त्रिखंडिता
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दुष्चक्र
उस दिन सुबह से ही विधायक रामरतन चौधरी के घर के सामने वाली सड़क पर हंगामा मचा हुआ था | विधायक की मृत्यु हुए अभी बमुश्किल एक सप्ताह हुए थे | सड़क पर कालोनी के लोग जमा थे | चिक-चिक हो रही थी | विधायक की तथाकथित पत्नी मालती देवी अपने पाँच बच्चों के साथ सड़क के एक किनारे खड़ी रो रही थीं | मकान के दरवाजे पर अपनी कमर पर हाथ धरे विधायक के छोटे भाई डाक्टर कामता प्रसाद खड़े थे| पता चला उन्होंने ही उन्हें घर से निकाला है | उनके अनुसार मालती देवी उनके भाई की जायज पत्नी नहीं है, इसलिए उनका या उनके बच्चों का घर और जायजाद पर कोई हक नहीं | जब तक रामरतन जिंदा थे, उनकी दबंगई के आगे कामताप्रसाद थर-थर काँपते थे, पर ज्यों ही उनकी मृत्यु हुई वे शेर हो गए थे | उन्होंने भाई की संपत्ति पर अपना दावा पेश किया और अब मालती देवी को उनके बच्चों के साथ घर से निकाल रहे थे | सभी लोग जानते थे कि बच्चे कामताप्रसाद जी के ही हैं | लगभग पंद्रह सालों से मालती देवी उनके साथ थीं | वे सुंदर, सभ्य, शालीन, सुसंस्कृत और भली महिला थीं | यूं तो वे बाहर कम ही निकलती थीं, पर इधर कुछ वर्षों से वे निकलने लगी थीं, फिर भी सिर उघाड़े उन्हें किसी ने नहीं देखा था |
यद्यपि उनके अतीत के बारे में तमाम कहानियाँ प्रचलित थीं, पर वर्तमान का सत्य यही था कि वे रामरतन जी की पतिव्रता पत्नी थीं | रामरतन जी की पहली पत्नी मर चुकी थीं और वे अरसे से एकाकी जीवन में थे| पुश्तैनी बड़ा मकान था, जिसके आधे हिस्से में उनके भाई कामतप्रसाद सपरिवार रहते थे | दोनों भाइयों में नहीं बनती थी, इसलिए मकान को दो हिस्सों में बाँट दिया गया था| दोनों के प्रवेश-द्वार अलग थे | उनके घरों की तरह उनके दिलों में भी बड़ी सी विभाजक रेखा थी | यह रेखा तब और प्रगाढ़ हो गयी थी, जब विधायक जी मालती देवी को घर ले आए थे और घर में ही धूम-धाम से आर्यसमाजी विधि से उनसे विवाह कर लिया था | बड़ी -सी दावत दी गयी थी | शहर और बाहर के भी नामी-गिरामी लोग इस भोज में सम्मलित हुए थे और उनके इस विवाह को सामाजिक मान्यता दी थी | अब एकाएक विधायक की मृत्यु के बाद मालती देवी गैर कानूनी पत्नी हो गयी थीं और कालोनी के ज्यातर लोग कामता प्रसाद के पक्ष में खड़े हो गए थे | जो लोग इसे गलत मान रहे थे, वे भी चुप थे | किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि वे कामता प्रसाद का विरोध करें | कामता प्रसाद पेशे से डाक्टर थे और सभी को उनसे काम पड़ता था आस-पास की घरों की खिड़कियाँ खुली हुई थीं, जिनसे स्त्रियाँ बाहर झांक रही थीं | उन्हें बाहर निकलकर हस्तक्षेप करने की पति व परिवार से इजाजत नहीं थी | उनमें से कुछ स्त्रियाँ, जो मालती देवी के सौंदर्य, सुगढ़ता व ख्याति से जली-भुनी रहती थीं, प्रसन्न थीं | पर कुछ भली स्त्रियाँ दुखी थीं | उन्हें कामता प्रसाद का यह कदम मानवता के विरूद्ध लग रहा था | बेचारी पाँच बच्चों को लेकर कहाँ जाएगी? उसके मायके के बारे में भी जानकारी नहीं कि कैसा है ?कहाँ है ?पता नहीं कोई है भी या नहीं | वैसे भी जाति से वे मारवाड़ी थीं, शायद दलित से विवाह कर लेने की वजह से मायके वालों ने त्याग दिया होगा |
