अनचाहा रिश्ता (ये कैसी कश्मकश?) - 12 Veena द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • किट्टी पार्टी

    "सुनो, तुम आज खाना जल्दी खा लेना, आज घर में किट्टी पार्टी है...

  • Thursty Crow

     यह एक गर्म गर्मी का दिन था। एक प्यासा कौआ पानी की तलाश में...

  • राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 14

    उसी समय विभीषण दरबार मे चले आये"यह दूत है।औऱ दूत की हत्या नि...

  • आई कैन सी यू - 36

    अब तक हम ने पढ़ा के लूसी और रोवन की शादी की पहली रात थी और क...

  • Love Contract - 24

    अगले दिन अदिति किचेन का सारा काम समेट कर .... सोचा आज रिवान...

श्रेणी
शेयर करे

अनचाहा रिश्ता (ये कैसी कश्मकश?) - 12

"नहीं पापा मेरे बारे में एक बार सोचिए। में क्या करूंगी आपके बिना।" रोते हुई मीरा ने उसके पापा याने मि पटेल के पास जाने की कोशिश की।
" नहीं बेटा वहीं रुक जा, वरना आज या तो ये नहीं या तो मे नहीं" हात में पकड़ रखी बंदूक को स्वप्निल की तरफ कर मि पटेल ने मीरा के बढ़ते कदमों को रोक दिया।

कुछ समय पहले,



अंदमान के एयरपोर्ट पर मीरा, स्वप्निल और समीर अपनी उड़ान के इंतेज़ार में बैठे थे। सुबह हुई बहस में अभी भी मौहोल गर्म था।
" कॉफी लेकर आए, यहां बैठकर काफी बोर हो गए है।" समीर ने स्वप्निल के कंधे पर हाथ रख कहा।
" चलते है।" स्वप्निल उठकर जाने लगा ही था, की समीर ने उसे रोक मीरा की तरफ इशारा किया।
मीरा अभी भी उन दोनों की तरफ ध्यान ना देने का दिखावा कर अपना मोबाइल चेक कर रही थी।
जबरदस्ती अपना गुस्सा कम करते हुए धीमी आवाज में स्वप्निल ने मीरा से पूछा, " कॉफी पिनी है मीरा।"
उसने सर हिलाकर सिर्फ हा में जवाब दिया, और फिर मोबाइल में लग गई।
समीर : देख तू समझदार है। मीरा अभी छोटी है, उसे रिश्तों की समझ नहीं है। नाही उसे शादी के बारे में कुछ पता है। ऐसे में अभी वो डरी हुई है। वो कितना भी ना दिखाए पर मुझे उसकी हरकतों से समझ आ रहा है।

एक सांस छोड़ते हुए स्वप्निल ने कहा , " मुझे भी पता है, वो फिलहाल डरी हुई है। पर शादी जैसा इंपॉर्टेंट फैसला में कैसे ले लू वो भी अकेले। खैर मेरी जाने दो मै तो निभा भी लूंगा लेकिन कल को शादी के ५ साल बाद अगर उसे ये शादी एक गलती लगी तो ? मुझे उसके खयाल जानने जरूरी है। मुझे समझना है, की वो आखिर अपनी शादी से चाहती क्या है ?"

"बस यही बात तुझे उस से अच्छी तरह समझानी है। बिना कोई गुस्सा, या नफरत दिखाते हुए। देख तू भी जानता है, में भी जानता हूं, मीरा बच्ची है, थोड़ी जीद करेगी थोड़ा हात पैर मारेगी, पर अंत में वो अपनी दिल की बात तुझे समझाएंगी तू बस थोड़ी शांति रख।" समीर ने उसे समझाते हुए कहा।

" ये कॉफी ले और जाकर आराम से उस से बात कर। थोड़ा उसे समझा, थोड़ा खुद समझ।" समीर ने कॉफी मग उसके हाथ में दियाा ।

" तू क्या करेगा ? " स्वप्निल

" में यहां तब तक कॉफी पिता हू। तुम दोनो आराम से बात कर लो" समीर ने गरम कॉफी की सीप लेते हुए कहा।

स्वप्निल कॉफी मग मीरा के हाथ में देकर उसके पास बैठ जाता है, " समीर सर को कहा छोड़ आये आप" मीरा ने आसपास तग लगाते हुए कहा।

" वो अपने घर बात कर रहा है, थोड़ी देर बाद आएगा" स्वप्निल

" आप कितने नसीबवाले है, आप को उनके जैसा दोस्त मिला। एक फोन कॉल पर दौड़ते हुए आ गए वो यहां।" उसने स्वप्निल की तरफ देखा, " मुझे आप से कुछ बात करनी है, शादी के बारे में।"

