इच्छा - 19 Ruchi Dixit द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इच्छा - 19

कई सप्ताह बीत जाने पर भी दोनो के मन से कम्पनी से निकाले जाने का भय नही गया था कि, एकदिन सचमुच उनके हाथ मे दो महीने की इंटीमेशन के साथ लेटर हाथ मे थमा दिया जाता है | जिसमे कम्पनी ने अपनी असमर्थता के साथ निकालने का कारण लिखा था | लेटर को पाकर भी इच्छा और उषा दोनो के ही चेहरे पर किसी प्रकार का बदलाव नही था| जैसे वे दोनो इसी की प्रतीक्षा कर रही थीं |जबसे नौकरी जाने की आन्तरिक सूचना मिली थी तब से ही, दोनो मानो बँधी बँधी सी रहने लगी थी | वो हँसना, खिलखिलाना सब जैसे भूल गईं |आज दोनो खुलकर हँसी वही पहले वाली हँसी ऐसा लग रहा था कि , जैसे वह लेटर डिमोशन का नही बल्कि प्रमोशन का हो | तभी दूर से एक आवाज सुनाई पड़ती है , "अरे मैडम हमे भी अपनी खुशियों मे शामिल करें | यहाँ मंदी के दौर मे भी आपका प्रमोशन हुआ", थोड़ा व्यंगात्मक लहज़े मे | इच्छा और उषा जो साथ बैठी उस लैटर को बार बार पढ़ हँस रही थीं कि उस व्यक्ति के ऐसे व्यंगात्मक शब्दों पर फिर से जोर से हँस पड़ी | तभी पुनः उस व्यक्ति की आवाज सुनाई पड़ती है, "आज कामयाब होने के लिए महिला होना ही काफी है | एक लम्बी साँस भरते हुए हुम्म ! पुरूष होने का दंश झेल रहे हैं हम सब |" तभी उषा का चेहरा गुस्से से लाल जैसे ही उसे कुछ बोलने को होती हैं , कि इच्छा उसे शान्त करा देती है | हँसी के बीच अपने दर्द को छुपाती दोनो ही एक पक्की कलाकार बन चुकी थी | वही कुछ लोगो को लगता कि मालिको ने इनका प्रमोशन कर दिया तभी तो यह इतनी खुश रहती हैं | आपस मे गुप चुप तरीके से मीटिंगे बैठने लगी जिसमें कम्पनी के मालिको के भेदभाव के प्रति भयंकर रोष प्रदर्शन होता |किन्तु यह प्रदर्शन केवल आपसी मीटिंग का ही हिस्सा थी | नौकरी जाने के भय से कोई बाहर नही बोलता | इच्छा और उषा के प्रति वहाँ के सहकर्मियों का व्यवहार बदलने लगा था | जिसे वे दोनो ही महसूस करते हुए भी अनदेखा कर रही थी | एक दिन शाम को प्यून के माध्यम से सबको कैंटीन मे एकत्रित किया गया , पर किसी को यह नही पता था कि आखिर बुलाया किसलिए गया है, और किसने बुलाया | सब एक दूसरे का मुँह ताक ही रहे थे की टेबल पर प्लेटे बिछाता प्यून बोला अरे सर! बैठिये न ! | तभी एक ने प्यून से कहा "पहले तू यह बता यहाँ किसने बुलाया है हमे "| प्यून "अभी पता चलेगा सर बैठिये | " तभी इच्छा और उषा मुस्कुराते हुए "सर हम दोनों ने आपको यहाँ बुलाया है | तभी उनमे से एक व्यक्ति "हाँ अब ! प्रमोशन मिला है तो पार्टी तो देंगी ही न ? कहाँ इस बार हमारी तनख़्वाह तक नही बढ़ाई गई | " तभी उनमे से दूसरा " हाँ !सब मालिकों की मेहरबानी, जिसपर मेहरबान हो जाये | "