शाम ढलने को आ गयी भूख-प्यास से बच्चे बिलबिला रहे थे | मालती देवी वहीं सड़क के किनारे धूल-मिट्टी में बैठ गयी थीं | कामता प्रसाद ने दरवाजे पर ही कुर्सी लगा ली थी | कालोनी के कुछ लोग जा चुके थे, कुछ जा ही रहे थे कि अचानक वहाँ एक चमचमाती बड़ी सी गाड़ी आकर रूकी | गाड़ी से एक लंबा-चौड़ा लगभग पचास-पचपन का सुदर्शन पुरूष उतरा | मालती देवी उसे देखते ही बिलख-बिलखकर रोने लगीं | बच्चे भी आकर उससे लिपट गए | पुरूष ने आग्नेय दृष्टि से भीड़ और कुर्सी पर जमे बैठे कामता प्रसाद को देखा और बच्चों के साथ घर की तरफ बढ़ा | थोड़ी देर में ही भीड़ ने अवाक देखा कि कामता प्रसाद दरवाजा छोड़कर एक तरफ खड़े हो गए हैं और मालती देवी बच्चों के साथ अपने घर मे प्रवेश कर गयी हैं | शायद मर्दों की इस दुनिया में मर्दों से सताई स्त्री का एक मर्द ही उद्धार करता हो | स्त्रियाँ तो अपने दरबों से बाहर ही नहीं आ पातीं | अगर कालोनी की स्त्रियॉं ने एक जुट होकर कामता प्रसाद का विरोध किया होता, तो शायद इस दूसरे मर्द का प्रवेश मालती देवी के जीवन में नहीं हुआ होता |
मालती देवी के घर में प्रवेश करते ही पुरूष कामता प्रसाद से मुखातिब हुआ -ये क्या लगा रखा है? ये मत समझना कि उनका कोई नहीं है | मैं ज्वाला सिंह, रामरतन सिंह का अभिन्न मित्र अभी जिंदा हूँ | मेरे जीते-जी तुम उनसे उनका हक नहीं छीन सकोगे | यह कहते हुए उन्होंने अपनी कमर में बंधे लाइसेंसी रिवाल्वर पर हाथ फेरा | कामता प्रसाद के होश तो उन्हें देखते ही उड़ गए थे| वे बिना कुछ बोले अपने घर की तरफ सरक गए | ज्वाला सिंह सांसद थे और उनकी पहुँच बहुत ऊपर तक थी | पुलिस-थाने को अपनी जेब में रखकर चलते थे | राम रतन के जिंदा रहते वे कई बार इस घर में आए थे और हर बार मालती देवी के सौंदर्य और सुरूचिपूर्ण रहन -सहन से प्रभावित होकर लौटे थे | उनके मन में कहीं न कहीं मालती देवी के लिए कोमल भावना थी, जिसको कोई नाम देने में वे हिचकते रहे थे | पर अब रामरतन के जाने के बाद उनकी भावना उछाल पर थी |
समय बीतने लगा | ज्वाला सिंह के संरक्षण में मालती देवी अपने बच्चों को पालने लगीं | कामता प्रसाद अब उनसे नहीं उलझते थे| पर पीठ पीछे वे ज्वाला सिंह से उनके नाजायज रिश्ते की अफवाह फैला रहे थे | कायर पुरूष इसके अलावा कुछ कर भी तो नहीं सकते | अपनी हार को जीत में बदलने का इससे बेहतर उपाय उन्हें नहीं सूझता | मालती देवी के कानों तक जब ये खबर आई, तो उन्हें बहुत दुख हुआ, पर वे क्या कर सकती थीं ?