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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 13

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 13

लेखक - आशीष कुमार त्रिवेदी

रुद्रांश ‌के सामने अब दो लाशें थीं। एक बहादुर की लाश और दूसरी उसके पिता सुजान सिंह की सड़ी हुई लाश।‌ दोनों ने ही उसके जीवन की खुशियों पर ग्रहण लगाया था। उन दोनों लाशों को देखकर रुद्रांश के मन में आ रहा था कि यह दुनिया भले लोगों के लिए नहीं है। यदि यहां खुश रहना है तो बुरा बनना पड़ेगा।

उसके सामने जिन दो लोगों की लाशें पड़ी थीं वह लालच और हवस के पुजारी थे। दोनों ने मिलकर उसे उसकी मोहनी से ‌अलग कर दिया था। वह भी अब उन दोनों के जैसा क्रूर बनना चाहता था।

उसकी आत्मा को मिली शैतानी शक्तियां उसके अंदर की अच्छाई को धीरे धीरे समाप्त कर रही थीं। वह बुराई की तरफ बढ़ रहा था। इस दुनिया पर काबिज़ हो जाने की अजीब सी ख्वाहिश उसके मन में बढ़ती जा रही थी। उसने सोचा कि उसकी ख्वाहिश केवल वह तांत्रिक ही पूरी कर सकता है और इसीलिये रुद्रांश फिर तांत्रिक से मिलने के लिए चल दिया।

रास्ते में वह सोचता हुआ जा रहा था कि जिस दुनिया ने उसकी अच्छाई की कद्र नहीं की अब वह अपनी शैतानी शक्तियों से उस दुनिया को अपने आधीन कर लेगा। अब यहां जो भी होगा वह उसकी मर्ज़ी से होगा। उसके लिए उसे तांत्रिक की सहायता से शैतानों के देवता को प्रसन्न कर उससे शैतानी शक्तियों का वरदान हासिल करना होगा। एक बार उसे वो सारी शक्तियां हासिल हो जाएं तो वह इस दुनिया से अच्छाई और भलाई का नामोनिशान मिटा देगा और हर तरफ सिर्फ शैतानों का राज कायम करेगा।

जब रुद्रांश तांत्रिक के पास पहुँचा तो वह अपनी तंत्र पूजा कर रहा था। उसने अपनी लाल भयानक आंखों से रुद्रांश की तरफ देखा। उसकी आंखों में वहशीपन था।

उसने रुद्रांश से कहा, "कहा था ना कि तुम्हें लौट कर मेरे पास ही आना होगा, आखिर तुम आ गए ना हा..हा..हा..हा।"

रुद्रांश ने कहा, "हां मुझे शैतानी शक्तियों को अपने अधीन करना है। मैं इस दुनिया पर राज करना चाहता हूं। इस दुनिया से अच्छाई को हटा कर बुराई का परचम लहराना चाहता हूं और ये करने के लिये मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।"

तांत्रिक के वीभत्स चेहरे एक कुटिल मुस्कान खेलने लगी। वह मन ही मन खुश हो रहा था। उसने जो चाहा था वही हो रहा था। उसकी शैतानी शक्तियों ने रुद्रांश की आत्मा को पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया था। अब वह उससे अपना मनचाहा काम करवा सकता था।

उसने कहा, "शैतानी शक्तियों को अपने आधीन करने के लिए तुम्हें शैतानों के देवता को प्रसन्न करना होगा। कर सकोगे ?"

रुद्रांश की आंखों में एक संकल्प था।

उसने कहा, "शैतानी ताकतों को पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं। बताओ मुझे क्या करना होगा ?"

