बात बस इतनी सी थी - 35 Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बात बस इतनी सी थी - 35

बात बस इतनी सी थी

35.

कुछ दिनों बाद कंपनी की तरफ से मार्केटिंग के एक महत्वपूर्ण काम के लिए मुझे और मंजरी को एक साथ तीन दिन के टूर पर लखनऊ जाने का आदेश मिला । मुझे और मंजरी को इस आदेश का पालन करते हुए लखनऊ जाने में कोई आपत्ति नहीं थी । हालांकि हम दोनों ही अपने मन-ही-मन में खुश थे कि कंपनी के काम के बहाने हम दोनों को एक साथ रहने का मौका मिल रहा था । लेकिन हम दोनों में से किसी ने भी अपने दिल की उस खुशी को अपने चेहरे पर नहीं आने दिया था ।

पटना से लखनऊ के लिए रवाना होने तक भी हम दोनों के चेहरे पर सिर्फ एक ही भाव था कि कंपनी की तरफ से हमें जो आदेश मिला है, हमारे लिए उसका पालन करना जरूरी है । लखनऊ के लिए रवाना होने के समय तक मैं यह भी भूल गया था कि वहाँ पर मुझे मधुर भी मिल सकता है ! इस बात से मधुर के मिलने की संभावना और बढ़ जाती थी कि इस बार भी लखनऊ में हमारे रुकने के लिए रेनेसेन्स होटल में ही कमरे बुक किये गये थे और मधुर वहाँ पर अक्सर आता-जाता रहता है

पिछली बार जब मैं लखनऊ गया था, तब मैं पूरे एक महीना तक उसके फ्लैट में उसके साथ रहा था और मंजरी के बारे में बात चलने पर मैंने उसको मंजरी के साथ अपनी शादी से लेकर तलाक तक की सारी बातें बता दी थी । लेकिन तब मैंने मधुर से यह बात छिपाई थी कि वह अब भी मेरे ऑफिस में काम करती है । इसलिए लखनऊ जाते समय पूरे रास्ते मेरे मन में यही उथल-पुथल होती रही कि मधुर ने मुझे और मंजरी को एक साथ देखा, तो क्या होगा ? मधुर मुझसे हमारे एक साथ होने की वजह पूछेगा, तो मैं उसको क्या कहना ठीक रहेगा ? क्योंकि मधुर के सामने मेरे पुराने झूठ की पोल खुलने से मैं झुठा बन जाता और मैं खुद को झूठा नहीं बनना चाहता था ।

लखनऊ पहुँचने के बाद हमारा पहला दिन काम की अपनी व्यस्तता में बीत गया था । हम दोनों सुबह आठ बजे होटल से नाश्ता करके निकल गए थे और रात के दस बजे होटल में वापिस लौटे थे । दिन में दोपहर का खाना भी हमने बाहर ही खा लिया था । रात को लौटकर आए, तो थकान की वजह से हम दोनों ने खाना अपने-अपने कमरे में मँगवा लिया था ।

खाना खाने के बाद मुझे मधुर की याद आई । तीन दिन में से एक दिन बीत चुका था और अभी तक मंजरी के साथ मेरा मधुर से सामना नहीं हुआ था, मैं यह सोचकर खुश था । दूसरा दिन भी हम दोनों का इसी तरह व्यस्तता में बीत गया और मैंने रात में खाना खाने के बाद चैन की साँस ली कि तीन दिनों में से दो दिन बीत चुके हैं, बस एक दिन बाकी बचा है । मैंने ईश्वर से प्रार्थना की -

प्रभु ! बस आपका ही सहारा है ! मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखना ! बस, आने वाला दिन भी ऐसे ही बीत जाए कि मेरा मंजरी के साथ मधुर से सामना न होने पाए !"

हालांकि मधुर से मिलने का मेरा बहुत मन हो रहा था और मुझे यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था कि लखनऊ आने और तीन दिन तक वहाँ रहने के बावजूद मैं मधुर से एक भी मुलाकात किये बिना ही वापस पटना लौट जाऊँ !

