Trikhandita - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

त्रिखंडिता - 21

त्रिखंडिता

21

पर शेखर को यही तक नहीं रूकना था, पर वे पूनम पर एकदम से आक्रमण नहीं करना चाहते थे | उन्हें डर था कि इससे बात बिगड़ सकती है | बात खुलने पर वे खतरे में पड़ जाएंगे, इसलिए वे पूनम को उसकी सहमति से हासिल करना चाहते थे, ताकि वह अपनी तरफ से शिकायत करने लायक न रहे|

एक दिन शेखर ने पूनम की तरफ दूसरा कदम बढ़ाया | उसको आलिंगन करते समय उसकी देह में खिले बिजली के फूलों पर आक्रमण कर दिया | उन्हें पूरी तरह अपने वश में कर लिया | बिजली के फूल कभी उनके हाथों में छटपटाते, कभी होंठों में | पूनम को लगा वह मर जाएगी | उसका पूरा शरीर उत्तेजना से काँप रहा था | देह के इस रहस्य से वह सर्वथा अपरिचित थी | उसे एक ऐसा सुख मिल रहा था, जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकी थी | शेखर बार-बार फूलों से खेल रहे थे और वह हर बार अपने नाखूनों से शेखर की जाँघ को लहूलुहान कर रही थी | शेखर समझ गए कि कली यौन का आस्वाद लेने को विकल है, पर वे आगे नहीं बढ़े | उस दिन पूनम का मन घर जाने को नहीं हुआ | अब पूनम पूरी तरह शेखर के प्रेम-पाश में बंध चुकी थी | वह उनके लिए किसी भी हद तक जाने और कुछ भी करने को तैयार थी | पर शेखर को जैसे कोई जल्दी नहीं थी | अब वे उसे तड़पा रहे थे | कई-कई दिन उससे नहीं मिलते |

रमा को लग रहा था कि पूनम आजकल अनमनी -सी रहती है | पर पूछने पर कारण नहीं बताती | रमा का आना-जाना उसके घर था पर उसकी सुमन से ज्यादा पटती थी | सुमन ने ही उसे बताया कि पूनम आजकल वकील साहब के घर ज्यादा जाती है | किसी की बात नहीं मानती | सुमन को वकील साहब बिलकुल अच्छे नहीं लगते थे | उनकी दोहरी बातें उसे नहीं भाती थी, पर जाने क्यों पूनम पर उनका जादू चढ़ा रहता है | उनकी जरा -सी भी शिकायत नहीं सुन पाती | रमा को भी वकील साहब कुछ ठीक नहीं लगते थे, पर वह यह भी नहीं जानती थी कि पूनम से उनके रिश्ते कैसे हैं ?वह तो यह अनुमान भी नहीं लगा पाई कि वे इस तरह भी गिर सकते हैं | शादी-शुदा व बच्चों वाले होकर भी वे एक कन्या को नष्ट कर सकते हैं | फिर भी वह इस तरह के दूसरे उदाहरणों से पूनम को समझाया करती | उसकी बातों का असर पूनम पर हो रहा था | उसे यह लगने लगा था कि शेखर के पास अपना घर-परिवार, पत्नी-बच्चे, नात -रिश्तेदार, पद -प्रतिष्ठा सब है | वे उसे कभी अपना नहीं सकते | दुनिया की नजर में उनका रिश्ता गलत है, अवैध है | पर वह क्या करे ?उनसे दूर रहना भी मुश्किल है | किस दुष्चक्र में फंस गयी है वह ?जिस तरह के रिश्ते को वह खुद हेय दृष्टि से देखती है | अंजाने में उसी तरह का रिश्ता वह बना बैठी है| अंकल और माँ को वह इसीलिए तो नफरत से देखती है कि उनके बीच का रिश्ता अवैध है| पर माँ तो मजबूर थी, अपने बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए उस बंधन में पड़ी| पर वह तो स्वेच्छा से इस बंधन में पड़ी है | उसकी तो कोई मजबूरी नहीं | अब उसे लगता कि शेखर ने जान-बूझकर उसकी भावनाओं को हवा दी | उसकी देह की युवा कामनाओं को जगाया | उसकी उम्र भी तो ऐसी है कि मन हमेशा रंगीन सपने देखता है | जब रोमांटिक गीत, उपन्यास, कहानियाँ और फिल्में अच्छी लगती हैं | शेखर का रूप-रंग, रोमांटिक बातें, शेरो-शायरी, उसकी हर चीज की प्रशंसा ने उसका दिल जीत लिया, तो उसकी क्या गलती है ?वह नासमझ थी, पर वे तो समझदार थे | उसे वकीलाइन पर भी गुस्सा आता | कैसी औरत है, जो यह कहती है कि उसे पति का प्यार बांटने में परहेज नहीं | पति को दूसरी स्त्री के साथ अकेला छोड़ देती है | वह तो कभी ऐसा नहीं कर पाती | उसे तो अब शेखर का पत्नी से प्यार जताना भी नहीं भाता | शेखर अक्सर उससे प्यार जताते-जताते जाने किस आवेग में भर कर पत्नी के कमरे में चले जाते हैं और कुछ देर के लिए दरवाजा बंद हो जाता है | दरवाजा खुलने पर दोनों खुश-खुश बाहर आते हैं | जितनी देर शेखर पत्नी के कमरे में बंद रहते हैं, उतनी देर पूनम अंगारों पर लोटती रहती है| शिकायत करने पर शेखर उसे समझा देते -पत्नी है उसकी इच्छा का आदर करना भी मेरा कर्तव्य है | वह मेरे लिए इतना करती है, तो मैं उसे छोड़ तो नहीं सकता |