तांत्रिक ने रुद्रांश को ऊपर से नीचे तक देखा। वह समझ गया था कि अब उसका मोहरा पूरी तरह तैयार है। वह जो भी कहेगा, करेगा। तांत्रिक ने कहा, "तुम्हें शैतानी किताब लिखनी होगी।"

रुद्रांश ने कहा, "मैं लिखूंगा। किताब कैसे लिखनी है ? कब शुरू करनी है ? मुझे सब बताओ।"

तांत्रिक ने अपने सामने स्थापित शैतान की प्रतिमा को प्रणाम किया और ज़ोर से कहा, "जय शैतान की...… ।"

उसके बाद वो रुद्रांश से बोला, "इस किताब में शैतानी शक्तियों के देवता की आराधना करने की विधि व मंत्र होंगे। इन मंत्रों की शक्ति से तुम भूत, वर्तमान और भविष्य को अपने हिसाब से जी सकोगे । उन्हें अपने अनुसार चला सकोगे।"

तांत्रिक की बात सुनकर रुद्रांश खुश होकर बोला, "इसका अर्थ यह हुआ कि मैं इस दुनिया ही नहीं बल्कि सारी कायनात का राजा बन सकूंगा। लेकिन जो मंत्र लिखने हैं उनके बारे में मुझे कैसे पता चलेगा ?"

तांत्रिक ने एक बार फिर जय शैतान का घोष किया। उसके बाद बोला,

"इसके लिए तुम्हें शैतानों के देवता को प्रसन्न करना होगा।"

रुद्रांश के दिल में अब पूरी कायनात पर राज करने का सपना जवान हो उठा था। उसने कहा, "शैतानों के देवता को प्रसन्न करने के लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा करूंगा। तुम मुझे देवता को प्रसन्न करने की तरकीब बताओ।"

तांत्रिक ने कहा, "उसके लिए तुम्हें पूर्णमासी के दिन तीन गर्भवती स्त्रियों की बलि, शैतान को चढ़ा कर उन्हें प्रसन्न करना होगा। शैतान देवता यदि प्रसन्न हो गए तो तुम्हें स्वयं उन मंत्रों के बारे में बताएंगे जो तुम्हें किताब में लिखने हैं।"

रुद्रांश ने पूछा, "किताब कब और कैसे लिखनी शुरू करनी है ?"

तांत्रिक ने जमीन पर बने हुए एक षटकोण को दिखाते हुए कहा, "हर रोज़ अर्धरात्रि से भोर होने तक तुम्हें इस षटकोण के बीच बैठकर किताब लिखनी होगी। यह किताब तुम्हें ताज़ा मुर्दा शरीर से निकाली गई खाल पर उसी इंसान के खून से लिखना होगा। कलम के लिए तुम्हें भेड़िए के नाखून का इस्तेमाल करना होगा और हां इसकी शुरुआत तुम्हारे खून और खाल से होगी।"

रुद्रांश ने ध्यान से तांत्रिक की सारी बातें सुनीं।‌

तांत्रिक ने फिर कहा, "पांच दिनों के बाद ही पूर्णिमा की रात है। उससे पहले ही तुम्हे तीन गर्भवती महिलाओं को खोज कर बली के लिए लाना होगा। ऐसी तीन औरतों की खोज मुश्किल नहीं होनी चाहिए और याद रखो कि वह तीनों औरतें पूर्णिमा की अर्धरात्रि तक शैतान के समक्ष होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हमको पूरे एक माह का इंतजार करना होगा। जितनी देर होगी देवता को प्रसन्न करना कठिन होता जाएगा।"

इस पर रुद्रांश ने मुस्कुराते हुये कहा, "मैं पूर्णिमा से पहले ही तीन गर्भवती औरतों की खोज कर लूंगा। अब मैं और अधिक प्रतीक्षा नहीं करना चाहता हूं।"

रुद्रांश तांत्रिक के पास से चला आया। वह अपनी जमींदारी में ऐसी स्त्रियों की खोज करने लगा जो गर्भवती हों। वह अशरीरी आत्मा था। जब तक वह ना चाहे कोई उसे देख नहीं सकता था। वह अपनी जनता के घरों में ढूंढ़ने लगा कि किसी के घर में कोई गर्भवती स्त्री तो नहीं है।

चार दिन हो गए उसे दो गर्भवती स्त्रियां मिलीं। अपने शैतानी शक्ति का इस्तेमाल कर वह उन्हें अपने पिता की बैठक हवेली के तहखाने में ले गया। वहां उन्हें कैद कर दिया।

