360 डिग्री वाला प्रेम - 25 Raj Gopal S Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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360 डिग्री वाला प्रेम - 25

२५.

कुछ दुविधा… कुछ सच

आरव के यूँ तो मार्क्स आरिणी से थोड़ा बेहतर थे. कुल स्कोर में उसका परसेंटेज आरिणी से ऊपर था, पर वह व्यवहारिक रूप से उसके सामने कहीं नहीं टिक पाता था. ख़ास तौर से किसी इंटरव्यू या प्रेजेंटेशन में. प्रेजेंटेशन के मामले में तो आरिणी ने स्वयं देखा था. वह पहले इस बात को नार्मल समझ रही थी. उसने आरम्भ से ही प्रोजेक्ट वर्क के प्रस्तुतिकरण में लीड लेने से साफ़ मना कर दिया था. अब उसे याद आ रहा है कि यह बात भी उसके किसी मनोविकार या दिमाग में बैठी किसी गम्भीर बात से जुड़ी थी.

एक दिक्कत और थी. आरव और आरिणी के बीच खुलकर बात नहीं हो पाती थी. न जाने क्यूँ. ऐसा भी नहीं था कि वह दूरी बनाता हो. बस वह सहज नहीं हो पाता था. कुछ दुविधा दिखती थी उसके मन में. अब वह किससे कहे कि उसकी इस दुविधा से वह स्वयं गम्भीर दुविधा में पड गई है.

 

जब भी आरिणी कुछ जानना चाहती, आरव असहज हो उठता. उसे आरिणी में ही कोई दुश्मन नजर आने लगता… उस पर चीखने लगता, चिल्लाता. यह सब देख आरिणी सिहर उठती. ऐसा माहौल न उसने कभी देखा था, न कल्पना की थी. पर, एक बात जरूर निकल कर सामने आती थी. कोई गम्भीर बात है, जो उससे छिपाई जा रही थी.

 

आज उर्मिला और राजेश जी अपने किसी मित्र से मिलने गए थे. वर्तिका आरिणी को उनके कमरे में बिठा शादी की एल्बम में सब रिश्तेदारों और पारिवारिक मित्रो से परिचित करा रही थी. जाने उसे कौन सी पुरानी एल्बम याद आई जिसे ढूँढने के लिए उसने सारी अलमारी पलट डाली.

 

“तुम भी वर्तिका... क्या होगा तुम्हारा शादी के बाद….”

 

आरिणी ने कहा.

 

“सास बहुत बातें सुनाएगी”.

 

“वो तो सासों का जन्मसिद्ध अधिकार है… आपको नहीं सुनाती क्या ….”,

 

वर्तिका ने कहा और फिर घबरा कर चारों ओर देखा कि किसी और ने तो नहीं सुन लिया. वह आरिणी को देख झेंपी हंसी हसी लेकिन आरिणी चाह कर भी हंसी में सम्मिलित नहीं हो पायी.

 

“कोई नहीं, मैं लगा देती हूँ सामान वापिस”,

 

उसने कहा.

 

“बंदा खिदमत में हाजिर है, कोई मदद चाहिए तो बोलो”,

 

अचानक आरव आ पहुंचा.

 

“हाँ, आप दोनों करो मिलकर यह बोर काम, मैं तो चली”,

 

वर्तिका अपने बजते हुए फोन को उठा जल्दी से भाग गयी.

 

““नहीं, आप भी जाएये… गप्पे मारिये या कोई म्यूजिक सुन लीजिये",

 

हंस कर सलाह दी आरिणी ने.

 

“हाँ… चाय के साथ म्यूजिक… मंद-मंद, आइडिया बुरा नहीं है”,

 

आरव ने कहा और कमरे के बाहर निकल गया.

 

“सुनो”,

 

आरव ने बाहर से झाँका.

 

“चाय ले आऊँ, पियोगी न?”,

 

पलटकर पूछा आरव ने.

 

“हाँ, अगर तुम्हारे हाथ की बनी न हो",

 

हंस कर बोली. दरअसल वह जानती थी कि आरव की बनाई चाय पीने का मतलब है कुछ न कुछ गड़बड़.

 

.... और आरव मुस्कुराता हुआ चला गया.

 

कपबोर्ड्स में पेपर बिछाये उसने. करीने से एक-एक कर सामान रखना शुरू किया. सबसे अधिक अस्त-व्यस्त वह हिस्सा था जिसमे कई फाइल्स और पेपर्स रखे थे. एक-एक पेपर को सहेजना… गैर-जरूरी को निकालना यह बहुत जरूरी और ध्यान से करने वाला काम था. न जाने क्या जरूरी कागज़ इधर-उधर हो जाए.

 

उसने देखा कि एक मटमैली फाइल, जिसमें पिछले पांच साल के मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन रखे हुए हैं आरव के. यानि उस वक्त के जब आरव ने इंजीनियरिंग का एंट्रेंस दिया होगा. गौर से पढ़ा तो अलग-अलग डॉक्टर्स के ट्रीटमेंट और कुछ पैथोलॉजी रिपोर्ट्स…! आख़िरी प्रिस्क्रिप्शन शादी से एक सप्ताह पहले का था.

