Yaadon ke ujale - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

यादों के उजाले - 3

यादों के उजाले

लाजपत राय गर्ग

(3)

‘रवि, तुम्हारी इस बात का क्या जवाब दूँ, कुछ सूझ नहीं रहा। मैं तो नि:शब्द हो गया हूँ।’

कुछ समय के लिये चुप्पी रही। फिर जैसे कुछ स्मरण हो, उसने कहा - ‘रवि, एक बात तुम्हें और बतानी है.....कॉलेज में मेरे नाम फ्रीक्वेंटली रजिस्टर्ड लेटर आना अनावश्यक जिज्ञासा को जन्म देगा, इसलिये मैंने सोचा है कि आगे से तुम पत्र मेरे फ्रैंड विमल के घर के पते पर केयर ऑफ करके भेजा करना। विमल के पैरेंट्स अनपढ़ हैं और विमल मेरा अभिन्न मित्र है। इसलिये अपने बीच पत्रों का आदान-प्रदान भी विमल के अतिरिक्त किसी की नजरों में नहीं आयेगा।’

‘जब तक जग ज़ाहिर न हो, अच्छा ही है। ..... पप्पी, अब चाय पीते हैं। चाय या कॉफी, तुम्हारी क्या चॉयस है?’

‘मैं अपनी पहले कही बात ही रिपीट करता हूँ - चॉयस तो बस एक तुम ही हो, और किसी बात में कोई चॉयस नहीं।’

‘अच्छा बाबा, आगे से नहीं पूछूँगी।’ और उसने चाय का ऑर्डर कर दिया।

चाय पीने के पश्चात् प्रह्लाद ने कहा - ‘रवि, मन तो नहीं करता कि तुमसे विदा लूँ, लेकिन आख़िरी बस का समय होता जा रहा है, इसलिये ख़ुशी-ख़ुशी जाने की आज्ञा दो।’

‘बहुत मुश्किल राइडर लगा दिया तुमने। जिसे हम दिलोजान से चाहते हों, उससे जुदा होने पर उदासी ना घेरे, ऐसा कभी हुआ है?’

‘लेकिन, तुम कर सकती हो, ऐसा मेरा विश्वास है।’

‘तो ठीक है। मैं तुम्हें छोड़ने बाहर नहीं आऊँगी। यहीं से अलविदा।’

वापसी पर प्रह्लाद सोचता रहा रवि द्वारा दी गयी वॉच के विषय में। रवि ने वॉच यह सोचकर दी है कि यह सदा मेरे साथ रहेगी - मेरी दिली ख्वाहिश थी कि तुम्हें कुछ ऐसा दूँ जो हर समय तुम्हारे साथ रहे। - किन्तु क्या यह सम्भव होगा? औरों की तो छोड़ो, यदि दीदी या जीजा जी की नज़र भी पड़ गयी तो उनके सवालों के जवाब में ही कलई खुल जायेगी। किसी तरह भी रवि के साथ दोस्ती को गुप्त रखना असम्भव हो जायेगा। ऐसे तानों की मार भी झेलनी पड़ सकती है कि घर में नहीं दाने, जनाब चले इश्क़ फ़रमाने। इस वॉच को तो छुपाकर ही रखना पड़ेगा। ..... कल जब विमल मिलेगा तो वह भी उतावला होगा जानने के लिये कि रवि के साथ मुलाक़ात में क्या-क्या हुआ? विमल ही तो एक ऐसा दोस्त है जिससे मैंने कभी कुछ छुपाया नहीं। उसे तो सब कुछ बताना ही होगा। लेकिन, मैं उससे वायदा लूँगा कि वह रवि के सम्बन्ध में कहीं भी किसी तरह का ज़िक्र नहीं करेगा। अब तक के उसके साथ को देखते हुए मैं उसकी ओर से निश्चिंत हो सकता हूँ। लेकिन मुझे खुद के व्यवहार के प्रति भी सतर्क रहना पड़ेगा।

.......

पीएमटी के द्वितीय प्रयास में रवि को आशातीत सफलता मिली। उसका एडमिशन सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज, जयपुर में हो गया। रवि ने यह शुभ समाचार प्रह्लाद को जिस पत्र के माध्यम से दिया, उसमें उसने जयपुर जाने से पहले मिलने की इच्छा व्यक्त की। प्रह्लाद ने जवाबी पत्र में उसे हार्दिक बधाई देते हुए लिखा कि आने वाले रविवार को वह ‘किसान एक्सप्रेस’ से भिवानी पहुँचेगा। घर से निकलकर स्टेशन जाते उसे याद आया, रवि द्वारा दी गयी घड़ी तो ली ही नहीं। तेज-तेज चलता हुआ वह वापस आया। अपनी अलमारी में से घड़ी लेकर जेब में डाली और पुनः स्टेशन की राह पकड़ी।