अब उसे तीसरी गर्भवती स्त्री की तलाश थी। पांचवां पूरा दिन तलाश करने के बाद भी उसे तीसरी गर्भवती स्त्री नहीं मिली। अर्धरात्रि में अब कुछ ही घंटे शेष थे। परंतु उसे कोई गर्भवती स्त्री दिखाई नहीं पड़ रही थी। जैसे जैसे समय बीत रहा था उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वह अधीर हो रहा था। उसे इस बात का डर था कि यदि अर्धरात्रि से पहले उसे तीसरी गर्भवती स्त्री नहीं मिली तो फिर उसे एक माह का इंतजार करना पड़ेगा।

शैतानी शक्तियों ने उसकी आत्मा को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया था। अब उसका हर क्षण यही सोचने में बीतता था कि कब वह समस्त शैतानी शक्तियों को प्राप्त कर पूरे ब्रम्हांड का राजा बनेगा। वह किसी भी तरह अर्धरात्रि से पहले तीसरी गर्भवती स्त्री को खोज लेना चाहता था।

रुद्रांश तीसरी गर्भवती स्त्री की तलाश में अपनी जमींदारी की सीमा से आगे जाता है। जैसे ही वह गांव की सीमा से बाहर निकलता है उसे गांव के कच्चे रास्ते पर एक बैलगाड़ी दिखाई पड़ती है। एक बूढ़ा आदमी उस बैलगाड़ी को चला रहा था। बैलगाड़ी में पीछे बाइस तेइस वर्ष की एक गर्भवती स्त्री बैठी थी।

पीछे बैठी स्त्री कहती है, "बाबा जरा गाड़ी रोककर मुझे पानी पिला दो। प्यास से गला सूखा जा रहा है।"

बैलगाड़ी हांकने वाले बूढ़े ने गाड़ी रोक दी। पास लटकी पानी की छागल उठाई। पर उसमें पानी नहीं था।

उसने कहा, "बिटिया छागल में तो पानी बचा नहीं है।"

गर्भवती स्त्री ने कहा, "बाबा कुछ भी करो। कहीं से पानी लेकर आओ। मेरे गले में कांटे से चुभ रहे हैं।"

बूढ़े ने मजबूरी दिखाते हुए कहा, "बिटिया यहां पानी कहां मिलेगा ? फिर बहुत रात हो गई है। थोड़ा धीरज रखो। कुछ देर में हम लोग घर पहुंच जाएंगे। फिर जी भर कर पानी पी लेना।"

रुद्रांश ने अपनी शैतानी शक्ति का प्रयोग कर एक वृद्धा का रूप धारण किया। वह बैलगाड़ी के पास आकर बोला, "क्या बात है भैया ? बीच रास्ते में बैलगाड़ी काहे रोक दी ?"

एक वृद्ध महिला को देखकर बूढ़े को तसल्ली हुई। उसने कहा,

"बहन पीछे गाड़ी में मेरी बिटिया बैठी है। उसको पहला बच्चा होने वाला है। प्यासी है। पर हमारे पास पानी खत्म हो गया है।"

वृद्ध महिला बने रुद्रांश ने कहा,

"इतनी रात गए लड़की को लेकर रास्ते पर हो। बात क्या है ?"

बूढ़े ने अपनी कहानी बताते हुए कहा, "क्या बताएं बहन इसका घरवाला हमसे दहेज को लेकर नाराज़ है। कोई बेटा है नहीं। दामाद लड़की को घर छोड़ने आने को तैयार नहीं था। पहला बच्चा तो मायके में ही होता है। इसलिए हम चले गए थे अपनी बच्ची को लेने। वहां से चलने में थोड़ी देर हो गई।"

रुद्रांश मन ही मन खुश हो रहा था। उसने कहा, "मेरा घर यहीं पास में है। जंगल के रास्ते से चलोगे तो जल्दी मिल जाएगा। मेरी मानो तो आज रात वहीं ठहर जाना। भोर होते ही निकल जाना।"

बूढ़े ने विचार किया। उसका शरीर गाड़ी हांकते हुए थक गया था। रात का समय था। साथ में गर्भवती बेटी थी। उसे उस औरत की बात सही लगी। रुद्रांश ने उसे रास्ता बताना शुरू किया। बूढ़ा उसी रास्ते पर गाड़ी बढ़ाता जा रहा था। कुछ देर बाद वह लोग उस जगह पहुंच गए जहां रुद्रांश की बैठक हवेली थी। हवेली देखकर बूढ़े ने कहा, "यह तो किसी जमीदार की हवेली मालूम होती है।"

