अपने-अपने कारागृह - 4 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपने-अपने कारागृह - 4

अपने अपने कारागृह - 3

अजय का हजारीबाग स्थानांतरण हो गया था । नक्सली एरिया था पर जब काम करना है तो कहीं भी स्थानांतरण हो जाना ही पड़ता है । वैसे भी वह सदा सुरक्षाकर्मियों के साथ ही चलते हैं । पदम और रिया की दीपावली की छुट्टियां होने वाली थीं वे आने वाले थे । अजय ने मम्मी -पापा से आग्रह किया था अगर वह भी आ जाए तो इस बार पूरा परिवार मिलकर दीपावली साथ मनाएं । वे मान गए ।

इस बार अजय उन्हें रजरप्पा के प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां छिन्नमस्तिके के मंदिर के साथ प्रसिद्ध तीर्थ स्थल गया के भी दर्शन करवाना चाहते थे । दरअसल मम्मी- पापा ने एक बार गया जाकर अपने माता-पिता का पिंडदान करने की चाहत अजय के सम्मुख रखी थी । हमारे समाज में मान्यता है अगर व्यक्ति अपने पितरों का गया जाकर पिंड दान कर दे तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है अतः इस बार अपने मम्मी- पापा की इच्छा का आदर करते हुए अजय ने गया जाने का भी कार्यक्रम बना लिया था । आना तो अंजना को भी था पर उसके ससुरजी दिनेशजी को हार्ट अटैक आ गया था जिसकी वजह से वह नहीं आ पा रही थी ।

पदम और रिया आ गए थे । वे भी अपने दादा -दादी के साथ दीपावली मनाने के लिए अत्यंत ही उत्सुक थे । वे उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें आना था । पदम और रिया भी उन्हें स्टेशन लेने जाना चाहते थे ।

' ट्रेन सुबह 6:00 बजे आएगी । क्या तुम दोनों जग जाओगे ?' उनकी उत्सुकता देखकर उषा ने पूछा था ।

'जैसे ही आप हमें आवाज देंगी , हम जग जाएंगे ।'दोनों ने एक साथ कहा था ।

छुट्टी के दिन 10, 11 बजे से पहले न जगने वाले पद्म और रिया की उत्सुकता देखने लायक थी ।

' मैं दादी जी से खूब कहानियां सुनूँगी ।' रिया ने अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा ।

' और मैं दादा जी के साथ कैरम और चेस खेलूंगा ।' पद्म भी कहाँ पीछे रहने वाला था ।

' कैरम तो मैं भी खेलूंगी ।'

'और जब हारेगी तो रोयेगी भी, प्लीज भैया मुझे जिता दो ।' कहकर पदम ने उसे चिढ़ाया था ।

' अब मैं नहीं रोऊँगी । अब मैं बड़ी हो गई हूँ । वैसे भी मैं दादा जी को पार्टनर बनाऊंगी । वह मुझे कभी हारने ही नहीं देंगे ।'

' वाह ! कहानी के लिए दादीजी और कैरम के लिए दादा जी । तू तो दलबदलू है ।'

' दलबदलू कैसे ? दादाजी तुम्हारे हैं मेरे नहीं...।'

' फिर तू हमेशा दादी की पूँछ क्यों बनी रहती है ?'

' दादी मेरी मनपसंद चीजें बना कर देती हैं । कभी डाँटती नहीं हैं ।'

'तो क्या दादाजी डाँटते हैं ? '

' डाँटते तो वह भी नहीं है पर वह दादी जी की तरह मेरी मनपसंद डिश बर्गर , चाऊमीन तो नहीं बना सकते ।'

' भुक्की कहीं की ...।' कहते हुए पदम ने रिया को एक बार फिर चिढ़ाया था ।

'ममा, भाई मुझे चिढ़ा रहा है ।'

'बस चिढ़ गई, मम्मी की पूँछ ...।'

' पदम अब उसे और मत चिढ़ा । तेरी छोटी बहन है । ट्रेन राइट टाइम है । खाना खाकर जल्दी सो जाओ वरना सुबह आँख नहीं खुलेगी ।'उषा ने दोनों को शांत कराते हुए कहा ।

यद्यपि उसे बच्चों की नोंक-झोंक अच्छी लग रही थी । उसके जीवन में ऐसे खुशनुमा पल बहुत ही कम आ पाते थे किन्तु अगर वे जल्दी सोयेंगे नहीं, तो उठेंगे कैसे ? इसलिए उसे उन्हें रोकने ही पड़ा ।

'ओ.के. ममा खाना दे दीजिए ।'

