असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 18 Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 18

18

‘मेरा क्या हैं मेडम । आपके पीछे -पीछे चल रहा हूॅ । कहीं तो पहुॅच ही जाउूगा ।

‘ ल्ेकिन पदम पुरस्कारों के लिए उच्च स्तर की सेंिटगं चाहिये ।

‘सेटिगं न होगी तो अगले साल फिर कोशिश कर लेंगे । अपने बाप का क्या जाता है? माधुरी के मौन को स्वीकृति समझ अविनाश ने बायोडेटा की प्रति आगे बढ़ा दी । बायोडेटा देखकर माधुरी स्वयं आश्चर्य में पड़ गई । क्या वे वास्तव में प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री, समाजसेवी, कुलपति, दानदाता, महिला हितेपी, राज्यहितकारिणी, ख्यातिप्राप्त ष्शोधकर्ता, लेखक, समाज विज्ञानी थी ।ओर अविनाश के बायोडेटा से भी ऐसी ही ष्शब्दावली की बू आ रही थी ।

मधुरी ने सोच समझकर बायोडेटा को कुलाधिपति की पत्रावली में रखवा दिया । अविनाश धूर्तता से मुस्कराते हुए बाहर आ गये ।

कुलाधिपति सेठ जी ने बायोडेटा देखा । देख कर हॅसें । और माधुरी से बोले ।

‘ मेडम माधुरी जी क्या  यह पदमपुरस्कार आपसे पहले मुझे नहीं मिलना चाहिये, और अविनाश क्या बिमारी है, केवल मेरा नौकर ।

‘ ते क्या करें ? माधुरी ने पूछा ।

‘ करना क्या है केवल तुम्हारा और मेरा बायोडेटा जायेगा । शिक्षाके व साहित्य के कोलम से । अपने को मिल जायेगा तो फिर -दूसरों के बारे में सोचेंगे ।

मधुरी केा बात समझ में आ गई । सेठानी जी उर्फ माधुरी मेडम सेठजी उर्फ कुलाधिपति व कुलपति के बायोडेटा पदम पुरस्कारों हेतु भेज दिये गये । इतिशुभम् ।

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इधर माधुरी के स्कूल की कम्यूंटर लेब में नित नये खेल होने लगे । ब्राड़ बेन्ड सुविधा के कारण छात्रो, अध्यापकों,कर्मचारियों ने अपने कई-कई ई-मेल आई डी बना लिये कुछ लोंगो ने अपने -अपने ब्लॉग बना लिये और ब्लॉगों पर कुछ -न कुछ लिखने लगे । मुफत कि सुविधा अर्थात फोकट का चन्दन घिस मेरे नन्दन । हल्दी - लगे ना फिटकरी रंग चोखा का चोखा ।

इन्टरनेट पर हजारों - लाखों साइटें । हर साइट के अलग नजारे । पढ़ाई -लिखाई से लगाकर मनोरंजन,फिल्में,गाने, प्यार,सहजीवन की साईटे । हर साइट का अलग मजा । लेकिन खतरे भी बहुत । हर मेल बोक्स में जंक मेल । कभी अफ्रीका से कभी अन्य कहीं से । कभी लाखों को बटोरने का लालच । कभी फंसने का डर । कोई करे तो क्या करे ।

ऐसा ही एक वाकया स्कूल के एक ही अध्यापक के साथ हो गया । किसी जानकार व्यक्ति ने उनका ई मेल आईडी हेंक कर दिया । इस मेल से सभी को सूचना दे दी ।

‘ मैं एक जगह फंस गया हूॅ । लुट गया हूॅ । कृपया मेरी मदद करे ं। ’

सभी जगहों से अध्यापक जी के पास मेल आने लगे । साइबर क्राइम की ष्शुरूआत हो गयी । बड़ी मुश्किल से साइट का पेज बन्द किया । सभी को अपने राजी -खुशी होने की जानकारी मेल टेलीफोन एस.एम.एस. चिठ्ठी से दी गई ।

मगर इन्टरनेट टेक्नोलोजी के कारण सुविधाएॅ बढ़ी तो समस्याएॅ भी बढ़ी । इन्टरनेट पर आन लाइन बेकिंग से भी परेशानियॉं बढ़ी ।

माधुरी -शुक्ला मेडम व अन्य तकनीकी जान कार लोग सब जानते थे मगर मजबूर थे । वाइरस की समस्या अलग परेशान करती थी ।