ट्रेन जब भिवानी स्टेशन पर पहुँची तो रिमझिम हो रही थी। प्रह्लाद सोचने लगा, रिक्शा में जाते हुए तो कपड़े भीग जायेंगे और ऑटो वाला ऐसे मौसम में अनाप-शनाप पैसे माँग बैठेगा। ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर रुकी। प्रह्लाद खिड़की के पास आया। रवि को प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े देखकर प्रह्लाद की सोच को ब्रेक लग गयी। उसे सुखद आश्चर्य हुआ, क्योंकि तय तो यह हुआ था कि ‘बया’ में मिलेंगे। लेकिन, सुबह से बूँदाबाँदी हो रही थी, इसलिये रवि प्रह्लाद को स्टेशन से ही ‘पिक’ करने की सोचकर कार ले आयी थी।

होटल पहुँचकर रवि सीधे उसे प्री-बुक्ड रूम में ले गयी। चाय-नाश्ता करने के बाद रवि ने कहा - ‘मॉय डियर पप्पी, मैं तुम्हें मोबाइल गिफ़्ट करना चाहती हूँ, तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं? पहले ही बता दूँ कि यह ऑर्डिनरी ही होगा, एक्सपैंसिव नहीं। मेरा इतना-सा ही स्वार्थ है कि मैं जब जी चाहा करेगा, तुम्हारी डोमिनेटिंग आवाज़ सुन लिया करूँगी।’

‘रवि, मैं तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूँ। लेकिन, मैं मोबाइल नहीं लेना चाहता। कारण, मोबाइल होने के बाद मैं स्वयं को ही तुमसे बातचीत करने से रोक नहीं पाऊँगा। तुम्हारा ध्यान पढ़ाई से भटकाने का जोखिम मैं नहीं लेना चाहता। इसलिये कृपया इस विषय में और कुछ मत कहना।’

रवि ने बात नहीं बढ़ायी, लेकिन मन-ही-मन प्रह्लाद के सद्विचारों तथा चरित्र की शुचिता से अभिभूत हो उठी। पास बैठे प्रह्लाद के कंधे से सिर टिकाकर दायीं बाँह से उसकी गर्दन को घेर लिया।

.......

दो साल में प्रह्लाद ग्रेजुएट हो गया। इस अवधि में दोनों के बीच पत्रों का आदान-प्रदान तो होता रहा, किन्तु वे एक-दूसरे से मिल नहीं पाये। कारण, रवि के मेडिकल में एडमिशन के कुछ समय पश्चात् ही उसके माता-पिता वापस गाँव चले गये। अत: छुट्टियों में उसे गाँव ही जाना होता था। हाँ, उसने एक-आध बार अपने पत्र में प्रह्लाद को जयपुर आने के लिये हल्का-सा आग्रह किया था, विशेष इसलिये नहीं कि वह उसकी विवशता समझती थी। लेकिन बी.ए. का परिणाम आने के बाद जब उसने दो दिन के लिये जयपुर घूमने की बात रखी और साथ ही कहा कि इसके लिये मेरे पास पैसों का प्रबन्ध है तो उसकी बहिन और जीजा ने सहर्ष स्वीकृति दे दी, लेकिन इतना अवश्य कहा - ‘अकेले जयपुर घूमने का क्या मज़ा आयेगा, श्यामल को साथ ले जाओ।’

‘जीजा जी, मैं अकेले नहीं जा रहा। विमल भी मेरे साथ होगा।’

‘फिर तो श्यामल की ज़रूरत नहीं। कब जाना है?’

‘पहले आपकी परमिशन लेनी थी। वह मिल गयी है तो अब विमल के साथ बात करके प्रोग्राम बना लेता हूँ।’

रात के खाने के बाद जब प्रह्लाद और विमल अपनी दिनचर्या के अनुसार घूमने को निकले तो प्रह्लाद ने उसके सामने जयपुर जाने की योजना रखी तो विमल ने कहा - ‘यारा, मुझे तेरे साथ जयपुर जाने में रत्ती भर दिक़्क़त नहीं, लेकिन सोच, वहाँ दो प्रेमियों के साथ मैं रहूँगा तो न तो तुम एन्जॉय कर पाओगे और ना ही मैं सहज महसूस कर पाऊँगा।’

