हॉरर साझा उपन्यास
A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt
संपादक – सर्वेश सक्सेना
भाग – 19
लेखक – मन मोहन भाटिया
हवेली के एक कमरे से आई दर्दनाक चीख से वह आदमी विचलित हो गया। “ इस बड़ी हवेली में अवश्य कोई है जिसकी ये दर्दनाक चीख पूरी हवेली में गूँजी है।” वो आदमी हड़बड़ाकर उस आवाज की दिशा में अंदाजे से दौड़ा कि तभी किसी ने एक जोरदार प्रहार उसके मुँह पर किया, वह स्वयं को संभाल नहीं सका और नीचे गिर गया। मुँह के बल गिरने पर वह उठने का प्रयास करता रहा पर वह उठ नहीं सका, तभी कोई उसकी पीठ पर सवार हो गया और वह असहनीय दर्द से कराहने लगा जैसे कोई अद्रश्य शक्ति उसके शरीर से रीढ़ की हड्डी निकाल रही हो।
“क क क कौन है?” उस आदमी के कंठ से ये शब्द बहुत मुश्किल से निकले तभी उसको गले पर दबाव महसूस हुआ। उसे लगा, कोई उसका गला दबा रहा है। उस आदमी ने उस न दिखने वाले अस्तित्व से छूटने के भरकस प्रयास किया, परंतु असफल रहा। पहले चीख थी, अब एक अट्हास हुआ।
“ हा....हा....हा....हा....हा.....आखिर तू यहाँ आ ही गया।
यह एक महिला का स्वर था, जिसे सुनकर उस आदमी के होश उड़ गये और वह स्वयं बड़बड़ाने लगा, “ नहीं...नहीं यह आवाज उसकी नहीं हो सकती। यह असंभव है। शायद मुझे कोई धोखा हो रहा है।”
यही बड़बड़ाते हुये वह आगे बढ़ा और उसे पीछे से धक्का लगा। वह पीछे मुड़ा, वहाँ कोई नजर नहीं आया। “ इस हवेली में यह क्या हो रहा है। कोई है, पर नजर क्यों नहीं आ रहा है? तभी किसी ने उसे उछाल कर फैंका और वह सीधा वहाँ गिरा, जहाँ अनुज था।
वो अनुज को आँखें फाड़ कर देखने लगा, अनुज उस षटकोण के बीचो बीच बैठकर ना जाने किस से कह रहा था।
“मैं वादा करता हूँ कि आपके कातिलों को सजा दिलवा कर ही रहूँगा।”
अनुज के चेहरे पर अन्धेरा था और सामने एक अन्धेरे कोने से ना जाने कैसी खुसफुसाने की आवाजें आ रही थीं।
अब वह आदमी अनुज के ठीक सामने था।
“तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो?”
उस आदमी की आवाज सुनकर अनुज चौंक गया और वो खुसफुसाहट भी अब बन्द हो गयी। अनुज ने आँखें खोल कर देखा, उसके सामने एक आदमी बहुत बदहवास स्थिति में बैठा था।
“तुम कौन?” अनुज ने चौंक कर पूछा।
“म..म...मै अपने दोस्त को ढूंढ़ने आया हूं जिसका नाम अखिल है, वह मुझसे मिलने आ रहा था पर वह मेरे पास नहीं पहुँचा। मैं उसको ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यहाँ तक आया हूँ। यह हवेली बहुत विचित्र और रहस्यमयी लग रही है।” उस आदमी ने कहा।
अनुज को अभी भी उस आदमी का चेहरा साफ नही दिखाई दे रहा था। उसने कहा, “अंकल..... आप अखिल अंकल को जानते हो?” अनुज को यह जान कर सांत्वना मिली कि वह आदमी कोई अनजान नहीं है।
“ऑफ कोर्स। अखिल मेरा फ़ास्ट फ्रेंड है। तुम्हारा नाम क्या है?” आदमी बोला।
“अंकल, मेरा नाम अनुज है और पूजा मेरी फ्रेंड है। हम यहाँ हॉन्टेड वीडियो बनाने आए थे। पूजा मुझसे बिछड़ गई। वह अवश्य किसी खतरे में है। यहीं हमे अखिल अंकल मिले और अभी अभी पूजा की मो....... ।”
अनुज आगे कुछ और कहता कि तभी एक जोरदार आवाज के साथ बिजली कड़की जिसकी रोशनी में अनुज ने उस आदमी का चेहरा साफ साफ देखा जिसे देखकर वो अन्दर तक कांप गया।
“अनुज, तुम डरो मत, बिल्कुल मत घबराओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम मिल कर पूजा को ढूंढ़ते हैं। एक से भले दो, लेकिन तुम अभी क्या कह रहे थे?? बोलो .... ।” उत्कर्ष ने सरलता से कहा।
अनुज ने कोई जवाब नही दिया।
