इच्छा - 18 Ruchi Dixit द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • कोन थी वो?

    वो इक खाब है या हकीकत ये लफ्जों में बयान ना कर सकता है पता न...

  • क से कुत्ते

    हर कुत्ते का दिन आता है, ये कहावत पुरानी है,हर कोई न्याय पात...

  • दिल से दिल तक- 7

    (part-7)अब राहुल भी चिड़चिड़ा सा होने लगा था. एक तो आभा की ब...

  • Venom Mafiya - 1

    पुणे की सड़कों पर रात की ठंडी हवा चल रही थी। चारों ओर सन्नाटा...

  • बारिश की बूंदें और वो - भाग 6

    तकरार एक दिन, आदित्य ने स्नेहा से गंभीरता से कहा, "क्या हम इ...

श्रेणी
शेयर करे

इच्छा - 18

ऑन्टी इच्छा और उषा से इस प्रकार घुल मिल गई थी कि ,
किचन मे कोई भी खास व्यंजन बनाती तो इच्छा और उषा के लिए जरूर रखती | और उधर इच्छा और उषा ऑफिस से आने के पश्चात अपने रूम मे जाने से पहले ऑन्टी का हाल चाल पूँछ लिया करती एक वाक्य के साथ "आन्टी बाजार से कुछ लाना तो नही |" ऑटी भी पूरे हक से उन दोनो को काम सौप देती थी, और दूसरे दिन शाम को घर लौटते वक्त ऑटी का सामन ले आती थीं | सन्डे को तो उन दोनो का पूरा दिन ऑन्टी के घर पर ही बीतता या फिर ऑन्टी उन्हें जगाने आ जाया करतीं | ऐसा लग ही नही रहा था कि, वे दोनो अभी कुछ ही दिन पहले मिली थी | कई दिन गुजर गये एक दिन इच्छा कुछ बेचैन सी लग रही थी | ऑफिस के किसी काम मे भी उसका मन नही लग रहा था | लंच ब्रेक मे अचानक उसके व्यवहार मे आये परिवर्तन को भॉपकर उषा इच्छा का हाथ पकड़ती हुई "क्या हुआ तुझे?? कल तक तो ठीक थी और तुझे तो बुखार भी नही, फिर इतनी बुझी- बुझी सी क्यों है? घर पर तो सब ठीक है न? तेरी बात हुई?? कई सारे प्रश्न एकसाथ पूँछ डाले उषा ने किन्तु, इच्छा बिना उत्तर दिये वहाँ से उठकर चली गई | शाम को प्रतिदिन की तरह ऑफिस से घर जाते समय भी वो हँसना ठहाके लगाना नही था | इच्छा मौन नीरस सी किसी विचार मे डूबी जैसे खुद को उसमे से निकालने का रास्ता तलाश रही हो | उषा का पूरा ध्यान इच्छा की गतिविधियों और उसके हाव -भाव पर ही टिका था , जबकि इच्छा उषा को हर प्रकार से अनदेखा कर किसी भी प्रकार के उत्तर से बचने का प्रयास कर रही थी | अगले दिन ऑफिस से निकलते ही उषा, इच्छा सुन! वाक्य दोहराने पर इच्छा जो उषा के आगे चलने की होड़ मे हो जैसे ठिठक कर हुम्म ?(क्या?) इशारे से | उषा, मुझे कुछ जरूरी सामान लेना है | इच्छा, ठीक है संडे को ले लियो | उषा नही यार! बहुत जरूरी है आज ही लेना है | इच्छा आँखे तरेरती हुई ऐसी कौन सी जरूरी चीज है तेरी? उषा, अरे यार चल न! जरूरी है तभी तो कह रही हूँ | उषा एक ऑटो करती है और दोनो ही उसमे बैठ जातीं हैं | ऑटो एक जगह आकर रूकती है उषा उतरकर ऑटो वाले को पैसे थमाती हुई इच्छा से जो कि विचार मग्न उसे ऑटो रूकने का