चैप्टर 8
शिकारी - हमारा दिशानिर्देशक।
उस दिन रिकिविक के पास शाम के वक़्त मैं लहरों के पास टहलने चला गया, लौटा तो अपने बिस्तर पर लेटा और लेटते ही सो गया। मेरी जब नींद खुली तो अगले कमरे से मौसाजी तेज़ आवाज़ में किसी से बात कर रहे थे। मैं तुरंत उठकर सुनने लगा। वो किसी लम्बे-चौड़े हरक्यूलिस जैसी शख्सियत से डैनिश भाषा में बात कर रहे थे। वो आदमी देखने से बहुत शक्तिशाली लगता था। चेहरे से मामूली, अनाड़ी और बड़े से सिर पर निकली हुई उसकी आँखें शातिर और तेज़ थी। इंग्लैंड के लाल रंग से ज़्यादा उसके गहरे लम्बे बाल बलिष्ठ कंधों पर झूल रहे थे। आइसलैंड का ये निवासी दिखने में फुर्तीला और लचीला था और अपने हाथ बहुत कम हिलाता था जबकि दक्षिणी लोगों में बातों के दौरान ये आदत बहुतायत में होती है।
हर तरीके से ये आदमी स्थिर और शांतचित्त प्रवृत्ति का लग रहा था। वो कहीं से भी आलसी नहीं लेकिन धीर-गम्भीर लगता था। वो उनमें से लगता था जिन्हें अपने काम से मतलब होता है, न बदले में किसी से कुछ और चाहना वाला और ना ही किसी दर्शन शास्त्र से विचलित होने वाला।
जिस तरीके से वो मेरे मौसाजी के शब्दाडंबर को ध्यान से सुने जा रहा था मेरे लिए कौतूहल का विषय था। मेरे वाक्पटु प्रोफ़ेसर तो बोले ही जा रहे थे लेकिन वो उनके हर हाव-भाव से बिना विचलित हुए, अपने हाथों को बाँधे स्थिर होकर सुन रहा था। जब उसे ना कहना होता तो उसका सिर बाएँ से दाएँ हिलता और हाँ कहने के समय उसके सिर के हिलने का पता भी नहीं चलता था। उसकी हरकतों में संतुलन उसके मतलब के अनुसार था।
उसको मुझे देखकर पहले ही समझ लेना चाहिए था कि वो एक शिकारी हो सकता है। लेकिन अपनी हरकतों से उसने ऐसा कुछ भी अंदेशा नहीं होने दिया था। तो फिर ये इनका शिकार कैसे बन गया?
मेरे कौतूहल को बड़ा झटका तब लगा जब मुझे ये पता चला कि शांतचित्त, गम्भीर इंसान उन मुर्गियों को पकड़ने वाला है जिनका आइसलैंड की संपत्ति बढ़ाने में सबसे ज़्यादा योगदान है।
गर्मियों की शुरुआत में जब समुद्री चट्टानों के इर्द-गिर्द ये मुर्गियाँ अंडे देने के लिए नर्म-मुलायम घोंसले बनाते हैं तो यही शिकारी उनके घोंसलों को उठा लेते हैं। और इन मुर्गियों को फिर से नए घोंसले बनाने होते हैं। ये सिलसिला तब तक चलता है जब तक मुर्गियाँ पकड़ में नहीं आती।
जब ये मुर्गियाँ थक जाती हैं तब मुर्गे इनकी मदद के लिए आते हैं और घोंसले बनाते हैं। हालाँकि इनके बनाए हुए घोंसले उतने मुलायम नहीं होते इसलिए शिकारी इनको नुकसान नहीं पहुँचाते और इसी बहाने अंडे देकर, चूज़े जब बाहर निकलते हैं तो आगे का सिलसिला शुरू होता है।
अब ये मुर्गियाँ ऊँचे चट्टानों को तो चुनते नहीं, जिस वजह से इन शिकारियों को शिकार करने में आसानी होती है। ये उन किसानों में से हैं जिन्हें समय पर सिर्फ अपनी फसल काटनी है।
ये गहन, गम्भीर और शांतचित्त इंसान जो किसी फ्रांसीसी मंच पर अंग्रेज जैसा था, उसका नाम हैन्स बैके था। यही हमारा भावी सलाहकार था। मुझे लगा कि मैं अगर पूरी दुनिया भी घूम लेता मेरे मौसाजी के स्वभाव वाला विपरीत इंसान इससे बेहतर नहीं ढूंढ पाता।
वो दोनों एक दूसरे को आसानी से समझ रहे थे। किसी ने पैसे की बात नहीं की; एक: जो मिल जाये उसी में खुश होने वाला था, दूसरा: जो माँगे वही देने वाला था। लेकिन जैसा तय था, दोनों की सहमति एक बात पर हो गयी थी।
