360 डिग्री वाला प्रेम - 20 Raj Gopal S Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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360 डिग्री वाला प्रेम - 20

२०.

रोमांच… नहीं, कुछ असमंजस

धीरे-धीरे मेहमान जाने लगे थे. एक-एक करके सब चले गये शाम तक. घर में बचे मात्र वही-- राजेश प्रताप सिंह, उर्मिला, आरव, वर्तिका और स्वयं आरिणी. थोडी देर झपकी लेकर वह अब सहज हो गई थी. आज डिनर की तैयारी करना चाहती थी, पर उर्मिला ने स्नेहवश उसे मना कर दिया. ठीक भी था… आरिणी अभी इतनी भी सामान्य नहीं हुई थी कि डिनर जैसी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह कर सकने में समर्थ हो.

आरव तो घोड़े बेचकर सोया था. शाम होने को आई और शाम से फिर रात का घना अंधकार भी उतर आया, लेकिन श्रीमान आरव तो नींद के आगोश में ऐसे गये, जैसे उन्हें फिर कभी सोना ही नहीं है. आरिणी ने अवसर पाकर झिंझोडना भी चाहा, बोली,

 

“अरे बहुत हुई नींद… अब उठो भी, मॉडर्न कुम्भकर्ण !”

 

पर, आरव करवट बदल कर फिर सो गया. यूँ आरिणी हिम्मत नहीं हारने वाली थी. उसने उसे फिर पलटकर अपनी तरफ खींच लिया और बोली,

 

“अब जिद्द करोगे तो उठा कर ही रहूंगी तुमको”,

 

आरव ने प्रयास किया… आँखें मली… देखा भी आरिणी को, पर वह संयत नहीं हो पा रहा था. नींद की खुमारी ने उसे जकड़ रखा था, लाल हो रही थी उसकी आँखें! इसी बीच उर्मिला भी आ गई. उसे नींद से जागते देख बोली,

 

“कोई नहीं अरु, सोने दो उसे. उठ जाएगा अपने आप ऐसा ही करता है वो. अपनी नींद एक साथ ही निकालता है मेरा बेटा!”

 

आरिणी ने उर्मिला जी की तरफ देखा और मुस्कराते हुए उनके साथ चली आई. आरव सोता रहा. रात ग्यारह बज चुके थे. धीरे-धीरे सब सोने लगे. घर में सन्नाटा-सा छा गया था. यूँ अनजान नहीं था वह घर आरिणी के लिए, परन्तु आरव के साथ के बिना वह अकेली महसूस कर रही थी. उसको लग रहा था कि काश… वह भी इतनी अच्छी नींद ले सकती. पर इतनी भी खुशकिस्मत कहाँ भला वह. उसकी नींद तो उसके जीते-जागते सपनों ने हर रखी थी. दिन में स्वप्न देखने की जो आदत थी उसे. या तो वह काम में लगी होती, या खुली आँखों से सपने देख रही होती. यही स्टाइल था उसका अपना.

 

लेकिन कब तक… नींद को तो आना ही था. सो, दबे पाँव वह आरिणी के पास भी नैसर्गिक रूप से चली आई और आज की यह रात… खूबसूरत और मधुरिम रात, जिसके लिए न जाने कितने गीत बने हैं, और कितने लोग इस रात का इंतज़ार करते हैं, और फिर उस रात के एक-एक लम्हे को आजीवन अपने दिल में संजो कर रखते हैं, यूँ ही सूनी गुजरने लगी. वैसे तो वह घर अपरिचित नहीं था आरणी लिए पर जिसके लिए उसने यह घर चुना था… वह स्वयं ही गहरी और शांत नींद में सोया था,इसलिये वह बहुत दुखी और उदास थी .

 

नींद खुली तो उसने हडबडा कर समय देखा.. सवेरे के पौने छह बजे थे. कोई अधिक देर भी नहीं हुई थी. जैसे कल दोपहर से रात देर तक सोया था आरव उसी तरह से अब भी नींद में था. छत पर थोड़ा चहलकदमी के बाद उसने ब्रश किया और नीचे उतर आई.

 

उर्मिला जाग गई थी, बोली,

 

“आओ बेटा… चाय बनाती हूँ.”

 

“नहीं मम्मी जी, मैं बना लाती हूँ”,

 

कहकर बिना विलम्ब किये आरिणी किचेन में चली गई.

 

पांच मिनट में ही वह चाय बनाकर ले आई थी. लॉन में बैठकर दोनों-- सास-बहू चाय की चुस्कियां लेने लगी लेकिन आरव का इतना सोना आरिणी के दिमाग से निकल नहीं पा रहा था, इसलिए उसने पूछ ही लिया,

 

“सब ठीक तो है मम्मी? चिंता होती है… इतना भी कोई सोता है?”

