शम्बूक - 26 ramgopal bhavuk द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

शम्बूक - 26

उपन्यास : शम्बूक 26

रामगोपाल भावुक

सम्पर्क सूत्र-

कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

मो 0 -09425715707 Email-tiwari ramgopal 5@gmai.com

17 जितने मुँह उतनी बातें- भाग 1

17. जितने मुँह उतनी बातें-

सुमत योगी ने सुना है- एक रात कुछ लोगों ने शम्बूक के आश्रम पर आक्रमण कर दिया। सारे आश्रम को तहस- नहस कर ड़ाला। उस संघर्ष में अनेक लोग मारे गये। उसमें शम्बूक ऋषि की हत्या कर दी गई। वह आश्रम पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया। उसकी सारी व्यवस्था उजाड़ दी गई।

कुछ लोग आपस में इसी सम्बन्ध में बार्ता करते हुये पथ संचरण कर रहे थे- रत्नेश कह रहा था-‘ शम्बूक का आश्रम तो श्री राम ने ही नष्ट करवाया है। उस आश्रम में राम राज्य के विरुद्ध षडयन्त्र रचा जा रहा था इसलिये श्रीराम ने ही उसे अपनी सेना भेजकर नष्ट करवा दिया।

मृगेश उसकी बात सुनकर कुछ सोचते हुये बोला-‘ तुम हमेशा बिना सिर पैर की बातें करते रहते हो। शम्बूक तपस्वी था। उसे श्री राम की सेना क्या मार पाती? मैंने तो सुना है-श्री राम ने ही उस आश्रम में पहुँचकर उसे चमचमाती तलवार से मारा है। एक शूद्र तपस्या करे, यह बात श्रीराम और उनको परामर्श देने वाले ऋषियों को पसन्द नहीं आने वाली थी। सम्भव है इसीलिये श्रीराम ने ही उसे मारा हो। अभी इस बात के सही प्रमाण नहीं मिल पा रहे हैं।’

कोई उनकी बातों को आत्मसात करने का प्रयास कर रहा था। उससे भी रहा नहीं गया तो बोला-‘ सुना है शम्बूक राम के सम्बन्ध में झूठा प्रचार करने में लगा था। वह कहा करता था- राम ने निरीह हिरण की हत्या की थी जिसका परिणाम उन्हें यह दण्ड भोगना पड़ा है। उनकी पत्नी सीता का हरण हुआ। श्री राम उन्हें खोजते हुये दर- दर भटकते फिरे।

दूसरा बात काटते हुये बोला-‘अरे! राजा को शिकार करने का अधिकार है। इसमें उन्हें कैसे पाप लग गया। यदि इसमें उन्हें पाप लग गया है तो फिर कोई राजा अपने कर्तव्य का पालन कर ही नहीं पायेगा। तुम्हारी यह भी कोई बात हुई।’

एक गाँव की चौपाल पर लोग चर्चा कर रहे थे-‘रावण पर आक्रमण करते समय श्री राम ने सारी वन्य जातियों को क्षत्रिय बना दिया। उनकी इस बात का उस समय किसी ने कोई विरोध नहीं किया। यदि एक शूद्र ब्राह्मण बनना चाहता है उसे ब्राह्मण बना देते अथवा वह जो चाहता था उसे प्रदान कर देते। उसका उन्हें वध करने की क्या आवश्यकता थी?’

एक अन्य ने बात आगे बढ़ाई-‘ भैया, मैंने तो सुना है, उस तपस्वी का आश्रम श्री राम ने ही उजाड़ा हैै उसकी हत्या करने के लिये वे तलवार लेकर चले थे। घनुष बाण से रावण जैसे महाबली को मार दिया फिर शम्बूक को मारने के लिये तलवार लेकर चलने की क्या आवश्यकता हुई? उसे भी बाण से ही मार देते।’

उनमें से किसी ने बात उठा दी-‘भैया,मैंने तो सुना है, श्री राम शम्बूक को बन्दी बनाकर उसे अपनी राजसभा में ले आये थे। वहाँ सभी ऋषि-मुनियों के परामर्श से उसकी उस ब्राह्मण के सामने हत्या कर दी जिससे वह ब्राह्मण अपने पुत्र की मृत्यु के दुःख को भूलकर श्री राम को आर्शीबाद देते हुये चला गया।

तीसरा बोला-‘ मैंने तो सुना है, श्रीराम ने अपनी सेना के साथ उस आश्रम पर आक्रमण किया, शम्बूक ने भी सेना तैयार कर ली थी। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ जिसमें शम्बूक मारा गया।

चौथे अपनी बात कहने के लिये व्याकुल हो रहा था। बोला-‘ मैंने तो सुना है कि श्री राम के सैनिक उस आश्रम में आये और शम्बूक को बन्दी बनाकर मारते- पीटते एवं उसे बुरी तरह घसीटते हुये राम के दरवार तक ले गये । वहाँ राम की आज्ञा से उसकी हत्या कर दी गई।’

पाँचवा व्यक्ति भी कहने के लिये उठकर खड़ा हो गया। जैसे ही चौथे ने अपनी बात पूरी की उसने अपनी बात कहना शुरू कर दी-‘भैया, मैंने तो सुना है, वे जिस यान से उसे ढूढ़ते हुये आये थे उसी से उसे लेकर जाने कहाँ चले गये। कुछ लोगों का कहना है कि ने उसे वैराज नाम के लोक में छोड़कर आये हैं। इसी कारण उसका कहीं पता नहीं चल रहा है कि वह कहाँ विलीन हो गया है।

एक बड़ी देर से चुपचाप बैठा इन सब की बातें सुन रहा था वह इसके चुप होते ही बोला-‘ भैया, मैंने तो कुछ और ही सुना है कि राम जी के लोग उसे पकड़कर ले गये और उसे सरयूनदी में ले जाकर डुबो दिया जिससे उसके अस्तित्व का किसी को पता ही न चल पाये।

सुमत योगी ने यथार्थ की तह तक पहुँचने का प्रयास किया- उसकी बुआ के गाँव के लोग इसी आश्रम पर दवा लेने जाते रहते हैं। वे कह रहे थे- वह आश्रम तो जैसे का तैसा बना है। वहाँ की कार्य प्रणाली में भी कोई अन्तर दिखाई नहीं देता। हाँ शम्बूक ऋषि के अधिक बृद्ध होने के कारण कुछ दिनों से उनके दर्शन करने का अवसर नहीं मिल पाया है। उस आश्रम पर जाने से पहले उसके सम्बन्ध के वारे में क्या- क्या नहीं सुना था पर वहाँ पहुँचकर ऐसी कोई बात नहीं दिखी। जो लोग आश्रम से लौटकर आते हैं बतलाते हैं कि श्री राम के परिजनों के उपानह और बस्त्र उसी आश्रम से खरीद कर मंगाये जाते हैं। भैया, हमने यह भी सुना है, श्री राम के परिजनों के लिये दवायें भी उसी आश्रम से मगाई जाती हैं।

000000