' हमें सुबह उठा दीजिएगा ।' खाना खाकर पदम और रिया ने सोने जाते हुए कहा ।

' ठीक है, अब तुम दोनों सो जाओ ।'

रात्रि 4:00 बजे फोन की बजती घंटी ने उन्हें नींद से जगा दिया। अजय का काम ही ऐसा है कि 24 घंटे उसे वर्कप्लेस पर रहना होता है अतः फोन ना उठाने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता । रिसीवर उठाकर कान से लगाया ही था कि उधर से आती आवाज सुनकर वह अवाक रह गया…

' सर्वेश उस ट्रेन से मेरे मम्मी- पापा भी आ रहे हैं । ए.सी -2 में उनका रिजर्वेशन है । उनका बर्थ नंबर 7 और 9 है । प्लीज उनको उतारकर सेफ जगह पहुंचा देना । तब तक मैं रिलीफ टीम के साथ पहुंचता हूँ ।'

क्या ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है ?' उषा ने चिंतित स्वर में पूछा ।

' लातेहार से 20 किलोमीटर दूरी पर नक्सलियों ने ट्रेन में विस्फोट कर दिया है । लातेहार के डी.एम .ने हमसे मदद मांगी है । हम अपनी रेस्क्यू टीम लेकर जा रहे हैं । ' कहते हुए अजय ने फोन मिलाना प्रारंभ कर दिया तथा आवश्यक निर्देश देने लगे ।

' हे भगवान !मम्मी जी और पापा जी ठीक प्रकार से हों...।' अजय की बात सुनकर उषा बुदबुदा उठी थी ।

अत्यावश्यक स्टेप लेने के पश्चात जब तक अजय तैयार हुए एस.पी. विनय मित्रा अपनी टीम के साथ आ गए । हजारीबाग से लातेहार 137 किलोमीटर दूरी पर है । ढाई घंटे से पहले उनका पहुँचना नामुमकिन था ।

अधिक जानकारी के लिए उषा ने टी.वी खोल लिया । घटना का प्रसारण हो रहा था... नक्सलियों द्वारा किये इस ब्लास्ट से लगभग चार डिब्बे तबाह हो गए हैं। लगभग 400 लोगों के मारे जाने की खबर आ रही थी...सैकड़ों लोग घायल हैं... मदद तो अभी तक नहीं पहुंच पाई है । स्थानीय लोग ही घायलों को निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा रहे हैं । जिनके पास साधन हैं वे अपनी गाड़ी से घायलों को अस्पताल में भर्ती करवा रहे हैं । तभी कैमरा घूमा... एक आदमी एक महिला के हाथ से सोने के कंगन निकाल रहा था इसी के साथ एंकर की आवाज गूँजी…'देखिए कुछ लोग तो सहायता कर रहे हैं वहीं कुछ अराजकतत्व घायलों को लूटने से भी बाज नहीं आ रहे हैं ।'

एक नक्सली संगठन ने इस घटना की जिम्मेदारी ली थी । उषा को जहां घायलों को लूटने वाला दृश्य दंशित कर रहा था वहीं वह यह नहीं समझ पा रही थी कि आखिर यह नक्सली चाहते क्या हैं ? इनको तो गरीबों का मसीहा कहा जाता है । इनकी उत्पत्ति ग़रीबों, शोषकों ,आम जनों को न्याय दिलवाने के लिए हुई थी पर अब ऐसे संगठन उन्हें न्याय दिलवाने की जगह उनके ही कंधे पर बंदूक रखकर चलाने लगे हैं । इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ दहशत फैलाना है । इसीलिए जगह- जगह मार-काट, विस्फोटों के द्वारा कभी सी.आर.पी.एफ के जवानों को उड़ाने की घटना तो कभी ट्रेन में विस्फोट... पीठ पीछे से वार करना, लड़ाई लड़ना नहीं वरन कायरता है । ऐसे लोग समाज के दुश्मन हैं तभी ऐसा विध्वंसकारी कार्य करते हुए यह लोग यह भी नहीं सोच पाते हैं कि ऐसा करके वे अपने देश की संपत्ति को नष्ट कर देश के विकास को अवरुद्ध कर रहे हैं ।

' इस विस्फोट में एस 19, 10 तथा 11 बोगियां तो नष्ट हो ही गई है बी 1 तथा ए.सी 2 की बोगियां भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं ।' सुनकर उषा को शॉक लगा ।

ए. सी.-2 में ही तो मम्मी पापा का रिजर्वेशन है । कहीं वे तो... सोचकर वह सिहर उठी ।

