अपने-अपने कारागृह - 12 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपने-अपने कारागृह - 12

अपने-अपने कारागृह-11

हम सामान लेकर अभी बाहर निकले ही थे कि शैलेश और नंदिता 'वेलकम दीदी एवं जीजा जी 'का फ्लैग लेकर खड़े नजर आए । उन्हें देखते ही शैलेश और नंदिता ने एक साथ कहा, ' वेलकम दीदी एवं जीजा जी ।'

इसके साथ ही उन्होंने उनके हाथ से सामान वाली ट्रॉली ले ली तथा गाड़ी की तरफ बढ़ने लगे । घर पर मम्मा डैडी उनका इंतजार कर रहे थे । गाड़ी की आवाज सुनते ही मम्मा गेट पर आ गईं । वह बहुत दुबली लग रही थीं । उषा अंदर प्रवेश करने जा ही रही थी कि मम्मी ने उसे रोकते हुए कहा, ' रुक बेटा, नंदिता तुम दोनों का स्वागत करना चाहती है ।'

' 2 मिनट रुको दीदी, मैं अभी आई । जीवन दीदी जीजा जी का सम्मान उनके कमरे में रख दो ।' जीवन को निर्देश देते हुए नंदिता अंदर चली गई ।

' यह जीवन...।'

' रामदीन बहुत बूढा हो गया है । अब वह सिर्फ किचन संभालता है । अन्य कामों के लिए जीवन को रख लिया है ।' मम्मा ने उसकी आँखों में प्रश्न देखकर उसका समाधान किया था ।

' बेबी आप कैसे हो ?' कहते हुए रामदीन ने अपने हाथ में लिया आरती का थाल ममा को पकड़ाते हुए उसके पैर छुए ।

' मैं ठीक हूँ । रामदीन तुम कैसे हो ?'

' जब तक साहब मेम साहब का हाथ म्हारे सिर पर है तब तक हमें कुछ नहीं हो सकता ।'

रामदीन उनका पुराना नौकर है । वस्तुतः उसने जब से होश संभाला तबसे सदा रामदीन को सबकी सेवा में संलग्न पाया है । रामदीन उनके लिए नौकर नहीं , उनके घर का सदस्य जैसा ही है । उसे याद आया जब वह बी.एस.सी. कर रही थी, एक दिन उसके कॉलेज में हड़ताल हो गई । उसकी मां को अपनी किसी मित्र से पता चला कि कॉलेज में हड़ताल हो गई है, वह परेशान हो उठीं । एकाएक उन्हें कुछ नहीं सूझा । उन्होंने रामदीन को कॉलेज भेज दिया । रामदीन कॉलेज जाकर प्रत्येक से पूछने लगा आपने हमारी बेबी दीदी को देखा …

' अरे भाई कौन बेबी दीदी ...नाम तो बताओ ।' उसका प्रश्न सुनकर कई लोगों ने पूछा ।

' अरे भैया बेबी ही तो नाम है उनका । घर में सब उन्हें बेबी कहकर ही बुलावत रहे हैं । इसी बीच उसका एक मित्र जो उसके घर आ चुका था रामदीन को पहचान कर उसे कॉमन रूम में लेकर गया । उसे देख कर वह खुशी के कारण कह उठा ,' बेबी दीदी, आप यहां हो , हम आपको कहां-कहां नहीं ढूंढे, भला हो इन बाबू जी का जो यह हमें आपके पास ले आए वरना हम मेम साहब को क्या मुँह दिखाते । अब आप घर चलिए । मेम साहब ने आपको घर लेकर आने के लिए हमें भेजा है ।'

रामदीन की बात सुनकर उषा की सहेलियां हँस पड़ी थीं तथा वह खिसिया गई थी । उसने चिढ़कर कहा था, ' तुम जाओ मैं आ जाऊंगी ।'

' हम आपको लिए बिना जायेंगे तो मेम साहब हमको बहुत डाँटेंगी ।'

