Journey to the center of the Earth - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 12

चैप्टर 12

स्नेफल्स की चढ़ाई।

जिस साहसी प्रयोग की तरफ हम बढ़े थे उसका पहला चरण ही पाँच हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर था। इस द्वीप के पर्वतीय श्रृंखलाओं में से स्नेफल्स सबसे जुदा और अद्वितीय है। इसके दो शिखरों का होना इसे सबसे अनूठा बनाता है। जब हमने चलना शुरू किया था तो धुँधले बादलों की वजह से ये दिख नहीं रहे थे। बस चोटी से निचले हिस्से पर जो बर्फ बिछी थी वही किसी गुम्बद पर सफेद पुताई जैसे दिख रहे थे।
यहाँ से इसकी शुरुआत ने मुझे विस्मित कर दिया था। अब हमने शुरुआत कर दी थी तो ऐसा लगने लगा कि हम इसे अंजाम भी देंगे।
हमने पूरे तरतीब और जोश के साथ शुरुआत की। हैन्स सबसे आगे, और सब एक दूसरे के पीछे। वो हमें संकरे रास्तों से ले जा रहा था जहाँ दो लोग एक साथ नहीं चल सकते थे। बातचीत बिल्कुल असम्भव था। हमारे पास भरपूर मौका था बेमिसाल नज़ारों का लुत्फ उठाने का।
स्टैपी के असिताश्म से बनी खाड़ी को पार करते हुए अब हम नर्म मैदानी इलाकों में थे जहाँ कुछ हरियाली थी, ज़मीन में नमी थी जिससे कि ये प्रायद्वीप थोड़ा दलदली प्रतीत होता था। ये अभी तक का पूरा अज्ञात इलाका आइसलैंड की अगली सदी तक ज़रूर काम में आएगा। इस मैदानी इलाके से दर्रे की गहराई सत्तर फ़ीट से कम नहीं होगी जहाँ जले हुए काले चट्टानों के अम्बार के साथ बलुआ पत्थरों की परतें बिछी हुई हैं।
इन नज़ारों के साथ हवा में शुष्कता और सूनापन, सब असाधारण से लग रहे थे।
महान प्रोफ़ेसर हार्डविग का भांजा होने के नाते मैं इस प्राकृतिक संग्रहालय में फैले खनिज सम्बंधित सामग्रियों को देख उत्सुक हुआ जा रहा था जबकि आने वाले खतरे और डर की वजह से मैं पहले से ही खिन्न था। हाल-फिलहाल की जानकारी को देखते हुए मैं आइसलैंड के भू-गर्भीय इतिहास के बारे में सोचने लगा।
समय के बदलाव के साथ इस अद्भुत और असामान्य द्वीप की उत्पत्ति महासागर से हुई होगी। जैसे धीरे-धीरे समय के सूक्ष्म बदलाव से प्रशांत महासागर में द्वीपों को जन्म होता रहता है।
अगर ऐसा सम्भव है तो इसकी वजह सिर्फ एक ही हो सकती है - लगातार भूमिगत ताप।
ये एक सुखद अनुभूति थी।
और अगर ऐसा है, तो महान हम्फ्री डेवी के सिद्धान्तों से दूर, चर्मपत्र पर अंकित सैकन्युज़ेम्म के अधिकार से दूर, मौसाजी के बेमिसाल दिखावे और हमारे सफर के लिए एक बात तय है।
सब धुएँ में खत्म होगा।
इन खयालों से मैं अपने प्रति थोड़ा और सजग हो गया। अपने अनुमान की पुष्टि या नकारने के लिए मिट्टी की गहन जानकारी ज़रूरी थी। मुझे कुछ भी ऐसा खास दिखता तो उसे उठा लेता और उनके रचना और शुरुआती लक्षण के बारे में अनुमान लगाता।
आइसलैंड की मिट्टी में विशेषतः ज्वालामुखीय पदार्थ हैं जो पत्थरों और छिद्रित चट्टानों के समूह से बने हैं और ज़रा भी तलछटी नहीं हैं। ज्वालामुखी से पहले यहाँ पृथ्वी के अपकेंद्री बल के वजह से बड़े चट्टानों का जमावड़ा था जो समुद्र की तेज लहरों की वजह से यहाँ आये थे।
हालाँकि पृथ्वी के ताप ने बस उतना ही लावा फेंका जिससे कि ऊपरी सतह भर जाए।
मेरे पाठक मुझे इस भू-गर्भीय ज्ञान पर व्याख्यान के लिए माफ करें। लेकिन अब जो होना है उसके लिए ये जानना ज़रूरी है।
विश्व इतिहास के हिसाब से कई साल पहले इस द्वीप के दक्षिणी पश्चिम भाग से लेकर उत्तर पूर्वी भाग तक एक तिरछी और गहरी दरार पड़ी जिससे ज्वालामुखीय तत्व निकले। वो ज्वलंत तरल तत्व इतने प्रचूर मात्रा में बहे कि धीरे-धीरे उनके शान्त होने तक उनके ढेर से पूरी ज़मीन बन गयी थी।