उसने तुरंत अजय को फोन मिलाया वह नॉट रिचेबिल बता रहा था । कई बार फोन किया पर बार-बार वही आवाज सुनकर वह परेशान हो उठी । अंततः उसने एस.पी विनय मित्रा को फोन मिलाया । रिंग जा रही थी सुनकर वह बुदबुदा उठी...मित्रा फोन उठाओ ।

' हेलो ...।' सुनकर वह पूछ उठी, ' मित्रा भाई साहब अजय कहाँ है ? उनका फोन कब से मिला रही हूँ पर अनरिचेबिल रहा है । अजय के मम्मी -पापा का क्या पता चला ? वह भी इसी ट्रेन से आ रहे हैं । ए. सी 2 में रिजर्वेशन है- बर्थ नंबर 7 और 9 ।'

' भाभी जी, अभी हम पहुंचे नहीं हैं । पहुंचने के पश्चात ही पता चल पाएगा । सर दूसरी गाड़ी में है । मैं उनसे कहूंगा कि वह आपसे बात कर लें पर आप चिंता ना करें सब ठीक ही होगा ।'

अब सिवाय इंतजार के अन्य कोई उपाय नहीं था । उसकी आवाज सुनकर बगल के कमरे में सोये पदम और रिया भी उठ कर आ गए । उनके आते ही उसने टी.वी बंद कर दिया । उषा उन्हें इस घटना के बारे में बताकर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी । उन्होंने अजय के बारे में पूछा तो कह दिया... तुम्हारे पापा को अति आवश्यक काम आ गया था जिसकी वजह से उन्हें जाना पड़ा ।

' माँ कब तक आएंगे डैडी ?' पद्म ने पूछा ।

'जब काम समाप्त हो जाएगा तब आ जाएंगे ।'

' ममा, डैडी को रात में ऐसा क्या काम आ गया कि उन्हें जाना पड़ा...आप उन्हें रोकती क्यों नहीं हो ?' रिया ने प्रश्न किया था ।

' बेटा उनका काम ही ऐसा है, मैं उन्हें कैसे रोक सकती हूँ ।'

' फिर दादा-दादीजी को लेने कौन जाएगा ?' रिया के चेहरे पर चिंता झलक आई थी ।

' तब तक आपके डैडी आ जाएंगे । अगर नहीं आ पाए तो हम सब लेने चलेंगे । ट्रेन लेट हो गई है । आप दोनों आराम से सो जाओ अभी रात बहुत बाकी है ।'

' क्या ट्रेन लेट हो गई है ? आपको कैसे पता चला?' पद्म ने पूछा ।

' अभी थोड़ी देर पूर्व इंक्वायरी से पता लगाया था । ' उषा ने उन्हें संतुष्ट करने के प्रयास में झूठ का सहारा लिया ।

' ओ.के . ममा पर आप भी चलो मुझे बहुत डर लग रहा है ।' रिया ने कहा था ।

रिया का आग्रह देखकर वह उनके साथ चली गई । रिया उससे चिपक कर सो गई थी पर उसकी आंखों में चिंता के कारण नींद नहीं थी । उन्हें सोते देखकर अंततः वह धीरे से उठी और फिर जाकर टी.वी. ऑन कर लिया । मृतकों की संख्या और बढ़ गई थी । हेल्पलाइन नंबर पर कांटेक्ट करने के लिए कहने के साथ ही साथ सदा की तरह सरकारी मशीनरी के ढुलमुलपन को कोसा जा रहा था । न जाने क्यों उसे लगने लगा था कि सरकारी मशीनरी को कोसना मीडिया की आदत बनती जा रही है । क्या मीडिया को यह नहीं पता है कि सरकारी अधिकारी कैसे, किन-किन हालतों में सीमित साधनों के संग अपना कर्तव्य निभाने का प्रयास करता है ? अगर ऐसा न होता तो लातेहार के डी.एम . सहायता के लिए अजय को फोन नहीं करते और अजय अपनी टीम को लेकर तुरंत जाते । उसके बाद भी सरकारी मशीनरी पर ढुलमुलपन का आरोप और फिर मीडिया भी अपना कर्तव्य ठीक से कहां निभा पाता है !! मीडिया का कर्तव्य सिर्फ बुराई उजागर करना ही नहीं, उसका निवारण करना भी है । हाल की घटना ही देखें मीडिया ने लूटने की घटना तो दिखाई पर क्या उसने उस आदमी को पकड़ने या उस महिला को उसका सामान लौटाने में तत्परता दिखाई । मीडिया कभी किसी को पीटते हुए दिखायेगा पर पीटने वाले को रोकते हुए नहीं । इन वारदातों के लिए वह बार-बार पुलिस या समाज को दोषी ठहराता है पर स्वयं को नहीं । यह कैसा दोहरा मापदंड है !!

