अपने-अपने कारागृह - 23 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपने-अपने कारागृह - 23

अपने-अपने कारागृह-23

एक दिन उषा सुबह की गुनगुनी धूप में मटर छील रही थी कि सेल फोन टन टना उठाना शुचिता का फोन था । एक वही है जिसके साथ सेवानिवृत्त के 2 वर्ष पश्चात भी संपर्क बना हुआ है । उषा ने फोन उठाया । उसके हैलो कहते ही शुचिता ने कहा, ' दीदी, कहते हैं माता पिता परिवार को जोड़कर रखते हैं पर क्या वह परिवार में टूट का कारण भी बन सकते हैं ? '

' टूट का कारण ?' उषा ने आश्चर्य से पूछा था ।

' हां दीदी, एक समय था इनके पांचों भाई बहनों में अपार प्रेम था । बड़ा जो कहता था वही दूसरों के लिए ब्रह्म वाक्य बन जाता था । वर्ष में एक बार पांचों भाई बहन अवश्य ही किसी एक जगह मिलने का कार्यक्रम अवश्य बनाते थे । चाहे वे हफ्ते भर के लिए ही मिलें पर मिलते अवश्य थे । हफ्ते भर घर में जो खुशियों का माहौल रहता था उससे सभी के दिलों में प्रेम और अपनत्व का संचार होता था । उसे देख कर माँ जी और पिताजी तो प्रसन्न होते ही थे, हम जेठानी देवरानी भी सुबह से शाम तक किचन में लगे रहने के बावजूद अपनी थकान भूल जाया करती थीं । पूरे परिवार को एकजुट तथा आपसी रिश्ता में प्रगाढ़ता एक अजीब सा सुकून पहुँचाती थी विशेषता या तब जब अड़ोस पड़ोस में आपसी संबंधों का खून होते हुए देखती पर अब ...।'

' पर अब क्या शुचिता दीदी ?'

' आपर तो जानती ही हैं माँजी की हालत । जब तक वह ठीक थीं , कोई बात नहीं थी पर अब जब वह बेड रिडेन हो गई हैं तब कोई उनकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता । हमें मीता की डिलीवरी के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना है पर कोई उन्हें रखने के लिए तैयार ही नहीं है । '

' प्रियेश भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं । सुविधाएं भी उतनी नहीं रहीं पर करें भी तो क्या करें ? समझ नहीं पा रहे हैं । भाइयों के साथ हम देवरानी और जेठानी में भी अबोला की स्थिति आ गई है । यहाँ तक कि ननदें भी जो उनके अच्छे दिनों में माँजी से चिपकी रहती थीं । वे भी उन्हें अपने पास रखने को तैयार नहीं हैं ।'

' कब है डिलीवरी ?'

'डिलीवरी तो मई में है दीदी , अभी 5 महीने बाकी है पर उपाय तो सोचना ही होगा । सब से पूछ कर देख लिया पर कोई भी उन्हें रखने को तैयार नहीं है नीता अलग नाराज हो रही है उसके साथ ससुर है नहीं वह हमसे ही उम्मीद लगाए बैठी है । '

'शुचिता सब्र करो … कुछ ना कुछ उपाय निकल ही जाएगा ।'

' सब्र ही तो कर रही हूँ दीदी ...। कहाँ तो सोचा था कि सेवनिवृत्ति के पश्चात छुट्टी की समस्या नहीं रहेगी । घूमेंगे फिरेंगे पर अब तो और भी बंधन हो गया है । दीदी किसी और से तो अपने मन की बात कह नहीं सकती, अतः जब मन करता है, आपसे ही मन की बात शेयर कर अपने मन को हल्का कर लेती हूँ ।'

' शुचिता, बस यही कहना चाहूँगी, ईश्वर के घर देर है, अंधेर नहीं । तुम्हारी सेवा का फल तुम्हें अवश्य मिलेगा ।'

' दीदी कल किसने देखा है । हम अपना आज ही संवार लें । अच्छा दीदी प्रणाम, माँ जी ने घंटी बजाई है । जाकर देखती हूँ , क्या काम है ?' कहकर शुचिता ने फोन रख दिया था ।

शुचिता ने माँ जी के वॉकर से रिमोट कंट्रोल वाली घंटी बांध दी थी जिससे अगर उन्हें किसी चीज की आवश्यकता हो तो घंटी को बजा कर उसे बुला लें । उनकी अटेंडेंट सुबह शाम ही आती थी बाकी समय उन्हें ही माँ जी को देखना पड़ता था ।

शुचिता और प्रियेश अपना कर्तव्य ठीक से निभा रहे थे किंतु फिर भी उसका कथन.. दीदी कल किसने देखा है हम अपना आज ही संवार लें, में न केवल उसके मन की व्यथा झलक आई थी वरन जीवन के कटु सत्य को भी उकेर दिया था ।

*********

उस दिन सीनियर सिटीजन ग्रुप की गोष्ठी थी । अचानक सुबह-सुबह शशि का फोन आया कि आज की बैठक स्थगित कर दी गई है ।

' लेकिन क्यों.. ?' उषा ने आश्चर्य से पूछा ।

' अरविंद झा के माता-पिता का किसी ने कत्ल कर दिया है । वे अभी -अभी घर जाने के लिए निकले हैं । ऐसे में पार्टी करना अच्छा नहीं लगेगा ।' शशि ने कहा ।

' पर कैसे ,क्यों , क्या हुआ ?' उषा ने पूछा ।

' यह तो पता नहीं । सुबह 7:00 बजे झा साहब के पास इस दुर्घटना का फोन आया और वे एक घंटे के अंदर ही निकल गए ।'

अभी उषा और शशि बात कर ही रहीं थीं कि डोर बेल बजी । उषा ने मोबाइल ऑफ करके दरवाजा खोला तो देखा उमा खड़ी हैं …

' क्या तुम्हें पता चला कि अरविंद झा के माता-पिता का किसी ने खून कर दिया है ?'

