यादों के उजाले - 4 Lajpat Rai Garg द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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यादों के उजाले - 4

यादों के उजाले

लाजपत राय गर्ग

(4)

विमल के उत्तर पर रवि भी अपनी हँसी रोक नहीं पायी।

ऐतिहासिक स्थलों के गाइड मनोविज्ञान में पारंगत होते हैं। जिस ग्रुप में युवती या महिला होती है, उन्हें विश्वास होता है कि ये लोग गाइड अवश्य करेंगे। अत: जैसे ही रवि ने ड्राइवर को पैसे दिये, तीन-चार गाइड अपनी सेवाएँ देने के लिये अपने-अपने ट्रिक आज़माने लगे। रवि ने एक गाइड जिसने अढ़ाई-तीन घंटे उनके साथ रहकर जानकारी देने की बात रखी, को हामी भर दी।

आमेर दुर्ग में प्रवेश करने के लिये जैसे ही ये लोग पैदल चलते हुए ऊपर पहुँचे तो गाइड ने अपना काम आरम्भ कर दिया। उसने बताया - ‘सबसे पहले मैं आप लोगों को इस दुर्ग की मुख्य-मुख्य विशिष्टताएँ बताता हूँ। फिर जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, मैं उन स्थलों/घटकों की विशेष जानकारी आपको बताऊँगा।....यह दुर्ग कछवाहा राजपूत नरेश मानसिंह प्रथम ने बनवाया था। राजस्थान के इतिहास के सबसे प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार यहाँ के राजपूत स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बड़े पुत्र कुश के वंशज मानते हैं, जिससे उन्हें कुशवाहा नाम मिला जो कालान्तर में कछवाहा हो गया। पाँच तलीय यह दुर्ग लाल बलुआ पत्थर तथा संगमरमर से निर्मित है तथा इसका आधार विशुद्ध हिन्दु वास्तुकला है। इसमें चार द्वार हैं। पहला द्वार जिसे हमने अभी पार किया है, मुख्य प्रवेश द्वार है, इसे ‘सूरज पोल’ द्वार कहते हैं, क्योंकि यह पूर्वाभिमुख है। दूसरा द्वार ‘गणेश पोल’ है जो राज-परिवार के निजी निवास ‘शीश महल’ का प्रवेश द्वार है। तीसरा द्वार तीन दरवाज़ों वाला ‘त्रिपोलिया द्वार’ है। इसका एक दरवाजा जलेब चौक, दूसरा मानसिंह महल और तीसरा जनाना ड्योढ़ी की ओर ले जाता है...’ गाइड को बीच में रोककर विमल बोला - ‘जलेब चौक यानी जलेबी, क्या जलेब चौक में जलेबियाँ बना करती थीं? हमारे हरियाणा में गोहाना के जलेब बड़े मशहूर हैं।’

गाइड - ‘नहीं साहब। अरबी भाषा में जलेब चौक का मतलब है वह स्थान जहाँ सैनिक एकत्रित हुआ करते थे। सामने का प्रांगण ही जलेब चौक है। वीर सैनिकों को यहाँ सम्मानित किया जाता था। ... हाँ तो मैंने आपको तीन द्वारों के बारे में बताया। चौथा द्वार ‘सिंह द्वार’ यानी विशिष्ट द्वार। इस द्वार से विशिष्ट व्यक्तियों का प्रवेश होता था यानी राज-घराने के लोग अथवा विशिष्ट अतिथि। ... दुर्ग में चार प्रांगण हैं। जलेब चौक के बारे तो अपनी बात हो चुकी। लेकिन एक बात रह गयी। इस चौक के दायीं ओर राज-घराने की कुल देवी ‘शिला माता’ का छोटा-सा किन्तु भव्य मन्दिर है। यहाँ से सीढ़ियाँ चढ़कर दूसरा प्रांगण है जहाँ दीवान-ए-आम है। सत्ताईस स्तम्भों की दोहरी क़तार से घिरे दीवान-ए-आम में महाराजा जन-साधारण के दु:ख-तकलीफ़ और उनकी फ़रियाद सुना करते थे तथा उनका निवारण किया करते थे। तीसरे प्रांगण में गणेश पोल से प्रवेश करने पर त्रि-स्तरीय महाराजा का निजी महल है, जिसे शीश महल भी कहते हैं, क्योंकि यह महल दर्पण जड़े फलकों से बना हुआ है तथा इसकी छत पर बहुरंगी शीशों का उत्कृष्ट प्रयोग कर अतिसुन्दर मीनाकारी व चित्रकारी की गयी है। शीश महल के एक स्तम्भ के आधार पर नक्काशी किया गया जादूई पुष्प यहाँ का विशेष आकर्षण है। चौथे प्रांगण में राज-घराने की महिलाएँ निवास करती थीं। इनके अलावा रानियों की दासियाँ तथा राजा की रखैलें भी यहीं निवास किया करती थीं। ..... मोटे तौर पर इस दुर्ग की यही जानकारी है। अब हम आगे बढ़ते हैं। इमारतों की विशेषताएँ यथास्थान दिखाऊँ और समझाऊँगा।’