“अनुज तुम इस षटकोण से बाहर आओ, फिर हम पूजा को ढूंढ़ते हैं।”
अनुज डरते डरते षटकोण से बाहर आता है।
“अंकल, आपका नाम क्या है?” अनुज ने डरते हुये पूछा।
“उत्कर्ष......, उत्कर्ष नाम है मेरा........हम दोनों एक दूसरे से पहली बार मिल रहे हैं। अब देर ना करो, मेरे साथ आओ, हम दोनों यहां से निकल चलते हैं, मै यहां से बाहर जाने का रास्ता जानता हूं।”
उत्कर्ष ने एक कुटिल मुस्कुराहट के साथ क़हा।
अनुज बिल्कुल खामोश उस अन्धेरे कोने की तरफ देख रहा था और कांप रहा था क्यूंकि मेघा के मोबाइल में वो आदमी और कोई नही बल्कि उत्कर्ष ही था। तभी एक ठंडा सा हवा का झोंका अनुज ने महसूस किया।
उत्कर्ष ने कहा “ जल्दी करो अनुज, यहां से चलो, घबराओ मत मेरे होते हुये तुम्हे कुछ नही हो सकता।”
“जैसे मेघा को कुछ नही हुया था” एक स्त्री की भारी भरकम आवाज हवेली में गूंज उठी। जिसे सुनकर उत्कर्ष का चेहरा एकाएक पीला पड़ गया क्यूंकि ये आवाज मेघा की ही थी।
अचानक से फिर बिजली कड़की। पूरी हवेली में फिर से अंधकार हो गया। बाहर बरसात की तीव्रता और उग्रता बढ़ने लगी। अचानक से कुत्तों के रोने की आवाज आने लगी। दूर से आती आवाज, जो धीमी थी, तेज होने लगी। ये आवाजें ऐसा लग रहा था, हवेली के दरवाजे से आ रही थी।
“क क क कौन?” उत्कर्ष ने कांपते हुये चौंक कर इधर-उधर देखा। पूरे कमरे में अनुज के अलावा दूसरा कोई नहीं था।
“मैं मेघा हूँ, उत्कर्ष। तुम मुझे इतनी जल्दी कैसे भूल गए?”
“मे.. मे.. मेघा।” उत्कर्ष की घिग्घी बंध गई।
“तुम मेघा नहीं हो सकती, तुम जो भी हो, सामने आओ। तुम मेघा नहीं हो सकती हो। तुम कौन हो, बहरूपिया?”
“हा हा हा। “ एक कर्कश स्त्री स्वर हवेली में गूँजा।
अचानक से एक फौलादी थप्पड़ उत्कर्ष के गाल पर पड़ा। उत्कर्ष की आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगा। अनुज तूफानी वेग से उत्कर्ष की छाती पर बैठ गया और बोला।
“तू क्या सोचता है, तू मुझे मार कर खुद बच जाएगा। मैं खुदको तो ना बचा सकी पर अनुज और पूजा को जरूर बचाऊंगी। तुझे मुझसे क्या दुश्मनी थी, जो तूने मेरे साथ ऐसा किया? बोल .....तूने मेरा अंत क्यों किया, क्यों क्यों क्यों?” मेघा की आत्मा अनुज में प्रवेश कर चुकी थी। हवेली में एक साथ दो दो आवाजें गूंज रही थीं। अनुज उत्कर्ष की छाती पर जबरदस्त प्रहार कर रहा था।
उत्कर्ष ने हांथ जोड़कर कहा “मुझे छोड़ दो...मुझे माफ कर दो, मुझसे गलती हो गयी, म...म...मुझे माफ कर दो।” उत्कर्ष का गला अब अनुज की गिरफ्त मे था।
अनुज उसकी छाती से उतरा लेकिन अब उसने उत्कर्ष के पैर मजबूती से पकड़ रखे थे। उत्कर्ष समझ गया, कि वह अनुज यानि मेघा की पकड़ से भाग नहीं सकता।
वो गिड़गिडाते हुये बोला “मैं कॉलेज में तुम्हारी खूबसूरती पर फिदा हो गया था, लेकिन तुम अखिल को पसन्द करती थी। जब-जब मैं तुम्हारे नजदीक आने की कोशिश करता, तुम अखिल के नजदीक हो जाती। मैं तुमसे मोहब्बत करता था लेकिन तुमने अखिल से शादी कर ली। तुम्हारी शादी पर मैंने प्रतिज्ञा ली थी, तुम मेरी नहीं हो सकती तो किसी की नहीं हो सकती और यही वजह थी कि मुझे अखिल से भी नफरत होने लगी।”
अनुज के शरीर में मेघा की आत्मा थी, उसने उत्कर्ष के पैरों को मरोड़ कर उछाल दिया, उत्कर्ष हवेली की छत से टकरा कर नीचे गिरा। अनुज ने एक बार फिर से उसे उछाल कर कमरे की दीवार पर पटका और उसके अन्दर की मेघा ने कहा।
“लेकिन तूने मुझे यहाँ इस हवेली में क्यों बुलाया था?” बोल.....तूने ही मेरे और अखिल के बीच नफरत की दीवार खड़ी की थी। क्यों?”
