असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 17 Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 17

17

इन्हीं विकट परिस्थितियों में नेता जी अपने महल नुमा - डाईगं रूम में मालिश वाले का इन्तजार कर रहे थे । वे आज गम्भीर तो थे,मगर आश्वत भी ।

मालिशिये के आने की आहट से उनकी तन्द्रा टूटी । मालिशिये ने अपना काम ष्शुरू किया । टिकट के आकांक्षी आने लगे । कोठी के बाहर -भीतर धीरे-धीरे मजमा जमने लगा । एक टिकिट के दावेदार ने नेताजी के चरण स्पर्श किये । नेताजी ने कोई नहीं ध्यान दिया । वे बोले बता कैसे आया । ‘

‘बस वैसे ही । ’

‘बस वैसे ही तो तू आने वाला नहीं है । ’

‘ नहीं सर । बस दर्शन करने चला आया । ’

दर्शनों से क्या होता है यार साफ बता । ’

‘ बस टिकट चुनाव होने की संभावना है । ’

‘ तेरे इलाके से टिकट उूपर से तय होगा ? ’

‘क्यों सर !

‘ तेरी बहुत सी शिकायते है । ’

‘ शिकायतों से क्या होता है ’’ हजूर ! मेरे लिए तो आप ही माई -बाप है । ’

‘माई-बाप कहने से भी क्या होता है ? ’

‘अब तो लाज आपके हाथ में है । ’

‘ लाज -लज्जा का राजनीति में क्या काम । ’

‘सर कुछ करिये । ’

‘क्या करूं बता तू ही बता । ’

‘ सर बस इस बार टिकट मिल जाये सब ठीक हो जायेगा । ’

‘ टिकट ही तो मुश्किल है मेरे भाई । ’

‘ फिर क्या करू निर्दलीय लड़ू । ’

‘ जीत सकता है तो लड ़ले । ’

‘जीतना तो मुश्किल है । ’

‘फिर क्यों अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारता है । ’

‘ फिर क्या करू । ’

‘तेल देख -तेल की धार देख । ये कहकर नेताजी ने मालिशिये की और देखा । मालिशिया तेल का काम पूरा कर चुका था । नेताजी अन्दर नहाने चले गये । बाहर लॉन में एक कुत्ते ने फड़फड़ा कर अंगड़ाई ली । समवेत स्वरों में ष्श्वान समूह ने अपना राग गाया । लॉन में दो छुट भैये नेता सरकार के भविप्य पर चितिंत थे । चिन्तन कर रहे थे । एक बोला ‘ यह सरकार रहेगी या जायेगी । ’

ये प्रधान मंत्री रहेगंे या जायेगें ?

‘ ये गठबन्धन टूटेगा क्या चलेगा । ’

ये सब कब तक ऐसे ही चलेगा । ’

ष् ‘ सरकार का क्या है । कम्यूनिस्टो के समर्थन से चल रही है,जब जाजम खींची,सरकार गिरी । ’

‘ अरे यार ऐसे कैसे गिर जायेगी । कम्यूनिस्टों ने जाजम खिंची तो समाज वादियों की दरियां बिछ जायेगी । सब वापस बैठ जायेगें ।

‘ ये कम्यूनिस्ट भी क्या है ? कभी गुर्राते है,कभी भोंकते है । कभी धमकाते है बस काटते नहीं। ’

‘काटने के लिए दांत मजबूत चाहिये । ये तो विपहीन फन वाले है ।

हा ं ये ठीक उक्ति दी तुमने ।

‘सरकार अपना कार्य काल पूरा करेंगी । ’

‘ करना ही चाहिये ! अभी चुनाव हो गये तो सब बंटाढार । समझो गई भैस पानी में ।’ ‘चुनाव की भैस तो पानी में नहीं कीचड़ में जाती है यार । ’

‘क्या पानी और क्या कीचड़ और क्या कीचड़ में कमल । ’

‘अच्छा बताओं यदि चुनाव हुए तो प्रधानमंत्री कैौन बनेगा । ’

‘तुम ही बन जाना यार ।’

‘ मुझे तो टाइम ही नहीं है । ’

‘मजाक बन्द । सीरियसली जवाब दो । ’

‘देखो भाई पिछली बार राप्टपति के चुनाव में तय हुआ था कि तुम हमारे आदमी को राप्टपति बनाओं हम तुम्हारे आदमी को प्रधानमंत्री बनवा देगें । ’