बड़ी -बड़ी कप्यूंटर कम्पनियां आपस में लड़ती थी एक दूसरे की वेबसाइटस को हेंक कर लेती थी । खामियाजा सामान्य जनता को भुगतना था । वैसे निशुल्क सुविधा का इन्टरनेट पर जवाब नहीं । करोड़ो चिठ्ठियां इधर -उधर क्षणो में चली जाती और वो भी निशुल्क,बिना किसी गलती के । क्या भारतीय ड़ाक -तार विभाग या कूरियर वाले यह कमाल दिखा सकते है । कभी नहीं ।

इन्टरनेट पर चेटिंग और ब्लॉगिग के दीवाने तो माधुरी -विश्वविधालय में भी अनेक थे । सुविधा ये हुई कि अब हिन्दी व भारतीय भापाओं में भी काम होने लग गया । नये -नये लेखक,कवि,व्यंगकार,आ गये,जो कहीं नहीं छपते वे इन्टरनेट पर छपने -खपने लग गये । चेटिंग के माध्यम से मित्र लोग अपनी बात कहने लग गये । ब्लॉंगो पर लम्बी-चौड़ी बहसे होने लग गई ।

माधुरी ने ष्शुक्ला मेडम की मदद से उच्च शिक्षा पर एक सार्थक बहस ष्शुरू करने के लिए ब्लॉग बनाया । अपनी बात कहने का प्रयास किया । लेकिन ष्शीघ्र ही रोज नये -नये लोगों ने नये-नये सवाल उठाने ष्शुरू कर दिये । कुछ सवाल विश्वविधालय की स्थापना,निजि जीवन,सेठजी,नेताजी के बारें में भी आने लगे । माधुरी ने ब्लॉग लेखन बन्द कर दिया । हां फिर भी ब्लॉगों को वो प्रेम से पढती । अमिताभ बच्चन,का ब्लॉग,शाहरूखखान,आमिरखान,सलमान खान के ब्लॉगों को पढ़कर मजा आने लगा । बड़े -बड़े लोगो के छोटे -छोटे दिल । छोटी -छोटी बातों के बड़े - बड़े फसाने ।

हिन्दी भापा के ब्लॅाग । कुंठाओं अवसाद से भरे हुए । शुक्लाजी ने भी अपनी कुछ कविताएॅ ब्लॉग पर डाली । सर्दियों के दिन थ्ेा । पदम पुरस्कारों के दिन मगर माधुरी का कहीं नाम नहीं था । शायद अभी प्रजातन्त्र में कहीं कुछ नैतिकता जिंदा थी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ था। आशा की कोई किरण अभी रास्ता दिखा रहीं थी ।

 

कल्लू मोची अपने ठीये पर बैठ कर सुबह का अखबार पढ़ रहा था । वो अखबार खरीदता नहीं था, सामने वाले हलवाई से मांगकर पढ़ता था । हलवाई खीजता था मगर अखबार दे देता था । कल्लू का मन अखबार में छपी खबरे देख देखकर दुखी होता था । सोचता था आजकल अखबारों में आता ही क्या है ? खूब सारे फोटो । सुन्दर लड़कियों के फोटो । अनंर्गल समाचार । कुछ अफवाहें और अखबार के मालिको क ेलेख, मालकिनों कि कविताएं,राजनैतिक पार्टियों के रोपित समाचार । विज्ञप्तियां आदि ।

कल्लू किसी समाचार को पढ़ कर बड़बड़ा रहा था ।

क्या हो गया है, ष्शहर को । बुजुर्ग दम्पति की हत्या । एक अन्य बुजुर्ग लूट लिया । चेन तोड़ी । तलाक।,बलात्कार । पुलिस की नाके बन्दी । बैंक लूट बस यही सब रह गया है आजकल । लगता है सरकार नाम की कोई चीज कहीं है ही नहीं ।

कल्लू की बड़बड़ाहट सुन कर झबरा कुत्ता चौकन्ना हो गया । वो कल्लू की हां में हां मिलाने के लिए पंूछ हिलाने लगा । कल्लू मोची ने चाय की आवाज लगाई । हलवाई की चाय आधी कल्लू ने पी और आधी कुत्ते ने चाटी । कल्लू बेकार बैठा था । सोच रहा था । बारिश के मौसम मे ग्राहकी भी कमजोर पड़ जाती है लेकिन खर्चे कमजोर नहीं पड़ते । उसे तीन -चार लोग आते दिखाई दिये । धन्धे की कुछ आस बंधी लेकिन वे लोग किसी का पता पूछ रहे थे,कल्लू ने पता बताया फिर वहीं उदासी । वही उदास समाचार । कल्लू ने जबरे की ओर देखा । जबरा भी उसे टुकुर -टुकुर ताक रहा था । कल्लू फिर बोल पड़ा ।