अभी अभी सूचना मिली है कि हजारीबाग के डीएम अजय विश्वास के पिता इस हादसे में मारे जा चुके हैं तथा उनकी मां गंभीर रूप से घायल है । उन्हें अभी -अभी एक एंबुलेंस द्वारा रांची मेडिकल कॉलेज भेजा जा रहा है डी.एम .साहब अपने ही दुख में इतना परेशान है कि उन्हें और किसी की चिंता ही नहीं रही है ।

' नहीं... ऐसा नहीं हो सकता। ' सुनकर उषा चीख उठी थी ।

उसने एक बार फिर अजय को फोन मिलाने का प्रयास किया पर उसने फोन ही नहीं उठाया शायद वह यह दुखद समाचार उसे फोन द्वारा नहीं देना चाहता था । शायद अजय को पता नहीं था कि उसे मीडिया के द्वारा सब कुछ पता चल चुका है पर मीडिया का ऐसा आरोप सुनकर उषा अवाक रह गई थी । क्या डी.एम . इंसान नहीं है ? क्या उसकी भावनाएं संवेदनाएं मर चुकी है ? क्या उसे शोक मनाने का अधिकार नहीं है ?

उसने टी.वी . बंद कर दिया था । अब बाकी ही क्या बचा था । अब तो बस अजय का ही इंतजार था । वह समझ नहीं पा रही थी कि वह पदम और रिया को क्या कहकर सांत्वना देगी। वे तो अपने दादा -दादीजी के साथ दीपावली मनाना चाह रहे थे । टी.वी. के द्वारा सभी को इस मनहूस खबर का पता लग चुका था । कोई उससे मिलने आ रहा था तो कोई फोन द्वारा समाचार ले रहा था । वह सब को यही कह रही थी कि उसे भी इतना ही पता है जितना उन्हें । यद्यपि उसने घर के नौकरों को इस घटना के बारे में बच्चों को बताने से मना कर दिया था पर वह इतने भी छोटे नहीं थे । कि हवा का रुख भांप न सकें ।

' मम्मा क्या हुआ ? आप परेशान लग रही हैं ।' सुबह अपने कमरे से निकलते ही पदम ने उससे पूछा ।

' कुछ नहीं बेटा ...।'

' कुछ तो हुआ है । आप हमें बता नहीं रही हैं । डैडी भी अभी तक नहीं आए हैं । क्या दादा -दादीजी को लेने नहीं जाना है ?'

' बेटा, तुम्हारे दादा जी अब कभी नहीं आएंगे ।'

' क्यों ममा ?' रिया ने पूछा था ।

' बेटा आप के दादाजी की डेथ ट्रेन एक्सीडेंट में हो गई है तथा दादी जी अस्पताल में एडमिट हैं ।' कहकर उषा ने उन दोनों को आगोश में भर लिया । आखिर वह उनसे कब तक झूठ बोलती !! कम से कम बाद में किसी अन्य के द्वारा सच पता चलने पर वे उस पर झूठ बोलने का आरोप तो नहीं लगाएंगे ।

' नहीं .. आप झूठ बोल रही हैं ।' पद्म ने अविश्वास से उसकी ओर देखते हुए कहा ।

'काश यह झूठ ही होता ।' कहकर उषा बिलख पड़ी थी । उसके साथ भी बच्चे भी रोने लगे ।

शीला मित्रा स्वयं खाना लेकर आईं पर बच्चों ने भी खाने से इंकार कर दिया । शाम को जब अजय में घर में कदम रखा तो उनकी हालत बेहद नाजुक थी । वह लगभग टूट चुके थे । उसे देखते ही अजय ने कहा ,' उषा, मैंने पापा को खो दिया । मैंने तो उनको मां छिन्नमस्तिके के दर्शन के लिए बुलाया था पर मां ने ऐसा क्यों किया ? मैं तो उनकी पिंडदान की इच्छा भी पूरी नहीं कर पाया । उनका पूरा शरीर जलकर राख हो गया । मैं उनके सामान से ही उनकी शिनाख्त कर पाया । मैं कितना अभागा हूँ उषा कि अपने पिता को मुखाग्नि भी नहीं दे पाया । ट्रेन की उनका अंतिम क्रिया स्थल बन गई । मैं कुछ नहीं कर पाया ...मैं कुछ नहीं कर पाया ।' कहकर अजय बिलख पड़े ।

' भाग्य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता...वस्तुस्थिति को हमें स्वीकार करना होगा । गनीमत है मम्मी जी बच गईं ।' स्वयं को नियंत्रित कर उसने अजय के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था ।

' मम्मी जी के बारे में तुम्हें कैसे पता चला ?' अजय ने स्वयं को संभालते हुए पूछा ।

' टी. वी न्यूज़ से .. ।'

'ओह!...'