हम तो उन्हें कब से खटक रहे हैं , बस एक मौका मिलने की ही देर है , निकालने में कहाँ देरी | " तभी इच्छा बोलती है " यह कम्पनी मेरे घर जैसी है और, आप सभी एक परिवार , आप सोच रहें होगें की यह टी पार्टी किसलिए तो ,आज कम्पनी मे अपना आखिरी दिन हम आप सब लोगों के साथ एन्जोय करना चाहते थे | बस, इसीलिए यह छोटा सा तरीका अपनाया हम दोनों ने | असुविधा के लिए क्षमा चाहती हूँ | पर आप लोगों के प्रेम और सहयोग के कारण ही ऐसी हिमाकत कर पाई हूँ | वहाँ पर मौजूद एक ने "पर आप जा क्यों रहीं हैं? मैने तो सुना आपका प्रमोशन हो गया है ? " इच्छा "प्रमोशन नही प्रद्युम्न जी हमारा डिमोशन हुआ है |" प्रद्युम्न " क्या कहा डिमोशन? पर आप लोग तो इतना खुश थी ? इतना खुश नौकरी जाने पर? क्या कहीं और अच्छी अपोर्ट्युनिटी मिली क्या ? सबकी आश्चर्यपूर्ण दृष्टि इच्छा और उषा के जवाब पर ही टिकी थी | उषा "नही सर अभी तो नही |" फिर आपलोग इतनी प्रसन्न क्यों ? इसका कारण जान मे नही आया | उषा और इच्छा दोनो एक दूसरे की तरफ देखने के बाद इच्छा बोली "क्या हमारा खुश रहना गलत था? " तभी उनमे से एक बुजुर्ग "नही बेटा ! बिल्कुल भी नही! बच्चे तुम दोनो ने हम सबको सीख दी है विपरीत परिस्थितियाँ तो जीवन मे आनी -जानी हैं पर जिसने संयम का त्याग न किया जीवन को केवल वही जिया |" और उठकर उन दोनो के पास पहुँच सिर पर हाथ फेरते हुए, जेब मे हाथ डाल कुछ निकालकर उषा और इच्छा के हाथ मे कुछ धरने को होते है कि, वे दोनो मना करने लगती हैं |तभी, वे बोल पड़ते है "बच्चों यह आशीर्वाद है मना नही करते |" और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा कैंटीन गूँज जाता है | शाम को ऑफिस से घर निकलते वक्त दोनो के चेहरे ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे , नाटक का पटाक्षेप हो जाने पर कलाकारों के थकान के बोझिल चेहरे | किन्तु, उस जैसी सन्तुष्टि का आभाव लिए |
आज घर जाने की कोई जल्दी न थी | दोनो मंदगति से ऑटो स्टैंड पहुँचती है किन्तु, बिना ऑटोरिक्शे पर बैठे ही मार्ग परिवर्तित कर पास मे बने एक पार्क की तरफ मुड़ जाती हैं | बहुत ही सुन्दर मनोहारी पार्क की एक बेंच पर इच्छा और उषा जाकर बैठ जाती हैं | बहुत सारे बच्चे खेल के पश्चात शाम के साथ धीरे -धीरे अपने अपने घर की ओर पलायन कर रहे थे | आसमान मानो हल्के काले धुएँ मे तब्दील हो रहा हो, अचनाक इच्छा स्ट्रीट लाईटो की तरफ देखती है जो, एक एक कर सारी जलते हुए मानो घर जाने का संकेत दे रही हों | उषा भी मौन धारण कर इस प्रकार बैठी जैसे, घर जाने की उसे कोई जल्दी न हो | अन्ततः दोनो ही ही बैग उठा घर के लिए निकल पड़ती हैं | अभी घर मे आये लगभग दस मिनट ही बीते थे कि बेल बचती है | "अओम् भूर भुवः स्वः " दोनो एक दूसरे को आश्चर्य से देखने लगती है तभी उषा उठकर गेट खोलती है , अरे आन्टी आप? आन्टी, " तुम आन्टी को भूल गया न? और ये! इच्छा की तरफ इशारा करती हुई मुझको माँ बोलता है !" आज माँ का जन्मदिन भूल गया |"
