माफ नहीं कर पाऊंगी। हमारा रिश्ता शुरू होने से पहले खत्म हो जाएगा।" उसने रोने के छलावे के साथ अपना मुंह रुमाल मे छिपा लिया ।


हालाकि स्वप्निल को मि पटेल इतने कमजोर दिल वाले इंसान लगे नहीं, और मीरा भी रोने जैसी शक्ल बनाए हुए थी पर आंख में से आंसू बाहर आने का नाम नहीं ले रहे थे। उसे इस विषय पर ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं लगी। उसे लगा ये भी ठीक ही है, पहले हम तो तय करले की हमे करना क्या है, फिर बताएंगे सब को।

" जैसा तुम ठीक समझो" उसने कहा।

" क्या ? आप सच में इस के लिए तैयार है?" मीरा

" हा । ये हमारा सीक्रेट है। ऑफिस में हम पहले जैसे थे वैसे ही रहेंगे। बॉस और एम्पलॉइ। बाहर तुम मुझे अपना दोस्त समझ सकती हो। " स्वप्निल अपनी बातो मे साफ था।

" दोस्त अच्छा है। लेकिन फिर आप पति कब बनेगे ?"

" फिलहाल दोस्त बन चुका हूं, वक्त आने पर पति भी बन जाऊंगा। तो ये डील तय रही?" स्वप्निल ने अपना हाथ मीरा की तरफ बढ़ाया।

मीरा ने तुरंत एक प्यारी सी मुस्कान के साथ उस हाथ को पकड़ लिया " हा। डील।"





मुंबई वापस लौटने के बाद दो दिनों तक मीरा का कही कोई पता नहीं था। स्वप्निल को अब चिंता हो रही थी।

समीर : तू बोहोत ज्यादा सोच रहा है। उसे कुछ नहीं हुआ होगा। वो बस डरी हुई थी, तो आराम करना चाहती होगी।

स्वप्निल : काश ऐसा ही हो। पर मुझे लगता है, कहीं वो ज्यादा बिमार ना पड़ गई हो। आखिर तू जानता है ना क्या हुआ था।

समीर : नहीं नहीं । एक रात के बाद कोई बीमार नहीं पड़ता।
स्वप्निल ने उसे गुस्से भरी नजर से घुरा।

कितनी बार कहना पड़ेगा उन चीज़ों के बारे में ऑफिस में मत बात कर।

तभी दरवाजा खोल मीरा केबिन में आती है।

"आपकी अंदमान वाली रिपोर्ट मैंने घर बैठ कर भी पूरी कर ली में स्मार्ट हू ना कहिए।" उसने आते ही स्वप्निल की तरफ देखते हुए कहा। समीर ने दूर से ही इशारों इशारों में उसकी तारीफ कर दी।

स्वप्निल : क्या बतवोगी मुझे दो दिनों तक कहा थी ? और तबियत तो ठीक है ना तुम्हारी ?

"अच्छा आपको अब मेरी याद आयी। मुझे लगा मुंबई आने के बाद आप वापस भूल गए की आपकी एक वाइफ भी है।" उसने अपने गले का धागा दिखाते हुए कहा।

ऐसी कोई बात नहीं है। मै तुम्हे कॉल करने के बारे में सोच ही रहा था, लेकिन फिर तुम्हारे डैड के बारे सोच कर पीछे हट गया। स्वप्निल ने काफी कम शब्दों
में अपनी सफाई अच्छे से दे दी।
"रहने दीजिए। मुझे आपकी मीठी बाते नहीं सुननी। " मीरा रूठने के दिखावा करती है।

स्वप्निल उसके पास आकर उसका हाथ पकड़ता है। तभी बिचमे खासी करते हुए समीर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है। "ऐसा लग रहा है, तुम दोनो अभी भी अंदमान मे हो। सपनो से जाग जाओ। ये मुंबई ऑफिस है। अब ये केबिन एक प्राइवेट केबिन होता जा रहा है। कल से मै भी यहां नॉक करते हुए आवुंगा।"

स्वप्निल : ड्रामा खत्म हो गया या बाकी है।

समीर : चेतावनी थी। अभी संभल जाओ दोनो। में अभी जा रहा हूं। Ok। बाय लंच मे मिलते है।

इतना कह वो केबिन से बाहर चला जाता है।

स्वप्निल : में झूठ नहीं बोलता मीरा। नाही मूझे मीठी बाते करना आता है। मुझे सच मे तुम्हारी फिक्र है।

मीरा : हाय माफी भी कितने अच्छे से मांग रहे है। ज्यादा देर इनसे गुस्सा रहु भी तो कैसे?