पूनम उलझ गयी है | उसका दिल -दिमाग बंट गया है| दिमाग कहता है शेखर उसे इस्तेमाल कर रहे हैं, इसलिए उनसे दूर रहो | दिल को उनके सान्निध्य के लिए सब कुछ मंजूर है| वह शेखर के आफिस से लौटने से पहले ही उनके घर जाने के लिए उसे सजाने-सँवारने लगता और दिमाग की आवाज को दबा देता |

मंत्र-मुग्ध सर्पिणी की तरह पूनम का वश खुद पर नहीं रह गया था | अब वह शेखर को पूरी तरह पा लेना चाहती थी | जीवन के इस रूप को वह देख लेना चाहती थी | शेखर का अब तक किया प्रेम उसे अच्छा लगा था | वह सोचने लगी थी कि मिलन का रंग तो और गहरा और प्यारा होगा | वह रात भर जागती और उस सुख की कल्पना में विभोर रहती | पर शेखर वह अवसर आने ही नहीं दे रहे थे |

एक दिन पूनम ने सोचा कि जब वकीलाइन उससे इतनी खुली हुई हैं, तो क्यों न अपने प्रेम-सम्बन्ध का वह खुलासा कर दे | जानती तो वह हैं ही फिर भी | शायद तब वे उनके मिलन का स्थायी प्रबंध कर दें | पर जब उसने उन्हें सब कुछ बताया, तो उनका चेहरा उतर गया| पता नहीं वे बन रही थीं कि सच ही उन दोनों के बीच की इतनी नजदीकी की खबर से उन्हें धक्का लगा था |

दूसरे दिन जब वह शेखर के घर गई, तो थोड़ा तनावपूर्ण माहौल लगा | उसे देखते ही वकीलाइन ढेर सारे गंदे कपड़े लेकर उनको धोने के बहाने बाथरूम में घुस गईं | शेखर उसे अपने बेडरूम में ले आए और उसे बिस्तर पर लिटा दिया | वे उसे चूमने लगे थे, पर उनके चुंबन में वह पहले वाली आग न थी | उसे अच्छा नहीं लगा, तो उसने उन्हें खुद से अलगाना चाहा, पर उनकी पकड़ मजबूत थी| वे उसके कपड़े उतारने लगे | वह तनाव में थी कि अगर उनकी पत्नी आ गयी, तो क्या सोचेंगी? फिर उसने मधुर मिलन का जो सपना सँजोया था, वह इतना मशीनी और तात्कालिक नहीं था| पर शेखर मानने को तैयार नहीं थे | वह इस डर से नहीं बोल पा रही थी कि उनकी पत्नी सुन लेगी | फिर भी खुद को बचाने की पूरी कोशिश कर रही थी | जब सफलता नहीं मिली, तो उसने खुद को ढीला छोड़ दिया और आँखें बंद कर इस क्रिया का आनंद लेने की कोशिश करने लगी | पर ये क्या उसे तो कोई आनंदानुभूति ही नहीं हो रही है? शेखर मात्र दो मिनट उसकी देह पर चढ़े रहे, फिर उतर गए और उसे दूसरे बाथरूम में जाकर खुद को अच्छी तरह साफ कर कपड़े पहन लेने का आदेश दिया | उसने सदमे की हालत में अपने कपड़े उठाए और बाथरूम में घुस गयी | लौटी तो शेखर ड्राइंगरूम में बैठे थे | वह उनके सामने जा बैठी | वे थोड़ी नाराजगी से बोले-पत्नी को सारी बातें बताने की क्या जरूरत थी ?जब तीनों सब कुछ समझ रहे हैं | वे इतनी देर से बाथरूम में हैं, क्या यह अकारण है? सब जानती-समझती हैं | अभी जो हुआ उसे न बता देना कभी | अब तुम घर जाओ |