“मेघा, मैं तुझे अखिल के साथ देख नहीं सकता था। मैं तड़पता रहूँ और तू अखिल के साथ मस्त रहे, यह मैं बर्दास्त नहीं कर सकता था। इसलिए मैंने तुम्हें तलाक के मुहाने पर पहुँचाया और ये मेरे लिये बेहद आसान काम था क्युंकि तुम भी कहीं ना कहीं मुझे पसन्द करती थी।” ये सुनते ही मेघा ने उत्कर्ष का एक दांया हांथ तोड़ दिया जिससे वो दर्द से बिलख पडा।
“मै सिर्फ तुझे अच्छा दोस्त मानती थी ....पर तू दोस्त तो दूर दुश्मनी के लायक भी नही है।” मेघा की आत्मा ने आक्रामक होकर कहा।
“मेघा, तुम्हारी शादी के दिन मैं बहुत गुस्से में था और इसलिये मै नही चाहता था कि तुम्हारी शादी मे शामिल होऊं लेकिन दिखावे के लिये मुझे शादी मे आना था, उस रात मै इसी जंगल से गुजर रहा था। मेरी कार यहीं सड़क पर खराब हो गयी। मैं हैरान था, मेरी नई कार चलते-चलते अपने आप कैसे रुक गई।
रात का समय था, मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था। मैं कार का बोनट खोल कर देख रहा था तभी एक हाथ ने मेरे कंधे को छुआ। मैं घबरा गया, माथे पर पसीना आ गया। कहीं दूर से उल्लू की आवाज आई, साथ मैं कुत्तों के भौंकने की आवाज से मेरे पैर लड़खड़ा गए। मेरे पीछे खड़े आदमी ने मुझे संभाला और कहा।
“बहुत कमजोर दिल के इंसान हो, जरा सी बात पर डर गए, अखिल से प्रतिशोध कैसे लोगे।”
इतना सुनकर मैं हतप्रभ हो गया। इसको मेरे और अखिल के बारे में कैसे मालूम हुआ। मैंने डरते-डरते पीछे देखा पीछे एक तांत्रिक मुस्कुरा रहा था।
“बेटा, हमें पल-पल की खबर है। मैंने ही तुम्हारी कार को अपनी शक्तियों से रोका है। घबराओ नही, चलो मेरे साथ, तुम अपना बदला ले सकते हो बस तुम्हे मेरी मदद करनी होगी।”
तांत्रिक के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान थी। मैं उसकी ओर देखते ही अपने होश खो बैठा, जैसा वो कहता गया, मैं करता गया। उसने मुझे सम्मोहित कर लिया। यह मुझे इस हवेली में ले आया। उसने बताया कि वो एक किताब लिखवा रहा है जिसके पूर्ण होते ही वह शाक्तिशाली बन जाएगा।
इस काम के लिए उसे एक स्त्री और नवजात शिशू चाहिये जो उस हवेली से जुडा हो और वो तुम और पूजा ही थी। जिसकी बलि देकर उनकी खाल और खून से किताब लिखी जानी थी। तांत्रिक ने दो औरतों और दो बच्चों की बलि सदियों पहले ही देकर इस किताब की शुरुआत कर दी थी। तीसरी औरत तुम थी, पिछले जन्म में तुम मोहिनी थी और अखिल रुद्रांश, रुद्रांश ने तुम्हारे कारण इस किताब को अधूरा छोड़ दिया था लेकिन अब इसे अखिल खुद अपनी पत्नी और बच्ची के खून से पूरा करेगा।
