पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 20 Abhilekh Dwivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 20

चैप्टर 20

पानी कहाँ है?

उस थकान और बेहोशी की हालत में उस वक़्त मेरे सुस्त दिमाग में कई बार सवाल आ रहे थे कि किस वजह से हैन्स उठा होगा। और हर बार कोई वाहियात और बकवास जवाब ही निकल कर आ रहे थे जो बेतुके होते थे। मुझे लग रहा था मैं थोड़ा या पूरा पागल हो चुका हूँ।
अचानक नीचे की तरफ से कुछ आहटें हुईं, जिसे सुनकर तसल्ली हुई। वो उसके चलने के आवाज़ थे। हैन्स लौट रहा था।
और तभी रोशनी भी धीरे-धीरे मद्धम से तेज होने लगी थी। तब तक हैन्स करीब आ चुका था।
उसने मौसाजी के पास जाकर उनके कंधे को पकड़ कर धीरे से जगाया। जैसे ही मौसाजी ने उसे देखा, तुरन्त उठ गए।
"कहो!" प्रोफ़ेसर ने उत्सुक होते हुए पूछा।
"वत्तेन," उस शिकारी ने कहा।
मुझे उसके डैनिश भाषा से कुछ नहीं समझ आया लेकिन उसके हावभाव से मेरी अंतरात्मा ने सब समझ लिया था।
"पानी, पानी!" मैं खुशी में चीखते हुए किसी पागल की तरह ताली बजा कर झूमने लगा।
"पानी!" मौसाजी ने गंभीर आवाज़ में कहा और आभार प्रकट करते हुए कहा, "कहाँ?"
"नीचे।"
"कहाँ? नीचे!" मैं ये दोनों शब्द समझ चुका था। मैंने हैन्स के दोनों हाथों को पकड़कर उसका अभिवादन किया, लेकिन वो वैसे ही शान्तचित्त था।
आगे बढ़ने के लिए ज़्यादा समय ना बर्बाद करते हुए हमने नीचे की ओर प्रस्थान करना शुरू कर दिया।
एक घण्टे बाद हम हज़ार गज चलकर दो हज़ार फ़ीट नीचे उतर गए थे।
इसी दौरान मैंने चिर-परिचित ऐसी आवाज़ें सुनी जो ग्रेनाइट पत्थरों से बनी ज़मीन के नीचे से आ रही थी, ऐसी आवाज़ें जिनमें हल्का दहाड़ था, जैसे कोई झरना थोड़ी दूरी पर हो।
एक घण्टे तक और बढ़ने के बाद भी जब कोई फव्वारा तक नहीं मिला, मेरी तकलीफें लौटने लगी। निराशा फिर से घिरने लगी। हालाँकि मौसाजी ने देखा कि मैं फिर से मायूस हो रहा हूँ तो उन्होंने बातचीत शुरू की।
"हैन्स सही था," उन्होंने जोश के साथ कहा, "ये किसी समुद्री लहर का गर्जन है।
"लहर!" मैं इस शब्द को सुनकर ही बहुत ज़्यादा खुश था।
"इसमें कोई दो राय नहीं," उन्होंने कहा, " क्योंकि हमारे बगल में ही एक समुद्र है।"
मैंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उम्मीद में और जल्दी आगे बढ़ने लगा। मैंने थकान को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। इन लहरों के आवाज़ से ही मैं तरोताज़ा महसूस करने लगा था। हम सब उसकी ध्वनि में गति को महसूस कर पा रहे थे। जिन लहरों को हम अपने ऊपर से गुजरता महसूस कर रहे थे वो अब दीवार की बायीं तरफ से गुज़र रहे थे, छू रहे थे, आ-आकर लौट रहे थे।
कई बार मैंने उन दीवारों पर हाथ फेरा कि नमी के कुछ निशान मिले, लेकिन सब बेकार।
उस वीरान सफर में आधे घण्टे और गुज़र गए और हम थोड़ा और आगे बढ़ चुके थे।
अब समझ में आया कि इस शिकारी ने इतनी दूर आकर भी सही तरीके से खोजी नहीं किया। पहाड़ियों की तरह इसने भी अपने सूँघ कर पहचानने वाली आदत से इस निष्कर्ष पर पहुँच गया था। पानी इसने कहीं देखा नहीं था। ना तो इसने अपनी प्यास बुझायी थी और ना ही हमारे लिए एक बूँद लेकर आया था।
हालाँकि हमने तुरंत पता लगा लिया कि इससे आगे जाने पर हमें पानी नहीं मिलेगा क्योंकि लहरों की ध्वनि मद्धम होती जा रही थी। हम पीछे की तरफ मुड़े। हैन्स उस बिंदु पर रुक गया जहाँ लहरों की ध्वनि करीब थी।
मैं और ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहता था इसलिए दीवार के सहारे वहीं बैठ गया जिसके पीछे से वैसे ही आवाज़ें आ रही थी, जो शायद सिर्फ दो फीट की दूरी पर होंगे लेकिन ग्रेनाइट की मजबूती से दूरी बनी हुई है।