लेकिन समस्या यह थी कि मंजरी के साथ मधुर से मिलना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था । यहाँ तक कि उसको यह बताना कि मंजरी भी इस समय मेरे साथ लखनऊ है, मुझे अपने लिए किसी खतरे की घंटी बजाने जैसा लग रहा था ।

अगर मैं मंजरी को होटल में अकेला छोड़कर मधुर से मिलने के लिए उसके फ्लैट पर चला भी जाता, तो मंजरी मुझसे कई तरह के सवाल पूछती और यह पता चलने पर कि मैं मधुर से मिलने के लिए उसके फ्लैट पर गया था, मंजरी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता ।

तीसरे दिन ऑफिस का काम करके हम दोनों शाम को कुछ जल्दी ही लगभग चार बजे होटल में लौट आए । होटल में लौटकर हम दोनों ने ऑफिस की फॉर्मल ड्रेस उतारी और कैजुअल ड्रेस पहनकर अपने-अपने बैग में कुछ स्नैक्स रखकर दोनों एक साथ घूमने के लिए निकल गए ।

मैं जानता था कि मधुर को भी घूमने फिरने का बहुत शौक है । इसलिए मुझे हल्का-सा डर सता रहा था कि कहीं हमारा सामना मधुर से न हो जाए ! डरते-डरते ही सही, मैंने तीन-चार घंटे तक मंजरी के साथ घूमने का आनंद लिया और रात को आठ बजे तक हम वापिस होटल में लौट आए ।

मेरा डर अभी खत्म नहीं हुआ था, क्योंकि मंजरी की इच्छा थी कि खाना कमरे में मँगाने की बजाय होटल में सबके साथ बैठकर खाया जाए ! इतना ही नहीं, वह चाहती थी कि आखरी दिन जब ऑफिस का काम खत्म हो चुका है, तब डांस बार का भी कुछ आनंद लिया जाए !

मैंने अपने उसी डर के साथ मंजरी की बात मान ली और एक खाली टेबल देखकर हम दोनों खाना खाने के लिए बैठ गये । बैठने के बाद मंजरी ने मैन्यू देखकर खाना ऑर्डर कर दिया । जल्दी ही खाना आ गया और हम दोनों साथ-साथ खाना खाने लगे । खाना खाते-खाते भी मैं ईश्वर से मन-ही-मन प्रार्थना कर रहा था कि -

"प्रभु ! बस आज और मधुर से सामना मत कराना ! कल तो हम पटना वापिस लौट जाएंगे !"

लेकिन एक दोस्त एक ही शहर में रहते हुए भी दूसरे दोस्त से मुलाकात किए बिना वापस लौट जाए, मेरी यह प्रार्थना मेरे प्रभु को रास नहीं आई । मैं और मंजरी खाना खाने के बाद एक-दूसरे के आमने सामने बैठे मेज पर अपनी कुहनियाँ टिकाए हुए किसी हल्के-फुल्के विषय पर चर्चा कर रहे थे ।

तभी वहाँ पर मधुर आया और मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे अपने वहाँ होने का संकेत किया । उसको देखते ही मैं जल्दी से उठ खड़ा हुआ और हम दोनों गर्मजोशी से एक-दूसरे के सीने से लिपट गये । कुछ क्षणों के बाद वह मेरे सीने से हटकर मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गया और मंजरी से बोला -

"हाय ! कैसी हो मंजरी ?"

मंजरी ने मधुर के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और मधुर की तरफ से मुँह फेर लिया । मधुर ने एक बार फिर उससे बात करने की कोशिश की -

"तुमने मुझे सच में नहीं पहचाना है ? या इग्नोर करने की कोशिश कर रही हो ?" मंजरी ने इस बार भी मधुर की बात का कोई जवाब नहीं दिया । मधुर ने फिर एक बार उसी धैर्य का परिचय दिया और बोला -

"हे मंजरी ! मैं मधुर ! तुम्हारा एक्स ब्वॉयफ्रेंड !"

"हु इज मधुर ? मैं किसी मधुर को नहीं जानती !"

"भूल गई तुम ? सात साल पहले हम दोनों एक-दूसरे के लिए जान लुटाने के लिए तैयार रहते थे !"

"तुम्हें देखकर तो नहीं लगता कि तुम किसी के लिए कुछ लुटा सकते हो ! फिर जान तो बड़ी चीज है !" मंजरी की ओर से रूखा-सा जवाब मिलने के बाद मधुर ने मुझसे कहा -

"तू तो नहीं भूला न यार मुझे ? तुझे तो याद है ना हमारी दोस्ती ?"

"यारों को कभी भूला जा सकता है क्या ?"

मैंने हँसकर मधुर के सवाल का जवाब दिया, तो मंजरी वहाँ से उठ खड़ी हुई और मुझसे बोली -

"चलो, चलते हैं !"

"हाँ-हाँ, अभी चलते हैं ! दो मिनट और बैठ लो !"

