आज खाना बनाते हुए सीमा के मन में विचारों की तरंगे उठ रही थी रह-रहकर। पिछले कई दिनों से वह देख रही थी उसकी किशोर वय बेटी श्वेता उसके कमरे में पैर रखते ही चौक पड़ती है। श्वेता का स्टडी टेबल खिड़की के पास रखा है। पढ़ते समय उसकी पीठ दरवाजे की तरफ रहती है। जैसे ही सीमा कमरे में जाती है, श्वेता की भंगिमा को देखकर ऐसा लगता है जैसे वह कुछ छुपा रही है। पीठ होने से सीमा यह तो नहीं देख पाती कि वह क्या छुपाती है लेकिन कुछ बात है जरूर। अलमारी में कपड़े आदि रखते हुए सीमा एक सरसरी नजर उसके टेबल पर डाल देती है लेकिन सामने फैली किताबों के अलावा और कुछ तो दिखाई नहीं देता है तो ऐसी कोई चीज होगी जो वह कॉपी किताबों के नीचे सरका देती होगी। आजकल कई बार आईने के सामने भी अलग-अलग कोणों से खुद को निहारते दिखती हैं। श्वेता आयु के 16वें बसंत में है। इस उम्र में शरीर में हो रहे नए परिवर्तनों के साथ स्वयं को आईने में देखने का कौतूहल प्रतिपल होता ही रहता है। यह इस वय की स्वाभाविक वृत्ति होती है लेकिन इस स्वाभाविक वृत्ति के साथ ही साथ इस उम्र में और भी कुछ वृत्तियां पनपने लगती हैं। वह भी उतनी ही प्राकृतिक और स्वाभाविक है लेकिन एक अनुशासनात्मक सीमा के भीतर ही, अगर सीमा से बाहर निकल गई तो...
सीमा ने तय किया कि वह श्वेता की थोड़ी खोजबीन करेगी लेकिन इस तरह से कि उसे पता ना चले। अगर सीमा का संदेह गलत होगा तो नाहक ही श्वेता के मन को ठेस पहुंचेगी। कच्ची डगर पर हर कदम सोच-समझकर बनाना पड़ता है। 4-6 दिन और श्वेता की गतिविधियां देखने के बाद एक दिन सीमा ने उसके स्कूल जाने के बाद उसके बुकशेल्फ की तलाशी लेने का निश्चय किया। उसने पहले सारे सामान की जगह देख ली ताकि बाद में उसे वैसा ही रखा जा सके और श्वेता को कोई संदेह ना हो। शेल्फ में ढेर सारी किताबों के बीच एकदम पीछे की ओर उसके पुराने पेंसिल बॉक्स में एक मोबाइल फोन रखा था। जाहिर है सीमा ने उसे फोन खरीद कर नहीं दिया और फिर भी श्वेता के पास फोन मिला वह भी जतन से छुपाया हुआ। फोन अपने आप में सारी कहानी स्पष्ट कर रहा था। सीमा ने फोन के कॉल डिटेल चेक किए। एक ही नंबर पर सारे कॉल आए- गए थे। फिर उसने मैसेज बॉक्स खोला जाहिर है उसमें भी एक ही नंबर पर सारे मैसेजेस आए-गए थे। मैसेजेस ने भी सारी स्थिति स्पष्ट कर दी थी। सीमा ने शांत भाव से सारे संदेश पढ़े, फिर फोन यथा स्थान रखकर सारी चीजें ठीक उसी प्रकार से रख दी। दो मिनट बैठ कर वह सोचने लगी कि अब क्या किया जाए।
संदेशों में ज्यादातर संदेश सामने वाले के ही थे जो शायद श्वेता का ही कोई सहपाठी होगा। श्वेता के जवाब असमंजस भरे ही थे। इसका अर्थ है श्वेता एकदम से किसी रौ में बही नहीं है लेकिन मन में एक रोमांच भरा प्रलोभन लिए किनारे पर ही खड़ी है। किसी भी क्षण बह सकती है। यह कोई अनहोनी या अप्रत्याशित बात नहीं है। हर पीढ़ी की मां-बेटियां इस दौर से गुजरती हैं। किसी का दौर आसानी से समझदारी से गुजर जाता है और किसी का परेशानियों से। जरा सी भी गलती हुई तो कच्ची डगर का यह सफर फिसलन और कठिनाइयों भरा हो सकता है। हौवा करने की कोई बात नहीं होती है क्योंकि मनुष्य की उत्पत्ति से ही यह अवस्था हर किसी पर आती है उस पर भी आई थी उसकी मां पर भी और नानी पर भी और आगे भी आती रहेगी। पर बस एक प्यार और विश्वास भरे अनुशासन से इस उम्र पर नजर रखना जरूरी है।
