बात बस इतनी सी थी - 36 - अंतिम भाग Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बात बस इतनी सी थी - 36 - अंतिम भाग

बात बस इतनी सी थी

36.

मंजरी के जाते ही मधुर मुझसे बोला -

"चंदन डियर ! आज की तेरी रात बदरंग हो चुकी है ! लेकिन इसके लिए तू मुझे गाली मत देना ! मैं पहले ही सॉरी बोल देता हूँ !"

"क्या पागलों जैसी बातें करता है ?"

"तुझे मेरी बातें पागलों जैसी क्यों लग रही है ?"

"पहली बात तो यह है कि तुझे सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैंने उसके साथ रात नहीं, केवल अपना दिन रंगीन बनाने की सोची थी । और अब दिन गुजर चुका है !"

"दूसरी बात ?" मधुर ने पूछा ।

दूसरी बात यह, कि अब वह मेरी वाइफ थोड़े ही न है कि उसके नाराज होकर चले जाने से मेरी गृहस्थी बिगड़ जाएगी !"

"मैं पक्का कह रहा हूँ ! तू चाहे तो मुझसे स्टांप पेपर पर लिखवा ले, मंजरी अभी कुछ देर में तुझे फोन करके फटकारेगी जरूर ! या फिर वह तुझसे इसके लिए स्पेशल तौर पर भी मिल सकती है और तेरी इस गुस्ताखी के लिए तुझे खूब खरी-खोटी सुनाएगी, जो तूने उसको अकेले छोड़कर आज की है !"

"ऐसा कुछ नहीं होगा !" मैंने बात को टालने की कोशिश करते हुए मधुर से कहा ।

"अरे यार, मैं बरसों तक उसके साथ रहा हूँ ! मैं उसकी रग-रग से वाकिफ हूँ !"

"चलो, अब तुम पिक्चर बनवाओ ! जब, जो होगा, देखा जाएगा !"

मेरे आग्रह पर मधुर फिर एक नई पोजीशन लेकर बैठ गया और लिंथोई हम दोनों का चित्र बनाने लगी । मधुर के साथ चित्र बनवाने के लिए बैठा हुआ भी मैं यही सोच रहा था कि मंजरी को मेरे साथ देखकर मधुर को कैसा लगा होगा ? तब उसको कितना कष्ट हुआ होगा, जब आज मंजरी ने मधुर को पहचानने से भी इंकार कर दिया था ।

मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि भले ही मंजरी जैसे मेरी एक्स वाइफ थी, वैसे ही मधुर की एक्स गर्लफ्रेंड भी थी । फिर भी, अगर मेरी जगह मंजरी के साथ मधुर हुआ होता, तो उन दोनों को एक साथ देखकर मुझे बहुत कष्ट होता । लेकिन मधुर को तो जैसे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ा था ।

शायद इसका कारण ही यह रहा हो कि मेरे अब तक के जीवन में आने वाली एकमात्र पहली और आखरी लड़की मंजरी ही थी, जबकि मधुर के जीवन में हमेशा कोई न कोई नई लड़की आती जाती रहती थी । मंजरी भी उन्हीं लड़कियों में से एक थी । यह बात अलग थी कि मंजूरी के लिए मधुर के दिल में आज भी कोई एक जगह बाकी थी । लेकिन मंजरी उसके इस दावे पर भरोसा करे, यह जरूरी नहीं था ।

मुझे विचारों में तल्लीन देखकर लिंथोई को चित्र बनाने और उस चित्र में सामान्य प्रसन्नता के भाव दर्शाने वाली रेखाएँ खींचने में कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए उसने मुझसे कहा -

"चंदन ! प्लीज़ अपना अच्छा-सा फोटो बनवाने के लिए कुछ पलों तक मुस्कुराते रहो !"