तांत्रिक को तुम्हारे और अखिल के प्रति मेरी घृणा मालूम थी इसलिए उसने मुझे तुम्हें पहले अखिल से अलग करने को कहा और फिर एक रात तुम्हे पूजा सहित यहाँ लाने के लिए कहा। मैंने तुम्हें पूजा के साथ आने को कहा था, लेकिन तुम अकेली ही चली आईं, मैं निराश था। तांत्रिक हाथ से ये मौका नहीं जाने देना चाहता था इसलिये मैने तुम्हें मार दिया। तुम्हारी खाल किताब के काम आई, मगर तांत्रिक ने विधी शुरू कर दी थी जिसे रोका गया तो और सदियों का इंतजार करना पड़ता, इसलिये मैनें अखिल को अपने घर बुलाया और मैने ही वो एक्सीडेंट करवाया था, तांत्रिक अपनी शक्तियों से पूजा और अनुज को भविष्य काल से खींच लाया। जिससे किताब हर हाल में पूरी की जा सके और अब तक तो पूजा की बली चढ् भी गई होगी और खुद अनजान अखिल अपनी बेटी के खून से वो किताब लिख रहा होगा।”
ये सब सुनकर मेघा की आत्मा दहक उठी उसने एक अट्हास लगाया। तभी एक गर्जना के साथ बिजली कड़की और कुत्तों के रोने की आवाज तेज हो गई।
मेघा की आत्मा अब अनुज के शरीर से बाहर आ गई। आत्मा के बाहर आते ही अनुज का शरीर हल्का हो गया।
“अनुज मेरी मौत का बदला अवश्य लिया जाएगा। यह धूर्त तुम्हारा हमदर्द नहीं है, तुम्हें जाल में फंसा रहा है तुमने सुनी ना इसके मुँह से इसकी काली करतूतें, ये मेरी तरह तुम्हे भी उस शैतान तांत्रिक के हवाले कर देगा लेकिन मै ऐसा हरगिज नही होने दूंगी।” मेघा ने उच्च स्वर मे कहा।
मेघा की आंखें अब रक्तमय सी हो चली थीं उसने उत्कर्ष से पूछा। “तुझे मालूम है कि ये कुत्ते क्यों रो रहे हैं?”
उत्कर्ष चुप रहा। वह कुछ नहीं बोला।
अनुज कभी मेघा को देखता तो कभी उत्कर्ष को।
“अब तो अनहोनी होनी ही है, तेरा अंत निकट है। तूने मुझे ही नही अखिल को भी धोखा दिया।”
मेघा के इतना कहते ही कुत्तों के रोने की आवाज तेज हो गई, अनगिनित कुत्तों की असहनीय आवाजें उत्कर्ष के कान के पर्दे फाड़ने में सक्षम थी। उत्कर्ष तड़पने लगा, उसने अपना सिर इधर उधर पटका, जैसे उसे मिर्गी का दौरा पड़ा हो। उत्कर्ष समझ गया कि ये रात उसकी आखिरी रात है।
उत्कर्ष के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था। उसको अपना अंत नजर आ रहा था। अंतिम समय मनुष्य को सत्य का बोध होता है। उसने सब कुछ सच बता कर अपने पापों से मुक्ति के लिए मेघा और अनुज से माफी की गुहार लगाई।
उधर तांत्रिक अखिल से किताब का अंतिम अध्याय लिखवा रहा था। उसे अपनी शक्तियों से जब ज्ञात हुआ कि उत्कर्ष हवेली पहुँच चुका है तो वह बौखला गया। उसे किताब को पूर्ण करने से पहले किसी भी तरह की बाधा को दूर ही रखना था। इससे पहले उत्कर्ष कोई और बखेडा खडा करे उसे ठिकाने लगाना होगा।