अंततः उषा को उसके साथ जाना पड़ा था । घर आकर वह ममा पर बहुत बिगड़ी थी । उसे लगता था कि उसकी स्वतंत्रता का हनन हुआ है । बार-बार लड़कियों का हंसना उसे शर्मिंदा कर रहा था । मम्मा उसकी बातें शांति से सुनती रहीं पर जब उसका क्रोध शांत हुआ तब उन्होंने कहा, ' माना मैं आज तेरी नजरों में दोषी हूँ पर कोई दंगा फसाद हो जाता और तू उस में फंस जाती तब …!! बेटा आज हम भले ही लड़कियों की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं पर यह भी सच है कि थोड़ी सी ऊंच-नीच लड़कियों का पूरा जीवन नष्ट करने की क्षमता रखती है । हमारा समाज लड़कों की अनेकों गलतियों को क्षमा कर सकता है पर लड़की की एक छोटी सी भूल भी वह माफ नहीं कर पाता । तुम्हारा सह शिक्षा महाविद्यालय है इसलिए मन अधिक ही घबराता है ।'

' मम्मा जब तक हम स्त्रियों में आत्मविश्वास नहीं होगा तब तक हमें डराने वाले डराएंगे ही, आप भी तो समाज सेवा के द्वारा हर स्त्री में विश्वास रूपी चेतना जगाने का प्रयास कर रही हैं ।'

' तू ठीक कह रही है बेटी पर जगह -जगह घूमने के पश्चात मेरा विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि स्त्री कहीं भी सुरक्षित नहीं है यहां तक कि अपने घर में भी... इसलिए हर स्त्री को अपने आँख और कान सदा खुले रखने चाहिए । हर खतरे को भांपने की शक्ति विकसित करनी चाहिए तभी पग- पग पर बिछे कांटों से बचा जा सकता है ।'

आज उषा को महसूस हो रहा था कि मम्मा की यह बात 40 वर्ष पश्चात भी शत प्रतिशत सही है शायद पहले से भी अधिक ...स्त्रियों का शोषण ,बलात्कार के मामले आज घटे नहीं वरन बढ़े ही हैं । आज भी समाज में दोगले चरित्र के लोग मौजूद है जिन्हें पहचाना आज भी सहज नहीं है । ऐसे लोग कब किसे अपने जाल में फसाकर धोखा दे दें पता ही नहीं चल पाता है और बेचारी लड़कियां समाज के लिए अस्पृश्य हो जाती हैं जबकि आरोपी पुनः अपराध करने के लिए स्वतंत्र घूमते रहते हैं । समाज का यह दोगलापन उसकी समझ से बाहर था । लड़की के साथ ऐसा व्यवहार क्यों ? आखिर उसकी गलती क्या है ? क्या केवल इसलिए कि वह शारीरिक रूप से कमजोर है या इसलिए कि वह शीघ्र ही किसी पर विश्वास कर लेती है ? क्या किसी पर विश्वास करना गलत है ? अगर कोई किसी के विश्वास भंग कर दे तो ...सजा सिर्फ वही क्यों भुगते ?

यद्यपि अजय जहाँ रहे थे , उनके कड़े अनुशासन के कारण जिले की कानून व्यवस्था में सुधार हुआ था पर अपनी इसी सोच के तहत उसने अजय से कहकर हर जिले में 'वूमेन हेल्पलाइन' भी प्रारंभ करवाई थी । चाहे दहेज के द्वारा उत्पीड़न हो या सामाजिक शोषण, अगर कोई महिला शिकायत दर्ज करवाती तो तुरंत ही उसकी शिकायत पर कार्यवाही होती थी तथा उसे उचित न्याय दिलवाने का प्रयास होता । खुशी तो इस बात की थी कि उसके इस प्रयास को अच्छा रिस्पांस भी मिला था।

मम्मा ने उन दोनों को टीका लगाकर आरती उतारकर मुंह मीठा करवाने के लिए अपना हाथ उसके मुँह की ओर बढ़ाया । उसकी प्रतिक्रिया ना पाकर मम्मा ने कहा , ' कहाँ खो गई बेटा, मुँह मीठा कर...।'