मुझे अपने चेहरे पर बनावटी भाव दिखाना नहीं आता है, यह बात मधुर अच्छी तरह जानता था । इसलिए उसने मेरा मूड ठीक करने के लिए एक दमदार-सा जोक सुनाया । उसका जोक सुनकर हम तीनों ठहाका मारकर हँस पड़े और लिंथोई ने एक बार फिर चित्र बनाना शुरू कर दिया ।

दूसरा चित्र बनने के बाद मधुर ने वेटर को तीन कॉफी लाने का ऑर्डर दे दिया । कुछ मिनट बाद कॉफी आ गयी । हम तीनों काफी देर तक कॉफी सिप करते-करते आपस में बातें करते रहे, जिनमें से ज्यादातर बातें मणिपुर की संस्कृति के बारे में लिंथोई बता रही थी और हम दोनों उसकी हर बात को बड़ी रुचि से सुन रहे थे ।

बातें करते-करते ग्यारह बज चुके थे और मुझे अब नींद आने लगी थी । मैंने जम्हाई लेते हुए मधुर से चलने की इजाजत माँगी, तो उसने मुझसे पूछा -

"इसी होटल में ठहरे हो ?"

"हाँ !"

"तुम चाहो, तो मेरे फ्लैट में चलकर रह सकते हो ! तुम्हारी एक्स वाइफ को कोई एतराज न हो तो ! वैसे मैं तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि लिन्थोई भी आजकल मेरे फ्लैट में रुकी हुई है !"

"पहले तो लिन्थोई के साथ ही लिए तुम्हें मेरी ओर से हार्दिक बधाई ! और लिन् तुम्हें भी मधुर के स्वीट साथ के लिए बहुत-बहुत बधाई ! मुझे यहाँ दो-चार दिन रहना होता, तो मैं जरूर तुम्हारे साथ तुम्हारे फ्लैट पर ही चलकर रहता । लेकिन मेरा कल का ही वापसी का टिकट है । कल ही मुझे पटना के लिए रवाना हो जाना है !"

यह कहकर मैं उठ खड़ा हुआ और उन दोनों को "थैंक्स एंड गुड नाइट !" कहकर वहाँ मेरे कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की ओर बढ़ गया । मेरे कमरे से लगा हुआ ही मंजरी का कमरा था, जो मेरे कमरे में जाते हुए मेरे कमरे से पहले पड़ता था । अपने कमरे में जाने से पहले ही मैंने मंजरी के कमरे में की-होल से झाँककर देखा । वह अभी तक जाग रही थी । मेरा अनुमान था कि अब तक जागकर वह मेरे लौटने का इंतजार कर रही थी ।

अपने अनुमान के अनुसार मैंने डोरबेल बजाई । मेरे डोरबेल बजाते ही मंजरी ने उठकर दरवाजा खोल दिया । मैंने दरवाजा खुलते ही कमरे के अंदर प्रवेश करके उससे कहा -

"तुम खाना खाने के बाद वहाँ पर मधुर के आते ही दूसरी टेबल पर जाकर क्यों बैठी थी ? तुम्हें उससे बात करना अच्छा नहीं लगता था, तो न करती ! मेरा परिचित समझकर ही कम-से-कम वहाँ बैठी तो रह सकती थी !"

"मिस्टर चंदन ! मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूँ कि जहाँ तुम कहोगे, वहाँ बैठूँगी और जिससे तुम कहोगे, उससे बात करूँगी !"

"ओ के ! यह बात मैं भूल ही गया था ! अगर तुम्हारा मूड हो, तो ऑफिस के काम के बारे में कुछ चर्चा कर सकते हैं ?"

"वह तो हमारी नौकरी का हिस्सा है ! उसमें हमारा मूड होने न होने का कोई मतलब ही नहीं है !"

थोड़ी देर तक हम दोनों ऑफिस के दिन-भर के काम के बारे में बातें करते रहे । लेकिन मंजरी के दिल की भड़ास अभी तक नहीं निकल पायी थी, इसलिए उसने मुझसे कहा -

"तुम अच्छी तरह जानते हो कि मुझे मधुर के साथ बैठना, उससे बातें करना, यहाँ तक कि उसकी शक्ल देखना या उसके बारे में बातें करना बिल्कुल पसंद नहीं है ! फिर भी, तुम मुझे इग्नोर करके उससे बातें करते रहे ! तुम्हें मधुर इतना ही अच्छा लगता है और तुम्हें उसको यहाँ बुलाकर, उसके साथ बैठकर बातें करनी थी, तो मुझे पहले ही बता दिया होता ! मुझे यह सब पहले से पता होता, तो मैं तुम्हारे साथ वहाँ बैठती ही नहीं ! मैं अपने कमरे में खाना मँगवा लेती !"