इसके पश्चात् गाइड उन्हें दुर्ग के अलग-अलग स्थलों के महत्त्व को समझाता रहा। शीश महल में जब वह ‘जादुई पुष्प’ के बारे में बता रहा था तो तीन-चार और लड़के खड़े होकर सुनने की कोशिश करने लगे तो गाइड चुप हो गया और उन्हें सम्बोधित करके कहने लगा - ‘आप लोग यहाँ मत रुकिए। मैंने इन लोगों से पैसे लिये हैं, मैं इन्हीं को समझाऊँगा, आपको नहीं।’

रवि - ‘गाइड साहब, हमें तो कोई एतराज़ नहीं अगर ये भाई भी कुछ जान लेते हैं तो!’

गाइड - ‘मैडम, लेकिन मुझे तो एतराज़ है। मेरी रोज़ी-रोटी का सवाल है। मुफ़्त में लोगों को गाइड करने लगे तो हमें क्या हासिल होगा?’

फिर रवि ने कुछ नहीं कहा। उन लड़कों के जाने के बाद गाइड ने पुनः बताना आरम्भ किया। जब वे शीश महल में थे और गाइड अलग-अलग प्रकोष्ठों के बारे में कुछ तथ्यों और कुछ मनघडंत बातों से उन्हें प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था तो विमल ने मज़ाक़ में कहा - ‘यह कैसा महल है! हरियाणा से तीन अति विशिष्ट अतिथि आये हुए हैं और अभी तक कोई चाय तक पूछने नहीं आया?’

गाइड ने भी उसी अंदाज़ में उत्तर दिया - ‘जनाब ने आने में बहुत देर कर दी। चार सौ साल पहले आये होते तो जनाब का ‘रेड कार्पेट’ स्वागत होता।’

प्रह्लाद - ‘तब इसे यहाँ तक घुसने कौन देता?’

रवि भी इस चुहलबाजी में शामिल होने से खुद को रोक नहीं पायी। उसने टिप्पणी की - ‘प्रह्लाद, हमारे विमल में क्या कमी है? हरियाणवी छोरा लाखों में एक है। मैं तो कहती हूँ, महाराजा स्वयं नहीं तो कम-से-कम अपने मन्त्री को अवश्य इनकी अगवानी के लिये भेजता।’

विमल - ‘रवि, तुमने तो यह बात कहकर बन्दे को उम्रभर के लिये अपना गुलाम बना लिया।’

रवि कोई जवाब देती, उससे पहले ही प्रह्लाद ने कहा - ‘दोनों ने एक-दूसरे की बहुत पम्पिंग कर ली। अब और नहीं। गाइड साहब को अपना काम समाप्त करने दो। फिर नीचे चलकर कुछ खाते-पीते हैं। पेट में चूहे कूदने लगे हैं।’

गाइड समझ गया। उसने शेष इमारत को दिखाने और समझाने में पन्द्रह-बीस मिनट ही लगाये।

दुर्ग से नीचे आकर खाना खाया। टैक्सी की और होटल आ गये। सावन का महीना था, किन्तु आकाश पूर्णतः मेघ-रहित था। फिर भी गर्मी के साथ-साथ उमस से हाल बेहाल था। टैक्सी में एसी होने के कारण थोड़ी राहत मिली थी, किन्तु असली राहत होटल-रूम में पहुँच कर ही मिली। कुछ देर तक मौन छाया रहा। गर्मी की वजह से आमेर दुर्ग देखते समय जो थकावट हुई थी, एसी रूम की ठंडक से वह शीघ्र ही दूर हो गयी।

चुप्पी तोड़ते हुए विमल ने कहा - ‘प्रह्लाद, चाय मँगवा लें। फिर मैं कपड़ा मार्किट जाकर आता हूँ। देखता हूँ, मार्किट खुली हुई तो दुकान के लिये कुछ शॉपिंग ही कर लूँगा।’

रवि - ‘तुम्हारी कपड़े की शॉप है?’