‘ अच्छा फिर क्या हुआ । ’

‘होना क्या था ? दोनों ही हार गये । न राप्टपति बना न ही प्रधानमंत्री । ’

‘ लेकिन भावी प्रधानमंत्री । ’

‘ भावी की खूब कहीं । एक पार्टी ने अपना प्रधानमंत्री घोपित कर रखा है,एक पार्टी में युवराज राज्यभिपेक के लिए तैयार है,एक पार्टी में सभी क्षत्रप अपने आप को प्रधानमंत्री मानते है और भीप्म पितामह तो ष्शरशैया पर लेट कर ही प्रधानमंत्री की ष्शपथ लेने को तैयार है । ’

‘ आखिर कोइ तो बनेगा । ’

‘ हां तब तो वर्तमान क्या बुरे है ।’

दोनों छुट भैया नेता कोठी से बाहर आये । और ठण्ड़ी चाय की दुकान पर चले गये । प्रान्तीय सरकार का भला हो जिसने हर-गली,मौहल्ले नुक्कड़ पर ठण्ड़ी चाय की दुकाने खोल दी थी, और सेल्स मेन जबरदस्ती पिलाते थे । पिलवाते थे । मारपीट करते थे। सरकार को तो बस रेवेन्यू से मतलब था । मगर सरकार बेचारी क्या करे । सरकार चलाने के लिए रेवेन्यू चाहिये,रेवेन्यू का आसान रास्ता कर लगाना । कर लगाने के लिए ष्शराब बेचना ।शराब माफिया से बचने के लिए सरकार ने प्रत्येक दुकान दार को लाइसेंस देना शुरू कर दिया, परिणाम स्वरूप हर व्यक्ति ने ष्शराब की दुकान के लिए लाइसेंस की कोशिश करना ष्शुरू कर दी,और ज्यादा भ्रप्टाचार ।

जनता की भागीदारी बढ़ी ष्शराब की खपत बढ़ी सरकार की रेवेन्यू बढ़ी ।ये है प्रजातन्त्र के मजे ।

छुट भैया नेता देश की राजनीति से निपट कर प्रदेश की राजनीति पर उतर आये थे,अर्थात विदेशी ष्शराब के बाद देशी ठर्रे तक आ गये थे । वे मोहल्ले स्तर की राजनीति पर उतरना चाहते थे,अर्थत आपस में जूतम पैजार करना चाहते थे,मगर कोई दिख नहीं रहा था । ऐसी ही स्थिति में वे सामने कल्लू मोाची के ठीये पर पहुॅच गये । कल्लू मोाची अपने काम में व्यस्त था । लेकिन इन निठल्लों को इधर आते देख कर चौकन्ना हो गया । उसने जबरे को आवाज दी । जवाब में जबरा जोर से भोंका ।

छुट भैये नेता ने कल्लू की ओर पांव कर कहा,

‘जरा पालिश मार दे । ’

‘ पांच रूपये लगेगें । ’

‘‘क्या कहा ! पांच रूपये । यहॉ पर बैठने का लाइसेंस है तेरे पास । ’

‘ कल्लू चुप रहा । दूसरा छुटभैया बोल पड़ा । ’

‘नगरपालिका को कह कर बोरिया बिस्तर गोल करवा दूंगा साले का । चुपचाप पालिश मार ।

यह कह कर उसने भी जूते कल्लू के सामने रख दिये । मरता क्या न करता । कल्लू ने सोचा कौन इन उठाईगिरो के मुंह लगे । चुपचाप पालिश ब्रश,कपड़ा,रंग लेकर काम में लग गया । काम खतम कर जूते वापस किये तो नेता ने दोनो जोड़ियों के लिए एक पांच का सिक्का पकड़ा दिया । कल्लू ने चुप रहने में ही भलाई समझी ।

कल्लू ने चाय मंगवाई उसने पी और जबरे ने चाटी ।शाम का समय हो आया था ।

अब न तो गांव गांव रहे न ष्शहर ष्शहर रहे । न महानगर महानगर रहे। कल्लू सोचने लगा । कहॉं प्रेम चन्द के उपन्यासों के गांव, कहां हरिशंकर परसाई की रचनाओं के ग्रामीण परिवेश और कहां श्री लाल श्ुाक्ल के रागदरबारी के गांवों की राजनीति । सब बीत गये । सब रीत गये । इतने लोग मिलकर गांवों की आचंलिकता की अंाच पर अपनी रचनाओं की रोटी सेक रहे है और आचं है कि भड़कती ही चली जा रही है। एक अकेला रागदरबारी सब पर भारी पड़ जाता है । एक मैला आचंल सब की चादर मैली कर जाता है। कल्लू के विचार उत्तम है, मगर कौन सुनता है ।