सीमा भी तो कभी सोलह-सतरह साल की हुई थी। मन में पूरा समय एक अव्यक्त रोमांचकारी अनुभव महसूसती रहती थी लेकिन उस समय में आज के जैसी स्वतंत्रता और उन्मुक्तता नहीं थी। सब कुछ एक पर्दे के पीछे ढका-छुपा कोतुहल होता था और संस्कार उस पर्दे के पीछे झांकने नहीं देते थे। लेकिन आज के खुले वातावरण में सारे पर्दे सरक गए हैं और सब कुछ सामने हैं, स्पष्ट है लेकिन फिर भी कुछ तो करना ही होगा। ऐसा कुछ कि वह विद्रोही ना होकर समझदारी से समय रहते संभल जाए। डांट-डपट का नतीजा उल्टा भी हो सकता है।
सीमा ने उस रात समीर को सारी बात बताई। समीर ने भी यही कहा कि ऐसी बातों में माता-पिता को धैर्य से काम लेना चाहिए एकदम से गुस्सा होने या कठोर होने पर बात का बतंगड़ बन सकता है। पहले तो घर में प्यार स्नेह सुरक्षा और विश्वास का माहौल बनाओ। बच्चे के मन में माता-पिता पर विश्वास होना जरूरी है ताकि वह अपने मन का हर कौतूहल हर ग्रंथि मुक्त मन से आपके साथ बांट सके। उसके मन में डर नहीं होना चाहिए कि अगर यह बात माता-पिता को मालूम हो गई तो क्या होगा। इतना विश्वास होना चाहिए बच्चों के मन में भी कि चाहे वह कैसी भी गलती करें उनके लौटने का रास्ता हमेशा खुला रहेगा और मां-बाप उन्हें क्षमा कर देंगे, उन्हें समझेंगे। जिन बच्चों के मन में यह विश्वास होता है अधिकतर तो गलत रास्ते पर जाते नहीं है और अगर नासमझी में पैर रख भी दिया तो तुरंत लौट आते हैं। सीमा और समीर का वैसे तो श्वेता से बहुत ही करीबी और विश्वास भरा रिश्ता था लेकिन अब तीनों का और अधिक साथ में समय बिताना जरूरी हो गया ताकि रिश्ते की नींव को और अधिक मजबूत बनाया जा सके।
सीमा और समीर ने तय किया कि आने वाले रविवार को तीनों पूरा दिन बाहर घूमने जाएंगे तब तक घर का वातावरण जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके स्नेह पूर्ण और मस्ती भरा बनाकर रखा जाए। चार दिनों तक श्वेता बाहर जाने के नाम से और रोज अपनी पसंद की चीजें बनाने से बहुत प्रसन्न रही। रविवार को वह सुबह ही तैयार हो गई। समीर ने कार निकाली और वे लोग पास के एक दर्शनीय स्थल की ओर पिकनिक मनाने चल दिए।
रास्ते में एक जगह सड़क बन रही थी। बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हुई थी। एक तरफ की सड़क गहरी खुदी हुई थी पास में गिट्टी और मुरम के ढेर पड़े थे।
"पापा सड़क बनाने के लिए इतना गहरा क्यों खोदते हैं, नीचे जमीन तो होती ही है समतल करके उसी पर टार क्यों नहीं बिछा देते?" श्वेता ने सवाल किया।
"जमीन कच्ची होती है बेटा, अगर सीधे ही टार बिछा देंगे तो सड़क भारी वाहनों का बोझ नहीं उठा पाएगी और जल्दी ही टूट जाएगी इसलिए। सड़क पर हल्के भारी सभी तरह के वाहन रात दिन चलते हैं तो उसकी नींव मजबूत बनानी पड़ती है नहीं तो वह जल्दी ही धंस जाएगी।" समीर में जवाब दिया "जैसे मकान बनाते समय नींव जितनी मजबूत होगी मकान उतना ही टिकाऊ होगा।"
समीर का जवाब सुनकर श्वेता दिलचस्पी से सड़क निर्माण देखने लगी कैसे पहले गहरे तक खोदा गया था, फिर उसमें मोटे पत्थर डाले गए, फिर एक-एक करके मुरम, मोटी गिट्टी और फिर तारकोल डाला गया।