इच्छा चौकते हुये आज आपका जन्मदिन है? ऑन्टी ," आज पूरा दिन मैने अपने बच्चों का वेट किया |" इच्छा खुशी से चौकती हुई सच ऑन्टी आपके बेटे आ गये? ऑन्टी कौन बेटा ? मेरा कोई बेटा नही ? मेरी केवल बेटियाँ हैं लेकिन आज वो भी माँ का जन्मदिन भूल गया |" इच्छा और उषा दोनो ही भावुक होकर ऑन्टी से लिपट जाती हैं, " मुझे माफ कर दीजिए |" "ओके -ओके अब मस्का लगाना छोड़ो देखो हम तुम्हारे लिए क्या लाया है |" एक बड़े से आकर्षक पेपर बैग से कुछ निकालती हुई, "ये केक और ये रहा मूँग का हलवा , मैने अपने हाथो से तुम दोनो के लिए बनाया |" तभी एक दूसरे पेपर बैग से कपड़े निकाल कर इच्छा और उषा को थमाते हुए यह तुम दोनो के लिए | " उषा , "यह क्या ऑन्टी आज हमे आपको कुछ देना चाहिए उल्टा आप हमे ही दे रहे हो |" आप दोनो ने भी तो दिया न? उषा उत्सुकता से हमने? ऑन्टी, "हाँ !आप लोगो का प्यारा स्माईल |" मै कुछ दिनो से देख रहा था कि , आप लोगो के बीच कुछ हुआ है वो पहले जैसा बात नही रही | पहले कैसे चिड़ियों की तरह चहकता था तुम! , अब कब तुम आता है कब चला जाता है, कुछ पता ही नही चलता | मुझको तो तुम माँ कहता है न इच्छा? अपनी माँ से कोई बच्चा बात छुपाता है | " इच्छा "कोई खास बात नही है माँ! इच्छा के मुँह से माँ शब्द सुनते ही ऑन्टी की आँखे मानो सूखे जलाशय मे वर्षा का जल भर तटो को लांघ बाहर आ गयी हो | ऑन्टी, अपनी सूखी गोलियों को इच्छा के सर पर प्यार से हाथ फेरती हुई मानों मौन आशीर्वाद दे रही हों | तभी उषा बोल पड़ती है " बस इतना ही "? अरे ऑन्टी का बर्डे है कुछ धूमधाम हो जाये |" इच्छा और उषा के साथ आन्टी ने भी पुराने गानो पर खूब डान्स किया | घर जाते वक्त ऑन्टी ने दोनो के माथे को प्यार से चूमा ," हमेशा खुश रहो बेटा " कहती हुई चली गई |
सुबह जल्दी उठने के अभ्यास ने दोनो की नींद तो खोल दी पर थी , किन्तु मन की उदासीनता से उन्हें बिस्तर से न उठने दिया | आखिर उठ कर करना भी क्या था | आफिस छूटा तो ऐसा लग रहा था मानो उनके पास करने को कोई काम ही न बचा हो | इच्छा कुछ देर बिस्तर पर पड़े सोचने के बाद अचानक उठ उषा को झकझोरती हुई "अरी उठ ! कितना सोईगी मरी ! |" उषा जो कि बिना नींद के ही आँख मूँदे बिस्तर पर पड़ी चौकते हुए | क्या हो गया तुझे? "नौकरी जाने के ग़म मे सुबह ही लगा ली" ? इच्छा मुस्कराहट के साथ उषा का कान खीचतीं हुई क्या बोली तू? उषा "ई इ् इ् ई अरे मॉफ कर दे यार ! तेरी बदली हुई भाषा पर यकीन नही हो रहा था | " इच्छा, बिना छोड़ेही और कसकर कान भींचतीं हुई, क्या कहा ? अच्छा अच्छा! मॉफ कर बाबा, तू तो संत महात्मा तेरे बारे मे तो ऐसा सोचना भी पाप है | अरे अब तो छोड़ दो |" इच्छा, कान छोड़ती हुई, हुम्म! | उषा, पर यह बता सुबह सुबह कौन सी घूँटी पी ली तूने, यहाँ साला रात भर नींद नही आई, सुबह तक आँख चिपकाये पड़ी हूँ | और तेरे माथे पर शिकन तक नही | तुझे चिन्ता नही ? इच्छा, " उषा चल हम दोनों इस छत से कूद जाते हैं |" उषा " मरी तू पागल हो गई है? क्या बकवास कर रही है? हे राम अब इसके इलाज का खर्च कौन उठायेगा? इच्छा " चिन्ता का मतलब चिता | " समस्या का हल बैठ कर चिन्ता करना नही बल्कि प्रयास है | तू मुझे चिन्ता करने को कह रही है |" उषा सहमति मे हुम्म! पर कुछ सोचा है तूने ! सभी कंपनियों का यही हाल नई भर्तियाँ हो नही रही पुरानी को निकाला जा रहा है | अब हम कमरे का किराया कैसे देंगे ? क्या खायेंगे? और तुझे पता है इच्छा ! घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है | बहन की शादी होने वाली है , अब बता कैसे मैनेज होगा, यह सब ? इच्छा " सब हो जायेगा हम प्रयास करेंगे |" लेकिन अगर तू चिन्ता करेगी, बिना प्रयास चिता तक पहुँच जायेंगे |अब अपने दिमाग को दुरूस्त रख ताकि, यह बेचारा तेरा साथ दे सके समझी ! | उषा लम्बी साँस खीचती हुई हुम्म !! | अगली सुबह दोनो रोज की तरह ही जल्दी उठ जाती हैं | इच्छा उषा से "चल आज पार्क मे घूमकर आते हैं |" उषा, "हाँ ! तूने ठीक कहा मैने सुना है पार्क बहुत सुन्दर है |" दोनो पार्क मे टहलने निकल पड़ती है | ऑफिस की भागमभाग भरी ज़िन्दगी के बाद आज पहली बार सुबह सूर्य की नवीन किरणो को इत्मीनान से महसूस करती हुई ,आनन्दित हो रही थी | दोनो ही झगड़ती, कभी खिलखिलाकर हँसती, आपस मे ही छेड़खानी करते जैसे , अपनी युवावस्था भूलकर मानो बचपन मे प्रवेश कर गईं हों | यहाँतक कि उन्हें आसपास बैठे आते -जाते लोगो का भी ध्यान न रहा | उनकी इन हरकतों को एक युवक जो वहीं पास एक पेड़ के नीचे बैठा बड़ी देर से देख रहा था | इच्छा के पास आकर "नमस्ते जी! मेरा नाम प्रभाकर है"| पास की बिल्डिंग मे ही मेरा फ्लैट है, लेकिन मैने आप दोनो को पहले कभी नही देखा? तभी उषा तपाक से! "नही देखा तो क्या हुआ ? हम पार्क मे घूम नही सकते ? प्रभाकर " नही! ऐसा नही है!! मै इस कालोनी का अध्यक्ष नियुक्त हुआ हूँ | यहाँ रहने वाले सभी लोगों की जानकारी मुझे है सिवाय आप लोगों के | मै यहाँ की जो भी सार्वजनिक छोटी बड़ी समस्यायें है उन्हे देखता हूँ |" उषा, "अच्छा आप ही हैं अध्यक्ष महोदय कैसी देखभाल कर रहे है आप ? दिन दहाड़े चोर उच्चक्के लोगों को परेशान करें |" प्रभाकर "अरे! यह क्या कह रहे हैं आप? मुझे तो किसी ने बताया नही ?" उषा आगे बोलने को होती है तभी इच्छा
इशारे से उसे रोता हुई , " हम सामने वाली बिल्डिंग के एक फ्लैट मे किराये पर रहते है, हाँलाकि अभी तक हम जिस कम्पनी मे कार्यरत थे यहाँ का किराया वही वहन करती थी या यूँ कहें कि कम्पनी की तरफ से ही यह सुविधा दी गई थी इसे भी अब जल्द ही छोड़ना पड़ेगा | आपने कम्पनी क्यों छोड़ी? इच्छा कुछ कह पाती इससे पहले ही उषा बोल पड़ती है, "हमने कहाँ कम्पनी छोड़ी, कम्पनी ने ही हमे छोड़ दिया | उषा के मासूमियत भरे शब्दों का आकर्षण प्रभाकर को मानो अपनी ओर खींच रहा हो, अपने चेहरे पर मुस्कुराहट के आभास होते ही उसे रोकते हुए, "आप लोग यहाँ के नही लगते "? इच्छा " जी , सही पहचाना आपने, हम यहाँ जॉब की वजह से ही हैं, आर्थिक मंदी की वजह से हमारे साथ बहुत से लोगो को कंपनी ने निकाल दिया , हम भी उन्ही मे से हैं, प्रभाकर "अब आप लोग क्या करेंगें "? इच्छा सॉस खींचती हुई ,हम्म! पता नहीं ! | बात बदलते हुए "चलिए छोड़िये! आप बता रहे थे कि यहाँ चोर -उचक्के, क्या मामला है "? उषा "अरे वो " जैसे ही बताने को होती है, इच्छा बात को टालती हुई अरे देर हो रही है चल! " और दोनो ही घर की तरफ चल पड़ती हैं , प्रभाकर वही खड़ा उनके ओझल होने तक देखता वहीं खड़ा देखता रहा | क्रमश :