कल्लू ने दुकान समेटी और घर की राह पकड़ी । झबरा हलवाई की दुकान के बाहर बैठ कर अपने डिनर का इन्तजार करने लगा ।

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विश्वविधालय । माधुरी विश्वविधालय । शानदार भवन । शानदार लॉन । शानदार प्रयोगशालाएॅं । जानदार कार्यालय । कार्यालय में पसरा सन्नाटा । माधुरी विश्वविधलय का कुलपति कक्ष । कुलपति की शान के क्या कहने । शिक्षामंत्री का कक्ष भी फीका । स्वादहीन ।

माधुरी अपनी ष्शानदार,जानदार,असरदार कुर्सी पर आसीन । वे विश्वविधालय की एक मात्र स्थायी पदधारी । उनको और उनके पद को कोई खतरा नहीं ।

वे विश्वविधालय की प्रथम अनोपचारिक उपवेशन की प्रथम महिला अध्यक्ष । गर्व से उनका माथा उूंचा हो गया ।

कक्ष में प्रथम चक्र में रखी कुर्सियों पर विश्वविधालय के अधिकारियों,अध्यापकों के रूप में अविनाश, हिन्दी टीचर कुलदीपक, बाबू झपकलाल, रजिस्टार शुक्लाजी, विराजमान थे । मेडम ने अपनी सहयोगी -स्टेनो के रूप में अपने ही स्कूल की प्रिन्सिपल शुक्लाइन को भी बुलवा लिया था । अस्थायी विश्वविधालय में अस्थायी समिति का अस्थायी कोरम पूरा हो गया था । कुछ और नियुक्तियों की चर्चा हेानी थी। माधुरी मेडम प्रशासन -राजनीति -कूटनीति - नैाकरशाही आदि के गुर सीख रही थी । उसे किसी केा जवाब  नही देना था । वो सर्वेसर्वा थी ।

विश्वविधालय के आथर््िाक पक्ष को भी मजबूत करना था । फीस- अनुदान -एन.आर.आई. कोटा आदि से ही धन सुगमता से आ सकता था। इसके लिए विश्वविधालय की साख को जमाना था । माधुरी ने इस अनौपचारिक मीटिगं की औपचारिक शुरूआत की । वे बोली

‘‘जैसा कि आप सब जानते है, माधुरी विश्वविधालय इस क्षेत्र का एक मात्र निजि विश्वविधालय है और इसे बड़ी मुश्किल से मैं स्थापित कर पाई हूॅ ताकि इस क्षेत्र में शिक्षा,तकनीकि शिक्षा, मेडिकल शिक्षा का विकास हो तथा इस क्षेत्र के बच्चे भी देश -प्रदेश के विकास में अपना योगदान दे सके ।

सर्व प्रथम हमे एक प्रख्यात शिक्षा विद चाहिये जो पूरी युनिवरसिटी के ष्शैक्षणिक कार्यकलापों का ध्यान रख सके तथा विश्वविधालय को सम्पूर्ण शिक्षा जगत में मान दिलवा सकै ।

फिल हाल वित्त समिति तथा ष्शासी निकाय की स्थापना एक्ट के अनुसार की जानी है । शासी निकाम हमारी सर्वोच्च संस्था है तथा मैं इसकी अध्यक्ष रहूंगी वित्त समिति में रजिस्टार,लेखाधिकारी तथा डीन एकेडेमिक रहेगे । ’ नियुक्ति समिति में विभागाध्यक्ष, रजिस्टार तथा विपय के दो विशेपज्ञ रहेगें । चयन समिति की सिफारिश पर कुलपति नियुक्ती देंगी । मगर चयन समिति की सिफारिश मानने के लिये मैं बाद्ध नहीं हूॅ ।

लेकिन मैडम ......अविनाश ने टांेका । ‘

‘चुप रहिये ।’काम होने दीजिये । नियमो में संशोधन होते रहेगें ।

वित्त समिति सरकार से अनुदान, विदेशो से सहायता,एन.आर.आई फण्ड आदि से धन प्राप्त करने के लिए प्रयास करे ।