मंजरी ! तुम मेरे बारे में गलत सोच रही हो ! मैंने मधुर को नहीं बुलाया था ! और वहाँ बैठकर खाना खाने का भी तुम्हारा ही मन था, मैं तो वहाँ सिर्फ तुम्हारा साथ देने के लिए बैठा था !"

"मैं तुम्हें भी और उस मधुर को भी और तुम दोनों की फितरत को भी बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ ! मुझे बताने की जरूरत नहीं है !" मंजरी ने गुस्से से गर्म होकर कहा ।

मंजरी के गुस्से को देखकर और उसके तर्क को सुनकर मुझे हँसी आ गई । एक तरफ वह कह रही थी कि अब वह मेरी बीवी नहीं है, इसलिए उसको कहाँ बैठना है ? और किससे बात करनी है ? इसके बारे में कुछ भी कहने का मुझे कोई हक नहीं है ! दूसरी और वह चाहती थी कि मैं उसकी रुचि, उसकी इच्छाओं और उसकी हर एक जरूरत का पूरी तरह ध्यान रखूँ ! मैंने उससे कहा -

"यह मत भूलो कि अब तुम मेरी वाइफ नहीं हो कि मुझे मेरे दोस्तों से बात करने के लिए पहले तुमसे इजाज़त लेनी पड़ेगी !"

"मैं जानती हूँ कि मैं तुम्हारी वाइफ नहीं हूँ ! लेकिन जब तुम पहले से मेरे साथ बैठे थे, तो तुम्हारा मुझे इग्नोर करके मधुर को गले लगाना और फिर उसके साथ जाकर दूसरी जगह बैठ जाना, क्या यह सब करना जरूरी था ?"

"हाँ, बिल्कुल जरूरी था ! मधुर मेरा दोस्त है ! वह खुद चलकर मेरे पास तक आया था ! क्या मैं उसको सिर्फ इसलिए नज़रअंदाज कर देता कि उस समय तुम मेरे साथ बैठी थी ? क्यों ?"

"अच्छा, चलो ठीक है ! अब यह सब बातें छोड़ो ! तुमने वह किया, जो तुम्हें ठीक लगा और मैंने वह किया, जो मुझे ठीक लगा ! हिसाब बराबर ! अब मुझे नींद आ रही है ! तुम्हें भी नींद आ रही होगी, तुम भी अपने कमरे में जाकर सो जाओ !"

मंजरी ने मुस्कुराते हुए कहा ।

"ओ के ! एज यू विश ! गुड नाईट !"

कहते हुए मैं उठकर अपने कमरे में चला गया । अपने कमरे में जाते हुए मैं बहुत खुश था । अपने कमरे में जाकर मैं बिस्तर पर लेटा, तो मैं सोचने लगा -

मंजरी जब मुझे मधुर के साथ बैठा हुआ छोड़कर आयी थी, तब वह मुझसे बहुत नाराज थी । उसके नाराज होने के बावजूद मैंने जब मंजरी के कमरे का दरवाजा खटखटाया था, तो उसने तुरंत दरवाजा खोल दिया । इतना ही नहीं शिकवे-शिकायतों के बाद उसने मुझे मुस्कुराकर ही विदा किया है ! दूसरी ओर मधुर है, जिसको मंजरी ने पहचानने से भी मना कर दिया और उसकी तरफ नजर उठाकर देखना भी जरूरी नहीं समझा । जबकि मधुर ने मुझे खुद यह बताया था कि उसके दिल का कोई कोना आज भी मंजरी के लिए खाली और सुरक्षित है ! आज भी वह मंजरी के लौटने का इंतज़ार करता है !