यही वो युग था जब फेल्डस्पर्स, सायनाइट और पोरफीरी पत्थरों की उत्पत्ति हुई।
लेकिन उस प्राकृतिक बहाव की मात्रा इतनी ज्यादा थी कि द्वीप के सतह की गहराई बढ़ गयी। इससे ये भी समझ आता है कि उन बहावों के ठंडा होने पर जो पृथ्वी की सतह बनी उससे भी बहाव के स्रोत बंद हो चुके थे।
एक समय ऐसा भी आया जब पृथ्वी के नीचे का तापमान बढ़ने लगा और ऐसी खलबली मची कि किसी विशालकाय अग्निबाण की तरह वो इस ऊपरी मोटी सतह पर विकसित हो गए। इसलिए आगे चलकर ज्वालामुखियों का खोह थोड़ा अलग बना हुआ है।
पहली नज़र में ऐसा लगता है जैसे इन द्वीपों के उत्पत्ति के दौरान ये बने हों, हालाँकि ध्यान से देखें तो सब कुछ समझ आने लगेगा।
जो नए जैसे ज्वालामुखी हैं उनपर असिताश्म का असर नहीं दिखता, जिसकी ज़मीन से हम गुज़रे हैं। हम अभी जिन मार्गों का मर्दन कर रहे हैं वहाँ राख के गहरे रंग में षटकोण-नुमा चट्टान हैं जो समय के साथ ठंडे होकर इस रूप में हैं। पीछे दूर हमें चौड़े मूँह वाले मृत ज्वालामुखी दिख रहे हैं।
इन ज्वालामुखी से जो निकला वो सब बिखरा रहा और जब सब शान्त होने लगा और वक़्त गुज़रा तब ये सारे ठंडे अंगारे और झामक पत्थर उन चोटियों के इर्द-गिर्द ऐसे रह गए हैं जैसे किसी बूढ़ी पुजारिन के अधबिसरे बाल।
संक्षेप में कहूँ तो मुझे आइसलैंड के उद्भूत होने के इतिहास का पूरा ज्ञान हो गया था। अब सब कुछ पृथ्वी के नीचे ही समाहित है और ताप में उन ज्वलंत तरल पदार्थों को नहीं मानना, सिर्फ बेवकूफी है।
इससे ये भी साबित होता है कि कैसे ये अभियान अपने मद में चूर होकर नाटक करने जैसा है।
इस ज्ञान के मानसिक व्याख्यान ने मुझपर अच्छा असर किया था। अब मैं स्नेफल्स से भिड़ने के लिए बहादुर सैनिक की तरह बढ़ा जा रहा था।
जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, मार्ग और कठिन होता जा रहा था। मार्ग समतल नहीं था और बहुत खतरनाक था। जगह-जगह चट्टानों का डर था और बहुत सम्भलकर चलना पड़ रहा था।
हैन्स शान्ति से आगे ऐसे बढ़ रहा था जैसे सेलिस्बरी के मैदानों में चल रहा हो। कभी चट्टानों के बीच में गायब हो जाता और हमारी नज़रों से ओझल हो जाता। जैसे ही कुछ देर के लिए बेचैनी होती, एक तीखी सीटी बजती और हमें समझ में आ जाता कि किस तरफ है वो।
बीच में वो थोड़े से पत्थरों को उठा लेता और कहीं उनके ढेर लगा देता ताकि लौटते वक़्त हम रास्ता ना भूलें।
उसे पता ही नहीं था कि हम कहाँ जाने वाले हैं।
हम हर कदम पर सावधान थे लेकिन ये सब बेकार लग रहा था, हालाँकि मुझे पूर्वानुमान नहीं करना चाहिए।
हमे चलते हुए तीन घण्टे हो चुके थे, हम थककर चूर हो चुके थे और अभी तक नीचे ही थे। इसी से समझ आ रहा था कि अभी आगे और कितना चलना बाकी है।
अचानक से हैन्स ने चीख कर रुकने का इशारा किया और कुछ देर में नाश्ते के लिए सबने अपनी जगह ले ली। मौसाजी, जो कि अब सिर्फ प्रोफ़ेसर हार्डविग थे, वो उनपर किसी भूखे भिखारी की तरह टूट पड़े थे। इस पड़ाव ने हमे दम लेने में भी काफी मदद की क्योंकि हैन्स ने एक घण्टे तक हिलने का कोई इशारा नहीं किया था।
बाकी के तीनों आइसलैंडर्स अपने कॉमरेड की तरह चुपचाप, शान्ति से अपने खान-पान में व्यस्त थे।
यहाँ से स्नेफल्स के लिए हमारी चढ़ाई का पहला पड़ाव भी शुरू होने लगा। इसके हिमटोप करीब होने का भ्रम फैलाये रहते हैं, जो कि पहाड़ों में सामान्य होते हैं, वो अभी इतने दूर हैं कि उनके शिखर के लिए लम्बा सफर तय करना है। अभी तो बिना थके हमें आगे बढ़ना है!
