चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर - 16 राज बोहरे द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर - 16

चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 16

Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 16

खजुराहो रोड के ओरछा तिगैला तक आकर हम लोगों को अब बरूआसागर जाने के लिए खजुराहों छतरपुर धुबेला या निवाड़ी की दिशा में मुड़ना पड़ा । यहॉं से 16 किलोमीटर दूर था- बरूआ सागर ।यह गांव झांसी का प्रमुख गांव है। इसमें झांसी का जवाहर नवोदय विद्यालय भी है और कई प्रसिद्व बाग भी यहां है।

शाम हो चली थी। पांच बजे थे। हमारी जीप बरूआसागर गावं को दांयी और छोड़ती हुई निवाडी की तरफ निकल गई लगभग आधा किलोमीटर ही चले थे कि रोड के बायीं ओर एक बोर्ड दिखा जिस पर लिखा था- स्वर्ग आश्रम!

हमारी जीप इसी तरफ मुड़ गई । बडे़ से प्रवेश द्वार में से होकर कुछ दूर चले तो जीप को रोकना पडा क्योंकि उंची नीेचे चट्टानों का सिलसिला शुरू हो गया था।टीकमगड़ वाले मास्साब के इशारे पर हम लोग पैदल ही आगे बढंे तो दूर से ही कुछ मकान दिखने लगे। मास्साब ने बताया कि यहॉं कुछ दूर पर मंदिर बने हुए है और कुछ धर्मशालाऐं भी बन गई है। इसलिए यहॉं हमेशा कोई न कोई आता जाता रहता है।

आगे जाकर देखा कि नदी को रोक कर यहां बांध बनाया गया है। बांध के बडे़ तालाब की दीवार के पास वाली जगह पर यह आश्रम बना है। नदी को रोकने के लिए खूब मोटी दीवार बनाई गई होगी। दीवार में से पानी झर रहा था और उस झरने वाली नाली मे किसी ने गाय की मंुर्ति लगा दी थी तो ऐसा लगता था कि गाय के मॅंुह से पानी निकल रहा है।

छोटे -छोटे मॅुंह की चट्टानों के बीच बन गये थे, जिनमे थेाड़ा थेाड़ा पानी भरा हुआ था। हमने देखा कि पंद्रह सोलह साल के दो तीन लड़के कुंड मे कूद कूद कर नहा रहे थे। कुंड के पास से होते हुए हम तालाब की पार पर चढ गये। सचमुच यह खूब बड़ा तालाब था। बरसात गये अभी एक महीना ही हुआ था इसलिए पानी खूब भरा था। कुछ पानी तो उपर होता हुआ लगातार चट्टान पर गिर रहा था, जिसके कारण झरझर झर की आवाजें खूब तेज स्वरों गूंज रही थी। पानी एक रफ्तार से गिर रहा था जैसे कि वहॉं चमकदार टीन को रख दिया गया हो। नीचे गिरता पानी खूब साफ और चमकदार दिख रहा था।

बच्चों को यहॉ खूब मजा आ रहाथा। वे नीचे उतरे और गौमुख तथा कंुड के पास पानी मे टहलने लगे।

मास्साब मुझे मंदिरों में घुमाने लगेथै। इस बीच छै बज गये थे और अंधेरा होना शुुरू होगया था। मैं चौंका मैंने मास्साब से कहा कि देर हो रही है अब हमको यहॉ से चलना चाहिये। तो वे अनमने होकर वहॉं से चलदिये । मैंने बच्चों को बुलाया और हम लोग जीप की तरफ बढ लिए।

मास्साब को बरूआ सागर के बस स्टेंड पर छोडकर हम लोग झांसी के लिए चले आये।यहॉ से झांसी 24 किलामीटर दूर थी। शाम के साढै़ सात बजे तक हम लोग झांसी पंहंुच गयेथे। दिन के थके मांदे बच्चे लॉज मे पहंुचते ही लेट गये

मैंने कुछ देर आराम किया और पुनः तैयार होकर बाहर निकल आया । मैंने सोचा कि होटल पर जाकर खाना खाने की बजाय यहीं खाना ले आता हूॅं तो सब लेाग बैठकर खाना खांऐगे। इलाईट टाकीज के पास के एक होटल से मैंने खूब सारा खाना बंधवाया और लौटकर आया तो देखा कि बच्चे खूब धमाल कर रहे है। एक दूसरे पर तकिया फेंक फेंक कर मार रहे हैं और खूब शोर गुल मचा रखा है । मुझे देखकर बच्चेशांत हो गये और हमने मिलकर खाना खाया ।

ओरछा- लगभग पांच सौ साल पहले मध्य भारत के बुन्देलखण्ड क्षेत्र की राजधानी रहा यह स्थान पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र है। यह दिल्ली-मुम्बई रेल लाइन के जंकशन झांसी से पंद्रह किलोमीटरदूर है।

साधन- झांसी से ओरछा के लिए सबसे सरल साधन बस और टैम्पा हैं। झांसी से ओरछा के लिए ऑटो टूसीटर भी चलते हैंऔर निजी कार टैक्सी भी चलती है। ओरछा नाम का रेल्वे स्टेशन झांसी से मउरानीपुर होते हुए मानिक पुर जाने वाली लाइन पर बस्ती से पंाच किलोमीटर दूर बनाया गया है।

ठहरने के साधन-ओरछा में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग मध्यप्रदेश सरकार के रेस्ट हाउस, मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम की तरफ से संचालित बेतवा कॉटेज की वातानुकलित कॉटेज और होटल शीश महल तथा बहुत सारे थ्री स्टार और सुविधायुक्त निजी होटेल हैं। आजकल तो ओरछा में बहुत से लोग अपने घर में एक कमरा वातानुकूलित बनवा कर सैलानियों को देने लगे हैं जिनमें रहकर विदेशी यात्री भारतीय ग्रामीणों का रहन सहन , खाना पीना, रसोई वगैरह निकट से देखते हैं।