आभास भी नहीं हुआ था से कहती है, मैडम ! अब उतरेंगी भी | उषा के सम्बोधन से इच्छा चौकती हुई, मानो किसी ने नींद से झकझोर दिया हो, ऑटो से उतर कर विस्मय से उस स्थान को देखती है | प्रश्नात्मक भाव से उषा की तरफ देखते हुए यहाँ तू शॉपिंग करेगी? यहाँ तो आस-पास कोई शॉपिंग सेन्टर या मॉल नही हैं, यह तो पार्क है? उषा, तू अन्दर तो चल? इच्छा उषा को आश्चर्य भरी नजरो से देखती हुई उषा द्वारा बार - बार जोर डालने पर उसके साथ चल देती हैं | पार्क बहुत ही सुन्दर विभिन्न प्रकार के पेड़ - पौधे वनस्पतियों और फूलों से सजा मनोहारी दृश्य प्रस्तुत कर रहा था किन्तु, मन जब चिन्ता रूपी शिला के नीचे दबा हो तो यह दृश्य भी चेहरे के भाव नही बदल पाते | दोनो ही पार्क मे बने बेंच पर जाकर बैठ जातीं हैं | उषा ,अब बता क्यों कल से तेरा मुँह बना है? मुझे पता है तू मुझे अपना दोस्त नही मानती फिर भी , साथ रहने के नाते ही सही तू , मुझे अपनी प्रॉब्लेम बता सकती है | इच्छा, क्या करेगी प्राब्लेम जानकर तू खुद भी परेशान हो जायेगी | यह समस्या हम दोनों के साथ है फर्क इतना है कि तुझे पता नही मुझे पता है | उषा माथे पर उभरती सिलवटो के साथ क्या कह रही है तू मुझे , कुछ समझ नही आ रहा है | ऑफिस के पी ए को तो तू जानती है न ? उषा हाँ सक्षम नाम है उनका बहुत अच्छे इन्सान हैं तो? इच्छा, कल वो हमारे केबिन मे आये थे बातो ही बात मे उनके मुँह से जो निकला वही मेरी परेशानी का कारण है | यह तो तू जानती है कि , कई दिन से लगातार छोटी -मोटी बातो को लेकर लोगो को कम्पनी से निकाला जा रहा है, उषा, हुम्म! जानती हूँ | पर तू यह नही जानती कि यह मालिको द्वारा पहले से तयशुदा प्लान है | विश्व मंदी की वजह से कम्पनी के हालात कुछ ठीक नही |
कम्पनी के मालिको ने सुविधाओं मे तो कमी करी ही है ,
कम्पनी के खर्चे कम करने के लिए किसी न किसी बहाने वर्कर और एम्पलोईज़ को निकाना भी शुरू कर दिया है | उषा, एक लम्बी सॉस भरती हुई हुम्म! तो तू क्यों परेशान है? इसलिए क्योंकि इस लिस्ट मे तेरा और मेरा भी नाम शामिल है | उषा, भौंहे टेढ़ी करती हुई पर क्यों? हम तो कोई गलती नही करते और काम भी पूरी इमानदारी से ,उस पर छुट्टियाँ भी नही लेते हम! | इच्छा, पर हम दूसरे शहर से आये हैं न?यही कारण है हमारा इस लिस्ट मे शामिल होने का जो लोकल एरिया के है बस उन्हें ही रख्खा जायेगा | यहाँ तक कि उनमे से भी कुछ लोगो को निकाला जा चुका है | अब दोनो सहेलियाँ उसी बेन्च पर शान्त गहरी चिन्ता मे इस प्रकार डूबी कि मानो दोनो के पास बात करने के लिए कुछ बचा ही नही | अंधियारा गहराने लगा पार्क खाली हो चुका था, सिवाय एक बुजुर्ग के जो कुछ दूरी पर एक घने पेड़ की छाया मे एक लगभग पाँच वर्ष के बालक को खेलते हुए देख रहे थे | शायद वह उन्हीं का नाती या