पहाड़ों पर रखे हुए पत्थर जो किसी पलस्तर या वनस्पति के जड़ों से नहीं बँधे थे, बर्फीले चट्टानों की भाँति गिरते चले आते और हमे रास्ता दिखाते रहते।
इन पहाड़ों के कुछ रास्तों पर चढ़ाई इतनी खड़ी थी कि उनपर आगे बढ़ना असम्भव था, लेकिन हमें बचते हुए आगे बढ़ना था।
जो उच्च पर्वतीय शिखरों की चढ़ाई के बारे में जानते हैं वो हमारी दुविधा समझेंगे। हम डण्डे के सहारे एक दूसरे का साथ देते हुए आगे बढ़ रहे थे।
मुझे ये कहना पड़ेगा कि मौसाजी मेरे बहुत करीब चल रहे थे। उन्होंने अपनी नज़र मुझपर से एक बार भी नहीं हटायी और कई मौकों पर मुझे अपने हाथों से सम्भाला। वो मजबूती से बिना थके, बढ़े चल रहे थे। उनके साथ चलने का फायदा ये भी था कि उनका संतुलन अच्छा था, वो ना फिसले ना लड़खड़ाए। वो आइसलैंडर्स भी, जो सामानों से लदे थे, पर्वतारोहियों के समान आगे बढ़ रहे थे।
बार-बार स्नेफल्स को देखने से उसके शिखर पर पहुँचना और भी असम्भव लगने लगता था, जैसे गति में कोई बदलाव ही ना हुआ हो।
लगभग एक घण्टे बिना थके और जिम्नास्टिक सम्बन्धित कसरत रूपी सफर के बाद हम ऐसे जगह पहुँचे जहाँ पूरी ज़मीन बर्फ से ढकी हुई थी। यहाँ के निवासी इसे मेजपोश बोलते थे, जैसे केप ऑफ गुड होप में पठारी पहाड़ और खाड़ी हैं।
यहाँ हम सभी अचरज में थे। यहाँ हमें आगे बढ़ने के लिए पत्थर से बने सीढ़ीनुमा रास्ते मिले। ज्वालामुखी के फटने पर जो मूसलाधार पत्थर बिखरे होंगे उन्हीं से ये सीढियाँ बनी हैं। यही अगर पहाड़ों के टुकड़ों में होते तो समय के साथ द्वीप बन जाते।
देखने में ये जितना आकर्षक था चलने पर भी उतना ही था। यहाँ फिसलन ज़्यादा थी और शायद हरेक कदम बढ़ाना मिस्र की पिरामिड पर चढ़ने जितना मुश्किल था लेकिन यहाँ की प्राकृतिक सीढियाँ फिर भी मददगार थीं।
उस दिन लगभग शाम सात बजे तक हम इन दो हज़ार ऊबड़-खाबड़ सीढ़ियों को पार करने में सफल हुए और जो नज़ारा था वो बेमिसाल था। स्नेफल्स किसी गठीले पुश्त जैसा दिख रहा था।
समुद्र अब तीन हज़ार दो सौ मीटर की गहराई से भी ज़्यादा नीचे था और सब कुछ विस्मित कर रहा था। हम वहाँ थे जहाँ बेहिसाब बर्फ थे।
ठंड एकदम भेदने वाली और प्रचण्ड थी। हवाएँ आक्रामक तरीके से बह रही थी और मैं क्लांत हो चुका था।
मौसाजी ने देखा कि मेरे पैर मेरा साथ नहीं दे रहे थे और आगे बढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। उन्होंने अपनी अधीरता को सम्भालते हुए सबके लिए रुकने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने हैन्स से पूछा, लेकिन उसने मना कर दिया।
"ऑफवनफोर," उसका एकमात्र जवाब था।
"ऐसा लगता है," मौसाजी ने दुःखी होते हुए कहा, "हमें और ऊपर चढ़ना होगा।"
वो फिर हैन्स की तरफ मुड़कर इसकी वजह जानने लगे।
"मिस्टयूर," हैन्स का जवाब था।