कहकर मैं मधुर के साथ औपचारिक बातें करने लगा । मंजरी को मेरा मधुर से बातें करना अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए वह वहाँ से उठकर कुछ दूर एक अलग टेबल के पास जाकर बैठ गई ।

मंजरी के जाने के बाद मधुर ने एक बार मुझसे मेरे और मंजरी के वहाँ पर एक साथ होने की वजह के बारे में पूछा -

"क्या मंजरी के साथ दोबारा शादी कर ली है ?"

"नहीं-नहीं ! वह यहाँ पर अपने ऑफिस के काम से आई है और मैं भी !"

मधुर के सवाल का इतना-सा जवाब देकर मैं अपनी दूसरी बातें करने लगा । लगभग पाँच मिनट तक मैं और मधुर इधर-उनर की फालतू बातें करते रहे । उसके बाद वह मुझसे बोला -

"चल, तुझे एक बहुत ही रोचक व्यक्तित्व से मिलवाता हूँ !"

कहते हुए वह मेरा हाथ पकड़कर वहाँ से कुछ दूर एक कोने में कुर्सी पर बैठकर चुपचाप हम दोनों को घूरती हुई एक बहुत ही सुंदर नवयुवती के पास ले गया । वहाँ जाकर उसने नवयुवती से कहा -

"यही है चंदन, जिसके बारे में मैंने तुमसे बताया था ! बहुत ही सीधा-सच्चा एक नंबर का संस्कारी नौजवान ! और चंदन, यह है लिंथोई ! गजब की चित्रकार है यह ! वैसे यह मणिपुर की रहने वाली है, पर आजकल यहाँ घूमने के लिए आई हुई है !"

आखिरी वाक्य मधुर ने मेरी ओर घूमकर उस नवयुवती का परिचय कराने के लिए कहा था । मैंने लिंथोई से हाथ मिलाया और उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया । तब तक मधुर उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठ चुका था । लगभग दो-तीन मिनट तक बातें करने के बाद एकाएक मधुर ने चहकते हुए कहा -

"लिंथोई ! तुम मेरी और चंदन की एक साथ बैठे हुए की एक सुंदर-सी पिक्चर के दो सेट बनाओ, जो पूरी जिंदगी हम दोनों के पास रहे और जिसे देखकर हम कम-से-कम यह याद कर सकें कि हम दोनों कभी एक-दूसरे के घनिष्ठ मित्र थे !"

मुझे मधुर के कहे हुए उन शब्दों ने कुछ आशंकित-सा किया, तो मैंने कहा -

"क्या मतलब है तुम्हारे इन शब्दों का ?"

"यही कि आजकल आप उस मंजरी के साथ रह रहे हो, जो तीन साल तक मेरे साथ मेरी गर्लफ्रेंड बनकर रहने के बाद भी कहती है कि वह किसी मधुर को नहीं जानती ! कौन जाने कल तुम भी मुझे भूल जाओ ? ऐसी स्थिति में मैं तुम्हें इस पिक्चर को दिखाकर याद तो दिला सकता हूँ कि हम दोनों किसी जमाने में दोस्त हुआ करते थे !"

यह कहकर मधुर ने जोर का ठहाका लगाया और मेरे पास आकर मेरे कंधे पर हाथ रखकर बैठ गया । मधुर के मेरे पास बैठते ही लिंथोई ने हम दोनों का चित्र बनाना शुरू कर दिया ।

मात्र बीस मिनट में उसने हम दोनों का एक चित्र बनाकर हमारे सामने रख दिया । उस चित्र को देखकर यह नहीं कहा जा सकता था कि वह चित्र हाथ से बनाया गया था । एक चित्र बनकर तैयार होने के बाद मधुर ने अपनी पोजीशन बदली और लिंथोई से एक दूसरा चित्र बनाने के लिए आग्रह किया । लिंथोई ने चित्र बनाना अभी शुरू भी नहीं किया था, तभी वहाँ पर मंजरी आई । मैंने उसको देखते ही अपने साथ बैठने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा -

"आओ मंजरी, बैठो ! इनसे मिलो ! यह है लिंथोई !"

मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही मंजरी नाराजगी भरे शब्दों में मुझे अपने जाने की सूचना देते हुए बोली -

"तुम्हें मेरे साथ बैठने की फुर्सत नहीं है, तो मैं जा रही हूँ !"

यह कहते ही मंजरी वहाँ से चली गई ।

क्रमश..