‘पापा, दीदी को मत ले जाओ. मैं अब उसके संग कभी नहीं खेलूंगा. प्रॉमिस पापा. मैं उन्हें परेशान भी नहीं करूंगा.’ राजनाथ ने पन्द्रह साल की रानू का हाथ पकड़कर जैसे ही घर की दहलीज से बाहर कदम रखा तो अनिकेत पीछे से आकर उनका शर्ट खींचते हुए उनसे लिपट गया.
राजनाथ ने पीछे मुड़कर तेरह साल के अनिकेत पर नजर डाली. उनसे नजरें मिलते ही अनिकेत सहमते हुआ उनसे दूर जाकर खड़ा हो गया.
‘मम्मी, आप पापा को समझाओं न ! दीदी वहां हमारें बिना कैसे रह पाएगी ?’ अनिकेत लगभग रोते हुआ मम्मी के पास पहुंच गया.
अनिकेत की गीली आंखें देखकर गरिमा का दिल पसीज गया लेकिन फिर पिछली कुछ बातें याद आते ही उसने अपने मन पर पत्थर रख अनिकेत को पीछे धकेलते हुए रानू के कपड़ों से भरा बैग दरवाजे के बाहर रख दिया.
चलते हुए रानू बार बार पीछे मुड़कर अनिकेत को देखकर मुस्कुराती जा रही थी लेकिन अनिकेत की आंखों से उसकी मुस्कुराहट देखकर आंसू टप टपकर बहने लगे.
राजनाथ ने कार का दरवाजा खोलकर रानू को अन्दर बिठा दिया और वापस आकर उसका बैग लेकर पीछे डिक्की में रख दिया फिर कार की अगली सीट पर आकर बैठकर कार स्टार्ट कर दी.
‘मम्मी ........ दीदी को रोक लो.’ अनिकेत की रुलाई फूट पड़ी. अब तक अपने आप को सम्हालने के बाद गरिमा के सब्र का बांध टूट गया और वह अनिकेत से लिपटकर रोने लगी. उसकी जेहन में कुछ दिनों पहले की बातें ताजा होकर घूमने लगी.
गरिमा राजनाथ के साथ बैठकर बतियाते हुए सुबह की चाय पी रही थी.
‘गरिमा, तुम्हें नहीं लगता अब हमें रानू के बारें कोई फैसला ले लेना चाहिए.’ राजनाथ ने चाय की चुस्की लेते हुए गरिमा की ओर देखा.
‘फैसला ? कैसा फैसला राज ?’ गरिमा ने आश्चर्यमिश्रित एक अनजान भय से अपने पति को देखा.
‘अब समझकर भी नासमझ होने का ढ़ोंग मत करों.’ राजनाथ ने कड़क स्वर में कहा.
गरिमा अभी कुछ कहने जा ही रही थी कि अनिकेत दौड़कर आया और राजनाथ के पीछे जाकर अपने दोनों हाथों से उनकी आंखें बंद कर दी.
अनिकेत की अचानक की गई इस हरकत से राजनाथ को गुस्सा आ गया.
‘ओफ्हो ! रानू ये क्या हरकत है ? दूर हटो. मुझे चाय पीने दो.’ राजनाथ ने डांटते हुए कहा.
‘पापा उल्लू बन गए.’ राजनाथ की डांट को अनसुना करते हुए अनिकेत ताली बजाकर जोर जोर से हंसने लगा.
‘ये क्या पागलों वाली हरकत है ? देखता नहीं मेरे हाथ में चाय का कप है. जा भाग यहां से.’ अनिकेत को हंसते हुए देख राजनाथ का स्वर और ऊंचा हो गया.
राजनाथ की झिड़की सुनकर अनिकेत मन मसोसकर पैर पटकते हुए वहां से चला गया.
‘देखा इसे. कल रात को घोड़ा बनकर रानू को पूरे घर की सवारी करवा रहा था और आज अभी कुछ सोचे समझे बिना उसी की तरह की हरकत करने लगा.’ राजनाथ ने अपनी अधूरी रह गई बात को आगे बढ़ाते हुए बची हुई चाय पूरी कर ली.
‘बच्चा है. इसमें चिन्ता करने वाली बात ही क्या है ?’ गरिमा ने हल्के अंदाज में बोलते हुए राजनाथ को देखा.
‘बच्चे से बड़ा हो रहा है अब वह इसलिए उसकी इस तरह की हरकते चिन्ता की ही बात है.’ गरिमा की बात सुनकर राजनाथ ने जवाब दिया.
‘हर बच्चा एक न एक दिन बड़ा होता ही है राज. कुछ जल्दी समझदार हो जाते और कुछ थोड़ी देर से.’ गरिमा ने अपने हाथ में पकड़ रखा खाली कप टेबल पर रखते हुए कहा.