‘ यार कल्लू जमाने को क्या हो गया है ? कोई भी सब्जी पचास रूपये से कम नहीं । गेहूॅं पन्द्रह रूपये किलेा । तेल सौ रूपये किलो । और सरकार कहती है कि मंहगाई कम हो रही है । विकास दर बढ़ रही है । देश तेजी से तरक्की कर रहा है । सब कुछ तो बाजार हो गया है । बाजार में क्रयशक्ति वाला ही खड़ा रह सकता है । अर्थशास्त्र के अनुसार गरीबी का कारण क्रयशक्ति का अभाव है, वरना सामानों से तो बाजार अटा पड़ा है । भूख मरी का कारण अनाज की कमी नहीं खरीदने की शक्ति की कमी है । कल्लू को यह अर्थशास्त्र कभी समझ में नहीं आता था।

झबरे कुत्ते की रूचि अर्थशास्त्र से ज्यादा हड्ड़ी के टुकड़े या -चाय - चाटने में थी। कल्लू गरीबी से दुखी था,कुत्ता अर्थशास्त्र से दुखी था लेकिन दोनों असहाय थे । कल्लू ने फिर सोचा । आखिर सरकार के कदम महंगाई को क्यों रोक नही पाते। एक प्रधानमंत्री ने तो स्पप्ट कह दिया, महंगाई दूसरे मुल्कों की नीतियों के कारण बढ़ रही है । इट इज ए ग्लोबल फिनोमेना ।

हूॅ । क्या सरकार चाहे तो कुछ आवश्यक वस्तुओं के दाम कम नहीं कर सकती । गरीब को कार, ए.सीए ष्शेयर बाजार, मॉल,मल्टी प्लेक्स, फलेट, टीवी, कम्ंयूटर नहीं चाहिये । केवल दोजरव को भरने के लिए दो जून रोटी चाहिये । मगर सरकार सुने तब न .........।

ष्शाम हो चली थी । कल्लू ने सामान समेटा । घर को चल दिया । आज भी ष्शायद धर पर पकाने को कुछ न हो । जबरा कुत्ता उसके पॉवों में लौट गया । उसने उसे पुचकारा और उदास मन से घर की और बढ़ गया ।

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अविनाश, कुलदीपक माधुरी विश्वविधालय के स्टाफ रूम में गप-शप कर रहे थे । अविनाश वैसे तो जनसम्पर्क का काम देखते थे, मगर वे स्वयं की मार्केटिंग में भी माहिर थे । कुलदीपक पिछली बार चयन समिति से तो चयनित हो गये थे, मगर राज भवन ने अड़गां लगा दिया था । राज भवन के प्रतिनिधि के अभाव में चयन समिति की -संवैधानिकता पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया था । वे चयनित थे, मगर आदेश रूक गये थे । वे कोर्ट में जाना चाहते थे, मगर माधुरी ने रोक दिया था । कहा था । समय आने पर सब ठीक हो जायेगा । कुलदीपक मन मसोस कर रह गये थे, मगर सेमिनार में लग गये । क्योंकि सेमिनार का बजट आ गया था । बजट को मार्च के पहले निपटाना था । मगर कुलदीपक जी उूंचे खिलाड़ी थे, उन्होने झपकलाल को सेमिनार का काम काज संभलवा दिया था । समितियां बना दी गई थी । बजट की बंदर बांट जारी थी । कहीं कहीं विल्लियों की लड़ाई में बजट बन्दर ही खा जाने को उतावले थे ।

रजिस्टार ष्शुक्लाजी अलग अपना अपना राग अलापते रहते थे, उन्होने ठेके पर एक सेवानिवृत्त लेखाकार को लेखाधिकारी के रूप में लगा दिया था बेचारा लेखाकार रजिस्टार के आदेशों की पालना में सभी गलत -सही कागजों पर सही बैठा देता था । कभी किसी कागज पर आक्षेप लगाता तो ष्शुक्ला जी उसे बुलाते,चाय पिलाते,प्यार से समझाते और कहते ‘बाबूजी ! ये निजि विश्वविधालय है । यहॉं पर सब कुछ मेडम की मर्जी से चलता है । हर कागज पर वे हीं निर्णय लेती है । आप अपने सरकारी आक्षेपो के त्रिशूल नही गाड़े नही ंतो मेडम नाराज हो जायेगी । आपकी नौकरी तो जायेगी ही मेरी भी जारन सांसत में पड़ जायेगी ।