हैन्स मुझे ध्यान से और कुछ अजीब तरीके से देख रहा था, मुझे लगा जैसे वो मुस्कुरा रहा था।
वो अपनी जगह से उठा और साथ में लालटेन ले लिया। मैं उठ के उसके पीछे नहीं जा सकता था। वो धीरे-धीरे वहीं चहलकदमी करने लगा। मैं उसको उत्सुकता से देखे जा रहा था। उसने अपने कान दीवार पर टिका दिया और बहुत ध्यान से सुनने के साथ अपने कदम भी बढ़ाने लगा। मैं समझ गया था वो सही बिंदु को खोज रहा है जहाँ से पानी का स्रोत आसानी से मिले। उसने तुरंत ही पता लगा लिया कि दीवार की बायीं तरफ, ज़मीन से तीन फीट ऊपर एक बिंदु ऐसा है।
मैं बहुत ज़्यादा उत्साहित था। मुझे देखकर विश्वास नहीं हो रहा था जो अब ये शिकारी करने जा रहा था। हम दोनों के लिए इतना मुश्किल नहीं था समझना और उसे सराहना जब उसने भारी सब्बल से उस दीवार पर प्रहार किया।
"बच गए!" मैं चीखा।
"हाँ!" मौसाजी ने खुशी और जोश में मुझसे भी तेज आवाज में कहा, "हैन्स एकदम सही है। कमाल हो तुम! हम तो ऐसा सोच भी नहीं पाते।"
मेरे हिसाब से ये कोई करता भी नहीं। ये तरीका आसान था लेकिन हम सब ऐसा नहीं सोच सकते। दुनिया के किसी ऐसे हिस्से में कुदाल-फावड़ा चलाना खतरनाक भी हो सकता है। वो अपने काम में लग गया था और मैं यही सोच रहा था कि कुछ सुस्ता लूँ या अगर पानी तेज हुआ तो कैसे रोकेंगे, या अब पानी के धार का आगमन शुरू होगा!
ये जोखिम भी उठा लिया गया था जो सपना ना होकर सच था। और इस वक़्त हमें किसी भी बाढ़ या भूकंप के बारे में फिक्र नहीं कर रहे थे। हम इतने प्यासे थे कि समुद्र का सबसे नीचे वाला तल खोद दिया होता।
हैन्स ने अपना काम शांति से किया, एक ऐसा काम जो मैं या मौसाजी किसी कीमत पर नहीं कर पाते। हममें इतनी अधीरता थी कि अगर हम ये काम करते तो सिर्फ पत्थरों के सौ टुकड़े होते। लेकिन हैन्स ने अपने धैर्य और अनुभव से बहुत ही सटीक तरीके से सही हथियार से मात्र छः इंच जितना सुराख बनाया जिससे कि कोई परेशानी नहीं हो। वहीं रुककर मैंने जब उन आवाज़ों को फिर से सुना तो उनका गर्जन ऐसा था जैसे मेरे सूखे होठों को उन्होंने भिगो दिया हो।
काफी समय बीतने के बाद हैन्स ने उस सब्बल के समाने लायक दो फीट लंबी गहराई खोद दी थी। काम एक घण्टे में हुआ था लेकिन ऐसा लगा जैसे सदी बीत गयी है। मैं अधीरता से व्याकुल हुआ जा रहा था। मौसाजी को लगा थोड़ा आक्रामक होना पड़ेगा, लेकिन मैंने उनको किसी तरह संभाला। उन्होंने अपना फावड़ा उठाया ही था कि एक फुसफुसाहट सी हुई। तभी एक पतली और तेज बौछार आयी जो दीवार के दूसरे हिस्से को भी भिगो रही थी।
हैन्स को इससे बहुत बड़ा झटका लगा और वो दर्द से थोड़ा कराहने लगा। मुझे तब समझ में आया जब मैने उसमें हाथ लगाया और खुद चीख पड़ा। पानी इतना गर्म था जैसे उबला हो।
"उबल रहा है," मैंने निराश होते हुए कहा।
"कोई बात नहीं," मौसाजी ने कहा, "जल्दी ही ठंडा भी होगा।"
सुरंग में भाप के बादल बनने लगे थे और वो पतली धार भी बह रही थी। कुछ ही देर में हमारे पास पर्याप्त मात्रा में ठंडा पानी था। हमने पेट भर कर पानी पिया।
आह! कितनी तसल्ली है। कितना सुख और ऐश्वर्य है इसमें। ये पानी किस प्रकार का था? हमारे लिए कैसा था? बात एकदम सीधी है; हमारे लिए वो सिर्फ पानी था, भले उसमें थोड़ी गर्माहट थी लेकिन उसने हमें वो ज़िन्दगी दी थी जो हमारे हाथ से निकल रही थी। मैं बिना स्वाद लिए किसी लालची की तरह बस पिये जा रहा था।
जब मैं अपने राक्षसी प्यास को बुझा चुका था तब मुझे खयाल आया।
"ये पानी लोहमिश्रित है!"