‘अनिकेत समय के साथ सही उम्र में समझदार हो जाए यही तो चाहता हूं. इसलिए तो कह रहा हूं अब रानू के बारें में हमें जल्दी ही कोई फैसला ले लेना चाहिए.’ राजनाथ ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा.
‘अब इन सब में रानू कहां से आ गई ?’ कहते हुए गरिमा सतर्क हो गई.
‘गरिमा, यह समय भावनाओं में बहकर जैसा चल रहा है वैसा ही चलाये रखने का नहीं है. रानू के साथ रहकर अनिकेत भी उसी की तरह नादानी और मूर्खताभरी हरकतें करने लगा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो अनिकेत कभी भी एक जिम्मेदार इंसान नहीं बन पाएगा और उसका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.’ राजनाथ उठकर गरिमा के पास आ गए.
‘तुम बहुत ज्यादा ही सोचते हो. रानू बड़ी बहन है अनिकेत की. अब वह दो घड़ी अपनी बहन के साथ खेलकर उसका मन बहला लेता है तो बुरा क्या है इसमें. वैसे भी तुम रानू को घर से बाहर भी तो नहीं निकलने देते.’ कहते हुए गरिमा भावुक हो गई.
‘मैं भी रानू का पिता हूं गरिमा पर उसके साथ ही अनिकेत भी हमारा ही बेटा है. रानू की अपनी जिन्दगी के तो कोई मायने है नहीं . जब तक जियेगी तब तक उसके पागलपन को हमें सहना ही होगा. उसके संग रहते हुए अनिकेत भी उसकी तरह ही होता जा रहा है.’
‘कहना क्या चाहते हो राज ? रानू पागल नहीं है. उसमें समझ कम है तो उसमें उस बेचारी का क्या कसूर है. मेरे लिए अपने दोनों बच्चें एक जैसे ही है.’ राजनाथ की बात सुनकर गरिमा का स्वर तेज हो गया.
‘मैं अनिकेत को डॉक्टर बनाना चाहता हूं. उसके लिए उसका अब पढ़ाई पर ध्यान देना बहुत जरूरी है लेकिन वह अपना सारा समय रानू के साथ अजीबोगरीब हरकते करने में ही गुजार देता है. उसे रानू से दूर करना होगा गरिमा.’
‘पागल हो गए हो तुम राज. अपनी महत्वकांक्षा की आग में दोनों बच्चों की भावनाओं को क्यों जलाने पर तुले हो. मैं अनिकेत को अपने से दूर नहीं कर सकती तो फिर रानू के बारें में तो सोचा भी नहीं जा सकता.’
‘हकीकत को स्वीकार करों गरिमा. आजकल कई मेन्टल हॉस्पिटल है जो पेशेन्ट का ख्याल घर के सदस्य की तरह ही रखते है. फिर रानू वहां रहेगी तो उसे समय समय पर मेडीकल ट्रीटमेन्ट भी मिलती रहेगी और हमारी परेशानी की कम हो जाएगी.’
‘मेरी बेटी मेरे लिए परेशानी की वजह नहीं है.’ कहते हुए गरिमा गुस्सा होकर वहां से चली गई.
‘मम्मी, दीदी अब सच में वापस नहीं आएगी ?’ सहसा अनिकेत का रोता हुआ स्वर सुनकर गरिमा वापस वर्तमान में आ गई.
गरिमा ने अनिकेत की आंखों में तैरते हुए प्रश्नों के साथ निर्दोष प्यार को भी पढ़ लिया. वह उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे पाई और वहां से खड़ी होकर अन्दर आ गई.
सोफे पर पसरकर आंखें बंद कर अपने मन को वह शांत करने का प्रयास कर रही थी लेकिन इस वक्त रानू से जुड़ी एक एक बात उसे याद आकर परेशान किए जा रही थी. रानू के जन्म से लेकर अब तक वह उसके आत्मसम्मान के लिए लड़ती रही. कभी नाते रिश्तेदारों से, कभी आस पड़ौसी से तो कभी अपने ही पति से. अपनी इस मौन लड़ाई में वह कभी ही पीछे नहीं हटी लेकिन उस रात जाने क्यों वह खुद ही अपने से हार गई और राजनाथ के फैसले पर न चाहते हुए भी अपनी मौन स्वीकृति दे दी.
‘ये देखा, अनिकेत का इस बार का रिपोर्ट कार्ड. हर सब्जेक्ट में पिछली बार से कम अंक आए है. यह सब रानू की वजह से ही हुआ है. उसके संग खेलते हुए वह न तो पढ़ाई पर ध्यान देता है और न ही अपने आचरण पर.’ अनिकेत का मंथली रिपोर्ट कार्ड देखकर राजनाथ ने उस रात आगबबूला होते हुए जोर से कहा.