पोता होगा , वे वहीं आस - पास के ही लग रहे थे | इच्छा , मन्द स्वर मे उषा से बोली चल! अब घर चलते हैं !! | उषा जैसे कुछ सुन न रही हो उसी अवस्था मे चिन्तामग्न | इच्छा, पुनः चलने का आग्रह इस बार उषा को झकझोरते हुये | रोज की तरह ऑटी के पास जाने के बजाय आज दोनो सीधे अपने कमरे मे दाखिल हो लाईट ऑफ कर बेड पर पसर जाती हैं | रात्रि मे किसी ने भोजन नही किया | दूसरे दिन सुबह ऑफिस जाने मे वह जोश नही था फिर भी , दोनो समय से पूर्व ही ऑफिस पहुँच जाती है, आखिर ! कम्पनी को कोई शिकायत का मौका नही देना चाहता थी दोनो | जहाँ लंच ब्रेक मे कैंटीन हँसी ठहाको से भर जाता था , वहीं दोनो सहेलियों की हँसी मानो कोई चुरा ले गया हो | कई दिन इसी प्रकार गुजर गये थे कि, एक दिन शाम को इच्छा ईश्वर की तस्वीर के समक्ष संध्या वंदन कर रही थी कि , अचानक डोरबेल उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है तीन, चार दफा बजने के बाद वह उषा की तरफ खोलने का इशारा करती है जो , बाथरूम से बाहर अभी ही निकली थी , शायद आवज सुनकर | गेट खोलते ही चौकते हुए बोली अरे जीजू आप! इतने मे ही कौशल और उसके पीछे प्रतीक्षा कमरे मे दाखिल होते हैं | कौशल मुस्कुराहट के साथ जी हाँ मै! , सालियाँ तो याद करना ही भूल गई तो सोचा, हम ही चले आते हैं | तभी प्रतीक्षा भौंहे मटकाती हुई व्यंगात्मक भाव मे हाँ हाँ! हम तो बड़ा याद करते है ,आज भी मै जिद न करती तो यह आने ही वाले थे | तभी पूजा समाप्त कर इच्छा हल्की मुस्कुराहट के साथ कैसी है पुरू? प्रतीक्षा नराजगी भरे अंदाज मे इच्छा को अनदेखा करती हुई उषा से कहा "देख उषा! मै केवल तुझसे मिलने आई हूँ यहाँ , और किसी से मुझे कोई बात नही करनी |" उषा इच्छा की तरफ देखते हुए अरे वो ऑफिस की... आगे कुछ कह पाती इशारे से इच्छा रोक देती हैं , और प्रतीक्षा के गले लिपट सॉरी यार! मॉफ कर दे व्यस्तता के कारण बहुत दिन से तुझसे बात नही कर पाई | प्रतीक्षा गर्दन से इच्छा का हाथ हटाते हुए , हाँ तो! आज क्यों फ्री हो गई तू जा न ! अपना काम कर | उषा स्थिति से अवगत कराने का फिर से एक बार प्रयास करती हुई जैसे ही बोलने की कोशिश करती है कि पुनः इच्छा उसे इशारे रोकती है किन्तु अबकी बार उषा इच्छा को ही अनदेखा कर सारी कहानी सुना देती है | कुछ देर के लिए कमरे मे सन्नाटा आकर पसर जाता है , तभी कौशल अपनी खामोशी तोड़ने हुए "अरे! बस इतनी सी बात!! भावी चिन्ता को अभी से प्रवेश देकर तुम लोगो ने जीवन को नीरस बना लिया | अरे छोड़ो यार ! जो होगा देखा जायेगा अभी से इतना क्यों परेशान हो रहे हो | जीवन मे यदि समस्या न आये वह जीवन कैसा ?समस्यायें ही मनुष्य के साहस की वास्तविक पहचान कराती हैं | माफ़ करियेगा साली साहिबा आप वह इच्छा तो नही जान पड़ती जिनकी कथा मै अपनी धर्म पत्नी के मुँह से सुना आया हूँ |