वे सुंदर थीं, युवा थीं और अब ज्वालासिंह उनके घर नियमित आते थे| वे जानती थीं कि समाज स्त्री-पुरूष के बीच मित्रता की वजह सिर्फ यौन ही मानने का आदी है | कभी-कभी उनका मन होता कि ज्वालासिंह से कहें कि उनके घर कम आएँ, पर यह कहते उन्हें डर लगता | वे जानती थीं कि उनका साया हटाते ही उनके शत्रु सक्रिय हो जाएंगे | तीनों बेटियाँ तेजी से बढ़ती हुई किशोर हो गयी थीं | दोनों बेटे अभी छोटे थे | सभी अच्छे स्कूलों मे पढ़ रहे थे | उनकी जरूरतें बढ़ रही थीं, जिन्हें ज्वालासिंह के सहयोग के बिना वे पूरा नहीं कर सकती थीं | पति के पेंशन व मकान के किराए के अलावा थोड़ी सी खेती थी, जिसे उन्होंने बँटाई पर दे रखा था | अर्थ से अधिक उन्हें एक पुरूष के संरक्षण की जरूरत थी | वे अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं थीं कि नौकरी कर सकें | फिर इतने बच्चों को छोडकर उनका कहीं काम करना भी मुश्किल था |
मालती देवी ने जीवन की इस विडम्बना को स्वीकार कर लिया था | बदनामी को उन्होंने नियति मान लिया | उन्हें बस इस बात का संतोष था कि वे गलत नहीं हैं | वे चाहती थीं किसी तरह बच्चे पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर हो जाएँ | उनकी शादी कर दें, फिर किसी आश्रम में चली जाएंगी | ज्वाला सिंह उनके लिए देवता समान थे, पर वे भूल गयी थीं कि कोई भी मर्द बिना किसी स्वार्थ के किसी स्त्री की मदद नहीं करता | एक दिन जब ज्वाला सिंह नें उन्हें अपने बिस्तर पर खींच लिया, तो उन्हें झटका लगा | उन्होंने विरोध किया तो ज्वाला सिंह ने अपना ऐसा रूप दिखाया कि वे काँप उठीं | उन्हें बच्चों सहित फिर से सड़क पर ला देने की बात वह शख्स कर रहा था, जो उनके पति का अभिन्न मित्र था, जिसे आज तक वे देवता समझ रही थीं | पर शायद मर्द कभी देवता नहीं बन पाता | वह भी तब, जब कोई सुंदर, युवा व मजबूर स्त्री उसे एकाकी मिल जाए |
मालती देवी को समझौता करना ही पड़ा | अपनी किशोर बेटियों की इज्जत और बेटों के स्वर्णिम भविष्य के लिए खुद को कुर्बान करना ही उन्हें ठीक लगा | उन्हें अपना अतीत याद था | माता-पिता की मृत्यु के बाद वे कितनी अकेली हो गयी थीं | एक चचेरा भाई था, जिसने सहारा देने की जगह उनका शोषण करना शुरू कर दिया | वह उन्हें अमीरों के घर भेजता था | विरोध करने पर मारता -पीटता था, भूखा रखता था | रामरतन चौधरी के पास भी वह भेजी गयी थी| रामरतन जी को वे कुछ उदास लगीं, तो उन्होंने कारण पूछा| वे बिलख-बिलखकर रोने लगीं | सारी कहानी सुनकर रामरतन जी द्रवित हो गए और उन्हें हमेशा के लिए अपना लिया | मालती देवी के अतीत की भनक कामता प्रसाद को थी, इसीलिए उन्होंने मालती देवी को कभी भाभी के रूप में स्वीकार नहीं किया |
मालती सोच रही हैं कि उनकी किस्मत भी कैसी है? एक दलदल से निकलकर वे स्वर्ग में आई थीं, पर दुर्भाग्य स्वर्ग का देवता ही चला गया | अब स्वर्ग में देवता की जगह एक अजगर आ गया है, जो उन्हें नर्क में गिराना चाहता है | उससे खुद को बचाती हैं, तो बच्चे हमेशा के लिए नर्क में गिर जाएंगे | उन्हें तो नर्क की आदत है, पर उनके मासूम बच्चे!नहीं ..