‘बच्चा है. अब इस बार मार्क्स थोड़े आगे पीछे हो गए तो उसमें हर्जा ही क्या है और इन सब में आप हर बार रानू को बीच में न लाया करों.’ गरिमा ने चिढ़ते हुए कहा.
‘एक ही तो लड़का है हमारा. फिर रानू को तो पूरी जिन्दगी ऐसे ही गुजारनी है. अनिकेत उसकी तरह आचरण कर उसकी उम्र के बच्चों की तुलना में पीछे रह जाएगा.’
‘हर वक्त बस एक ही बात. कहां छोड़ आऊं इसे ? इसके पिता होकर तुम्हें इस तरह की बातें करते हुए शर्म आनी चाहिए राज.’ गरिमा की आवाज में दर्द समाया हुआ था.
‘मैं अपने फैसले तुम्हारी तरह भावनाओं में बहकर नहीं लेता. मैंने तो उसी वक्त तुम्हें इसके बारें में फैसला लेने के लिए कह दिया था जब यह तुम्हारें पेट में थी और हमें इसके एबनार्मल होने के बारें में पता चला था. पर अब इसके पीछे अपने बेटे की जिन्दगी बर्बाद होते में नहीं देख सकता.’ राजनाथ की बात सुनकर गरिमा पूरी तरह से टूट गई.
‘जाने तो राज, तुम मेरी पीड़ा कभी नहीं समझ पाओगे.’ कमरे में खेलती हुई रानू पर नजर डालते हुए गरिमा ने अपनी आंखों में उभर आए आंसुओं को पोंछते हुए जवाब दिया.
‘अब तुम्हारें रोने धोने से पसीजने वाला नहीं हूं मैं. रानू मानसिक रूप से कमजोर है और हम जैसे सामान्य लोगों की दुनिया में जीने के लिए नहीं बनी है. वहां मेन्टल हॉस्पिटल में उसे उसकी तरह के ही साथी मिलेंगे तो कम से कम लोगों की हंसी का पात्र तो नहीं बनेगी. हम सबकी भलाई इसी में है गरिमा. मैं भी अन्दर तक हिल जाता हूं जब कोई मेरी बेटी को पागल कह जाता है.’
‘अब जब फैसला ले ही चुके हो तो तुम्हें जो सही लगे वही करों.’ गरिमा और ज्यादा देर तक वहां न बैठ सकी.
आगे के पन्द्रह दिन गरिमा अजीब सी कशमकश में जीती रही. राजनाथ ने रानू को मेन्टल हॉस्पिटल पहुंचाने की सारी तैयारियां कर ली.
गरिमा की बंद आंखों के कोनों से आंसू की दो बूंदे छलक आई. तभी उसके कानों में अनिकेत की आवाज पड़ी.
‘मम्मी, दीदी वापस आ गई. दीदी वापस आ गई.’
गरिमा फुर्ती से उठकर बाहर आ गई. राजनाथ हाथ पकड़कर रानू को कार से बाहर निकलने में मदद कर रहे थे. अनिकेत के पीछे पीछे वह दौड़कर रानू के पास पहुंच गई.
अनिकेत रानू का हाथ थामकर वहां से अन्दर जाने लगा. गरिमा राजनाथ को एकटक देखे जा रही थी. वह समझने की कोशिश नहीं कर पा रही थी कि आखिर उसके मन में चल क्या रहा है.
‘यहां से निकलने के बाद मन में हलचल होती रही. जैसे जैसे मेन्टल हॉस्पिटल के नजदीक पहुंचता जा रहा था मेरा मन बैठा जा रहा था. फिर तुम्हारी कही हुई बातें दिमाग में कौंध गई. तुम कहा करती हो न कि भगवान उसकी इस तरह की मजबूर संतान को उसी परिवार में भेजता जहां उसे अपनी संतान के लिए संपूर्ण प्यार और सुरक्षा मिलने की खात्री होती है.’ राजनाथ बोले जा रहे थे और गरिमा उन्हें उनके चेहरे पर उठते भावों को पढ़े जा रही थी.
‘आज मैं ईश्वर के दिए गए इस प्रसाद को ठुकराकर बहुत बड़ी गलती करने जा रहा था. रानू हमेशा ही हमारे साथ रहेगी. अनिकेत भले ही डॉक्टर बने या न बने यह तो भविष्य की बात है लेकिन वह एक जिम्मेदार और काबिल भाई जरुर साबित होगा.’ दोनों बच्चों को हाथ में हाथ डाले अन्दर जाते देख राजनाथ की आंखें भींग गई. गरिमा ने अपना सिर उनके कन्धे पर टिका लिया.