‘हाँ।’

और चाय पीने के पश्चात् विमल जब जाने लगा तो रवि ने कहा - ‘विमल, टाइम से आ जाना, डिनर यहाँ के प्रसिद्ध रेस्तराँ ‘एलएमबी’ में करेंगे।’

विमल के जाने के पश्चात् रवि ने कहा - ‘पप्पी, विमल बहुत अच्छा और समझदार लड़का है। लेकिन उसकी उपस्थिति में तुम्हें ‘प्रह्लाद’ कहकर बुलाना ज़रूर मुश्किल लगता रहा। मुझे तो नहीं लगता कि वह अपनी दुकान के लिये ख़रीदारी करने के लिये गया है, तुम्हें क्या लगता है?’

‘रवि, मुझसे भी विमल ने ऐसा कुछ पहले नहीं कहा। चलो, छोड़ो इस बात को।’

‘मेरे कहने का अभिप्राय: था कि वह हमें एकान्त देने के मक़सद से घूमने गया है और उसके इस आचरण से मेरे मन में उसकी इज़्ज़त और बढ़ गयी है।’

प्रह्लाद पहले से ही बेड पर लेटा हुआ था। अभी तक विमल और रवि कुर्सियों पर बैठे थे। अत: प्रह्लाद ने कहा - ‘रवि, तुम भी बेड पर आ जाओ। लेटे-लेटे बातें करेंगे।’

रवि बिना कुछ कहे उठी। बेड के सिरहाने तकिए से पीठ लगाकर बैठ गयी। तब उसने पूछा - ‘पप्पी, अब आगे किस सब्जेक्ट में पीजी करने का इरादा है?’

‘रवि, तुम तो अच्छी तरह जानती हो, किन परिस्थितियों में मैंने अब तक की पढ़ाई की है! इसलिये मन करते हुए भी पीजी करना मेरी पहुँच से बाहर है।’

रवि ने बहुत समझाने की कोशिश की कि प्रह्लाद को मास्टर्स डिग्री के लिये यूनिवर्सिटी जाना चाहिए। उसने उसकी आर्थिक सहायता का भी आश्वासन दिया, किन्तु प्रह्लाद अब और अपनी बहिन की गृहस्थी पर बोझ नहीं बनना चाहता था। रवि ने यहाँ तक कह दिया कि यदि प्रह्लाद का स्वाभिमान व आत्मसम्मान आड़े आता हो तो वह आर्थिक सहायता नहीं, ऋण के रूप में भी उसकी पढ़ाई का सारा खर्च उठाने को तैयार है। चाहे अब तक ट्यूशन आदि से प्रह्लाद अपने खर्चे काफ़ी हद तक निकाल लेता था, फिर भी बहिन के बड़े होते बच्चों के कारण घर-खर्च में हमेशा हाथ तंग ही रहता था। अतः उसने रवि के आग्रह को स्वीकार न कर पाने के लिये क्षमा माँगते हुए कहा - ‘रवि, इसे मेरा हठ मत समझना, लेकिन अब मुझे नौकरी हर हालत में चाहिए। ‘सबोर्डिनेट सर्विस कमीशन’ ने क्लर्कों की भर्ती का विज्ञापन निकाला हुआ है। वापस जाकर मैं एप्लाई करूँगा। दुआ करना कि मेरी सिलेक्शन हो जाये।’

‘जिसमें तुम्हारा भला होता हो पप्पी, उस हर काम के लिये मेरी शुभकामनाएँ सदैव तुम्हारे साथ हैं, और रहेंगी।

विमल ने मार्किट में काम समाप्त करके रवि के मोबाइल पर सूचित कर दिया था कि मैं आधे घंटे में पहुँच रहा हूँ। अत: जब वह होटल पहुँचा तो रवि और प्रह्लाद फ़्रेश होकर उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। बिना कोई बात किये विमल सीधा बाथरूम में ही घुस गया। दस मिनट पश्चात् वह नहाकर निकला तो प्रह्लाद कुछ कहने लगा तो विमल ने उसे रोककर कहा - ‘अब चलो। बातें बाद में करेंगे।’

सड़क पर आकर उन्होंने ऑटो लिया और ‘एलएमबी’ पहुँच गये। खाने का ऑर्डर करने के उपरान्त प्रह्लाद ने विमल से पूछा - ‘दुकान के लिये कुछ मिला?’

‘हाँ, काफ़ी कुछ मिल गया।’

‘लेकिन, तू पैसे तो लाया नहीं था!’

‘भइया, बिज़नेस की तुझे समझ नहीं है। मेरा ख़रीदा सामान दुकानदार ट्रांसपोर्ट द्वारा भेज देगा। माल की बिल्टी बैंक के ज़रिए हमें मिल जायेगी। बैंक में पैसा जमा करवाने पर उस बिल्टी को जब ट्रांसपोर्टर को देंगे तो माल हमारी दुकान पर पहुँच जायेगा।’

रवि - ‘बहुत ख़ूब! बिना नक़दी के अनजान जगह से ख़रीदारी करने का बढ़िया तरीक़ा है। बाइ द वे, कितने की ख़रीदारी कर ली?’