"महाशय, वो देखिए," दूसरे सेवक ने चिल्लाते हुए कहा। ये पहली बार था कि उसने कुछ कहा था।
"इसके कहने का अर्थ क्या है?" मैंने आश्चर्य से पूछा।
"वो देखो," मौसाजी ने कहा।
मैंने नीचे की तरफ देखा तो वहाँ से एक विस्तृत और भयावह रूपी बवण्डर तमाम धूल, मिट्टी और कंकड़ों को समेटे बढ़ा चला आ रहा था। वो बिल्कुल वैसा ही था जैसा सहारा रेगिस्तान के निवासी ज़िक्र करते हैं।
वो स्नेफल्स के बिल्कुल उसी दिशा में बढ़ रहा था जहाँ हम खड़े थे। इस पारदर्शी पर्दे ने हमारे और धूप के बीच आकर एक गहरी छाया को बिखेर दिया था। अगर इस बवण्डर के चपेट में हम आ गए तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा। ऐसे बर्फीले बवण्डर को आइसलैंड की भाषा में "मिस्टयूर" कहते हैं।
"हॉस्टिगत, हॉस्टिगत!" हैन्स ने चिल्लाते हुए कहा।
मुझे ज़रा भी नहीं समझ आया कि उसने डैनिश भाषा में क्या कहा लेकिन उसके हावभाव से समझ आ गया कि वो हमें जल्दी करने के लिए कह रहा है।
दिशा-निर्देशक हमे उस तरफ लेकर जाने लगा जो रास्ता पीछे की ओर था, हमारे कदम भी धीरे-धीरे बढ़ रहे थे। थकान के बावजूद हम उसके पीछे-पीछे बढ़े जा रहे थे।
लगभग सवा घण्टे चलने के बाद हैन्स ने रुककर हमें पीछे देखने के लिए कहा। वो बवण्डर वहाँ पहुँच चुका था जहाँ हमने रुकने का सोचा था। और फिर मूसलधार पत्थरों की बरसात शुरू हुई लेकिन हम विपरीत दिशा में थे इसलिए सुरक्षित थे। हैन्स ने अपनी सूझबूझ और समझदारी से हमें और हमारे अस्थि-पंजर को हवा में किसी धूमकेतु जैसा उड़ने से बचाया था।
हैन्स ने इस दिशा के निर्जन स्थान पर रुकना सही नहीं समझा। इसलिए हम सब आड़े-तिरछे रास्तों से आगे बढ़ते रहे। पंद्रह सौ फ़ीट की ऊँचाई अभी और चढ़नी थी जिसमें पाँच घण्टे लगने थे। लेकिन लगातार चलने और बिना किसी खास मार्ग वाले असीमित मोड़ और घुमावदार रास्तों से होते हुए हमने तीन घण्टों में सफर पूरा कर लिया था। मैं अपनी ज़िंदगी में इससे पहले कभी इतना ज्यादा नहीं थका और क्लांत हुआ था। मैं तो भूख और ठंड से बेहोश होने वाला था। उन असाधारण हवाओं ने शायद मेरे फेफड़ों पर अपना असर दिखा दिया था।
और करीब रात 11 बजे गहरी रात में हाँफते हुए मुझे लगा कि अब मैं आखरी साँस लूँगा, तभी हम सब स्नेफल्स की शिखर पर पहुँच गए! पता नहीं किस सनक में, मैं इतना थका हुआ होने के बावजूद उस आधी रात में सूर्योदय के लुत्फ लेने के लिए रुक गया जबकि हमें नीचे उतर कर सुस्ताना था। लेकिन मैंने उन नज़ारों का आनन्द लिया जब वो किरणें उस द्वीप को छू रही थी जो कुछ समय पहले हमारे पैरों के नीचे था।
मुझे अब समझ में आया कि क्यों लोग सिर्फ इस नज़ारे के लिए इंग्लैंड से नॉर्वे चले आते हैं।

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