उनकी आवाज सुनकर वह विचारों के भंवर से बाहर निकली । माँ के हाथ से मिठाई खाई, उसके पश्चात उन्हें घर में प्रवेश की अनुमति मिली ।

'दीदी जीजा जी आप दोनों फ्रेश हो लें तब तक मैं खाना लगवाती हूँ ।' कहकर नंदिता किचन में चली गई ।

अजय और उषा जब अपने कमरे में पहुँचे, कमरे की व्यवस्था देखकर उसने मन ही मन नंदिता की तारीफ की । बाथरूम में भी टॉवल सोप, सब यथा स्थान रखे हुए थे । अजय फ्रेश होने चले गए तथा उषा के मन में फिर द्वंद चलने लगा... आज उसे लग रहा था कि भले ही अजय के पद की वजह से उसे सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती रही हो पर आज उसके पास क्या है ? जैसे उसने आज से 35 वर्ष पूर्व जिंदगी की शुरुआत की थी ठीक वैसे ही स्थिति क्या उसके लिए आज नहीं है !! मम्मा सच कहती थीं कि नौकरी पेशा इंसान चाहे कितना भी उच्च पदस्थ क्यों न हो उसकी प्रतिष्ठा क्षणिक होती है जबकि बिजनेसमैन की स्थाई । पापा और शैलेश के पास सारी जिंदगी वही सुविधाएं रहेंगी जो उन्होंने अपने कर्म से अर्जित की हैं जबकि अजय अपने कर्म से अर्जित अपनी प्रतिष्ठा मान सम्मान सब पीछे छोड़ आए हैं । अब उन्हें एक नए सिरे से जीवन प्रारंभ करना होगा । नई जान पहचान बनानी होगी ,नए रिश्ते कायम करने होंगे । क्या अब इस उम्र में यह सब संभव हो पाएगा ? माना पैसा है पेंशन है जिससे उन्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा पर वह मान सम्मान तो नहीं है ।

' जल्दी से फ्रेश हो लो । सब खाने पर हमारा इंतजार कर रहे होंगे ।' उषा के मन के अंतर्द्वंद से अनभिज्ञ अजय ने कहा ।

अजय की आवाज सुनकर एक बार उषा ने मन के द्वंद से मुक्ति पाते हुए कहा, ' आप चलिए मैं आती हूँ ।'

' तुम भी फ्रेश हो लो ,साथ साथ ही चलेंगे ।'

फ्रेश होकर जब वे बाहर आए तब सब उनका इंतजार कर ही रहे थे । अजय की मनपसंद पनीर बटर मसाला ,भरवा भिंडी के साथ बूंदी रायता और पुलाव था ।

' भाभी आपको मेरी और अजय की पसंद आज भी याद है ।'

' आप भी कैसी बात कर रही हैं दीदी , आप हमारी अपनी हैं कोई गैर नहीं । बहुत दिनों पश्चात मिल रहे हैं तो क्या हुआ पसंद ना पसंद तो याद रहेगी ही आखिर जीवन के सुनहरे पल कोई भूल पाता है !! दरअसल अतीत के खूबसूरत पल ही तो जीवन में अनचाहे ही पदार्पण करती विषम परिस्थितियों में जीने की संजीवनी देते हुए जीवन को खूबसूरत बनाते हैं ।' नंदिता ने कहा था ।

उषा देर रात तक मम्मा डैडी से बात करती रही । डैडी ने बिजनेस से रिटायरमेंट ले लिया था तथा मम्मा अपने घुटने के दर्द की वजह से अब लंगड़ा कर चलने लगी थीं । नंदिता को मम्मा डैडी के खाने पीने तथा दवा का ध्यान रखते देख कर उषा सोच रही थी , काश ! उसकी सास को भी उसके साथ बिताने के लिए कुछ पल और मिल जाते ।

सुधा आदेश

क्रमशः