नहीं वे खुद को गिरा देंगी, पर बच्चों पर आंच नहीं आने देंगी | एक बच्चा होता तो वे मेहनत-मजूरी भी कर लेतीं, पर पाँच -पाँच बच्चे !काश वे काम लायक पढ़ी-लिखी होतीं, पर माँ-बाप के बचपन में ही गुजर जाने के कारण उनकी पढ़ाई अधूरी छूट गयी थी | आज उन्हें लग रहा था कि किसी स्त्री का पढना -लिखना, आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है | वे अपनी बेटियों को खूब पढ़ाएँगी और आत्मनिर्भर होने के बाद ही उनकी शादी करेंगी, ताकि उन्हें जीवन मे कभी उनकी तरह मजबूर होकर समझौता न करना पड़े |
मालती देवी इतना तो जानती थीं कि किसी स्त्री के लिए मर्द का संरक्षण जरूरी होता है| पर इस संरक्षण की उसे इतनी बड़ी कीमत देनी पड़ती है, यह वे नहीं जानती थीं | उनके साथ भी यही हो रहा था | उनकी बड़ी बेटी पूनम अब अट्ठारह की हो चुकी है | सुमन पंद्रह की और किरण बारह की | उन्हें उनकी सुरक्षा की चिंता है और उनके विवाह की भी| सभी कालेज में पढ़ रही हैं और अब सब कुछ समझने लगी हैं | अंकल माँ के कमरे में क्यों पड़े रहते हैं ?उन्हें इसका अनुमान है | उन्हें अच्छा तो नहीं लगता, पर उन्हें माँ की मजबूरी भी पता है | बाहर जब कोई उनसे अंकल के बारे में पूछता है, वे झल्ला जाती हैं और पूछने वाले की शामत आ जाती है | पूनम ज्यादा तेज-तर्रार है | उसे अंकल बिलकुल पसंद नहीं हैं क्योंकि वे बकायदा माँ के कमरे में बैठ कर शराब पीते हैं | सुमन और किरण को अंकल से उतनी परेशानी नहीं हैं | वे उनके आने पर खुश होती हैं क्योंकि उनकी हर फरमाइश अंकल पूरी कर देते हैं | आज की पीढ़ी की जरूरतें पूरी होती रहें, तो वह बड़ों की बड़ी से बड़ी गलती को भी नजरअंदाज कर देती है| नैतिक पतन यूं ही नहीं चरम पर है | पूनम अपनी बहनों से अलग है | उसमें स्वाभिमान की मात्रा कुछ ज्यादा है| अंकल के आने पर वह या तो अपने कमरे में बंद हो जाती है या फिर पास-पड़ोस में जा बैठती है | अंकल में एक बात तो अच्छी है कि वे उन्हें अपनी बेटियों की तरह ही मानते हैं, पर बाहर के कुछ लोगों को डर है कि कहीं किसी दिन नशे की खुमारी में वे लड़कियों को अपना शिकार न बना लें | इन्हीं कुछ लोगों में एक वकील साहब भी हैं | वकील साहब बड़े ही सुदर्शन और प्रतिभाशील हैं | उम्र तीस-पैंतीस से कम नहीं, पर रख-रखाव से पच्चीस से अधिक के नहीं लगते | उनके मुक़ाबले उनकी पत्नी बहुत ही साधारण और उम्रदराज लगती हैं | पर पति-पत्नी के बीच गजब का सामंजस्य है | दो बच्चे हैं लड़की आठ साल की व लड़का पाँच साल का है | वकील साहब साहित्य और संस्कृति में भी रूचि लेते हैं | बात-बात पर शेर कहते हैं | लच्छेदार बातें करके किसी भी युवती को अपना मित्र बनाने में माहिर हैं | उनकी इस शौक में उनकी पत्नी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं | पहले वे खुद किसी युवती की मित्र बनती हैं, फिर उसे वकील साहब की दोस्त बना देती हैं | किसी स्त्री का ऐसा भी चरित्र हो सकता है, यह रमा ने पहली पर जाना था | पूनम उसके साथ एम.