मुरझाई पंखुड़ियां:-(जब दिल सच मे टूटा करते थे) S Choudhary द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुरझाई पंखुड़ियां:-(जब दिल सच मे टूटा करते थे)


फोन की घण्टी बजी,विकास ने फोन उठाया,
सामने राहुल था।
राहुल-विकास !आज अंकित के फ्लैट पे पार्टी है आजाना 7 बजे तक।
विकास:- किस खुशी में ?
राहुल:- हमेशा खुशी में ही पीता है क्या तू ? आ जाना चुपचाप।
विकास:- ठीक है।

शाम को ठीक 7 बजे अंकित के फ्लैट पर मजमा जुड़ गया।

विकास ने फिर पूछा- अरे कोई तो बताओ पार्टी किसलिए है।
राहुल:-अंकित का ब्रेकअप हो गया,इसका दिल टूट गया।बस उसी की पार्टी है ।
विकास:-ब्रेकअप पार्टी ? ये क्या ड्रामा है बे? प्यार था या ऐसे ही बस टाइम पास कर रहे थे। ब्रेकअप की भी पार्टी होती है कहीं ? दिल टूटने वाले ऐसा करते है क्या ?
राहुल(धीमे से):- ये तो चोंचलेबाजी कर ही रहा है,तेरे भी साले दुनियाभर के चोंचले है। पी ले चुपचाप।

फिर पार्टी शुरू हुई तो 12 बजे तक चलती रही।
विकास रात को ही घर आ गया,नींद नही आ रही थी।

पुरानी किताबे और कुछ चीजें उसने संजो कर रखी थी किसी अलमारी में,हालांकि बहुत दिन से उन्हें देखा भी नही था।
आज अलमारी के सामने खड़ा हुआ और 12वी की कैलकुलस वाली किताब पर उसकी नजर ठहर गई।

किताब अलमारी से निकालकर खोली तो किन्ही पन्नो में दबी गुलाब की सूखी पंखुड़ियां निकलकर बिखर गई।
पंखुड़ियां समेटने के लिए पंखा बंद किया और मुरझाई पंखुड़ियों को बीनते हुए कहीं अतीत में जा पहुंचा।

मास्टर जी क्लास में आये तो सब बच्चे खड़े हो गये।
मास्टर जी कुर्सी पर बैठ गये लेकिन बच्चो को बैठने को नही बोला।
कल मास्टर जी ने कैलकुलस का टेस्ट लिया था, आज उसका रिजल्ट बताने वाले थे।
मास्टर जी ने कहा-सब क्लास के बाहर जाकर खड़े हो जाओ।

सब स्टूडेंट क्लासरूम के बाहर जाकर खड़े हो गये।

मास्टर जी ने 2-3 स्टूडेंट के नाम लिए और कहा कि ये आकर अंदर बैठ सकते है,क्योंकि इनके 10 में से 10 या 8 नम्बर थे।

बाकी सबको आदेश हुआ कि मुर्गा बन जाओ।
आज सबको मुर्गे के साथ गधा भी बनाऊंगा।

6-6 मुर्गों के जत्थे बनाये गये,सबकी कमर पर एक एक ईंट रखी गई।कक्षा के बाहर से स्कूल के मेन गेट तक जाकर वापस आना था।

विकास ने राहुल से कहा-सुन !पहले तू जा और उसकी क्लास के सामने जाकर देखकर बताना की वो देख तो नही रही।

राहुल मुर्गा बनकर अपने जत्थे के साथ गया और वापस आकर खबर सुनाई-भाई उनकी क्लास में तो मास्टर ही नही है कोई,सब दरवाजे पर खड़े हुए बाहर ही देख रहे है और हमे देखकर तो सारी लड़कियां दांत फाड़कर हँस रही है।

विकास- मर गये भाई आज तो,पढ़ ही लेते इससे अच्छा तो।
विकास का भी नम्बर आया,कमर पर ईंट रखी गई,दरवाजे की तरफ जाने का आदेश हुआ।
इनका जत्था आगे बढ़ा, लेकिन उसकी क्लास के पहले ही विकास खड़ा हो गया और तेजी से पैदल चलकर क्लास को पार करके फिर मुर्गा बनकर ईंट कमर पर रख ली।
पिछे से मास्टर जी की आवाज आई-ओ चांडाल! वापस आ।
विकास-नही गुरु जी मैं पूरा चक्कर लगाकर आऊंगा।
गुरु जी- तू वापस आ।
विकास को वापस बुलाया गया,दो बच्चों से हाथ पकड़वाये गये, फिर स्टेपनी पर 2 बेंत जमाकर टिकाये।
फिर से मुर्गा बनाया गया।
इस बार मास्टर जी साथ साथ चल रहे थे।
उसकी क्लास के बाहर जाकर विकास ने उसकी कक्षा की तरफ देखा।
सब हंस रहे थे,बस एक वही थी जिसने गुस्से में मुँह फुलाया इसे देखकर।
मर गये-विकास ने मन मे कहा।

मुर्गा परेड खत्म हुई,उस दिन की बाकी क्लास नॉर्मल चली।
छुट्टी के समय दौड़कर साइकिल स्टैंड पहुंचा की रास्ते मे बात करूंगा।
साइकिल उठाकर बाहर निकला ही था कि साइकिल पेंचर।