"हा कहो, में सुन रहा हूं" स्वप्निल ने मुस्कुराहट से जवाब दिया।

" कोई भी रिश्ता हम जबरदस्ती, या बिना सामने वाले इन्सान की मर्जी के बना नहीं सकते। इसलिए ये फैसला में आप पर छोड़ती हू। मैंने आज तक कभी अपनी मां को असलियत में नहीं देखा, हमेशा तस्वीर में घुरा हैं। पर मेरे पापा हमेशा केहते है, रिश्ते बनाना आसान होता है, तोड़ना तो उस से भी ज्यादा आसान, मुश्किले तो रिश्ता निभाने में आती है। में हमारे इस अनचाहे रिश्ते को भी मौका देना चाहूंगी। अगर आप की तरफ से हा हो तो।" इतना कह वो फिर कॉफी पीने लगी।

" सही है। में भी तुम्हे यहिं कहने आया था, तुम्हारी उम्र अभी छोटी है। मे नहीं चाहूंगा कि तुम्हारे साथ किसी तरह की नाइंसाफी हो। पर अगर तुम इस रिश्ते को मौका देना चाहोगी, तो हम इसे जरूर निभाएंगे।" स्वप्निल के मुंह से ये शब्द निकलते ही मीरा अपनी नजरे उसकी तरफ घूमा लेती है। फिर दोनो कुछ मिनिटों के लिए एक दूसरे को घूरते है।

" तो अब क्या करना है" स्वप्निल उसे छेढते हुए पूछता हैै।

" मेरे पापा को मनाएं पहले।" मीरा धीमी आवाज में जवाब देती है।

" ठीक है। अगर मैंने कहा कि जैसा तुम चाहोगी वैसा होगा। तो चलो तुम्हारे पापा से शुरुवात करते है।" इतना कह ३ नो मुबई वापस आने निकल पड़ते है।

एयरपोर्ट से वो सीधे पटेल मेंशन पोहाचते है। मि. पटेल तीनो कों देख चौंक जाते है।
" अरे आप तो हफ्ते बाद आने वाले थे ना। चलो कोई नहीं मेरी बेटी के आने से अब में चैन की नींद सो सकता हूं।" इतना कह मि पटेल मीरा को गले लगाते है।

"पापा हमे आपसे कुछ बात करनी है। आपने खाना खाया?" मीरा

"ये किस तरह की बात है जिसके लिए पहले मुझे खाना खा लेना जरूरी है। कोई मुखवास लेकर आई हो क्या बेटा" हस्ते हुए उन्होंने सवाल किया।

"नहीं जमाई लेकर आई हूं।" मीरा के इस जवाब को सुन स्वप्निल और समीर चौक गए।

"मीरा डफर। इस तरीके से नहीं बताना था।" स्वप्निल ने मीरा को चुटी काटी।

"जमाई। ये किस तरह का मजाक है। तुम्हे अच्छे से पता है, मुझे इस तरह की बकवास बिल्कुल पसंद नहीं है।" मि पटेल के चेहरे के भाव बदलने लगे थे।

मीरा ने सारी बाते अपने पिता को उसके तरीके से समझाई। या फ़िर हम कह सकते है, कम से कम उसने समझाने की कोशिश तो पक्की की।

"क्या शादी? किस तरह की शादी? वो आदिवासी होंगे। हम ऐसी शादियां नहीं मानते।" मि पटेल की आवाज में गुस्सा साफ देखा जा रहा था।

" पापा अगर आपने इस शादी को नहीं माना तो तो में पता नहीं क्या कर लूंगी।" मीरा भी गुस्से में चिल्लाई।

" मीरा शांत हो जाओ और आप मि पटेल..." स्वप्निल आगे कुछ बोल पाए उस से पहले मि पटेल गरजे " अब बस ये बाप अपनी बेटी से बात करेगा, और कोई बीच मे कुछ नही बोलेगा"

" पर कब से आप दोनो ही बाते कर रहे थे, हम ने तो अभी बोलना शुरू किया है और।" समीर की इतनी बाते सुन मि पटेल ने एक गुसेभरी नजर उस पर डाली, नजर पड़ते ही वो शांत हो गया।

"पापा आप अपने जमाई से इस तरीके से बात नहीं कर सकते।" मीरा फिर गुस्से से बोली।

" जमाई कौन जमाई अगर सही वक्त पर ये शादी कर लेता तो तुझसे आधी उम्र के बच्चे होते इसे आज। बड़ा आया मेरा जमाई बनने वाला।" मि पटेल का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था।

"आप चाहे जो कह ले और चाहे जो कर ले मैंने अपना मन बना लिया है, और अब ये अपना फैसला नहीं बदलेगा" मीरा

" क्या बात कर रही हो मीरा। और ये किस तरह बात कर रही हो अपने पापा से" स्वप्निल को हालात समझ नहीं आ रहे थे।

" नहीं बॉस रुक जाएं। आप हम बाप बेटी के बीच में मत आए। अगर ये जिद्दी है, तो मै इनसे भी कई ज्यादा जिद्दी हू। आज में इन्हे इनकी जिद मे हराकर मानूंगी। इन्हे आप को मेरा पति मानना होगा।" मीरा की आंखो मे गुस्सा देखा जा सकता था।

