चैप्टर 22
रविवार, भूमि के नीचे।
रविवार की सुबह जब सबकी नींद खुली तो किसी भी चीज़ के लिए कहीं कोई जल्दी या हड़बड़ी नहीं थी। चूंकि पहले से निश्चित था कि आज सिर्फ आराम करेंगे वो भी इस बेमिसाल और अनजान गुफा में, तो ये सोच कर ही बहुत सुकून था। हम खुद इस माहौल में ढल चुके थे। मैंने तो चाँद, सूरज, तारे, पेड़-पौधे, घर या नगर के बारे में सोचना ही छोड़ दिया था। एक अजीब सी दुनिया में होकर हम इन सबके खयालों से दूर थे।
ये चित्रमय कंदरा विशाल और अभूतपूर्व था। ग्रेनाइट की मिट्टी को भिगोते हुए वो नहर शान्ति से बह रहा था। जो पानी उस छिद्र से निकलते समय इतना गर्म था, यहाँ अब उतना ही शीतल था जिसे आसानी से पिया जा सकता था।
भोजन के बाद मौसाजी ने तय किया कि वो अब कुछ देर वो अपने लेखन और हिसाब-किताब को समय देंगे।
"सबसे पहले," उन्होंने कहा, "हमें ये प्रमाणित करना है कि हम सही दिशा में हैं और हम इससे अवगत हैं। उम्मीद है कि जब ऊपर की तरफ लौटूँ तो अपनी खोजयात्रा से एक ऐसा मानचित्र बना सकूँ जो इस भूमण्डल के एकदम सीध में इस यात्रा को दर्शा सके।"
"ये तो वाक़ई दिलचस्प काम होगा मौसाजी; लेकिन क्या आप इतनी बारीकी और सटीक तरीके से सब चीजों पर गौर कर पाएँगे?
"मैं कर सकता हूँ। मैं किसी भी मौके पर दिशाओं और ढलान को नोट करने से नहीं चूका हूँ। ये कम्पास लो और देखो कौन सी दिशा बताती है।"
मैंने ध्यान से उस यन्त्र को देखा।
"दक्षिण पूर्व से पूर्व की ओर।"
"बिल्कुल सही।" प्रोफ़ेसर ने तुरंत उसे नोट किया और फिर कुछ हिसाब करने लगे। "मेरे हिसाब से हमने शुरुआत से अभी तक ढाई सौ मील की यात्रा कर ली है।
"तब तो अटलांटिक की लहरें हमारे ऊपर ही मचल रहीं होंगी।"
"बिल्कुल।"
"तब तो ये भी सम्भव होगा कि हमारे ऊपर ही उन लहरों में भयंकर तूफान आया होगा जिससे जहाज और उनके नाविक लड़ रहे होंगे?"
"परिस्थितियों के हिसाब से सम्भव है।" मौसाजी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"और वो व्हले मछलियाँ भी झुंड में खेलते हुए समुद्र के आखरी तल यानी हमारे इस अटल कारागार के छतों को छू रहीं होंगी?"
"अब शांत हो जाओ; उनसे इसके टूटने का कोई खतरा नहीं है। हम वापस अपने हिसाब पर आते हैं। हम स्नेफल्स के दक्षिणी पूर्वी भाग से ढाई सौ मील पर है, और मेरे पहले लिखित नोट के हिसाब से अभी हम सोलह गाँव जितने, नीचे की तरफ हैं।"
"सोलह गाँव, यानि पचास मील!" मैं चीखा।
"मुझे भी यही लगता है।"
"लेकिन यह तो वैज्ञानिकों के हिसाब से पृथ्वी के सतह की मोटाई के हिसाब से ज़्यादा है।" मैंने अपने खगोलीय ज्ञान के सहारे जवाब दिया।
"मैं उस दृढ़ कथन की अवहेलना नहीं कर रहा।" उन्होंने शांति से कहा।
"और ताप वृद्धि के सभी सिद्धान्तों के अनुसार यहाँ अभी पंद्रह सौ डिग्री रेऔमूर का तापमान हो सकता है।"
"बिल्कुल हो सकता है, आगे भी बताओ मेरे बच्चे।"
"इस अवस्था में फिर ग्रेनाइट ऐसे नही रहेगा, वो तरल रूप में सम्मिश्रित रहेगा।"
"लेकिन तुमने देखा मेरे बच्चे कि ऐसा कुछ नहीं है और वास्तविकता, जो कि स्वाभाविक और ज़िद्दी होता है, सभी सिद्धान्तों पर हावी होता है।"
"ना चाहते हुए भी मुझे इनपर यकीन हो रहा है और इसलिए मैं चकित भी हूँ।"
"थर्मामीटर के हिसाब से वास्तविक तापमान क्या है?" उन्होंने दार्शनिक होते हुए पूछा।
"सत्ताईस छः दहाई।"
"फिर तो ये चौदह सौ, चौहत्तर डिग्री और चार दहाई वाला विज्ञान ग़लत है। क्योंकि जो घट रहा है वो इन सिद्धांतों को नकार रहे हैं। यहाँ सिर्फ हम्फरी डेवी के सिद्धांत सही हैं। वो सही थे और उनका अनुसरण कर मैंने सही किया। तुम्हें इस बारे में कुछ कहना है?"