' मम्मी जी को ज्यादा चोटें तो नहीं आईं ।'

' चोट तो अधिक नहीं आई हैं । जब विस्फोट हुआ था तब वह बाथरूम में थीं अतः बच गईं पर अभी भी इस दुर्घटना के कारण मेंटल शॉक की स्टेट में हैं । वह आई.सी.यू .में भर्ती हैं ।'

' मम्मीजी को कुछ नहीं होगा । जो चला गया उसे लौटा कर तो नहीं लाया जा सकता पर जो बच गया है उसे कुशल घर ले आयेन । चले मम्मी जी के पास ।' उसने अजय की ओर भरी आंखों से देखते हुए कहा ।

' पर बच्चे . .।'

' वे भी चलेंगे । वे भी अपनी दादी जी से मिलना चाहते हैं ।'

'क्या तुमने उन्हें यह सब बता दिया ।'

' बताना ही पड़ा वरना उन्हें किसी अन्य से पता चलता तो पता नहीं कैसे रियेक्ट करते । '

' कहाँ हैं वे दोनों ?' अजय ने संयत होकर पूछा ।

' वे कुछ कह-पी नहीं रहे थे । शीला मित्रा उन्हें यह कहकर अपने घर ले गईं हैं कि शायद वे उनकी बेटी के साथ कुछ खा लें । '

अभी बात कर ही रहे कि अजय के फोन की घंटी बजी उठी .. .फोन उठाया तो अंजना थी, ' भाई , अभी -अभी मैंने टी.वी पर यह खबर सुनी, क्या यह सच है ?'

' हां बहन, सच है, मैं कुछ नहीं कर पाया । ' कहकर अजय सुबुक पड़े ।

' मम्मी जी...।'

' उन्हें मेडिकल कॉलेज में एडमिट करा कर आया हूँ । अब बच्चों को लेकर जा रहा हूँ ।'

' भइया आना तो मैं भी चाहती थी पर क्या करूं पापा जी की तबीयत ठीक नहीं है ।' कहते हुए अंजना रो पड़ी थी ।

' रो मत बहन । हमें स्थिति को स्वीकारना ही होगा । तुम पापा जी की ओर ध्यान दो । अपने पापा को तो हम खो चुके हैं उन्हें मत खोने देना ।'

उस बार जैसी मनहूस दिवाली कभी नहीं मनाई गई । तेरहवीं के दिन सारे कर्मकांड किए गए । अंजना और मयंक सिर्फ एक दिन के लिए ही आ पाये । अफसोस था तो बस इतना कि माँ जी उस दिन तक भी अस्पताल से घर नहीं आ पाई थीं ।

पदम और रिया की छुट्टियां समाप्त हो गई थीं । वे भी लौट गए थे । मम्मी जी को अस्पताल से घर आने में लगभग 20 दिन लग गये । अभी भी वे शॉक की स्थिति में ही थीं । वह न किसी से बात करना चाहतीं और न ही खाना खाना चाहतीं । उषा और अजय दोनों मिलकर भी उनकी चुप्पी नहीं तोड़ पा रहे थे । लगभग एक हफ्ते पश्चात उन्होंने कहा , ' मुझे अपने घर जाना है ।'

अजय ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया था पर वह नहीं मानी । अंततः अजय और उषा उन्हें छोड़ने गये । घर पहुँचने के दूसरे दिन से ही उन्होंने स्कूल ज्वाइन कर लिया । धीरे धीरे वह सहज होने लगीं । अजय तो कुछ दिनों पश्चात लौट गए थे पर मम्मी जी के मना करने के बावजूद भी उषा रुक गई थी । उसे अपने पास रुका देखकर वह लगभग रोज उससे कहतीं, ' तू जा बेटी, अजय अकेला होगा । मैं ठीक हूँ । अब तो मैंने स्कूल भी ज्वाइन कर लिया है । कुछ भी होगा तो फोन तो है ही ।'

अंततः उनकी बात मान कर अपनेबमम्मा- डैडी को उनका ध्यान रखने के लिए कहकर वह लौट आई थी । कहते हैं प्रलय आये या झंझावात , जीवन को चलना है चलता ही जाता है ।

सुधा आदेश

क्रमशः