‘ लेकिन .....इस बार ष्शुक्लाजी बोल पड़े । ’

‘शुक्ला जी आपकी -हमारी बातें तो होती रहेगी । ’ आपका हमारा साथ तो चोली -दामन की तरह है। फिलहाल आप विश्वविधालय की प्रथम मीटिंग के मिनिटस टाइप कराये । मेरे से अनुमोदन करा ले । हां एक बात ओर । कृपा करके एक क्लाज तदर्थ नियुक्ति का डाल कर सभी उपस्थित अधिकारी,कर्मचारी, विश्वविधालय में तदर्थ नियुक्ति पर लग जाये । वेतन -भत्ते मैं तय कर दूंगी । ’’

मिटिंग सधन्यवाद समाप्त की जाती है। चाय - रसगुल्लों का स्वाद ले । एक दूसरे को बधाई दें । ’

पाठको इस प्रकार  विश्वविधालय की प्रथम स्वादिप्ट व सफल बैठक सम्पन्न हुई ।

बैठक का विवरण मिडिया में विशेपकर र्प्रिंट मीडिया में देने के खातिर भूतपूर्व कवि और विश्वविधालय के वर्तमान अस्थायी संविदा जनसम्पर्क अधिकारी इकलेाते स्थानीय अखबार के कार्यालय में पहुॅंचे । सम्पादकजी किसी फोटो जर्नलिस्ट को पत्रकारिता की बारीकियां समझा रहे थे ।

‘ कल तुमने ताजा टिण्ड़े का बासी फोटो लगा दिया गया था ।’

‘तो क्या सर । टिण्ड़े तो थे । टिण्डेों के स्थान पर भिण्डी तो नहीं थी ।’

‘ठीक है -मगर आगे से ध्यान रखना । ’

तभी अविनाशजी ने संपादक के कक्ष में प्रवेश किया ।

‘और सुनाईयें संपादक जी क्या हाल -चाल है ? सम्पादक जी ने कोई जवाब नहीं दिया । अपनी आंखे कम्प्यूटर पर गड़ा ली । वे समझ गये ये ऐसे पीछा छोड़ने वाला नहीं है । वे एक स्थनीय समाचार का शीर्पक बदलनें में व्यस्त हो गये । एक देा कॉलम के समाचार को एक कॉलम का कर दिया । इसी बीच अविनाश ने अपनी विज्ञप्ति आगे बढा़ई ।

‘ये क्या है ?’

‘ विज्ञप्ति है । सादर प्रकायानार्थ ।’’

‘ ल्ेकिन इसमें समाचार कहॉं है ?’’

‘ समाचार तो छपने पर अपने आप बन जायेगा । ’

‘ लेकिन कुछ तो विवरण हो । तथ्य हो । सत्य तो हो । समाज के लिए संदेश हो । ’ सम्पादक जी भापण देने पर उतारू थे ।

अविनाश ने धीरे से कहा

‘शाम को प्रेस क्लब में मिलते है ।

सम्पादक जी ने विज्ञप्ति को छपने भेज दिया ।

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इधर जश्न-ए आजादी का दिन आ गया । आजादी साठ वर्प की हो गई । विश्वविधालय में झण्ड़ा रोहण का कार्यक्रम रखा गया । नये नियमों के अनुसार झण्ड़े को कोई भी फहरा सकता था । इस साठवीं आजादी में सब कुछ बाजार हो गया । दायित्व सब भूल गये । अधिकार,मांगे, याद रह गये । गान्धी जी ने नारा दिया था अंग्रेजों भारत छोड़ों,अब हालत ये है कि ईमानदारी, नैतिकता, ष्शुद्धता,असली चीजे,सब भारत छोड़ने को उतारू हो गये । तथा रह गये झूठ,बेईमानी, मक्कारी,झूठे वादे,गलत बयानी और चाटुकारिता । लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री को सुनते हुए भी कोफत होती है । क्योंकि कहते कुछ है करते कुछ है सरकार बचाने में होर्स टेडिगं होती है । सौदे बाजी होती है और सभी गलत कार्यो के लिए सब के दरवाजे,खिड़कियां और छते खुली हुई है ।

लाल किले की प्राचीरे सैकड़ो वर्पो से गवाही देती आ रही है । कई प्रधानमंत्रियों को इन प्राचीरों ने सुना है,समझा है । ये इतिहास की मूक-गवाह है । सब कुछ जानती है। समझती है । फिर भी चुप रहती है । जैसे भारतीय जनता । मगर चुप्पी, मौन की भी तो एक दहाड़ होती है ।