‘लगभग बीस हज़ार की।’

‘वन्डरफुल! विमल, प्रह्लाद तो आगे नहीं पढ़ेगा। तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’

‘रवि, पिता जी को अकेले दुकान पर दिक़्क़त होती थी, इसलिये मैं तो ऑलरेडी दुकान पर बैठने लग गया हूँ।...’ उसने प्रह्लाद के कंधे पर थपकी देते हुए कहा - ‘यह तो इसने कहा कि जयपुर चलना है तो इसे कम्पनी देने के लिये मैंने ‘हाँ’ कर दी।’

खाना खाने के बाद रवि अपने हॉस्टल की ओर चली गयी और दोनों मित्र होटल आ गये।

विमल - ‘प्रह्लाद भाई, रवि बहुत अच्छी लड़की है, असली हीरा है। मैं दिल से चाहता हूँ कि तुम दोनों का साथ जीवन-भर को हो, लेकिन क्या उसके पैरेंट्स इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे? मुझे तो नहीं लगता कि वे रज़ामंद होंगे। रवि का मन टटोला है कभी?’

‘विमल, इस विषय पर अभी सोचने का समय नहीं है। एक बार रवि एमबीबीएस कर ले, तभी इस विषय को उठाऊँगा। उससे पहले मैं उसका ध्यान पढ़ाई से नहीं भटकाना चाहता। वैसे उसके प्रेम में मुझे कोई संशय नहीं है।’

‘वह तो मैंने भी देख लिया है।’

इसी तरह की बातें करते-करते जब विमल ने लाइटें बन्द कीं तो प्रह्लाद ने कहा - ‘यार, ज़रा पर्दा सरका दे।’

पर्दा हटते ही निर्मल आकाश त्रयोदशी के चन्द्रमा की चाँदनी से प्रकाशमान दिखायी दिया। उसी का एक टुकड़ा शीशे से भीतर आकर उनके पैरों पर फैल गया। एसी की ठंडक के साथ चाँदनी की शीतलता मन को बहुत भली लगी।

प्रात:क़ालीन दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर उन्होंने निश्चय किया कि नाश्ता बाज़ार में करेंगे और होटल का कमरा छोड़ देना चाहिए। अत: उन्होंने चेकआउट करके अपने बैग काउंटर पर जमा करवा दिये।

सारे दिन में उन्होंने सिटी पैलेस, जंतर-मंतर, म्यूज़ियम, बिरला मन्दिर तथा हवा महल देखे। पाँच बजे के लगभग जब वे हवा महल में ऊपर घूम रहे थे तो विमल के मोबाइल की रिंग बजने लगी।

रवि - ‘विमल, कहाँ पर हो तुम लोग?’

विमल - ‘हवा महल में हवा खा रहे हैं।’

‘तुम लोग पन्द्रह-बीस मिनट में होटल पहुँचो, मैं वहीं आ रहीं हूँ।’

‘होटल-रूम तो सुबह ही ख़ाली कर दिया था।’

‘तुम्हारे बैग....?’

‘होटल के काउंटर पर जमा करवा दिये थे।’

‘होटल आ जाओ। जब तक ट्रेन का टाइम नहीं होता, रेस्तराँ में बैठकर कुछ खायें-पीयेंगे।’

ट्रेन छूटने में जब आधा घंटा रह गया तो उन्होंने ऑटो पकड़ा और स्टेशन पर आ गये। ट्रेन अभी आयी नहीं थी। विमल रवि और प्रह्लाद को एकान्त के कुछ पल देने के इरादे से प्लेटफ़ॉर्म पर बुक-स्टॉल पर पत्रिकाएँ उल्ट-पुलट करने लगा।

‘पप्पी यार, विमल कितना केयरिंग है, है ना?’

‘रवि, विमल चाहे मुझसे साल-डेढ़ साल छोटा है, लेकिन हमेशा बड़े भाई की तरह मेरा ख़्याल रखता है।...... अब के बिछुड़े पता नहीं कब मिल पायेंगे?’

‘इस ट्रिप की यादों के सहारे मन बहला लिया करूँगी।.... पत्र बराबर लिखते रहना। हो सके तो कभी-कभार विमल के फ़ोन से बात भी कर लेना।’

‘अवश्य।’

ट्रेन आती देखकर विमल भी उनके पास लौट आया। एक-दूसरे को बॉय करके विमल और प्रह्लाद ट्रेन पर चढ़ गये। जब तक ट्रेन सरकने नहीं लगी, रवि खिड़की के पास प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी रही।

.......