अगर मुझे कुछ कहना होता तो बहुत कुछ कह देता। मैं हम्फरी डेवी के सिद्धांतों को नहीं मान सकता था; मुझे अभी भी ताप वृद्धि के अन्य सिद्धातों पर भरोसा था, हालाँकि मुझे यहाँ महसूस नहीं हो रहा था।
मैं इस बात को मानने के लिए तैयार था कि हो सकता है इस ज्वालामुखी का खोह उन तत्वों या पदार्थों से ढका होगा जिनपर ताप का असर नहीं होता और ना ही बगल से रिसने का मौका मिलता होगा। मेरे इस तथ्य का सहायक वो गर्म फव्वारा था।
किसी बेतुके, लंबे या नए बहस में पड़ने के बजाय मैंने मौसाजी की बातों को, बिना खंडन स्वीकार लिया।
"मौसाजी, मैं आपके सभी तर्कों और तथ्यों को सही मानता हूँ, लेकिन फिर मैं एक निष्कर्ष पर भी पहुँचता हूँ।"
"वो क्या है मेरे बच्चे, बताओ मुझे।" मौसाजी ने व्यंग्यात्मक होते हुए कहा।
"अभी हम जहाँ हैं, वो आइसलैंड के अक्षांश में स्थित है जिसकी गहराई पंद्रह सौ तिरासी गुणे तीन मील है।"
"पंद्रह सौ तिरासी और एक पौना।"
"ठीक है, सोलह सौ का अनुमान रख लेते हैं। अब इन सोलह सौ में से हमने सोलह पूरे कर लिए।"
"ठीक है, इसके बाद?"
"अगर घूम कर भी देखें तो पिच्यासी से कम नहीं होंगे।"
"बिल्कुल।"
"और हम लोगों को बीस दिन हो चुके हैं।"
"हाँ।"
"हमने पहले सौ में से सिर्फ सोलह ही पार किये हैं। अगर हम ऐसे ही चले तो अगले दो हज़ार दिन, मतलब लगभग साढ़े पांच साल तक नीचे ही जाते रहेंगे।"
मौसाजी ने हाथ बांध कर सब सुना, कुछ कहा नहीं।
"बिना किसी सवाल के अगर हम इसकी सीध के बजाय क्षैतिज दिशा में बढ़ते हैं तो समय इतना बीत चुका होगा कि हमें केंद्र में पहुँचने के बजाय ऊपर ही इसकी गोलाई के चक्कर में घूमते रहेंगे।"
"अपने हिसाब को फिर से देखो।" मौसाजी ने अपने पुराने अंदाज़ में तुनकते हुए कहा, "क्या आधार है इसका? कैसे पता कि ये रास्ता हमें अपने गंतव्य तक नहीं ले जाएगा? सौभाग्य से मेरे से पहले किसी ने कर दिखाया है और जब कोई सफल हो चुका है तो मुझे क्यों नहीं सफलता मिलेगी?"
"मुझे उम्मीद है और विश्वास भी की आप होंगे, फिर भी मैं आपकी आज्ञा से..."
"मेरी आज्ञा से तुम्हें चुप रहना चाहिए," प्रोफ़ेसर हार्डविग ने कहा, "जब तुम ऐसे बेतुके बात करते हो।"
मैं देखते ही समझ गया कि पुराने प्रोफ़ेसर की आत्मा उनपर हावी है। उनके गुस्से को बढ़ाने से पहले ही मैंने उस विषय को त्याग दिया।
"इसके बाद," उन्होंने कहा, "मैनोमीटर को देखो। क्या बता रहा है?"
