चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 15
Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 15
लगभग दो फंर्लाग चलने के बाद सामने ही हमको बेतवा नदी का पुल दिखाई दिया। लगभग तीन सौ फुट लंबे पुल के नीचे छल छल करती बेतवा नदी भूरे रंग की चट्टानों से खेलती , रूकती,ठोक्कर मारती हुई बह रही थी।
नदी के उस पार पंक्तिबंद्व ढंग से कुलमिलाकर चौदह समाधिंया बनी हुई थी, जिनमे उॅंचे उंचे शिखर दूर से बडे़ अच्छे लग रहे थे। समाधियों को गांव की भाशा छतरी कहा जाता है। छतरियों वाला घाट कंचन घाट के नाम से जाना जाता है। राजा मध्ुकरशाह, इंन्द्रजीत शाह आदि बुदेला वंश के शासक की यादगार में दर्शनीय इमारतों का निर्माण किया गया है। इन समाधियों को देखने पर्यटक आते रहतें हैं। हम लोग देर तक वहीं बैठे रहे फिर उठे तो नदी पार करके इस पार आ पहंुचे।
नदी किनारे की उंची नीची जमीन पर हरी हरी दूब उगाकर मखमली लॉन बनाया गया था। इस आंगन के लान मे बनी है, सन 1995 से बनाई हुई म0प्र0 पर्यटन विकास निगम की होटल- बेतवा कॉटेज । एयर कंडीशण्ड तथा बिना एयरकण्डीशण्ड कॉटेज में एक एक कमरे हैं । कुछ कॉटेज एक पंलग की है और कुछ दो पलंग वाली है। यहॉं भी ठहरने वालों के पूरी सुविधाऐं दी जाती है।
इसी मार्ग पर कुछ आगे जाकर बेतवा रिसोर्ट नामक दुसरे रेस्ट हाउस बने हैं। इन्हे भी पर्यटक विभाग चलाता है । ये मंहगे जरूर है। पर इनमें ठहरने वालों को पूरी सुख सुविधाऐं प्रदान की जाती है। सोरभ बोलो कि चाचा, हम लोग झांसी के लाज मे गलत रूक गये हमकों ओरछा में ही रात रूकना चाहिए था।
रिसोर्ट से लौटते वक्त बस स्टैंड के पास एक चााट वाला ठेेला मिला तो बच्चों की आंखे चमक उठी । मैंने उनकी इच्छा भंाप कर उन्हे चाट खाने की अनुमति दे दी। फिर क्या था, सबके हाथ में दोने आगये थे और तब पानी टिकिया गपागप खाने लगे । टिकियां का पानी बड़ा तीखा और खट्टा था। इसलिए हम सबकों खूब मजा आ रहा था।
अब गाइड के बताये अनुसार हमें हरदौल की समाधि देखना थी, हमारा छोटा सा काफिला पैदल ही वहॉ के लिए निकल पडा । हरदौल की समाधि एक सुनी सी जगह पर थी। वहॉ न शानदार इमारत थी , न ही एसा लगता था कि यहां एक बुदेला राजकुमार की समाधि है। वहां एक चबुतरा और सामान्य सी छत बनी थी। उसके पास मे ही दो और चबुतरे बने थे। इनमे एक मेहतर बाबा का चबूतरा था। और दुसरा हरदौल के स्वामी भक्त कुत्ते की याद में बनायागया है । कहा जाता है कि जहर खाने के बाद जब हरदौल मुर्छित हो गये तो रोज की तरह उनका बचा हु आ खाना लेने महतर बाबा आये और उन्हंे पता लगा कि हरदौल जी ने आज जहर मिला हुआ भेाजन किया है तो हरदौल से अगाध प्यार करने वाले मेहतर बाबा ने वही भेाजन कर लिया और खाते खाते मूछित हो गये तो उनके पाले हुए कुत्ते ने भी वैसा भोजन कर लिया ओर दोनो का देहावसान हो गया। फिर राजा को भय लगा कि प्रजा विद्रोह कर न दे इसलिए रातों रात चूपचाप ही तीनों को एक सूनी सी जगह पर गाड दिया गया। बाद मे हरदौल के सर्मथकों को पता लगा तो उन्हांने तीनो की याद में चबूतरे बना दिये
वहीं हमकों टीकमगढ निवासी एक अध्यापक मिले और उनसे चर्चा हुई तो वे बताने लगे कि सन् 1783 तक ओरछा का सामा्रज्य खूब अच्छा चलता रहा ,बाद में बंुदेला वंश के आपसी विवाद के कारण से ओरछा राज्य की राजधानी टीकमगढ बना दी गई । सन् 1803 तक उधर मुगल साम्राज्य का जहाज डूबा और इधर ओरछा राज्य का भी पतन होने लगा ।
आज ओरछा अपनी सारी संपत्ति, सारी शोभा खो चुका है ,आर एक छोटा सा गांव बनकर समय गुजार रहा है। पर इसका पुराना समय बड़ा समृद्ध था, यह नगरी बडी सुखी थी। और बहुत शक्तिशाली भी थी।
ओरछा की यात्रा पूरी हो चुकी थी। हम लोग लौटने का मन बना रहे थे कि टीकमगढ वाले मास्साब ने मुझसे पुछां कि क्या मैंने बरूआसागर का स्वर्गाश्रम देखा है तो मैंने मना कर दिया वे बोले कि आपके पास जीप तो है ही , चलिए आपको घुमा लाते है ।
बच्चों की सहमति जानकर मैंने भी हामी भर दी और गाइड पण्डित जी के ना ना करते हुए भी मैंने उनहे कुछ दक्षिणा दी तथा कुछ देर बाद हमारी जीप हवां से बात करती दौडती जा रही थी।
ओरछा- लगभग पांच सौ साल पहले मध्य भारत के बुन्देलखण्ड क्षेत्र की राजधानी रहा यह स्थान पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र है। यह दिल्ली-मुम्बई रेल लाइन के जंकशन झांसी से पंद्रह किलोमीटरदूर है।
साधन- झांसी से ओरछा के लिए सबसे सरल साधन बस और टैम्पा हैं। झांसी से ओरछा के लिए ऑटो टूसीटर भी चलते हैंऔर निजी कार टैक्सी भी चलती है। ओरछा नाम का रेल्वे स्टेशन झांसी से मउरानीपुर होते हुए मानिक पुर जाने वाली लाइन पर बस्ती से पंाच किलोमीटर दूर बनाया गया है।
ठहरने के साधन-ओरछा में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग मध्यप्रदेश सरकार के रेस्ट हाउस, मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम की तरफ से संचालित बेतवा कॉटेज की वातानुकलित कॉटेज और होटल शीश महल तथा बहुत सारे थ्री स्टार और सुविधायुक्त निजी होटेल हैं। आजकल तो ओरछा में बहुत से लोग अपने घर में एक कमरा वातानुकूलित बनवा कर सैलानियों को देने लगे हैं जिनमें रहकर विदेशी यात्री भारतीय ग्रामीणों का रहन सहन , खाना पीना, रसोई वगैरह निकट से देखते हैं।