राहुल को बोला-राहुल यार मेरी साइकिल तू पेंचर लगवा के ले आ मैं तेरी ले जाता हूँ।शाम को बदल लेंगे।
राहुल-दे तो देता भाई लेकिन मैं साइकिल लाया ही नही ये तो विजय की है।
विकास- तो ये ही दे दे भाई,

विकास ने अपनी साइकिल छोड़ी और राहुल से साइकिल लगभग छीनते हुए तेजी से बाहर निकला।

आज साइकिल बाकी दिन से तेज चल रही थी।

थोड़ी दूर ही सामने साइकिल पर जाती हुई अदिति दिख गई।

विकास ने साइकिल अदिति की साइकिल के पास लगाई-अदिति आज तुम स्कूल के बाहर रुकी नही मेरे लिए?
अदिति-मैं मुर्गों के लिए नही रुकती,ना ही मुझे मुर्गे पसंद है।
विकास-वो तो गलती से एक सवाल गलत हो गया था,नही तो बाकी सब ठीक ही थे।

अदिति-हाँ तो क्यों हुआ एक भी गलत?कितनी बार कहा है कि मैं नही देख सकती तुम्हे ऐसे पिटते हुए,मुर्गा बनते हुए।
विकास-कसम खाता हूँ अब के बाद कभी ऐसा नही होगा।

अदिति-होना भी नही चाहिये, नही तो कभी बात नही करूंगी।

दोनो खुशी खुशी अपने घर चले गये।
अगले दिन अदिति स्कूल जाने के लिए आई तो विकास उसका रास्ते मे ही इंतजार कर रहा था।

अदिति आई और बोली-चलो,चलते है।
विकास-एक मिनट रुको ना।
अदिति-बोलो क्या है?
विकास ने गुलाब का फूल अदिति की तरफ बढ़ाया-आते हुए मंदिर से तोड़कर लाया हूँ तुम्हारे लिए,पहले महादेव के सामने रखा और फिर उनका आशीर्वाद लेकर तुम्हारे लिए लाया हूँ।
अदिती-तुम सोच नही सकते मुझे कितनी खुशी हुई है इससे।
अदिति ने वो गुलाब लेकर फिर से विकास की तरफ बढ़ाया-विकास ये तुम रखो।
विकास-लेकिन मैं तो तुम्हारे लिए लेकर आया था।
अदिति-अब भी तो मेरे ही पास है,तुम और मैं अलग कहाँ है।लेकिन मैं इसको अपने पास नही रख सकती।घरवालों ने देख लिया तो मुश्किल हो जायेगी।

विकास-ठीक है,मैं रख लेता हूँ,
विकास ने बैग से कैलकुलस की किताब निकाली और उसमे गुलाब का फूल रख लिया।
तुम 50 साल बाद भी देखना चाहोगी तो ये तुम्हे यहीं मिलेगा।

दोनो ने एक क्षण एक दूसरे की आंखों में देखा।
दोनो को यही लगा कि दुनिया बस यही है इससे आगे ना पीछे कुछ भी नही इस दुनिया मे।

दोनो स्कूल में गये।
कुछ महीने बाद परीक्षा हुई।
रिजल्ट आया।
अदिति ने स्कूल में टॉप किया।
विकास दूसरे नम्बर पर रहा।
रिजल्ट के दिन दोनो स्कूल में मिले।

विकास-थैंक्यू अदिति,तुम्हारी वजह से मेरे इतने अच्छे नम्बर आये हैं।तुम ना होती तो मैं तो ऐसे ही मुर्गा बना रहता।
अदिति हँसते हुए-नही विकास,तुमने बहुत मेहनत की है इसलिए इतने नम्बर आये।
विकास-नही सच मे ये तुम्हारी वजह से ही है।
अदिति-तुम्हे अच्छा नही लगता ना मैं कुछ कहूं तो,हमेशा अपनी ही चलानी है।

थोड़ी बातों के बाद वापस सब घर चले गये।
अदिति ने JEE का एंट्रेंस पास किया और चेन्नई के कॉलेज में पढ़ने चली गई,उसकी मौसी का परिवार चेन्नई में रहता था इसलिए घरवालों ने आसानी से जाने दिया।

चेन्नई विकास की पहुंच से 2500km था बस इतनी बात नही थी।
हजारो रुपये,परिवार की स्थिति,करियर जैसी अनेकों चीजे थी।
कुछ दिनों तक कई बार फोन पर बात हुई,लेकिन धीरे धीरे अदिति शायद व्यस्त होती चली गई।

कुछ महीनों में ही सब बंद हो गया।

बेचैनी दूर करने के लिए कुछ ग़लत आदतें पाली गई।

इसके बाद भी जीवन मे कुछ रुका नही। पढ़ाई,नोकरी,गर्लफ्रैंड सब कुछ चला, लेकिन कई बार कोई कसक सी आज भी लगती है।

विकास ने बिखरी हुई एक एक पंखुड़ी को समेटकर वापस किताब में रखा और कहा-तुम जहाँ भी रहो,बस इन पंखुड़ियों की तरह कभी मत मुरझाना।
किताब वापस तब तक के लिए अलमारी में रखी गई जब तक कि वापस से कसक तड़फा न दे।

:-सुुुमित