माधुरी विश्वविधालय में झण्ड़ा रोहण हुआ । शानदार हुआ । मिठाईयां बाटी और इस पावन अवसर पर माधुरी ने अपने पति सेठजी को विश्वविधालय का कुलाधिपति नियुक्त कर दिया । शिक्षा व्यवस्था पर आजादी के दिन एक जोर दार शानदार -तमाचा । एक अन्य विश्वविधालय के कुलपति पद पर एक बड़े नौकरशाह को बिठा दिया । अकादमी पर एक वैधराज काबिज हो गये । एक चिकित्सा विश्वविधालय का े मजदूर नेता चलाने लगा । सचमुच आजादी । सबको आजादी ।

माध्ुरी ने विश्वविधालय के कर्मचारियों को स्थायी करने की घोपणा की । तालियां बजी । खुशियां मनाई गई । छात्रों ने जन-गण-मन गाया । भारत माता की जय बोली गई । आजादी मनाई गई । माधुरी ने एक टीवी चैनल पर भी यह कार्यक्रम दिखवा दिया । पूरे ष्शहर में वाह-वाह हो गई । क्या कहने । सब कुछ असरदार ।

माधुरी ने कर्मचारियों को बोनस भी बंटवा दिया । अब कौन बोलता । माधुरी के पति सेठ रण छोड दास  स्थायी कुलाधिपति हो गये । लेकिन ईमानदारी देखिये केवल एक रूपये प्रतिमाह के वेतन पर ।

कुलदीपक जी कवि थे । लेखक थे । साहित्यिक पत्रकार थे । मंच पर गलेबाजी कर लेते थे। विश्वविधालय में इकलौते हिन्दी प्राध्यापक थे । हेड थे । अपने आप को प्रोफेसर और बाकी सभी लोगो को हेडलेस चूजे समझते थे । मगर चूजे कभी कभी ज्यादा खतरनाक साबित हो जाते थे । इधर कुलदीपक जी ने एक राप्टीय सेमिनार-कम कांफ्रेस कम वर्कशाप कम सिम्पोजियम की योजना का निर्माण कर विश्वविधालय की कुलपति की सेवा में प्रेपित कर दिया । माधुरी ने कुलनति कक्ष में कुलदीपक जी को तलब किया ।

‘ ये क्या बिमारी है ?

‘मेम ये बिमारी नहीं एक राप्टीय सेमिनार का प्रोजेक्ट है । जिसे आप विश्वविधालय ग्रान्ट कमीशन को अग्रेपित कर दे ।

‘ उससे क्या होगा ?

मैं अपने सूत्रों से इसे पास करा लूगां ।

तीन दिवसीय सेमिनार में देश के हिन्दी विद्वान भाग लेगें । अपने विश्वविधालय का नाम होगा । बड़े -बड़े लोग आयेगें । अखबारों मीडिया में कवरेज आयेगा । आपके विजुलस, बाइट्स दिखेगें । छपेंगे ।

‘लेकिन ये क्या विपय चुना हैं आपने ?

‘ विपय तो ठीक ही है ।

‘महिला सशक्तीकरण -स्त्री विमर्श । ये भी कोई विपय है भला । ’

‘ विपय बिलकुल ज्वलन्त है । पूरी दुनिया में इस विपय पर काम हो रहा है, हिन्दी जगत में खास कर साहित्य की दुनिया में तो घमासान मचा हुआ है । हर बड़े,पत्र,पत्रिका में इस विपय पर आलेख, परिचर्चाएॅ, लेख,कविताएं छप रहीं है ।

‘ उससे क्या ?

‘ मेडम नया -ज्वलन्त विपय लेने से सेमिनार की स्वीकृति आसानी से मिल जाती है। तीन दिवसीय सेमिनार की रूपरेखा के बाद मैंने तीस लाख का बजट प्रस्तावित किया है। सब कुछ ठीक -ठाक रहा तो स्वीकृति मिल ही जायेगी । फिर एक स्मारिका छाप लेंगे । उससे भी आय हो जायेगी । प्राप्त ष्शोध पत्रों व साराशों को पुस्तकाकार छाप कर बेंच देगें । मजे ही मजे । आपका नाम मुख्य सम्पादक -चेयरमेन आदि के रूप में जायेगा ।

ल्ेकिन ये विपय कुछ अजीब है ?