काफी देर तक मैं अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे यही विश्लेषण करता रहा कि आखिर मंजरी की नजरों में मैं मधुर से ज्यादा मूल्यवान क्यों हो गया हूँ ? साल पहले जैसे उसका मधुर से ब्रेकअप हुआ था, वैसे ही छः साल तक तनाव और कोर्ट की फजीहत झेलने के बाद दस महीने पहले मेरा भी मंजरी से तलाक हो चुका हैं ! इस सबके बाद, आज जब मैं और मधुर दोनों मंजरी के सामने थे, जब मधुर खुद मंजरी से मिलने के लिए आया था, तब मंजरी ने मधुर को छोड़कर मुझे चुना था । मधुर जब खुद आगे बढ़कर मंजरी की तरफ अपना हाथ बढ़ा रहा था, तब मंजरी ने अपने व्यवहार से उसको बता दिया था कि वह उसको बहुत पीछे छोड़कर पहले ही आगे बढ़ चुकी है ।

दूसरी ओर मैं था । अपनी नाराजगी के बावजूद रात के ग्यारह बजे मंजरी का मेरे लिए अपने कमरे का दरवाजा खोलना और फिर मुझे मुस्कुरा कर विदा करना इस बात का प्रमाण था कि वह मधुर को बहुत पीछे छोड़ चुकी हैं !

मेरे मन में यह सोचकर खुशी का ज्वार आ रहा था कि वह जिस मधुर को मैं आज तक उसकी प्रतिभा, उसके व्यवहारिक कौशल उसकी उदारता और उसके बिंदास स्वभाव के चलते मेरे लिए प्रेरणा पुरुष समझता था, आज उसी मधुर को मंजरी में मुझसे पीछे छोड़कर मुझे अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर दिया था । मेरे विचार से इसकी वजह यही हो सकती थी कि मेरी अब तक की जिंदगी में आने वाली पहली और आखिरी एकमात्र लड़की मंजरी थी, जबकि मधुर के साथ आज भी लिंथोई थी और उसके साथ ही उसकी फ्लैट में रह रही थी ।

वजह जो भी हो, विजय का सेहरा मेरे सिर पर था । अपने सिर पर विजय का सेहरा सजाये हुए अपनी खुशकिस्मती पर रीझते-इठलाते हुए कब नींद आ गई ? मुझे पता ही नहीं चला !

रात-भर सपनों की दुनिया में मैंने मंजरी के साथ खूब सैर का आनंद लिया । सुबह खिड़की से झाँकते सूर्य देव की सुनहरी किरणों से और दरवाजे पर डोर बेल बजने से मेरी आँखें खुली ! मैंने दरवाजा खोला, तो सामने मंजरी खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी ! उसने कहा -

"गुड मॉर्निंग ! तुम्हें जगाने के लिए आई थी ! तुम्हें बहुत देर से उठने की आदत है न ! याद है न ? हमें जल्दी ही निकलना है !"

"हाँ, बॉस याद है !" मैंने अंगडाई लेते हुए जवाब दिया ।

"ठीक है ! अब फ्रैश होकर जल्दी तैयार हो जाओ !"

कहकर मंजरी मुस्कुराती हुई अपने कमरे में चली गयी । उसके जाने के बाद भी मेरे दिल में खुशी और होंठों पर मुस्कुराहट बरकरार थी । मैं एक गीत की धुन गुनगुनाता हुआ बाथरूम की ओर बढ़ा, तभी अचानक मेरे मेरे दिल से एक आवाज आई -

"मंजरी इतनी भी बुरी लड़की नहीं है, कि उसके साथ रहा न जा सके ! फिर क्यों हम दोनों हमारी शादीशुदा जिन्दगी में एक-दूसरे के साथ खुश नहीं रह सके ?"

हम दोनों के अलग होने की वजह जो भी रही हो, आज हालत यह थी कि उसके लिए मैं न तो मंजरी पर कोई दोष आरोपित करना चाहता था और न ही खुद को दोषी कह सकता था । मेरे मुँह से इतना ही निकला -

"दोष किसी का भी नहीं था ! बात बस इतनी-सी थी कि न उसने मुझे समझने की कोशिश की, न मैंने उसको समझने की जरूरत समझी ! उन दिनों हम दोनों ही एक-दूसरे को थोड़ा-सा भी स्पेस दिये बिना सिर्फ 'मै' और 'मेरे लिए' जीते हुए यह सोचते थे कि दूसरा भी अपने अस्तित्व को भूलकर मेरी 'मैं' को संतुष्ट रखे !"

समाप्त