क्या हुआ? अभी भी नाराज हो? मुझसे बात नही करनी तुम्हे ? स्वप्निल ने एकसाथ नजाने कितने सवाल पूछ लिए।
मीरा : ठीक है। इस बार माफ कर देती हूं। पर अब आपको प्रॉपर बॉयफ्रेंड बनना सिखना पड़ेगा। मुझे कॉल करना हर घंटे मेसेज करना। बाहर घुमाने ले जाना। खाना खा ना। शॉपिंग करना और मेरे लिए भी कुछ धुड़ना। हमेशा गिफ्ट देना।

स्वप्निल : रुको रुको रुको। एक अकेला बॉयफ्रेंड इतना सब करता है।

मीरा : हा । करते है।

स्वप्निल : तुम्हे कैसे पता तुम्हारा तो कोई बॉयफ्रेंड नहीं था

मीरा : मेरे दोस्त के है। बॉयफ्रेंड बस प्यार ही करता है। पर बाकी की मांगे मैंने डाली है।

स्वप्निल : यकीनन तभी तुम्हे कोई मिला नहीं अब तक।

मीरा : आपका क्या मतलब है। मुझे तो मीरा मि, राईट मिल चुका है। मीरा अपनी बाहें उसके गले में डालती है।

तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो ? अगर मुझसे कोई गलती हो गई तो ? स्वप्निल ने उसके हाथो को अपने हाथ में लिया।

मीरा : नहीं होगी। में होने ही नहीं दूंगी। में आपको जानती हूं। और अपने आप को भी। में हमेशा आपको संभाल लूंगी।
स्वप्निल : इतनी सी हो। जिंदगी देखी तक नहीं है तुमने । और एक ऐसे इंसान को संभालना चाहती हो जिसके पास शायद तुम्हे समझने तक का वक्त ना हो ?

मीरा : नहीं मिला तो निकाल लेंगे वक्त।

"मतलब" स्वप्निल अभी भी भ्रम में था।

मीरा : ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। वैसे ही ये फैसला भी हम दोनों का था। जब आप काम मे मझुल होंगे तो मे आपके पास आ जाऊंगी। और जब मुझे आपके पास आने का वक्त नहीं मिला तो आप मुझ तक पोहोच जाना। देखा कितना आसान है। अगर दोनो की मर्जी है, तो पहल भी दोनो को करनी चाहिए ना। अकेला क्यों एक रिश्ता निभाएं।

स्वप्निल आंखे खोले उसे देख रहा था। क्या ये सच मे उम्र में उस से छोटी है? कितनी आसानी से उसने उसे समझा लिया। स्वप्निल को हमेशा शादी जैसे बड़े फैसले से डर लगता था। पर आज वो बस उस लड़की को देख रहा था जो सिर्फ एक धागे से उस से जुड़ी है।

लोग शादियों मे नजाने करोड़ों क्यों खर्च कर देते है ? जब की रिश्ते तो दिल से जुड़ते है, और दिलो को जोड़ने में पैसा नहीं लगता। अगर कुछ चाहिए तो सिर्फ आपका थोड़ा वक्त। वो भी ना मिल पाए तो आप अपना थोड़ा वक्त दे देना। अक्सर अपना अहम झुका कर हम ने रिश्तों को बनते देखा है। वहीं पूरी का पूरा जहाज हवाओ की वजह से डूब गया था। अपना सर और अहम इतना भी उचा मत कर लीजिएगा की आप के अपने भी ना नजर आए।