तय ये हुआ कि उसे हमें स्नेफल्स की ढलान की तरफ नीचे ही स्टैपी के गाँव तक ले जाना होगा। हैन्स के मुताबिक उसकी दूरी करीब बाइस मील है जो कि मौसाजी के हिसाब से लगभग दो दिन का सफर था।
लेकिन जैसे ही मौसाजी को समझ आया कि ये डैनिश मील हैं, जो आठ हजार गज के बराबर होंगे तो उन्होंने अपने अनुमान और पथरीले रास्तों के ध्यान कर, आठ-दस दिनों के सफर के बारे में फैसला लिया।
चार घोड़ों को तैयार किया गया। दो, हम लोगों के लिए और दो, सामानों को लादने के लिए। हैन्स ने किसी जानवर की सवारी से मना कर दिया था। वो उस जगह के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था और उसने वादा किया कि वो सबसे आसान और छोटे रास्तों से ले जाएगा।
स्टैपी आकर भी उसका अनुबंध नहीं खत्म होने वाला था। उसे वहाँ उनके वैज्ञानिक खोज पूरी होने तक रुकना था जिसके लिए अंग्रेज़ी मुद्रा के अनुसार हर सप्ताह तीन चांदी के सिक्के देना तय हुआ था। उस दिशानिर्देशक की बस एक ही शर्त थी कि पैसे उसे हर शनिवार को मिल जाने चाहिए नहीं तो अनुबंध खत्म हो जाएगा।
जाने का दिन तय हो चुका था। मौसाजी ने उसे अग्रिम राशि देने की कोशिश की लेकिन उसने आभार प्रकट करते हुए कहा -
"बादी।"
जिसका साधारण शब्दों में कहना था - "बाद में।"
तो संधि तय हुई और हमारा सलाहकार बिना और किसी शब्द के लौट गया।
"शानदार बंदा है।" मौसाजी ने कहा, "जो ये नहीं जानता कि वो इतिहास रचने वाला है।"
"मतलब अब ये," मैं आश्चर्य से चीखा, "हमरे साथ जाएगा?"
"हाँ, पृथ्वी की गहराई तक," मौसाजी ने जवाब दिया, "क्यों, नहीं?"
अभी हमारे पास और अड़तालीस घण्टे थे। मुझे इस बात का पछतावा ज़रूर था कि हमारा पूरा समय तैयारी में ही जा रहा था। हमारी पूरी मेहनत और काबलियत इसी में थी कि हर समान को किस तरह बाँट कर, कैसे बाँध रहें हैं। सामान कुछ इस तरीके से थे:
१. 150 डिग्री तक मापने वाला मापक यंत्र, जो मेरे हिसाब से कुछ ज़्यादा ही था। अगर ताप इतनी बढ़ेगी तो हम भी पक जाएँगे, ऐसे में इस मापक यंत्र को किसी दूसरे कामों में ही लगा सकते हैं।
२. समुद्र-तल से हवा में दबाव मापने वाला एक यंत्र। हालांकि एक दूसरा यंत्र भी काम में लाया जा सकता था।
३. जर्मन मापदंडों के हिसाब से समय पहचान वाला यंत्र।
४. दो दिशा-निर्देश वाले यंत्र, एक चढ़ाई के लिए और दूसरा उतरने के लिए।
५. नए सिद्धांत पर आधारित वैद्युत बैटरी।
हमारे हथियारों में दो राइफलें और दो रिवॉल्वर थे। इन हथियारों का क्या काम था, ये बताना मेरे लिए मुश्किल था। मुझे पूरा यकीन था कि ना तो ऐसे जंगली जानवर हैं और ना ही निवासी ऐसे हैं कि डरना पड़े। लेकिन मौसाजी को इन हथियारों से बहुत लगाव था जिसमें सबसे ज़्यादा एक विस्फोटक सामग्री को सुरक्षित रखते थे जो किसी भी बारूद से ज़्यादा घातक था।
हमारे औजारों में दो कुदालें, दो फावड़े, एक सीढ़ी, तीन पतले लोहे के नुकीले खंबे, एक कुल्हाड़ी, एक हथौड़ी, एक दर्जन कीलें, कुछ नुकीले लोहे के टुकड़े और कुछ मजबूत रस्सियाँ थीं। आप इनको ढोने के बारे में सोचें उससे पहले ये बता दूँ कि सीढ़ी ही करीब, तीन सौ फ़ीट लम्बी थी।