"तू मेरी सग्गी बेटी है। में भी तेरा बाप हू बाप। तुझे जिंदा जला दूंगा पर इसके हवाले कभी नहीं करूंगा। अरे हैसियत क्या है इसकी। इस से ज्यादा मेरा मैनेजर कमाता है। अपनी इकलौती बेटी किसी फकीर के हाथ में कैसे दे दू में।" मि पटेल ने स्वप्निल की तरफ देख मुंह घूमा लिया।

मीरा को अपनी बाहों में खींच स्वप्निल ने कहा " मि पटेल मेरी कमाई कम ही सही। पर मीरा को आप से ज्यादा खुश रखने का वादा करता हूं। आप जिसे आग लगाने की धमकी दे रहे है, अब वो आप की बेटी नहीं, मेरी बीवी भी है। इसलिए आप अपनी जबान संभाल कर बात करे तो ही अच्छा होगा।"
ये सारी बातें सुन मीरा की आंख में दो आंसू छलक कर गिर पड़े, उसने अपना सर स्वप्निल के दिल पर रख २ मिनिट के लिए आंखे बंद ही की थी के मि पटेल फिर बीच मे बोल पड़े, " इन्हीं सारी मीठी बातो से मेरी बेटी को फसा सकते हो उसके बाप को नहीं। अपने कमरे में जाओ मीरा अभी"

मि पटेल मीरा को स्वप्निल से अलग करने की कोशिश करते है। लेकिन अपनी कोशिशों से नाकामयाब हो वो अपने सिक्योरिटी को अंदर बुलाते है।

" सिक्योरिटी मीरा को उस आदमी से अलग कर उसके कमरे में पोहचा दो। इन दोनों को धक्के मार कर मेरे मेंशन से बाहर फेंक दो।"

मि पटेल का फ़रमान आते ही, सिक्योरिटी समीर और स्वप्निल को पीटना शुरू कर देते है। मीरा वहीं बैठ उसे देख रो रही होती हैं। सिर्फ १५ मिनिटों की मार के बाद दोनो लहूलुहान हो बेजान की तरह जमीन पर गिर जाते है।
"आप जो चाहें कर लीजिए पापा, पर मैंने इनसे शादी की है। ये शादी में अपने आखरी दम तक निभाऊंगी।" मीरा रोते रोते स्वप्निल के पास जाती है। पीछे कहीं दूर दूर से एक गाना धीमे स्वर में गूंजता है, कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को।

" में आपकी बोहोत शुक्र गुजार हू कि आपने मुझे इतनी अच्छी जिंदगी दी। में आपका दिया शरीर तो छोड़ नहीं सकती। पर आज अभी अपने पति के साथ आपकी इस शानो शौकत को अलविदा केहती हू। अगर अब आपने मुझे रोकने की कोशिश की तो तो में" मीरा अपने पास मे खड़े सिक्योरिटी की बंदूक अपने हाथ में ले लेती है। " अपने आप को गोली मार दूंगी"

"मीरा नहीं " स्वप्निल और मि पटेल दोनो एकदम चिल्ला उठते है। मीरा धीरे से स्वप्निल को उठाने को कोशिश करती है।

" वा बेटा वा, दो महीने पहले मिले लड़के के लिए तूने अपने जन्म दिए बाप का बीस सालो का प्यार खत्म कर दिया। देख रहीं हो ना मीरा की मां आज हमारी बेटी मुझे कौनसा दिन दिखा रही है।" मि पटेल सोफे पर बैठ रोने लगे।

" नहीं पापा। मुझे आज भी उस से ज्यादा आप प्यारे है। लेकिन इस प्यार के लिए में हमारा रिश्ता नहीं तोड़ सकती। मुझे माफ़ कर दीजिए पापा।" मीरा मि पटेल के पास जाती है। मि पटेल उसके हाथ में से गन छीन लेते है।

" में तेरे लिए कुछ भी कर सकता हूं मीरा। तुझे नहीं पता बेटा इकलौते बच्चे को खोने को दुख।" मि पटेल गन अपने सर पर लगा लेते है।

"नहीं पापा प्लीज" मीरा उन्हे रोकने की कोशिश करती है। स्वप्निल और समीर ये मंज़र अपनी आंखो से देख दंग रह जाते है।

"नहीं पापा मेरे बारे में एक बार सोचिए। में क्या करूंगी आपके बिना।" रोते हुई मीरा ने उसके पापा याने मि पटेल के पास जाने की कोशिश की।
" नहीं बेटा वहीं रुक जा, वरना आज या तो ये नहीं या तो मे नहीं" हात में पकड़ रखी बंदूक को स्वप्निल की तरफ कर मि पटेल ने मीरा के बढ़ते कदमों को रोक दिया।

अब आगे

फट एक जोर की आवाज से मीरा की नींद खुल गई। आसमान में अचानक आए तूफ़ान ने मानो मीरा को वापस असलियत मे खीच लिया।
"क्या हुआ?" स्वप्निल ने उसे पूछा.........