रुद्रांश ने कहा, "हमारे मालिक की है। वह लोग तो दूसरी हवेली में रहते हैं। इसकी जिम्मेदारी मुझ बढ़िया पर छोड़ रखी है। तुम चिंता मत करो। अपनी बेटी को लेकर भीतर आओ।"

उनके भीतर आते ही रुद्रांश ने उस बूढ़े को तहखाने में बंद कर दिया। उसके पास अब बली चढ़ाने के लिए तीन गर्भवती स्त्रियां थीं। बूढ़े का प्रयोग वह अपनी किताब लिखने के लिए करना चाहता था।

तीनों गर्भवती स्त्रियों को अपनी शक्ति के वशीभूत कर वह उन्हें तांत्रिक के पास ले गया। आसमान में पूर्णिमा का चांद चमक रहा था। धीरे धीरे अर्धरात्रि का समय निकट आ रहा था। जैसे ही अर्धरात्रि हुई तांत्रिक ने विधी शुरू कर दी। रुद्रांश षटकोण के बीच में बैठा था। तांत्रिक उसके बाईं तरफ बैठा था। रुद्रांश के सामने एक कुंड था। उस कुंड में आग जल रही थी। दूर से भेड़ियों के चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं।

तांत्रिक ने अजीब सी भाषा में कुछ मंत्र पढ़ने आरंभ किए। कुछ देर तक मंत्र पढ़ने के बाद उसने रुद्रांश से कहा, "अब अपने पास पड़े गंडासे से इन गर्भवती स्त्रियों में से एक की गर्दन काट कर उसका लहू अपने पास रखे कटोरे में भर लो।"

रुद्रांश उठकर उस बूढ़े की गर्भवती लड़की के पास गया। उसने गंडासे की एक ही वार से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। एक वीभत्स चीख के साथ रक्त की धार निकल पड़ी। रुद्रांश ने उसके रक्त को हाथ में पकड़े अपने कटोरे में भर लिया। तांत्रिक ने कहा कि अब वह कटोरे में भरे खून से शैतान देवता को स्नान कराए।

रुद्रांश ने वैसा ही किया। पहले स्नान के बाद अचानक भेड़ियों की आवाज तेज हो गई। उसके बाद तांत्रिक ने बाकी बची दोनों स्त्रियों के साथ भी वही करने को कहा। उनके रक्त से शैतान के देवता को स्नान कराया गया।

तीनों स्त्रियों के खून से स्नान हो जाने के बाद भेड़ियों की आवाज अपने चरम पर पहुंच चुकी थी। तांत्रिक के मंत्र भी और जोर-जोर से पढ़े जाने लगे थे।

शैतान के देवता की मूर्ति से एक अजीब सी ध्वनि निकलने लगी।

तांत्रिक ने कहा, "शैतानों के देवता को खुश करने की कोशिश सफल हो गई है। हमारी तीनों बलियों को शैतान ने स्वीकार कर लिया है। अब तुम शैतानी किताब लिखने का आरंभ कर सकते हो क्युं कि अब तुम्हारे अन्दर भी शैतान जन्म ले चुका है।"

रुद्रांश ने कहा, "मैंने इनमें से एक के बूढ़े पिता को बैठक वाली हवेली में कैद कर लिया है। अब उसकी खाल और खून से किताब लिखनी शुरू कर सकते हैं।"

रुद्रांश की बात सुनकर तांत्रिक हंसा। उसे तांत्रिक का इस तरह हंसना ना तो अच्छा लगा और ना ही उसकी वजह समझ आई। उसने कहा,

"इस तरह हंसने का क्या कारण है ?"