"काफी मात्रा में दबाव है।"
"बहुत सही। अब देखना, जैसे हम नीचे उतरते जाएँगे कम तापमान के आदि होते जाएँगे, जिससे हमें कोई तकलीफ नहीं होगी।"
"हाँ, लेकिन कानों में फिर भी दर्द हो सकता है।" मेरा निराशावादी जवाब था।
"मेरे बच्चे, उसकी चिंता मत करो और एक बार तुम्हारे फेफड़े तक बाहरी हवा जाएगी फिर ये सब तकलीफें दूर हो जाएँगी।"
"बिल्कुल।" मैंने कहा, क्योंकि मैंने मन बना लिया था कि उनकी बातों को नकारना नहीं है। "मुझे ऐसा लग रहा है कि जब हम इस घुप्प अंधेरे में उतरेंगे तो चकित करने वाले अनुभव होंगे। आपने ध्यान दिया कि यहाँ किस तरह आवाज़ प्रसारित होती हैं?"
"बिल्कुल ध्यान दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पृथ्वी के नीचे उतरने से बहरेपन का भी इलाज होता है।"
"लेकिन मौसाजी, फिर..." मैंने कुछ गौर करते हुए कहा, "इसकी सघनता तो बढ़ती जाएगी।"
"हाँ, एक नियम के हिसाब से लेकिन वो उतना प्रमाणित नहीं है। ये बात सही है कि जैसे हम नीचे जाएँगे हमारा भार कम होता जाएगा। ये तो तुम भी जानते हो कि पृथ्वी के सतह पर वजन प्रभावी होता है लेकिन नीचे केंद्र में ये प्रभावी नहीं होता।"
"हाँ ये तो मैं जानता हूँ, लेकिन जैसे ही हम नीचे उतरेंगे क्या वातावरण में पानी की सघनता नहीं बढ़ेगी?"
"मैं जानता हूँ; जब सात सौ दस वायुमण्डल का दबाव हो तो होना ही है।" मौसाजी ने दबी आवाज़ में कहा।
"जब हम एकदम नीचे होंगे?" मैंने स्वाभाविक बेचैनी से पूछा।
"नीचे जितना जाएँगे, सघनता उतनी ज़्यादा होगी।"
"फिर हम इस वायुमंडलीय कोहरे से कैसे निकलेंगे?"
"मेरे होनहार भांजे, तब अपने जेब में कंकड़ भर के हम निकल जाएँगे।" प्रोफ़ेसर हार्डविग ने कहा।
"यकीनन मौसाजी! आपके पास तो हर चीज़ का जवाब है।" मेरा एकमात्र जवाब था।
मुझे लगने लगा था कि मैंने मौसाजी को गुस्सा दिलाने से खुद को बचा लिया है इसलिए और किसी मनगढ़ंत सवाल या अनुमान से बात आगे नहीं बढ़ानी चाहिए।
फिलहाल ये तो साबित हो चुका था कि हवा में एक दबाव के तहत वातावरण में एक सख्त घनत्व बनेगा जिसके हम आदि तो होंगे लेकिन फिर भी रुकना पड़ेगा, चाहे कोई भी दलील हो। वास्तविकता वैसे भी हर बहस पर हावी होता है।
इसलिए मैंने सोचा बहस नहीं करने में भलाई है। मौसाजी ने उदाहरण में सैकन्युज़ेम्म को लपेट लिया होता। आइसलैंडर के सफर की वास्तविकता पर संदेह अगर करना है तो उसके लिए सिर्फ एक तथ्य है:
सोलहवीं शताब्दी में ना तो बैरोमीटर और ना ही मैनोमीटर का अविष्कार हुआ था, तब सैकन्युज़ेम्म ने कैसे पता लगाया कि वो पृथ्वी के केंद्र तक पहुँच गया है?
ये अनुत्तरित और वाजिब सवाल को मैंने अपने तक सीमित रखा था और आने वाले खतरनाक पलों के लिए साहस जुटा रहा था, जबकि ये भी नहीं पता था कि इस रोमांचकारी यात्रा में आगे क्या होना है।
बचा हुआ ये दिन भी आराम, भोजन, हिसाब और बातों में काट गया। मैंने तय कर लिया था कि मौसाजी से तर्क नहीं करूँगा लेकिन मुझे हैन्स के विपरीत रवैये से जलन हो रही थी कि कैसे बिना किसी परिणाम की चिंता करते हुए ये किस्मत के सहारे आगे बढ़ा जा रहा था।