 

“अरे चिंता की कोई बात नहीं है… थकान है, सबको अलग-अलग तरीके से होती है. सो रहा है तो सोने दो. उठ जाएगा. यही उम्र है उसकी सोने की… बाद में तो नींद उड़ ही जाती है”,

 

थोड़ा बेरुखी से कहा उर्मिला जी ने.

 

“जी… कोई बात नहीं, बस यूँ ही पूछा रही थी ”,

 

थोड़ा खेद प्रकट करने की मुद्रा में आ गई थी आरिणी.

 

“चलो आज तुमको हनुमान मंदिर ले चलेंगे… वही यूनिवर्सिटी वाले पर. या कहो तो पुराने हनुमान मंदिर चलें, अलीगंज में… तुम तो जानती होगी न वह मंदिर भी?”,

 

विषयान्तर करते हुए उर्मिला जी ने कहा.

 

“जैसा आप उचित समझें”,

 

आज्ञाकारिणी बहू की तरह आरिणी ने प्रस्ताव मान लिया.

 

दिन में कुक से ही कहा गया था, नाश्ता और भोजन बनाने को. कुछ मेहमान अभी भी आ-जा रहे थे, सो इतनी व्यवस्थाओं के लिए नई बहू को कष्ट नहीं दिया जा सकता था. वैसे भी आरिणी को घर की, और जरूरी सामान की जानकारी होने में अभी समय लगना था.

 

दिन भर सोता ही रहा आरव. दो बार उर्मिला और न जाने कितनी बार वर्तिका भी देख आई थी. पर, मनाही थी उर्मिला की तरफ से, कि उसकी नींद डिस्टर्ब न की जाए. सो, उसे उठाने की किसी ने सोची ही नहीं

 

पौने ग्यारह बज गये थे. सबने नाश्ता भी कर लिया था, पर आरव की अभी मॉर्निंग चाय का भी समय नहीं हुआ था. ‘अब चिंता कैसे न करे वह…’, आरिणी ने मन ही मन सोचा. उसने आरव की पीठ सहलाते हुए उठने का अनुरोध किया. वह चाहती थी कि आरव कम से कम फ्रेश होकर नाश्ता तो कर ले. काफी देर के बाद आरव ने हिम्मत की. वह उठा, और वाशरूम चला गया. वहां से आने के बाद भी उसके शरीर में खुमारी के लक्षण स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.

 

आरव ने नाश्ते की मेज पर मुस्कुराने की कोशिश की. लेकिन वह मुस्कुराहट सायास थी. जैसे उसका मन उसकी इच्छा के विपरीत मुस्कुराहट के लिए संकेत कर रहा हो. आरिणी ने पास बैठकर पूछा भी,

 

“आरव.. आर यू ओके ?”

 

“या… आई एम फाइन…”,

 

कहकर आरव के चेहरे पर फिर वही हंसी दिखी आरिणी को, जो अनायास नहीं होती. और जो मुस्कुराहट प्रयास से लानी पड़े, उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य रहता है, यह आरिणी भी समझती थी.

 

नाश्ता करने के उपरान्त आरव फिर कमरे में चला गया. थोड़ी देर आरिणी नीचे ही वर्तिका के कमरे में उससे बातें करती रही, पुराने एल्बम देखे उसने. आरव और वर्तिका के बचपन और मम्मी-पापा के विवाह के फोटो एल्बम भी… !

 

थोड़ी देर बाद वह आराम करने के लिए कमरे में गई तो देखा कि आरव अपने चिर-परिचित अंदाज़ में… औंधे मुंह गहन नींद में है. गहन इसलिए...कि उसकी अनियंत्रित सांस या कहें हल्के खर्राटों की ध्वनि भी कमरे में उपस्थित थी. थोड़ी देर रुक कर वह नीचे गई और इस बारे मे वर्तिका से उसने पूछा,

 

“कोई दिक्कत है क्या आरव को... या कोई दवा ली है उसने ?”,

 

पर वर्तिका ने अनभिज्ञता जाहिर की.

 

वह कुछ देर असमंजस मे खड़ी रही, फिर चली आयी. वर्तिका ने भी उसे रोका नहीं.

 

पापा समय से ही ऑफिस जा चुके थे और मां से वह कुछ पूछ ही नहीं सकती थी. सवेरे के झुंझलाहट भरे व्यवहार से उसे समझ आ गया था कि उससे बात करना इतना भी सहज नहीं.

००००