‘ अजी अजब -गजब विपय ही चलते है ।

ऐसे ही विपयों पर लिखा जा रहा है । सोंचा जा रहा है । छापा जा रहा है ।

‘ लेकिन क्या यू.जी.सी. मान जायेगी ।

‘ ये आप मुझपर छोड़ दीजिये । यू.जी.सी. के अलावा अन्य स्थानों से भी धन प्राप्त करने की कोशिश करूगां ।

‘ देख लीजिये । मैं पैसा देने की स्थिति मेें नहीं हूॅ ।

‘ आप से पैसे नहीं चाहिये । आप केवल स्वीकृति की अनुशंसा के साथ प्रोजेक्ट को यू.जी.सी. को भिजवा दे ।

हां एक बात ओर ।

क्या ?

इस सेमिनार से पूर्व मेरा प्रोफेसर पद पर स्थायी होना जरूरी है । कुलदीपक ने पूरी ध्ृाप्टता से धूर्तता पूर्वक कहां ताकि आयोजन समिति ठीक से बने ।

‘ माधुरी की त्येांरियां चढ़ गई । मगर सेमिनार में उसे अपना भी लाभ दिखाई दे रहा था ।

‘ लेकिन उसके ेलिए चयन समिति का होना जरूरी है ।

‘ उसमें क्या परेशानी है। एक विश्वविधालय के कुलपति आपकी वी.सी. सर्च कमेटी में रह चुके है, उन्हे बुलाकर अनुग्रहीत कर देंगे । एक अन्य विश्वविधालय में मैने एक व्यक्ति को पी.एच.डी. में मदद की है, उसे विपय -विशेपज्ञ के रूप में बुला लेते हैं। आप स्वयं चेयर परसन चयन समिति है ।

‘ लेकिन वेू वी.सी. बड़े खतरनाक है ?

‘खतरनाक वी.सी. को राजभवन से फोन करवा दिया है । सब ठीक हो जायेगा ।

‘ तो आप ने सब व्यवस्था करली है ।

हैं ! हैं ! .....हैं ।

ठीक है । इस सेमिनार के कागजों को ठीक से बनाले । दीपावली के बाद की तारीख रखलेे । तब तक आपके चयन के लिए भी कुछ करेंगे ।

‘ साक्षात्कार श्राद्धों से पहले और नियुक्ति आदेश नवरात्री तक हो जाये मेडम ।

‘ बड़े धूर्त हो ।

चलो कुछ करते हैं ।

कुुलदीपक प्रसन्न मुद्रा में बाहर आ गये ।

कुलदीपक के जाने के तुरन्त बाद अविनाश मेडम माधुरी से मिलने पहुॅंचें । उन्हें यह ज्ञात हो चुका था कि कुलदीपक किसी राप्टीय सेमिनार के सिल सिले में आये थे। कुलदीपक के प्रभाव को कम करना आवश्यक था । वे भी पुराने खिलाड़ी और पुराने शिकारी थे ।शैक्षणिक

राजनीति उन्हें भी आती थी । वे पहुॅचे । माधुरी की व्यस्तता की चिन्ता करने के बजाय वे सीधे मुद्दे पर आ गये ।

‘ गृह मंत्रालय से एक सरकुलर आया है । गृहमंत्रालय ने पदम पुरस्कारों के लिए प्रविप्ठियां आमन्त्रित की है ।

ये सुनते ही माधुरी के कान खड़े हो गये । दिमाग काम करने लग गया ।

‘ अच्छा क्या लिखा है सरकुलर में ।

‘ सरकुलर में गृहमंत्रालय ने विभिन पदम पुरस्कारों यथा भारतरत्न,पदम विभूपण, पदम भूपण, पदम श्री आदि के लिए योग्य लोगों के आवेदन भेजने को कहा है। और इस विश्वविधालय में आप से ज्यादा योग्य कौन है ।

‘ तो अब हमें क्या करना चाहिये ।

क्रना क्या है आपका और मेरा बायोडेटा तैयार करवा कर भिजवाना है । लेकिन अपने को पदम पुरस्कार कौन और क्यों देगा ?

‘ अरे मेडम । जब अपराधियों,स्मगलरों,उठाईगिरों, भ्रप्ट नौकरशाहों तथा चवन्नी छाप राजनेताओं को पदम पुरस्कार मिल रहे है तो आप तो कुलपति है ।

‘ और तुम्हारा क्या होगा रे अविनाश ।’