गंतव्य तक पहुंचने पर श्वेता ने उत्साह से कार से सामान निकाला चटाई बिछाकर सारा सामान रखा। हरे-भरे पेड़-पौधों से भरा एक सुंदर बगीचा था ताजी ठंडी हवा चल रही थी। खाना खाने के बाद सीमा ने चाय निकाली और सबको दी। चाय पीकर समीर आंख बंद करके चटाई पर लेट गए। सीमा और श्वेता बगीचे की सैर करने लगी। श्वेता हर पौधे के फूल-पत्तों को गौर से देखती जा रही थी। एक जगह रातरानी के पौधे लगे थे। श्वेता उन्हें देखकर ठिठक गई।
"मां हमारे घर पर जो रातरानी का पौधा है उस पर तो फूल आने लगे हैं यहां के पौधों पर एक भी फूल क्यों नहीं है?" रातरानी के एक पौधे की डालियों को छूकर श्वेता बोली।
"बेटा जिस तरह से पक्की और मजबूत टिकाऊ सड़क बनाने के लिए जमीन को भलीभांति तैयार करना पड़ता है उसी तरह प्रकृति को भी पता है कि पौधा फूलों और फलों को धारण कर सकने योग्य कब होगा। प्रकृति सभी काम उचित समय पर करती है। वह कभी भी समय से पहले कोई काम नहीं करती। प्रकृति को पता है कि पौधा कब परिपक्व होगा। सारे पेड़-पौधे जीव-जंतु प्रकृति के समय चक्र के अनुसार ही चलते हैं।" सीमा ने एक क्षण भर का विराम लिया और श्वेता के चेहरे को एक गहरी दृष्टि से देखा, वह बड़े गौर से रातरानी के पौधे को देख रही थी सीमा ने आगे कहना शुरू किया "इसी प्रकार हमें भी प्रकृति के नियमों के अनुसार उसी की बनाई व्यवस्था में चलना चाहिए। जीवन में सभी बातों का एक उचित समय होता है। अगर कच्ची डगर पर ही चलना शुरू कर दें तो जिंदगी का वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है। डगर भी टूट-फूट जाती है। जब तक मन पर्याप्त समझदार ना हो जाए और शरीर परिपक्व ना हो जाए पेड़ पर फूलों और फलों का असमय बोझ नहीं डाला जाता है। समय आने पर वो फूलेगा भी बढ़ेगा भी लेकिन प्रकृति के नियमानुसार उचित समय पर।" दो क्षण रुककर सीमा ने श्वेता को देखा। वह अर्थपूर्ण दृष्टि से उसे देख रही थी।
"प्रकृति ने आयु के प्रत्येक हिस्से के कर्तव्य निर्धारित करके रखे हैं हमारा भी फर्ज बनता है हम उसकी व्यवस्था का सम्मान करें। जिस उम्र के जो कर्तव्य है वह पूरी ईमानदारी से निभाएं और बाकी के लिए उचित आयु के आने की प्रतीक्षा करें।" कहते हुए सीमा ने प्यार से श्वेता के कंधे पर हाथ रखा और उसका सिर अपने कंधे पर टिका लिया।
दूसरे दिन सुबह श्वेता स्कूल चली गई। उसे बस तक पहुंचाकर सीमा घर आई और घर व्यवस्थित करने लगी। श्वेता के कमरे में पहुंची तो उसके टेबल पर वही मोबाइल पड़ा था उसके नीचे एक कागज रखा था। सीमा ने उठाकर पढा। श्वेता ने लिखा था 'सॉरी मम्मी मुझे माफ कर दो मैं समझ गई हूं कि प्रकृति ने मेरी आयु पढ़ाई के लिए निर्धारित की है। मैं अपना यही कर्तव्य पूरा करूंगी।'
सीमा के चेहरे पर अपार संतोष से भरी एक मुस्कुराहट आ गई। अब कोई संशय बाकी नहीं रहा था और विश्वास की जीत हुई। सीमा और समीर अपनी संतान के मन में यह विश्वास जमाने में सफल हुए थे कि वह अगर कुछ गलत भी करती है तो माता-पिता उसे माफ कर देंगे और उसके लौट आने के रास्ते हमेशा खुले मिलेंगे यही विश्वास श्वेता को अब हमेशा सही राह पर ही ले जाएगा।
डॉ विनीता राहुरीकर