खैर! आप लोग परेशान मत हो, यह कौशल किस दिन काम आयेगा आने दीजिये विपत्ति को हम तैयार है | कौशल की बात सुनकर इच्छा ने कुछ ऊर्जा का संचार हुआ जो बहुत दिनो बाद चेहरे पर मुस्कान के रूप मे प्रकट हो गई | प्रतीक्षा, अब सब छोड़ो ! जल्दी से तुम दोनो तैयार हो जाओ | इच्छा ,कहाँ जाना है | प्रतीक्षा नाथूने फुलाती हुई, "तुझे तो कुछ याद नही, बस तू चुपचाप तैयार हो जा फाँसी पर लटकाने न ले जा रही तुझे |" तभी पीछे से कौशल मुस्कुराता हुआ "अरे! आज तुम्हारी सहेली का जन्मदिन है न! | इच्छा, माफ कर दे पुरू! | प्रतीक्षा मॉफी छोड़ , जल्दी से तैयार हो जाओं बच्चे नीचे अकेले कार मे हमारा इन्तजार कर रहें है | कौशल प्रतीक्षा से "अच्छा ! मै बच्चो के पास जा रहा हूँ रेडी होकर तुम तीनो नीचे आओ " यह कहकर वह नीचे चला जाता है |
लगभग आधे घण्टे बाद ही तीनो सहेलियाँ भी नीचे पार्किंग मे पहुँच जाती हैं जहाँ पहले से ही कौशल और उसके बच्चे उनका इन्तजार कर रहे होते है | गाड़ी एक बड़े रेस्टोरेन्ट मे जाकर रूकती है | कौशल ने पहले से ही सीटे बुक करा रखी थी और , बर्थडे का भी अच्छा खासा इन्तजाम था | आज बहुत दिनो बाद उषा और इच्छा खुल कर हँसी | ठहाको के बीच कार बिल्डिंग के पास खड़ी होती है जहाँ इच्छा और उषा कौशल को धन्यवाद देती हुई"थैंक्स जीजू! कहते हुुुए कार से उतर जातीं हैं | घर आकर उषा ने कहा " यार! प्रतीक्षा कितनी लकी है, कौशल जी कितने अच्छे इंसान हैं न? इच्छा उषा की तरफ देखती हुई हाँ! और हमारी प्रतीक्षा किसी से कम नही , अच्छे लोगो को ही अच्छे लोग मिलते हैं |उषा ये तू कह रही है ? उषा के इस शब्द ने इच्छा को फिर अतीत मे धकेलना चाहा किन्तु खुद को संभालती हुई, हाँ ! मैने सही कहा मै पुर्नजन्म पर विश्वास करती हूँ | मै विश्वास करती हूँ कि ,आत्मा कभी नही मरती | कर्मचक्र मे गतिमान अवस्था जबतक बोधत्व को प्राप्त नही करती तब तक उसे अपने कर्मो का निर्वहन करना ही पड़ता है ,वह शरीर चाहे कितने ही बदल लें | उषा "गुरू जी क्षमा करें जो आपको छेड़ दिया मैने, तेरी यह बाते मेरे सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं |" मेरा कहने का मतलब तू अच्छी है तो तेरे साथ अच्छा क्यों न हुआ?? मैने भी किसी के साथ कुछ बुरा किया होगा ?
उषा, अरी मेरी माँ! समझ गई मै ! समझ गई!! सो जा अब समय अधिक हो रहा है , कल ऑफिस भी जाना है | दोनो सोने का प्रयास करती हैं कि तभी उषा फिर से बोल पड़ती है "यार इच्छा! | इच्छा, हुम्म? , उषा "कौशल जी ने ठीक कहा था हमने नाहक ही इतने दिन उस समस्या के बारे मे सोचते हुए दिए जो अभी अस्तित्व मे आई भी नही है , आज लग रहा है जैसे सर पर से रख्खा बोझ उतर गया हो | " इच्छा
" हाँ हाँ! पर अब सो जा !! सुबह आफिस समय से ही पहुँचना है |"