ए. कर रही थी | बहुत ही समझदार लड़की थी, फिर भी वकीलाइन[ वकील साहब की पत्नी होने के कारण लोग उन्हें वकिलाइन कहते थे], के प्रयास से वह वकील साहब की दोस्त बन गयी थी| वकील साहब पूनम के घर की कमजोरियों से वाकिफ थे और उसे अपने ढंग से समझाते रहते थे | अब जब भी अंकल पूनम के घर आते, वह वकील साहब के घर चली आती और देर-देर तक वहीं पड़ी रहती | वकील साहब के घर के दरवाजे उसके लिए हर वक्त खुले रहते | वकील साहब ही नहीं, उनकी पत्नी और बच्चे भी दिल खोलकर उसका स्वागत करते | इतना अपनत्व पाकर पूनम को उनका घर अपना लगने लगा | अब उसको अपना घर अच्छा ही नहीं लगता था |
पूनम को पता ही नहीं चला कि कब वह वकील साहब के प्रेम में पड़ गयी | इस प्रेम में वकीलाइन के इस स्लोगन का बड़ा हाथ था कि उन्हें अपने पति का प्रेम शेयर करने में कोई परेशानी नहीं | वे वकील साहब के साथ पूनम को अकेला छोड़कर कहीं भी चली जातीं | घर में रहती भीं, तो दोनों को एकांत में समय बिताने का पूरा मौका देतीं | वकील साहब, जिनका नाम शेखर था, पूरे घाघ थे| वे धीरे-धीरे पूनम को अपनी गिरफ्त में ले रहे थे | इस काम में उन्हें कोई नैतिक बाधा नहीं थी | उनका विचार था कि ऐसी -वैसी माँ की बेटी का हश्र ऐसा-वैसा ही होता है | उन्हें पूरा विश्वास था कि लड़कियों को उनके तथाकथित अंकल एक दिन शिकार बनाएँगे ही, इसलिए वे उनका प्रथम भोग लगाने को आतुर थे | पर वे यह भी जानते थे कि पूनम बहुत ही नैतिक लड़की है | गलत चीज को कभी स्वीकार नहीं करेगी, इसलिए उसे प्रेम के नाम पर हासिल करना चाहते थे | पूनम को देखते ही उनकी आँखें और जुबान ही नहीं, पूरी देह बोलने लगती | वे देवदास के अवतार बन जाते | पूनम पर इन सब का प्रभाव पड़ने लगा था | शेखर पूनम की देह को जगा रहे थे | अवसर देखकर कभी उसके हाथ सहला देते, कभी पाँव | उस स्पर्श में ऐसा कुछ होता था कि पूनम की पूरी देह झनझना जाती | एक अजीब सा सुख उसे मिलता | वह स्पर्श करने पर उनसे नाराज नहीं होती थी | शेखर को इस बात से शह मिलती | एक दिन जब पूनम उनके ड्राइगरूम में सोफ़े पर बैठी थी | वे चुपके से उसके पीछे आए और पूनम के चेहरे को पीछे झुकाकर उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसे ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगे | हर चुसकारी पूनम की देह में बिजली दौड़ाती रही | वह तड़प उठी | कई मिनटों के बाद शेखर ने उसे छोड़ा| यह चुंबन पूनम के लिए बिलकुल नया अनुभव था | उसकी चेतना शून्य हो गयी थी | गलत-सही, पाप-पुण्य की बात वह नहीं सोच पा रही थी | बिना कुछ बोले वह घर चली गयी और कमरे में बंद होकर देर तक फूट-फूटकर रोती रही | उसने सोच लिया कि अब वह शेखर के घर नहीं जाएगी | पर कहते हैं न देह का नशा अफीम से ज्यादा सिर पर चढ़ता है | पूनम अब और ज्यादा शेखर के घर जाने लगी | कुछ दिनों चुंबनों का सिलसिला चला, फिर वे आलिंगन बद्ध होने लगे | पूनम को यहाँ तक कुछ भी बुरा नहीं लगता था | इसे वह दोस्ती की प्रगाढ़ता ही समझ रही थी |