धीरे धीेरे विश्वविधालय अपना आकार ले रहा था । वहॉं पर मुखौटे थे, हाथी थे ।मगर मच्छ थे । छिपकलियां थी । चूहे थे । सब धीरे धीरे इस अरण्य में विचरण कर रहे थे । विश्वविधालय धीरे धीरे एक समन्दर का रूप ले रहा था । विज्ञापनों के कारण छात्र-छात्राएॅं भी आने लगे थे । तकनीकि संस्थान हो जाने से फीस भी मोटी और उूॅची हो गई थी । सरकारी अनुदान भी मिलने लग गया था । विदेशों से भी पैसा आने लगा था । भव्य भवन के निर्माण में रजिस्टार साहब की कोठी भी बन गई थी । कहने को इन्जीनियर्स भी थे, मगर रजिस्टार ष्शुक्लाजी बड़े चालू चीज थे । वे सभी को चूरा देते और लड्डू खुद हजम कर जाते । पढ़ने-लिखने के ष्शौक के कारण अध्यापको से बहस कर जाते और पद की गरिमा के कारण उन्हे चुपकर देते । वैसे अध्यापक बेचारा सबसे गरीब डरपोक,कामचोर,कायर जीव होता है, जिससे अध्यापन के अलावा पचास काम कराये जा सकते है । कुलदीपक जी उन्हीं पचास कार्यो में से एक सेमिनार में लगे थे । सेमिनार के उद्धघाटन में वे तसलीमा नसरीन,मैत्रेयी देवी महाश्वेता देवी या अरून्धती राय को बुलाना चाहते थे मगर माधुरी मेडम व कुलाधिपति महोदयेा ने शिक्षामंत्री से पूर्व में ही समय ले लिया था । इस कारण स्त्री विमर्श व वूमेन लिब के अन्य जानकार सेमिनार में केवल भापण देने में ही व्यस्त रहे ।

शिक्षामंत्री के आने से विश्वविधालय का बड़ा भला हुआ । उसे स्थायी मान्यता मिल गई ।

कुलदीपक सेमिनार की सफलता से खुश थे । माधुरी विश्वविधालय के स्थायी करण से खशु थी । रणछोड़ दास जी महाराज अख्रबारो में फोटो टीवी पर ष्शकल दिखने से खुश थे । अविनाश,झपकलाल रजिस्टार आदि चूरे से खुश थे । सेमिनार के बजट से कुछ राशि बच गई थी,एक दिन पूरे विश्वविधालय स्टाफ और छात्र-छात्राओं ने ष्शानदार पिकनिक मनाकर बजट को संम्पूर्ण कर दिया ।

ऐसे विश्वविधालयों की हर राज्य में बाढ़ सी आ गई । तकनीकि संस्थानों की भी बाढ़ आ गई । सब कुछ शिक्षा के नाम पर जिसके लिए किसी ने लिखा कि शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी वह कुतिया है जिस पर हर केाई एक लात मार देता है ।

सरकार के मुखिया ने अचानक यह इच्छा जाहिर की िक वे राज्य क ेलेखकों,बुद्धजीवियों से मिलेगे । लेखक तलाशेजाने लगंे । कई लेखकों से सम्पर्क करने के प्रयास किये गये । मगर कई नकचढ़े लेखकों ने नवरत्नो में ष्शामिल होने से मना कर दिया । कई लेखकों ने छुट भैये पत्रकारों,कवियों के नाम सुझा दिये । कारिन्दों ने विपक्षी नेताओं से भी नाम मांगे, मगर इस बुद्धिजीवी मीट के लिए उन्होने अपने आदमियों को भेजना गंवारा न किया । कारिन्दों को बड़ा आश्चर्य हुआ । अच्छा खाना -नाश्ता, ए.सी. हाल में मुख्यमंत्री से मुलाकात का अवसर । मगर अच्छे लोग मिल नहीं रहे । जो मिल रहे थे उन्हे सरकार बड़ा उूॅचा लेखक -कलाकार मानने को तैयार नहीं । और पत्रकारों का क्या भरोसा,कब क्या लिख बैठे । बड़ी परेशानी थी । मुख्यमंत्री के निजिसचिव ने जन सम्पर्क सचिव को तलब किया ।

ल्ेाखको की सूची बन गई क्या ?