वह आत्मग्लानि से भरी कुछ देर वहीं खड़ी रही, फिर नौ-नौ मन के हो रहे कदमों को घसीटती अपने घर आई और अपने कमरे में बंद हो गयी |

अब उसे समझ में आया कि उसके साथ क्या हो गया है, पर वह किसी को बता भी तो नहीं सकती थी| सब कहेंगे तुम ही तो उनके घर जाकर पड़ी रहती थी, इतनी भी नासमझ नहीं हो |

उधर उसकी देह जागी हुई थी | शेखर ने उसकी देह को जगा तो दिया था, पर तृप्त नहीं किया था | वह तड़प रही थी | अब वह क्या करे ?शेखर का चेहरा आज कितना अनजाना -अनपहचाना लग रहा था | वकीलाइन ने तो आज उससे बात भी न की थी | क्या अब वह पहले की तरह बार-बार उनके घर जा सकेगी? शेखर के पास तो एक भरपूर नारी देह है, पर वह इस जागी देह का क्या करेगी ?यह किस मोड़ पर लाकर खड़ा दिया उसे शेखर ने ?जीवन के ऐसे ही मोड़ लड़की को गलत रास्ते पर ले जाते हैं, पर वह खुद को संभालेगी |

वह फिर सोचती -उसकी देह क्यों नहीं तृप्त हुई ?क्यों उसे सहवास का पता ही नहीं चला ?दो मिनट में कोई क्योंकर संतुष्ट हो सकता है ?क्या शेखर पूर्ण पुरूष नहीं है?या फिर शेखर को कोई तनाव था ?हो सकता है, क्योंकि उसकी पत्नी घर में ही थी | फिर जरूरत क्या थी इस जल्दबाज़ी की ?क्या वह पूर्णाहुति करके इस रिश्ते को खत्म करना चाहता था ?या फिर पत्नी ने प्रतिरोध करना शुरू कर दिया था | कुछ तो गलत था, जो पूनम नहीं समझ पा रही थी | वह रात भर सोचती रही, रोती रही | कभी लगता उसके साथ रेप हुआ है | उसका धर्म भ्रष्ट कर दिया गया | उसका कौमार्य लूट लिया गया | उसका शोषण किया गया | कभी सोचती -वह शेखर से कैसे मिलेगी ?अगर एक बार भी शेखर उसकी कामनाओं को तृप्त कर दे, तो वह खुद को संभाल लेगी | भावनाओं के द्वंद्व में रात भर जागने के कारण सुबह तक उसे नर्वस ब्रेक डाउन हो गया | उसकी हालत देखकर घर वाले परेशान हो गए| कारण वह बताती नहीं थी | सिर्फ उसके आँसू बहते रहते | भूख-प्यास मर गयी | रमा उसे देखने आई तो दंग रह गयी | अट्ठारह वर्ष की हँसती-खेलती लड़की को अचानक कौन सा रोग लग गया ?यह तो वह जान गयी कि उसके साथ कुछ बुरा हुआ है | पर क्या, यह पता लगाना मुश्किल था | उसने आंटी से कहा कि किसी मनोचिकित्सक को दिखा देते हैं | परीक्षाएँ करीब हैं | इस मनरूस्थिति में वह परीक्षा कैसे देगी ?सुमन और वह उसे लेकर एक डाक्टर के पास गईं | डाक्टर ने उन्हें बाहर रोक दिया और पूनम को लेकर अपने परीक्षण कक्ष में चले गए |