 

“चाय..”,

 

तभी अचानक आरव ने प्रवेश किया.

 

“थैंक्स आरव.. इस चाय के लिए”,

 

उसके हाथ से चाय लेते हुए आरिणी बोली.

 

“बाकी तारीफ़ पीने के बाद करूंगी, अगर इस लायक हुई तो”,

 

और आरव मुस्कुरा कर रह गया.

 

“और सुनो आरव.. ये फाइल क्या है… क्या ट्रीटमेंट है यह….”,

 

आरिणी ने वो फाइल दिखाते हुए पूछना चाहा.

 

“रहने दो उसको...लाओ मुझे दो… थोड़ा बहुत जो भी बीमारी होती है, वो एक फॅमिली डॉक्टर हैं, उनको दिखा लेते हैं… मम्मी की आदत है संभाल कर रखने की पेपर्स को, न जाने कब काम आ जाएँ..इसलिए”,

 

आरव ने थोड़ा सफाई दी.

 

“वो तो ठीक है… पर यह तो कई साल के ट्रीटमेंट के पेपर्स हैं…और अलग-अलग डॉक्टर्स के हैं. बताओ मुझे भी. जानना चाहती हूँ… कहीं कोई बड़ी बात तो नहीं न?”,

 

आरिणी ने चिता, स्नेह और उलझन के मिश्रित भावों से अपनी जिज्ञासा रखी.

 

“बोला न.. और क्या बताऊँ ?”,

 

कहकर वह फाइल को लिए ही कमरे से बाहर चला गया और आरिणी अवाक उसे जाते देखती रही. एक प्रश्नचिन्ह जो छोड़ गया था आरव. वह यह समझने के लिए तैयार नहीं था, कि अब वह अकेला नहीं है. कोई और जिन्दगी भी उतनी ही शिद्दत से उसके साथ जुड़ी है.

 

थोड़ा उदास हो गई आरिणी. कुछ उलझन भी होने लगी. अभी तक जिस संशय में जी रही थी, वह शायद सामने, या उसके सर पर आ खड़ा हुआ था. न जाने कितनी सच्चाई थी, पर कुछ था जरूर, आज यह तो जाहिर हो ही गया था.

 

शाम की चाय पर उसने फिर बात की. इस बार अपनी सासू मां के सामने. पर आरव कुछ कहता इससे पहले ही वो बिफर पड़ी,

 

“इस तांक-झाँक से बेहतर है कि तुम अपनी गृहस्थी सम्भालो. कुछ आराम दो मुझे. इसलिए आई हो शादी करके, या कोई बवाल खड़ा करने का इरादा है!”

 

आरिणी हैरान रह गई. अवाक… और अप्रत्याशित व्यवहार था उर्मिला जी का. उसे अपनी सास से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी. उसकी आँखें भर आई, पर उर्मिला जी उठ कर बड़बड़ाती हुई चली गई अपने बेडरूम में. उसके बाद आरव भी उठ खड़ा हुआ. वह कुछ देर अकेली बैठी रही. आज वर्तिका नहीं थी घर पर, इसलिए उससे बात करने वाला भी कोई और नहीं था. उसे वर्तिका की कमी खली. अगर वह होती तो जरूर उसकी बात को ताकत देती.

 

आरिणी कुछ देर वहीं बैठी रहने के बाद हिम्मत कर उठी. वाशरूम में उसने चेहरे पर पानी की छींटे डाले. बालों को व्यवस्थित किया और कमरे में चली आई.

 

शाम के लगभग पांच बजे होंगे. वह अपने पिता को इस सब में नहीं डालना चाहती थी. जानती थी कि वह सात बजे से पहले कभी नहीं लौटते थे. मां अकेली होगी. यह सोचकर मां से चर्चा करने, सब बताने का मन बनाया.

 

सारी बात सुनने के बाद माधुरी ने आरिणी को धैर्य से काम लेने की सलाह दी. वह जानती थी कि मां क्रोध, हडबड़ाहट या अतार्किक ढंग से किसी समस्या पर विचार नहीं करती. यद्यपि इस समय यह बहुत बड़ी और चिंता की बात थी, पर वह आरिणी के पिता को अनावश्यक रूप से इस उलझन में डालना नहीं चाहती थी.

 

“चिंता बिलकुल मत करना बेटा, हम लोग पल-पल तुम्हारे साथ हैं… तुम्हारी एक कॉल पर हम वहाँ होंगे… चाहे जब, इसलिए अकेला न समझना स्वयं को!”,

 

आरिणी की आँखों में आंसू आ गये.

 

सोचते-सोचते न जाने कब आँख लग गई. खटपटाहट से आँख खुली तो देखा, आरव कमरे में आ चुका था. वह चेयर पर बैठा था. विचारमग्न. कुछ देर सन्नाटा रहा. फिर स्वयं ही बोला,

 

“सॉरी अरु… मॉम का बुरा नहीं मानना.. शी इस जस्ट केयरिंग फॉर मी.”

