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खुशियों की चाबी


खुशियां कभी भी धन ,पद,प्रतिष्ठा की मोहताज नही है।

कुछ साल पहले एक मित्र की शादी हुई लेकिन इस लड़की से शादी करने का उसका मन नही था।तो भी घरवालो ने करवा दी।
शुरू के दिनों में बीवी से बस नाम मात्र के ही सम्बंध रहे क्योंकि वो उसे पसंद नही करता था लेकिन आज की स्थिति ये है कि अपनी पत्नी के लिए उसका प्यार और सम्मान अगाध है।
दूसरी तरफ एक परिचित के बेटे ने घरवालो से लड़ झगड़कर प्रेम विवाह किया।
अभी कुछ ही दिन पहले की बात है कि पति पत्नी में कचहरी में ही चप्पल बाजी हुई है।
जो शादी करने के लिए अपने परिजनों तक से लड़ गये,मरने के लिए तैयार थे वो आज एक दूसरे को खुलेआम बेइज्जत कर रहे थे।
जबकि जो शादी के समय अपनी पत्नी को पसंद भी नही करता था वो आज खुश है।

ये कैसी विचित्र सी बात है।

एक आईएएस ऑफिसर के ऑफिस में एक चपरासी काम करता था।
चपरासी के बेटे की शादी थी तो कार्ड लेकर आईएएस महोदय के पास पहुंचा और शादी में आने का आग्रह करते हुए छुट्टी भी मांगी।
अधिकारी ने छुट्टी मंजूर की साथ ही आने का आश्वासन भी दिया।

शादी के दिन चपरासी का परिवार हर्षोल्लास से शादी का उत्सव मना रहा था,
पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा था तभी किसी का फोन चपरासी के फोन पर आया और वह सन्न रह गया।

फ़ोन करने वाले ने उसे खबर सुनाई की आईएएस महोदय ने आत्महत्या करली।

अगले दिन आत्महत्या का कारण सामने आया कि अधिकारी की पत्नी और माँ में बनती नही थी इसलिए आत्महत्या की है।
पूरे जिले का अधिकारी जिसपर पूरा जिला संभालने की जिम्मेदारी है वह अपने घर मे सामंजस्य नही बना सका और इतने तनाव में आ गया कि उसको मरना पड़ा।
जबकि उसके ही ऑफिस में काम करने वाला चपरासी पूरे घर कुटुंब के साथ अपने बेटे की शादी में झूम रहा है।

भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के सामने प्रस्ताव रखा कि पांडव भी तुम्हारे भाई हैं, उन्हें केवल 5 गाँव दे दो तुम।
बाकी पूरा आर्यव्रत तुम्हारा।
लेकिन दुर्योधन ने वह भी नही दिया और शीघ्र ही सम्पूर्ण कुरु वंश समाप्त हो गया।

दूसरी तरफ,
भरत ने राज मिलने पर भी श्रीराम के वनवास के समय उनकी चरणपादुकाओं को सिंघासन पर रखकर शासन किया और वन से वापस आने पर श्रीराम को राज सौंप दिया।
परिणाम ये हुआ कि युगों तक रघुवंशीयो ने शासन किया।

आपने ऊपर 3 तुलनात्मक घटनाएं पढ़ी।

पसंद से शादी करने के बाद भी कोई दुखी है,
कोई नापसंद होने के बाद भी सुखी है।

कोई आईएएस होने के बाद भी आत्महत्या कर रहा है,
कोई चपरासी होने के बाद भी जिंदादिली से जी रहा है।

कोई पांच गांव नही दे सका और समूल वंश का विनाश करवा गया,
किसी ने सम्पूर्ण राज्य सौंप दिया और युगों तक अपनी वंशावली चलाई।

खुशियां या सुख की कीमत पैसा या धन संपदा नही है बल्कि त्याग,संतुष्टि है।

आप किसी अपने के लिए मन से कुछ त्याग करके देखिये,
आपके भीतर जो अनुभूति होगी वह आपकी आत्मा को तृप्त करेगी।

सबसे ज्यादा तनाव व्यक्ति किसके कारण पाता है ?

या तो खुद के कारण या माता-पिता,भाई-बहन,पुत्र-पुत्री,पति-पत्नी या मित्रो के कारण।
क्योंकि इन्ही से सबसे ज्यादा आत्मीयता होती है।

इन्ही को खुश रखने के लिए दिन रात की मेहनत की जाती है।

फिर यही लोग ताने दें,लड़ाई करें तो व्यक्ति परेशान होता है और दुखी रहता है।

इसलिए हमेशा ध्यान रखिये की खून के रिश्तों में या अपने किसी ऐसे सम्बंधी को बहुत ज्यादा ताने,दुत्कार ना दें जो आपके साथ घनिष्ठता से जुड़ा है।
और हमेशा खुद को तैयार रखिये त्याग करने के लिए।

पैदा होने से लेकर शमशान यात्रा तक के इस सफर में बस संतुष्टि ही है जो कभी दुखी नही होने देगी।
यही खुशियों की चाबी है।

:- Sumit

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