' हां अभी शशि का फोन आया था ।'

'उसी ने मुझे भी बताया । सच यह बुढ़ापा भी ....अभी पिछले वर्ष ही उनके घर चोरी हुई थी ।'

' क्या…?' एक बार फिर उषा चौंकी थी ।

' वह भी उनके किराएदार द्वारा ।'उमा ने कहा ।

' किराएदार द्वारा... क्या कह रही हैं आप ? '

' हाँ उषा, मिर्जापुर में उनका बड़ा घर है । उन्होंने उसका एक हिस्सा किराए पर उठा दिया था । वह किराएदार उनका बहुत ध्यान रखता था । कभी-कभी उनका छोटा- मोटा काम भी कर दिया करता था अतः वह उनका विश्वास पात्र हो गया था । '

' क्या वह अकेला था ?'

' नहीं उसकी पत्नी और एक छोटा बच्चा भी था । एक दिन अरविंद जी की मम्मी को वह किराएदार मूवी दिखाने ले गया । इंटरवल में बच्चे के लिए कुछ खाने का सामान लाने के लिए पहले पति निकला । पति के आने में देरी होने पर पति को देखने पत्नी और बच्चा निकल गए । मूवी समाप्त हो गई उनको ना आता देखकर अरविंद जी की माँ अकेली ही घर आईं । पूरा घर अस्त-व्यस्त पाकर वह किराएदार वाले भाग में गईं । उनका घर भी खुला पड़ा था तथा सामान भी नहीं था । उनमें से किसी को न पाकर उन्हें सारा माजरा समझ में आ गया पर अब वह क्या कर सकती थीं सिवाय स्वयं को कोसने के ...किसी अनजान पर विश्वास करने का अपराध करने के लिए ।'

' और उनके पति...।'

' वह अपने मित्र के पुत्र के विवाह में देहरादून गए थे । उसी दिन मिर्जापुर में ही उनके एक अन्य मित्र की लड़की का भी विवाह था अतः दोनों को संतुष्ट करने के चक्कर में वह यहीं रुक गई तथा उनके पति देहरादून चले गए । मित्र की बेटी के विवाह में पहनने के लिए उन्होंने अपना कीमती सेट निकलवाया था जिस पर किरायेदार की पत्नी की नजर पड़ गई थी ।'

' ओह ! पुलिस में एफ.आई.आर .कराई होगी ।' उषा ने पूछा ।

' हाँ, कराई थी पर कुछ पता नहीं चला । पता भी कैसे लगेगा , इन सबमें पुलिस की सांठगांठ जो रहती है । अगर चोर पकड़ ही ले जाएं तो चोरी करना इतना आसान ना रह जाए । उषा पुलिस की निष्क्रियता का ही नतीजा है कि आजकल महिलाओं का भी घर से निकलना सुरक्षित नहीं रह गया है । अन्य जगहों के साथ लखनऊ में भी चेन स्नेचिंग आम बात होती जा रही है ।' उमा ने चिंतित स्वर में कहा था।

' इसीलिए कहा जाता है कि किराएदार भी पूरी तरह जांच पड़ताल के बाद ही रखना चाहिए ।' उषा ने उमा की बात पर ध्यान न देते हुए कहा ।

' तुम ठीक कह रही हो उषा पर जब जो होना होता है ,हो ही जाता है । दुनिया विश्वास पर कायम है । अब अगर कोई किसी का विश्वास ही तोड़ दे , तब इंसान क्या करें ? नीलिमा अक्सर कहती थी कि हम मां बाबूजी से कहते हैं कि अब आप हमारे साथ रहिए पर वह अपना घर छोड़कर आना ही नहीं चाहते हैं ।' उमा ने कहा ।

' कितनी उम्र होगी दोनों की ।' उषा ने पूछा ।

' 80 प्लस होंगे । इस उम्र में भी उनकी जिजीविषा काबिले तारीफ थी वरना इस उम्र में तो लोग बच्चों पर आश्रित होने लगते हैं । भगवान उनकी आत्मा को शांति दे ।' उमा ने कहा ।

' तुम सच कह रही हो । '

' अच्छा अब चलती हूँ । इनकी पूजा हो गई होगी, नाश्ता देना है ।' कहकर उमा चली गई थी ।

उमा चली गईं थीं पर उषा के मन का बबंडर शांत होने का नाम नहीं ले रहा था । महीने भर के अंदर तीन तीन घटनाएं... आखिर यह जिंदगी का कैसा रूप है ? सब कुछ होते हुए भी इंसान इतना अकेला क्यों और कैसे रह जाता है ? दूसरों के पास तो दूर, वह अपने बच्चों के पास भी नहीं जाना चाहता !! क्या यह उसका अहंकार है या बच्चों के साथ सामंजस्य स्थापित न करने की विवशता के साथ समय के साथ न चल पाने की अक्षमता है या किसी पर बोझ न बनने की उसकी आकांक्षा । मन में अनेकों प्रश्न थे पर जिसका कोई समाधान उसके पास नहीं था ।

अजय अपने मिशन पर जा चुके थे अंततः अपने मन के द्वंद से मुक्ति पाने के लिए उषाने आज का दिन ' परंपरा ' के संगी साथियों के साथ बिताने का निश्चय किया ।

सुधा आदेश

क्रमशः