अब ज़रूरी बात आती है रसद या खाद्य-आपूर्ति की। उसका डब्बा तो बहुत बड़ा नहीं था लेकिन इस लायक था कि उसमें अगले छः महीने तक के लिए माँस और बिस्किट आ जायें। पीने के लिए पारंपरिक शराब था। पानी की एक बूँद नहीं। हालाँकि हमारे पास काफी मात्रा में लौकियाँ थीं, और मौसाजी को यकीन था कि नीचे उतरते वक़्त हमें उचित मात्रा में पानी मिलेगा। लेकिन तापमान, स्वभाव और गुमशुदा होने से जुड़े मेरे विचार जस के तस थे।
भावी यात्रा के लिए जिन चीजों को हमने शामिल किया था - एक संदूक में दवाई और शल्यक्रिया सम्बंधित चीज़ें थीं। पट्टी, कैंची, नश्तर, दर्द-चोट और हड्डियों के लिए ज़रूरी औजार, सिरका और अन्य रसायनों से भरी शीशियाँ, और हर संभावित दवाई जिसकी ज़रूरत पड़ सकती थी; मतलब रूमकोर्फ़ के यंत्र के लिए सामग्री जुटा ली गयी थी।
मेरे मौसाजी ने सावधानीपूर्वक तम्बाकू भी जमा कर लिए थे, बारूदों के बोतल, बीड़ी के बक्से के अलावा एक पट्टी में खूब सारे रुपए और सोने ठूँस लिए थे। इसके अलावा मजबूत छः जोड़ी जूते भी रखे थे।
"मेरे बच्चे, इन कपड़ों, जूतों और औजारों के साथ," वो उद्वेलित होते हुए कह रहे थे, "हम दूर तक की यात्रा कर सकेंगे।"
इनसब को रखने में पूरा दिन बीत गया। शाम को भोजन के दौरान हमारे साथ, बैरन ट्रैम्प और आइसलैंड के मशहूर चिकित्सक डॉक्टर ह्यलतालिन थे। एम०फ्रिड्रिक्सन मौजूद नहीं थे और मुझे ये जानकर बहुत दुःख हुआ कि वो और राज्यपाल, द्वीप के प्रशासन को लेकर किसी बात पर सहमत नहीं थे। चूंकि ये एक अनौपचारिक प्रीतिभोज था इसलिए मुझे ज़्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक बात कह सकता हूँ, मौसाजी ने बोलना नहीं बंद किया था।
अगले दिन हमारी मेहनत खत्म हुई। प्रोफ़ेसर हार्डविग को आइसलैंड का वाजिब और खनिज वैज्ञानिक के लिए सबसे अहम और कीमती नक्शा देकर हमारे काबिल मेजबान ने उन्हें प्रभावित कर दिया था।
अंतिम शाम मैं, एम०फ्रिड्रिक्सन के साथ लम्बी बातों में बिता रहा था जिन्हें मैं सबसे ज़्यादा पसंद करता था - दुबारा फिर मिलना होता नहीं इसलिए बातें लम्बी चली। लगभग एक घण्टा बिताने के बाद मैं सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन कुछ झपकियों के अलावा सारी रात बेकार हो गयी थी।
सुबह पाँच बजे ही मेरी खिड़की के नीचे घोड़ों की ज़ोरदार हिनहिनाहट से मेरी नींद खुल गयी जिसने बस आधे घण्टे का सफर पूरा किया था। मैं तुरंत कपड़े पहनकर नीचे गया। हैन्स हमारे सामानों को लादने में लगा था, हालाँकि वो अपने हिसाब से खामोशी से ही कर रहा था और मुझे भी सही लग रहा था। मौसाजी ने उसको निर्देश देने में अपनी साँसे ज़रुर बर्बाद कर दी थी लेकिन हैन्स ने उनकी एक भी ना सुनी।
सुबह छः बजे सब तैयारी हो चुकी थी और एम०फ्रिड्रिक्सन ने हाथ मिलाकर अभिवादन किया। मौसाजी ने आत्मीयता से आइसलैंडिक भाषा में उनका और उनकी बेमिसाल मेजबानी का शुक्रिया अदा किया।
मेरी तरफ से मैंने लैटिन भाषा में सम्मानजनक शब्दों में भरपूर शुभकामनाएँ दी। इस पारिवारिक और दोस्ताना ज़िम्मेदारी के बाद आगे बढ़ने के लिए हमने घोड़ों को बढ़ाया।
हम चले ही थे कि एम०फ्रिड्रिक्सन ने आगे आकर मुझे वर्जिल के शब्दों में अलविदा कहा, वो शब्द उन यात्रियों के लिए होते हैं जो अनिश्चित दिशा के लिए निकलते हैं, जिसका मतलब होता है:
"आप जिस दिशा में भी जाएँ, सौभाग्य आपके साथ रहे!"