"खनिज से परिपूर्ण भी," मौसाजी ने जवाब दिया, "ये अनुभव किसी बीस खनिज जलीय स्थल पर जाने जैसा है।"
"ये अच्छा भी है।" मैंने कहा।
"मुझे लगता है ज़मीन से छः मील नीचे ही पानी होगा। इसका स्वाद थोड़ा खारा है जिससे मैं इन्कार नहीं कर सकता। हैन्स को खुद की सराहना करनी चाहिए इस खोज के लिए। तुम्हारा क्या कहना है भांजे, प्रचलन के अनुसार यात्रियों के नाम पर इस स्रोत का नाम क्या होना चाहिए?"
"अच्छा रहेगा।" मैंने कहा, और फिर 'हैन्सबैक' यानी 'हैन्स का नहर' पर सर्वसम्मति बनी।
हैन्स हमारे द्वारा प्राप्त इस सम्मान से बहुत प्रभावित था। उसने भोजन के लिए कुछ टुकड़े लेने के बाद, एक कोने में अपने उसी अंदाज और खामोशी से बैठ गया।
"अब हमें इस पानी को बर्बाद नहीं करना चाहिए।" मैंने कहा।
"इसका क्या करेंगे?" मौसाजी ने कहा, " वैसे भी इसके स्रोत की नदी अथाह है।"
"फिर भी," मैंने कहना जारी रखा, "हमें अपने थैलों में भर लेना चाहिए और सोच समझ कर खर्च करना चाहिए।"
मेरी सलाह को कुछ कुछ संकोच के बाद मान लिया गया या शायद मानने की कोशिश करने लगे। हैन्स ने जितने पत्थरों को तोड़ा था, सबको वापस से वहाँ जोड़ने की कोशिश कर रहा था जिससे कि वो छेद बंद हो जाए। उसका हाथ जल रहा था। उस फव्वारे का दबाव तेज था और हमारी सारी कोशिशें बेकार जा रहीं थीं।
"ये तो होगा।" मैंने इशारा किया, "इस पानी की ऊपर सतह इस सतह से काफी ऊपर है और इसलिए इसका दबाव ज़्यादा है।"
"इसमें कोई दो राय नहीं है।" मौसाजी ने जवाब दिया, "अगर इस दबाव के हिसाब से पानी का स्तर तीन हज़ार दो सौ फीट ऊपर है तो हवा का दबाव कुछ ज़्यादा ही प्रभावित होगा। लेकिन मेरे पास एक बेहतर सुझाव है।"
"क्या है वो?"
"इसको बंद करने के लिए हम इतना परेशान क्यों हों?"
"क्योंकि..."
मैं सकपकाने लगा और कोई ढंग का कारण नहीं बता पाया।
"जब हमारे पानी के बोतल खाली होंगे फिर हमें सोचना पड़ेगा कि पानी कहाँ से मिलेगा।" मौसाजी का खयाल था।
"मेरे हिसाब से ये स्वाभाविक है।"
"हाँ, इसलिए इसे बहने दो। ये अपने आप हमारे साथ चल पड़ेगा और हमें रास्ता दिखाने के साथ तरोताज़ा भी रखेगा।"
"ये तो कमाल का सुझाव है।" मैंने जवाब में कहा, "और जब ऐसे नदिका का साथ हो तो हमें अपने मकसद में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।"
"हाँ, मेरे बच्चे।" प्रोफ़ेसर ने हँसते हुए कहा, "अब तुम सही रास्ते जा रहे हो।"
"अब तो मुझे पूरा विश्वास है कि हमें सफलता मिलकर रहेगी।"
"मेरे भांजे, अभी रुको। अब कुछ देर के लिए हम सब थोड़ा आराम करते हैं।"
मैं भूल चुका था कि इस वक़्त रात है। हालाँकि क्रोनोमीटर से इस पल का पता चल गया था। फिर से तरोताज़ा और स्फूर्तिवान बनने के लिए जल्दी ही हम सब गहरी नींद में डूब गए।