पूनम बड़ी सी मेज पर लेटी हुई थी | उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे | वह कुछ भी नहीं बता रही थी | डाक्टर आनंद समझ गए कि लड़की आत्मग्लानि और अपराधबोध से ग्रस्त है | उन्होंने उसे बड़ी मुश्किल से अपने विश्वास में लिया, ताकि वह उन्हें अपना मन दिखा सके | सब कुछ जानकार डाक्टर आनंद सकते मे आ गए | एक मासूम बच्ची को पहले मनोवैज्ञानिक तरीके से वशीभूत किया गया, फिर उससे इस तरह दुराचार किया गया था कि वह खुद को ही अपराधी मान रही थी | उन्होंने पूनम को समझाया कि शेखर उससे प्रेम नहीं करते| उन्होंने उसकी स्थिति का लाभ उठाया है बस | खैर अब जो हुआ सो हुआ, उसे भूलने की कोशिश करो और किसी भी हालत में शेखर से न मिलो| मैं कुछ दवाई देता हूँ | उस दवा से तुम्हें नींद भी आएगी और तुम अच्छा भी महसूस करोगी |

सुमन और रमा को इतना तो पता चल ही गया था कि पूनम की इस हालत के लिए कहीं न कहीं शेखर जिम्मेदार हैं, पर जब तक पूनम खुद कुछ न बताए, वे इस विषय पर बात करके उसे और परेशान नहीं करना चाहती थीं |

दवा के असर से पूनम सोने लगी | उसकी सेहत भी सुधर रही थी, पर एक नयी बात भी हुई कि वह शेखर के बारे में सकारात्मक सोचने लगी | उसे लगने लगा कि उनके बीच जो हुआ -वह गलत नहीं था | शेखर ने उसे न केवल प्यार किया था, बल्कि अपने घर के मंदिर में उससे शादी भी की थी | उसके बाद ही उसे छूने लगे थे, फिर वह गिल्टी क्यों महसूस कर रही है? वे उसे प्रारम्भ से ही अपनी पत्नी के रूप में देखते रहे थे | पूनम को याद है, जब शुरू-शुरू में वह उनके घर जाती, तो वे उसका बड़ा सम्मान करते थे | घर में कोई भी पूजा-पाठ होता | वे एक तरफ पत्नी को, तो दूसरी तरफ उसको बैठने को कहते| हालांकि वह नहीं बैठती कि लोग क्या कहेंगे ?इस बात पर उन्होंने कह दिया, जब उन्हें लोगों की परवाह नहीं, तो उसे क्यों होती है ?वे उसे अपनी पत्नी मानते हैं | उनकी बात को वह हँसकर टाल गयी, पर उनकी यह बात उसके मन को गुदगुदाती रही | वह सोचने लगी -काश शेखर उसके पति होते !

वह छुट्टी का दिन था | आकाश में बादल छाए हुए थे | लगता था कि मूसलाधार बारिश होगी | फिर भी पूनम शेखर के घर जाने को तैयार होने लगी | माँ ने मना किया तो भी नहीं मानी | रास्ते में ही बूँदा-बाँदी शुरू हो गयी | शेखर के दरवाजे पर पहुँचते-पहुँचते वह सराबोर हो गयी | दरवाजा शेखर ने ही खोला | वह अंदर आई तो घर में सन्नाटा लगा | शेखर ने बताया कि कल शाम को ही पत्नी बच्चों के साथ मैके गयी है | पूनम ने सोचा कि उसका आना तो सुनिश्चित था, फिर उन्होंने उसे आने से मना क्यों नहीं कर दिया? क्या वे स्वयं उससे एकांत में मिलना चाहते थे ?उसे सोचते देखकर शेखर ने उसे बाँहों में भर लिया और चूमने की कोशिश की, तो वह किनारे खड़ी हो गयी | उसने कहा-यह पाप है | उसके अंदर इतनी गहरी नैतिकता होगी, इसका अनुमान शेखर नहीं लगा पाए थे, पर हार मानना उन्होंने भी नहीं सीखा था | भावुक स्वर में बोले-अपनी पत्नी के साथ यह पाप नहीं है |

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