‘ सर ! सूची कई बार बनी । कई बार बिगड़ी । अन्तिम सूची तो मुख्यमंत्री ही बनायेगें न । ’

‘ तो क्या ? एक टेन्टेटिव सूची तो प्रस्तुत करो ।

‘ सर इन लोगो का कोई भरोसा नहीं । कब कौन क्या बोल बैठे और फिर हमे सी .एम. के सामने नीचा देखना पड़े ।

‘ क्यों ? हम किसी को ज्यादा बोलने का अवसर ही नहीं देगे ।

सवाल अवसर का नहीं है श्री मान् । ये बुद्धिजीवी बड़ी खफती कौम होती है । ऐसा चूटयां भरती है कि सत्ता को बरसो याद रहता है ।

आपको याद है न एक पूर्व मुख्यमंत्री ने महादेवी वर्मा के बारे में क्या कह दिया था और जवाब में मुख्यमंत्री जी को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी और आज तक वे राजनैतिक वनवास से वापस सत्ता की कुर्सी पर नहीं आये ।

‘ छोड़ो यार ये पुराने किस्से । तुम तो ऐसा करो राजधानी के मठाधीपों को छोड़ो और छोटी जगहों के दस-बीस कवियों,साहित्यकार को बुला लो । दो -चार चाटुकार साहित्यकार जो सत्ता के नगाड़े बजाते रहते है, उन्हे भी बुलाओ । अच्छा खाना । अच्छा कार्यक्रम बस । सी.एम. खुश हो जाये । ये चुनावो का पूर्वाभ्यास है।

ठीक है सर मै काशिश करता हूॅ । वैसे कुल कितने लोग चाहिये ।

यही कोई बीस -तीस लोग । प्रारम्भ में सी.एम. का उद्धवोधन ! फिर एक दो को बोलने का मौका फिर भोजन विसर्जन बस ।

‘ ये जो बोलने का अवसर है यहीं खतरा है ।

‘ मैं सब संभाल लूगां । आप तो व्यवस्था करें । अकादमियों के सचिवो -अध्यक्षों को भी बुला ले ।

‘ कई अकादमियां तो खाली पड़ी है ।

‘ जो है उन्हे तो बुलाओ यार ।

जेा हुकम सर ।

जनसम्पर्क सचिव ने बाहर आकर पसीना पोंछा । मुख्यमंत्री की े लेखकों, बुद्धिजीवियों की मिटिंग में माधुरी विश्वविधालय की ओर से ष्श्ुाक्ला जी व समाज सेवी के रूप में श्री मती ष्शुक्ला जी ने स्वयं का नामाकंन करा लिया । अविनाश कुलदीपक टापते रह गये ।

मिटिंग साजधानी में थी । यथा समय मुख्यमंत्री सचिवालय मे एक बड़े हाल में सब व्यवस्थाएं की गई । कवि -लेखको को बिठाने के बाद निजि सचिव ने मुख्यमंत्री को सूचना दी । मुख्यमंत्री ने कुछ समय इन्तजार करा या । फिर आये । सभी को खड़ा होना था,मगर कुछ व्यक्ति बैठे ही रह गये । मुख्यमंत्री ने अग्रिम पक्ति में बैठे व्यक्तियों से हाथ मिलाया । अभिवादन किया । मंच पर पहुॅचकर सभी और हाथ जोड़ नमस्कार किया । आसन पर बैठे । यह प्रेसवार्ता नहीं थी,मिलन समारोह था ।

निजि सचिव ने एक पूर्व लिखित भापण मुख्यमंत्री की ओर बढ़ाया मगर मुख्यमंत्री जी ने अपना उदबोधन अलग से दिया ।

‘ मेरी सरकार ने पिछले कुछ वर्पो में प्रदेश का कायाकल्प कर दिया है । सड़क,शिक्षा,स्वास्थ्य,ग्रामीणरेाजगार पर हमने बहुत खर्च किया है । आगे भी ये योजनाएं जारी रहेगी । आपलोगों से भी सहयोग चाहिये ताकि पूरा प्रदेश तेजीसे आगे बढ़ सके । अब आप लोग संक्षेप में अपनी बात कहे । मैं नोट करूगा । उन्होने निजि सचिव को इशारा किया ।

ष्शुक्लाजी अग्रिम पंक्ति में बैठे थे । खड़े हो गये । ‘श्री मान् ! उच्चशिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है । सर्वत्र ष्शैक्षणिक भ्रप्टाचार का राज हो गया है। शिक्षा का सीधा मतलब डिग्री से हो गया है और डिग्री के लिए भारी फीस । फीस दो डिग्री लो ।