तांत्रिक ने कहा "किताब लिखने के लिए एक आदमी के रक्त और खाल से काम नहीं चलेगा। इस पूजा के बाद तुम्हें और शक्तियां मिलेगी। तुम्हें उनका इस्तेमाल कर अपने गांव के सभी स्त्री पुरुष बूढ़े और बच्चों को मारना होगा। हमें मुर्दा शरीर की वही खाल इस्तेमाल करनी है जो अर्धरात्रि से भोर होने तक के बीच मुर्दे से खंरोच कर निकाली जा सके। भोर होने के बाद यदि शरीर पर कोई खाल बची भी तो उसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसलिए तुम्हें बड़ी संख्या में लोगों की ज़रूरत होगी लेकिन किताब की शुरुआत और अंत तुम्हे अपने शरीर की खाल और खून से ही करनी है जिसे मैने अपनी शैतानी शक्तियों द्वारा सुरक्षित रख रखा है।"

रुद्रांश को अब और शक्तियां मिल गई थीं। जिनका प्रयोग कर वह गांव वालों पर अत्याचार करने लगा। अपनी शक्ति से वो उन्हें बंदी बनाकर बैठक हवेली के तहखाने में रखता था। हर रोज उनमें से तीन लोगों को लेकर तांत्रिक के पास जाता था।

षटकोण के बीच में बैठकर वह पहले शैतानों के देवता की आराधना करता था। उसके बाद एक की बलि देकर उसके खून से देवता को स्नान कराता था। दूसरे व्यक्ति के खून को कटोरे में भरकर लकड़ी के बने चम्मच से थोड़ा-थोड़ा खून आग में डालकर शैतान का आवाहन करता था। जैसे ही कटोरे का सारा खून समाप्त हो जाता था शैतान की मूर्ति से एक अजीब सा स्वर निकलता था। इसका अर्थ होता था कि अब देवता उसे किताब लिखने में सहायता करने के लिए तैयार हैं।

अंत में रुद्रांश तीसरे व्यक्ति की बलि देकर उसका सारा खून एक बड़े से कटोरे में भर लेता था। तांत्रिक तीनों मुर्दा शरीरों से खाल उतार कर उसे देता जाता था। शैतान की मूर्ति से आने वाली ध्वनि को समझ कर रुद्रांश भेड़िए के नाखून को खून के कटोरे में डुबोकर उसे खाल पर लिखता जाता था।

इस तरह कई महीने बीत गए। गांव में लोग परेशान थे कि आखिर हो क्या रहा था। क्यों अचानक गांव के लोग गायब हो रहे थे। धीरे-धीरे गांव में लोगों की संख्या कम हो रही थी। कुछ लोगों ने गांव छोड़कर जाने का प्रयास किया। लेकिन रुद्रांश ने अपनी शक्ति से गांव के चारों तरफ एक अदृश्य सी दीवार बना दी थी। उसके पार कोई भी नहीं जा पाता था। गांव वाले डरे हुए थे। गांव में दिन पर दिन लोग रहस्यमई तरीके से गायब हो रहे थे। यदि वह गांव छोड़कर जाना भी चाहते तो जा नहीं सकते थे।

शैतानी किताब लिखते लिखते एक वर्ष का समय बीत गया। एक दिन रुद्रांश से तांत्रिक ने कहा,

“ अब तुम्हे जो अध्याय लिखना है वह बहुत महत्वपूर्ण है। इसके आधार पर ही अब अंतिम अध्याय लिखना है। उसके लिए कल विशेष पूजा करनी होगी। उसके लिए तीन औरतों की आवश्यकता है। ऐसी स्त्रियां जो नन्हें बच्चों की मां हों। मैंने ऐसी तीन स्त्रियों की व्यवस्था कर ली है। कल अंतिम अध्याय लिखते ही तुम शैतानी शक्तियों के मालिक हो जाओगे हा...हा...हा...हा...।"

यह बात सुनकर रुद्रांश खुश हो गया। अभी तक उसे लगता था कि शक्तियां होते हुए भी वह तांत्रिक के आधीन है। वह सोच रहा था कि जब किताब का अंतिम अध्याय लिखने के बाद उसे सारी शक्तियां मिल जाएंगी तब वह तांत्रिक की आधीनता से मुक्त हो जाएगा।

रूद्रांश बेसब्री से अगले दिन अर्धरात्रि के होने की राह देखने लगा।

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