ये सोचकर तांत्रिक ने अपनी छाया को हवेली भेजा, जहाँ मेघा, अनुज और उत्कर्ष थे। तांत्रिक की छाया ने अपनी शक्ति से उत्कर्ष को खड़ा किया और वह भागने लगा, अनुज ने उसका पीछा किया। तांत्रिक ने अपनी शक्ति से उत्कर्ष के भागने की गति बढ़ाई। उत्कर्ष भागता हुआ हवेली से बाहर निकला पर मेघा ने उसे उठा कर वापिस हवेली मे फेंक दिया जहां उत्कर्ष ने तांत्रिक को देखा तो उससे मदद की भीख मांगने लगा। तांत्रिक ने एक कुटिल मुस्कुराहट के साथ कहा “ मदद चाहिये तुझे, ले तेरे सारे कष्ट दूर करे देता हूं...हा...हा...हा...हा.... ।” ये कहते ही हवेली का दरवाजा धडाम की आवाज के साथ खुला और उत्कर्ष उड़ता हुया हवेली के बाहर गिरा जाकर जहाँ जंगली कुत्तों का झुंड उत्कर्ष पर टूट पड़ा। उत्कर्ष बेबस था। जंगली कुत्तों ने उसको नोंच लिया। उसके शरीर से लटकते मांस को कुत्ते नोंचते हुए खा रहे थे। उत्कर्ष तड़पते हुए मौत के घाट उतर गया। तांत्रिक अब वहां से गायब हो चुका था और मेघा का प्रतिशोध पूरा हो चुका था पर उसे अब पूजा को ढूंढ़ना था। अब उत्कर्ष का सिर्फ कंकाल रह गया था।
अखिल बिना रुके उस शैतानी किताब को लिखे जा रहा था। तांत्रिक ने उसे सम्मोहित कर रखा था। उत्कर्ष की जीवनलीला समाप्त होने पर तांत्रिक की खुशियां चरमसीमा पर थीं। अब किताब समाप्त होने पर शैतान के देवता से उसे शक्तियों का खजाना मिल जाएगा ये सोच एक क्रूर मुस्कान उसके चेहरे पर छा गई।
उत्कर्ष के मरने के पश्चात मेघा की आत्मा भी ना जाने कहां गायब हो गई। अब अनुज हवेली में अकेला था। वो बहुत घबराया हुया था उसने फिर पूजा को ढूंढ़ना आरंभ किया। वह एक-एक कमरा छानता रहा। हर खिड़की, दरवाजे को खटखटा कर रास्ता तलाशता रहा, किंतु उसे सफलता नहीं मिली। बाहर बारिश और तेज हो चुकी थी और आसमान लाल होने लगा था जिसे देख अनुज और अधिक घबरा गया।
शैतानी किताब अब बस पूरी ही होने वाली थी। पूजा छटपटा रही थी। वह कभी तांत्रिक को, कभी अखिल को, कभी शैतान देवता की मूर्ति को देखती।
"डैड, बचाओ।" उसने आवाज लगाई।
पूजा की गुहार सुनकर तांत्रिक ने उसे हाथ के इशारे से चुप रहने को कहा। "बेवकूफ लड़की, शोर मत मचा। अखिल मेरे कब्जे में है। वो वैसा करेगा, जैसा मैं चाहूंगा।"
सब बातों से बेफिक्र अखिल किताब लिखने में व्यस्त था। अब किताब अपने अंतिम चरण पर थी। किताब कभी भी सम्पूर्ण हो सकती थी। जैसे-जैसे किताब सम्पूर्ण होने को थी। शैतान देवता की मूर्ति चमकने लगी। लाल रंग का प्रकाश मूर्ति के निचले भाग से धीरे-धीरे ऊपर आने लगा। लाल प्रकाश को देखते ही तांत्रिक ने अट्हास किया।
"अब मै सभी शैतानी शक्तियों का स्वामी बन जाउंगा, हा..हा..हा..।"
वातावरण एकदम शांत था, जिसमें तांत्रिक की भयंकर हँसी गूँज रही थी। तभी उसने देखा किताब का पन्ना खत्म हो रहा था, उसने जल्दी से अपनी आंखें बन्द कीं और कुछ बुदबुदाने के बाद चमडी का टुकडा अखिल की ओर बढा दिया। अखिल बिना बोले ही उस चमडी पर तीव्रता से लिखने लगा। अब शैतानी किताब पूरी हो चुकी थी, जिसके कारण तांत्रिक के साथ साथ अखिल के चेहरे पर भी मुस्कान थी। उसने किताब पूर्ण करके अंत में जैसे ही समाप्त लिखा कि उसके होश उड़ गये। उसके चेहरे की मुस्कान लाखों दुखों के समंदर मे डूब गयी।