म्ुख्यमंत्री ने टोका ‘ इसमे गलत क्या है ? आपका विश्वविधालय भी भारी फीस लेकर डि िग्रयां दे रहा है ।मुझे सब पता है ।

ष्शुक्लाजी बैठ गये । आपा खोते हुए श्री मती ष्शुक्ला बोल पड़ी ।

प्रदेश में महिलाओं की स्थ्तिि खराब है । ग्रामीण रोजगार योजना में उन्हे पूरी मजदूरी नहीं मिलती । सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं मिलती ।

ऐसी सामान्य बातों से कुछ नहीं होगा । आप कोई केस बताईयें । मुख्यमंत्री ने फिर टोंका ।

‘ केस ही केस है सर । आप ध्यान तो दीजिये ।

‘ ठीक है आज बैठ जाईये । श्री मती ष्शुक्ला बैठ गई ।

एक कलाकार नुमा पुराने बुजुर्ग खड़े हुए ‘सर ! आजादी के दिनों में हमने क्या क्या सपने देखे थे । मगर सब कुछ बाजार हो गया है । साहित्य,कला,संस्कृति, हस्तशिल्प,कुटीर उधोग सब कुछ बाजार हो गया है ।

‘ बाजार होने से ही तो कीमत और मांग बढ़ती है । देखिये हमारा माल किस कीमत पर जा रहा है । तथा कलाकारों,दस्तकारों की माली हालत कैसे सुधर रही है । ‘एक सचिव ने टोंका । मुख्यमंत्री ने सचिव को चुप रहने का इसारा किया । कलाकार फिर बोला ।

अकादमियों में काम काज ठप्प है। बजट केवल वेतन के लिए मिल रहा है । अकादमी -सचिव नौकरशाहों की तरह व्यवहार कर रहे है । वहॉ कलाकारों की कोई इज्जत नहीं ह। सचिव सर्वेसर्वा हो गये है।

तेा भई अकादमी के रोजमर्रा के काम तो सचिव ही करेंगे । मुख्यमंत्री बोले

‘ वो ठीक हें सर ! मगर कलाकार केवल सम्मान चाहता है ।

‘ सम्मान भी मिलेगा । हम ष्शाघ्र ही नये अध्यक्षों की घोपणा करेंगे ।

एक सेवा निवृत अध्यापक जो लिखने का ष्शौक रखेते थे बोल पड़े ।

‘सर ! शिक्षा विभाग की स्थिति दिनो दिन गिरती जा रही है । हर योजना असफल हो जाती है । योजनाओं में दोप नहीं होता मगर क्रियान्वयन में गलती होती है ।

‘ आप जब शिक्षा विभाग में थे,सुधारने के क्या उपाय किये ।

‘ अध्यापक जी चुप लगा गये । मुख्यमंत्री व कारिंन्दे मन्द -मन्द मुस्काराने लगे ।

एक अन्य बुद्धिजीवी ने मंहगाई की बात उठाई लेकिन उनकी आवाज को नक्कार खाने में तूती की आवाज की तरह किसी ने भी सुनना उचित नहीं समझा ।

एक हारी हुई महिला ने टिकटों के बंटवारे में महिलाओं के आरक्षण की बात की । मुख्यमंत्री ने पचास प्रतिशत आरक्षण की घोपणा की और साथ ही कहा - महिलाओं के जीतने के बाद उनके पतियों को काम -काज में दखल नहीं देना चाहिये । चारो तरफ सरपंच पति, पार्पद पति,प्रधान पति व जिला प्रमुख पति,जैसे पद सृजित हो गये है । इस प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिये । मुख्यमंत्री बोले जहां तक स्वास्थ्य,ग्रामीण रोजगार,गन्दापानी,मौसमी बीमारियां आदि के मामले है, ये सब अपने आप धीरे -धीरे ठीक हो जायेगें । मुख्यमंत्री ने उपवेशन की समाप्ति की धोपणा की ।

‘ आईये भेाजन करते हैं। इसे वेद वाक्य से सभी आमन्त्रित बड़े प्रसन्न हुए । स्वादिप्ट - सफल कार्यक्रम की अखबारों में सरकारी तंत्र ने खुल कर प्रचार -प्रसार किया ताकि आगामी चुनावों में सरकारी पक्ष को लाभ मिले । मगर विपक्षी दल भी सत्ता में आने के लिए ऐडी चोटी का जोर लगा रहा था ।