 

“इट्स ओके.. आई हैव नथिंग टू से!”,

 

कहकर आरिणी ने विराम देना चाहा बात को, पर मन की उथल-पुथल को विराम दिया जाना इतना सरल नहीं था. उसके मन में न जाने कितने प्रश्न कौंध रहे थे, और मस्तिष्क में कितना विरोधाभास था, यह सिर्फ वही समझ सकती थी. अब लगता था कि न तो यह वह आरव है, और न वो उर्मिला जी हैं. हाँ, बदलाव तो वह समझ सकती है, पर इतना बदलाव… और बुरे के लिए बदलाव. यह असहनीय था आरिणी के लिए. दूसरे, उसने अपने घर में कभी ऐसा माहौल नहीं देखा था, तो बुरा लगना स्वाभाविक था.

 

समझाना चाहा आरव ने, बोला,

 

“दरअसल बात इतनी भी बड़ी नहीं है… मुझे फिट्स आते थे कई बार. तब मैं दो साल बोर्डिंग में रहां था, नैनीताल. वहां साल में तीन या चार बार ऐसा हुआ… और फर्स्ट ऐड के बाद आराम किया तो ठीक हो जाता था. यह किसी के भी साथ हो सकता है, अरु. अभी भी कुछ ऐसा ही है… कभी-कभी ही होता है, सो नथिंग टू वरी”,

 

पर आरिणी को कहानी में छेद साफ़ दिखते थे. बोली,

 

“चिंता क्यों न करूं तुम्हारी? शादी की है.. ऐसे तो नहीं न कि नाराज़ हुए और अनफ्रेंड या ब्लाक कर दो किसी से फ्रेंडशिप… ऐसा रिश्ता नहीं है आरव अब. समझो. एक-एक बात शेयर करोगे तो जिन्दगी सहज होगी, समय भी साथ देगा, बात को छिपाओगे तो मर्ज़ भी बढ़ता जाएगा, और संबंधों पर भी आंच आएगी.”

 

कमरे में शान्ति छा गई. कुछ पल ऐसे थे वह जैसे समय रुक-सा गया हो.

 

आरिणी ने ही बोला,

 

“और यह बात बताओ मैंने क्या कुछ असम्मानजनक बोला मां जी को. ऐसा मैं क्यों करूंगी. मेरे लिए पूज्य हैं वह. ठीक वैसे ही जैसे मेरी अपनी मां. तुम सोचो, क्या हक नहीं है मेरा कुछ जानने का!”

 

“मैं मानता हूँ कि वो मेरे लिए ओवर प्रोटेक्टिव हैं… और कुछ नहीं. उनका आशय भी तुम्हें हर्ट करने का नहीं था”,

 

आरव ने तर्क देना चाहा. कुछ देर दोनों के बीच शांति छाई रही.

 

“आरव… मैं कुछ दिन के लिए ब्रेक चाहती हूँ. क्या तुम मुझे घर छोड़कर आ सकते हो?”

 

आरिणी ने उससे अनुरोध किया.

 

“अरे, अभी तो आई हो… और अभी जाने की बात...नहीं, अभी नहीं”,

 

साफ़ कहा आरव ने.

 

“बट आरव… आई नीड सम रेस्ट एंड अ लिटिल इंट्रोस्पेक्शन”,

 

स्पष्ट किया आरिणी ने.

 

“इंट्रोस्पेक्शन? व्हाट फॉर…? तुम बताओ मुझे क्या करना है जो तुम्हारे डाउट क्लियर हों… और तुम्हें सब अच्छा लगे. मॉम की बात मेरे ऊपर छोडो, उनसे तुमको कोई परेशानी नहीं होगी. जो हुआ, उसके लिए सॉरी”,

 

कहकर उसे फिर से आश्वस्त करना चाहा आरव ने.

 

आज, इस पल लग रहा था कि यह आरव अब वही पुराना आरव है, जो उसके लिए केयरिंग हुआ करता था. और फिर, भला कैसे कोई बदल सकता था इतनी जल्दी. कोई लॉजिक भी तो हो. वो थोड़ा प्रसन्न हुई. उसका मन अंदर से बेहतर हुआ. लग रहा था कि जो भी स्थिति होगी वह आरव के साथ मिलकर बेहतर रूप से उसका सामना कर सकेगी.

 

आरव ने पास आकर उसके दोनों हाथों को हौले से अपने हाथों में लिया और सहलाया, आरिणी भी धीमे से स्वयं उसके सीने से चिपक गई, नि:शब्द...जैसे मन में कह रही हो, कि तुम बिन मैं भी तो अधूरी ही हूँ आरव. और तुम मेरी जिंदगी हो, सब कुछ हो मेरे… ये अग्नि के समक्ष फेरे यूँ ही थोड़े व्यर्थ जाने दूँगी. तुम्हारा संबल बनूंगी, और जरूरत पड़ी तो ढाल भी बन जाऊंगी.

००००