१३.
प्रेम की पींग
“अगली बार मिलने का मन हो तो सीधे बुला सकती हो. बहाना बनाने की जरूरत नहीं”,
आरव ने कॉफ़ी और कुकीज रखते हुए कहा.
“तुम्हें मालूम है ना कि तुम कितने अजीब हो! आई ऑलवेज फील प्राउड एंड थैंकफुल टू माय पेरेंट्स फॉर गिविंग मी सच ए ब्यूटीफुल नेम... बट नाउ आई विश दे कुड हैव नेम्ड मी फ्रॉम वाई….. “,
आरिणी ने आरव को घूरते हुए कहा.
“ओह रियली! तो मैडम कहना चाहती हैं कि रात के साढे नौ बजे वह और मैं केवल सेम अल्फाबेट की वजह से कॉलेज से चार किलोमीटर दूर अलीगंज के इस कॉफी हाउस में बैठे हैं”,
आरव ने आरिणी की आंखों में झांकते हुए शरारत से कहा.
“यू आर रियली टू मच…!”,
कहते हुए आरिणी ने अपना पर्स उठाया और सीधे बाहर आकर आरव की कार के पास खड़े होकर उसका इंतजार करने लगी. आरव ने, काउंटर पर बिल पे किया और दो सॉफ्टी के कोन लिए बाहर आ गया.
“अब चुपचाप इस आइसक्रीम को तो एन्जॉय करने देना…”,
आरिणी ने कहा.
आरव खुद थोड़ा समय यूँ ही बिताना चाहता था. सो, वह बस मुस्कुरा कर रह गया.
हॉस्टल तक का सफर म्यूजिक प्लेयर पर कुछ रोमांटिक हॉलीवुड गाने सुनते-सुनते दोनों ने मौन रहकर निकाला, पर वह गाने और आरव की मुस्कान कुछ अर्थ दे रही थी या फिर आरिणी का वहम था, वह समझ नहीं पाई! दिल की धड़कन कानों तक पहुंच रही थी. कहीं आरव के कानों तक भी तो नहीं. आरव ने गर्ल्स हॉस्टल के बाहर कार रोकी. आरिणी ने उतरने की कोई जल्दी ना दिखा प्लेयर पर चलते गाने के पूरा होने का इंतजार किया. आरव अब तक हॉस्टल के चौकीदार को सौ रुपए पकडा चुका था जो लड़कियों के लेट आने पर गेट खुलवाने के लिए दिया जाने वाला अलिखित और अवैध इन्सेन्टिव था. आरिणी ने आरव को ‘थैंक्स फॉर ड्रॉपिंग’ कहा और अंदर जाने लगी. आरव उसे लोहे के बड़े गेट के मिनी गेट में झुककर जाते हुए देख रहा था, कि अचानक आवाज आई,
“आरिणी !”,
आरव ने उसे पुकारा और अब वह कुछ दौड़ता हुआ सा उसके पास तक ही आ खड़ा हुआ था.
“लव यू टू”,
आरव ने कहा, और बिना उत्तर का इंतजार किए गाड़ी की तरफ बढ़ गया.
“अरे… मैंने कब कुछ बोला तुमको”,
पर आरव एक पल में ही दूर चला गया था. आरिणी हतप्रभ-सी उसे जाते देखती रही.
अगर यह प्रेम नही तो क्या है? मात्र आकर्षण? भले ही यह फिल्मी प्रेम जैसा मुखर और रूमानी नहीं, लेकिन क्या धड़कनों का असंयत होना हृदय में किसी और के प्रवेश की पुष्टि नहीं करता? पर, आरिणी शायद अभी इसके लिए तैयार नहीं थी.
…इसीलिये ऐसा कुछ नहीं था, जैसा प्रेम कथाओं में होता है. इसे प्रेम की परिभाषा में रखना ही सही नहीं होगा क्यूंकि आरव और आरिणी दोनों ही अपनी पढ़ाई में ही गहराई से डूबे थे, उनका प्रेम था तो सिर्फ पढ़ाई से. रही बात प्रोजेक्ट की… वह साथ मात्र संयोग था, और दोनों के लिए कुछ रिलैक्सिंग टाइम. कुछ और नहीं. जो स्नेह के वह पल उसे आरव के घर मिले, वह जरूर यादगार रहने वाले थे, यह तो तय था.
प्रोजेक्ट का काम खत्म हो चुका था, और आशातीत सफलता से खत्म हुआ था. पर इसके बाद भी आरिणी की व्यस्तता कम नहीं हुई थी. प्रोजेक्ट के बाद खाली समय में वह अपनी परीक्षाओं की तैयारी करती, जिनमें अभी महीने भर का समय शेष था, अथवा लाइब्रेरी में बैठकर फॉरेन जर्नल्स में अमेरिकन यूनिवर्सिटीज के एम एस के एडमिशन नोटिस, जी आर ई की तैयारी के लिए कोचिंग्स, और यूनाइटेड स्टेट्स की इंग्लिश लैंग्वेज के एक्सेंट के लिए वीकेंड प्रोग्राम के लिए सेण्टर भी जाती.
उसका असली सपना नौकरी नहीं था. वह था अमेरिका से मैकेनिकल में मास्टर्स की डिग्री हासिल करके वापिस लौटना. नौकरी तब तक प्रतीक्षा कर सकती थी. यूँ कहें कि वह अपने स्वप्नों को जीने के लिए कभी भी खाली नहीं रहती. थोडा भी खाली होती तो अपने म्यूजिक के सेशंस के रिहर्सल को भी समय देती. तभी तो उन हसीं सपनों को जी सकती थी, जो उसकी वास्तविक जिन्दगी को सपनों के सफर से एक खूबसूरत हकीकत में बदल सकते थे.
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