रामालाल जी नहीं रहे। आप तो एक दम चौंक ही पड़े। अरे भाई रामलाल कोई अमरौती रख कर तो आए नहीं थे। सो निकल लिए, टें हो गए या परलोक सिधार गए। वे मोह माया से मुक्त हो गए, नाते रिश्तों से ऊपर उठ गये या भगवान को प्यारे हो गए। जबलपुरिया में उन की लाई लुट गई । पूरी बात को यदि संक्षेप में कहना हो तो रामलाल अपनी पत्नी के बंधन से आजाद हो गए। अब साहब वे अपने शरीर से निकले और अपनी आजादी के मजे लेने लगे। थोड़ा रूक कर देखा तो उनके शरीर के आस-पास रोने वालों का समुह था। कुछ तो नाते, रिश्तेदार और सगे संबंधी थे, जिनके स्वार्थ उनसे नहीं उनके शरीर से जुडे़ थे। बहुत से उधारी वाले थे जो उनके मर जाने से उधार डूब जाने के कारण रह रह कर रूआसे हो रहे थे। इसी भीड़ में पीछे खड़े उनके पुत्र आपस में इस बात को लेकर लड़ रहे थे कि अंतिम संस्कार का खर्च कौन करेगा।
वे अपनी आजादी के मजे लेते रहे। सोचते रहे कोई लेने आयेगा परन्तु उन्हें लगा शायद उनकी आत्मा इतनी फालतू है कि कोई लेने ही नहीं आया। फिर उन्हें ऊपर जाती हुई कुछ सीढ़ीयाॅ दिखी। सोचा हो सकता है उधर ही जाना हो सो वे उन पर चढ़ने लगे। आज चढ़ने में कोई थकान नहीं हो रही थी। वे चढ़ते गये चढ़ते गये। शायद दो या तीन दिन वे बिना रूके चलते रहे। नीचे देखा तो उनके पुत्र फिर लड़ रहे थे। अब वे अपने पिता की संम्पत्ति में हिस्से के लिए लड़ रहे थे। वे किसी तरह सीढ़ीयों के अंत में एक विराट इमारत के मुरव्यद्वार पर पहुँचे। द्वार के गार्ड से बोले ‘‘हमे लेने कोई क्यों नहीं आया?’’ गार्ड बोला ‘‘वो व्यवस्था पुरानी हो गई। यहाॅ लाने वालों की नौकरीयाँ समाप्त कर दी गई है। अब आत्माओं को खुद ही आना होता है।’’ रामलाल बोले ‘‘आत्माए भटक नहीं जाती?’’ गार्ड बोला ‘‘भटकती है न......... जो भटकती है वे नेता बन कर लोगों को परेशान करती है।’’ गार्ड ने रामलाल को बताया ‘‘यहाँ आप अपना समय बर्बाद न करें। सामने ही हमारा पंजीयन केन्द्र है। वहाँ जाकर अपना पंजीयन करवा लें।
रामलाल पंजीयन केन्द्र की ओर बढ़ चले। यहाँ आकाशवाणी हो रही थी ऐसा रामलाल को लगा। ध्यान से देखने पर मालूम हुआ आधुनिक ध्वनिविस्तार यंत्रों द्वारा आत्माओं को निर्देश दिये जा रहे थे। आकाशवाणी की आवाज आई ‘‘सभी आत्माओं का स्वागत है। आप अपना पंजीयन काऊंटर नं. 1 से 10 तक कहीं भी करवा सकते है।’’ रामलाल एक काऊंटर की ओर बढ़ चले। सामान्य भीड़ थी उनका नम्बर जल्दी ही आ गया। उन्होंने पंजीयन करवाया और पूछा ‘‘मुझे कहाँ जाना है स्वर्ग या नर्क?’’ काऊंटर पर बैठा व्यक्ति हंसा और बताने लगा ‘‘देखो भाई स्वर्ग और नर्क नाम की कोई जगह नहीं है। ये सब भ्रम है जो धरती पर कुछ धार्मिक कहे जाने वाले लोगों द्वारा फैलाया गया है। वे नर्क का भय दिखाते है। आप डरते है और स्वर्ग की चाह में उनके भक्त बन जाते है।’’ रामलाल बोले ‘‘फिर पाप पुण्य का हिसाब?’’ काऊंटर वाले सज्जन बोले ‘‘वो तो हो गया।’’ रामलाल ने पूछा ‘‘कब?’’ वो फिर बोला ‘‘धरती पर..... जैसा आपने किया वैसा ही पाया। याद करो आपके पिताजी जब मरे थे। तो आपने क्या किया था।’’ रामलाल को याद आया उसके बेटों के लड़ने का दृश्य और फिर पिता के शव के पास उसका और उसके भाईयों के झगड़े का दृश्य। रामलाल ने पूछा ‘‘अब मै क्या करू?’’ वे सज्जन बोले ‘‘इंतिजार..... देखिए जैसे धरती पर गैस पुनः भरने के लिए जाती है वैसे ही यहाँ आत्माएं शरीर में वापस जाने के लिए आती है। आप धरती पर गए तो वहाँ से बहुत सी फालतू चीजे साथ लाए है जैसे धर्म, भाषा और विचार अब आपकों फिर से खाली किया जायेगा। आपका न कोई धर्म होगा न भाषा और न कोई विचार। आप एक खाली पेनड्राईव की तरह ही वापस पृथ्वी पर जायेंगे।’’ रामलाल को लगा शायद कुछ छूट रहा हो उन्होंने पूछा ‘‘और कुछ’’ वे सज्जन बोले’’ हाँ अभी एक आफर चल रहा है आप चाहें तो अपने पसंद के शरीर में जा सकते है। आगे बहुत से काऊंटर है देशवार,जातिवार और पदवार। यदि आफर रहने तक आप पहुंच गए तो..... आपको आपके पसंद का शरीर मिल सकता है। लेकिन ध्यान रहे उस काऊंटर पर टोकन देते ही आपके और धर्म,भाषा और विचार समाप्त हो जाऐंगे।
रामलाल को लगा मौका अच्छा है क्यों न आफर का लाभ लिया जाए। यहाँ अलग-अलग देशों के काऊंटर और फिर देश में वर्गो के आधार पर भी प्रथक-प्रथक काउंटर थे। रामलाल ने सोचा जीते जी तो देश से बाहर जा नहीं सका। अब मौका मिला है तो क्यों न अमेरिका में पैदा हुआ जाए। फिर उन्हें देश के सहिष्णुता असहिष्णुता का विवाद याद आ गया। वे इस विवाद में पड़ना नहीं चाहते फिर वे ठहरे सच्चे राष्ट्रभक्त। बस अपने देश के काऊंटरों में अपने योग्य काऊंटर तलाशने लगे। यहाँ भारी भीड़ है। रामलाल ने पता किया तो पता लगा किसी नेता के परिवार में बच्चा पैदा होने वाला है। आगे और भी काऊंटर थे। इस काऊंटर पर भी रेलम-पेल मची थी। रामलाल ने पता करने की कोशिश की तो किसी धर्म गुरू की दस अवैद्य संताने पैदा होने वाली थी। रामलाल वैधानिक रूप से पैदा होना चाहते थे सो आगे बढ़े।। एक काऊंटर पर एक सज्जन बैठकर मक्खियाॅं मार रहे थे। रामलाल ने उनसे पूछा ‘‘ भाई कोई काम नहीं है क्या?’’ वे बोले ‘‘ काम क्यों नहीं है पचास सवर्णो के घर में बच्चे पैदा होने है। लेकिन आरक्षण के चक्कर में कोई वहाँ जाना ही नहीं चाहता। बोलों........ आप जाओंगे।’’। रामलाल जैसे सोते से जाग गए। काऊंटर से ऐसे हटे जैसे बिजली का झटका लगा हो। वे सोचने लगे ‘‘यदि मुझे अपनी इच्छा से ही पैदा होना है तो क्यों मै अनाक्षित के रूप में पैदा होऊ। अब तो मै वहाॅ पैदा होंऊगा। जहाँ पैदा होने से पूरी जिन्दगी लाभ ले सकुं और सरकार को गाली देकर कह सकुं कि उसने हमारे वर्ग के लिए कुछ नहीं किया। ऐसी स्थिति में मैं उन अनारक्षितों को भी गाली दे सकता हुॅं और उन्हें मनुवादी बताने की स्वतंत्रता पाता हॅुं। जिनकी योग्यता मेरे आरक्षण के भार से कुचली जाएगी। बस रामलाल ने फैसला कर लिया कुछ भी हो जाए अब मै कम से कम इस जन्म में उस वर्ग में अवश्य पैदा होऊंगा जिसमें सरकारी लाभ भरपूर मिलता हो। बस वे भी एक भीड़-भाड़ में मरे काऊंटर के सामने लाईन के अपनी जगह खोजने लगे। बड़ी जूतमपैजर के बाद उनका आरक्षित काउंटर पर नंबर लगा ।
रामलाल टोकन दिये बिना ही इच्छा जन्म प्राप्त कर धरती पर वापस आए। टोकन न देने के कारण वे पिछले जन्म और मृत्यु के बाद के किस्सों को याद रख पाए। अब वे एक बडे़ अधिकारी है। उन्होंने यह सारा किस्सा नशे की हालत में सुना डाला। अब हम सोच रहे है कि काश हमें भी ऐसा आफर मिला होता।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"
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