‘विमल, मैंने प्लानिंग कर रखी है। अपन रात की ट्रेन से चलेंगे। सुबह जयपुर पहुँचेगें। रवि कॉलेज से पाँच बजे फ़्री होती है। सारा दिन शहर के ऐतिहासिक स्मारक देखने में निकल जायेगा। रवि के फ़्री होने के बाद मैं और रवि दो-तीन घंटे अकेले में बिता लेंगे। डिनर के समय हम तीनों साथ-साथ होंगे। उसके बाद रवि हॉस्टल चली जायेगी और दूसरे दिन आमेर दुर्ग देखकर हम वापस आ जायेंगे।’

‘कर दी ना लीद। वाह रे तेरी प्लानिंग? जिसके लिये जा रहा है, उसके साथ सिर्फ़ दो घंटे? .... मैं बताता हूँ, तुझे क्या करना है?’ कहकर विमल रुक गया।

प्रह्लाद कुछ नहीं बोला। प्रतीक्षा करने लगा कि विमल आगे क्या कहता है। कुछ सोचकर विमल ने पूछा - ‘रवि की इतवार को तो छुट्टी रहती होगी?’

‘हाँ, संडे तो ओफ होता है।’

‘तो फिर शनिवार की रात को चलते हैं। इतवार का सारा दिन तू रवि के साथ बिताना। डिनर में मुझे भी शामिल कर लेना अगर रवि को एतराज़ ना हो तो। सोमवार का प्रोग्राम तेरी दूसरे दिन की प्लानिंग के मुताबिक़ रहेगा।’

‘लेकिन विमल, संडे को तू सारा दिन अकेला क्या करेगा? दूसरे, यह तो तेरे साथ ज़्यादती होगी! ना भाई ना, रवि के लिये मैं अपने अज़ीज़ दोस्त के साथ नाइंसाफ़ी नहीं कर सकता।’

‘मेरे यार, भावुक होने से काम नहीं चलने का, व्यावहारिक बनना पड़ेगा। जयपुर बहुत बड़ा शहर है, मटरगश्ती करते हुए मुझे टाइम का पता ही नहीं चलना। दूसरे, तेरी ख़ुशी के लिये यह तो कुछ भी नहीं, मैं किसी भी सीमा तक जा सकता हूँ।’

‘विमल, मुझे तेरी दोस्ती पर गर्व है।’

‘मेरी नहीं, हमारी।’

अगले ही दिन प्रह्लाद ने पत्र लिखकर यथावत रवि को सूचित कर दिया। रवि ने भी लौटती डाक से अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे सूचित किया कि उनके लिये होटल-रूम बुक करवा दिया है तथा वह स्टेशन पर उन्हें लेने आयेगी।

ट्रेन लाइन क्लीयर न मिलने के कारण आउटर सिग्नल पर काफ़ी देर तक रुकी रही। इसलिये प्लेटफ़ॉर्म पर लगभग पन्द्रह मिनट देरी से पहुँची। रवि ने नमस्ते करते हुए कहा - ‘आप दोनों अभिन्न मित्रों का स्वागत है।’

विमल और प्रह्लाद ने भी हाथ जोड़कर नमस्ते का उत्तर दिया। विमल ने ‘धन्यवाद’ भी कहा। तत्पश्चात् प्रह्लाद ने कहा - ‘ट्रेन तो टाइम पर ही थी, आउटर पर खड़ी रहने के कारण लेट हो गयी।’

रवि - ‘इस ट्रेन के साथ अक्सर ऐसा ही होता है।’

प्रह्लाद ने अकेले आना होता तो शायद वह केजुअल ड्रेस में ही आती, लेकिन आज क्योंकि उसके साथ उसका अभिन्न मित्र भी आ रहा था, इसलिये रवि फ़ॉर्मल ड्रेस पहनकर आयी थी। ड्रेस जहाँ उसके व्यक्तित्व को निखार प्रदान कर रही थी, वहीं मेडिकल की पढ़ाई के दबाव के बावजूद उठती जवानी का लावण्य उसके अंग-अंग से फूटा पड़ रहा था। पहली बार देखने वाले विमल का ऐसा सौन्दर्यमयी व्यक्तित्व देखकर चकित रह जाना तो स्वाभाविक ही था, लेकिन प्रह्लाद के लिये भी दो वर्ष के अन्तराल के पश्चात् रवि का यह रूप कम आश्चर्यजनक न था। प्रह्लाद ने तो अपनी प्रसन्नता सिर्फ़ आँखों से ही प्रकट की, किन्तु विमल शब्दों में व्यक्त करने से स्वयं को रोक नहीं पाया। उसने कहा - ‘रवि जी, प्रह्लाद के साथ अपनी दोस्ती के कारण आप जैसी रूपवती व संस्कारित युवती से मिलकर मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ तथा आपका हृदय से आभारी हूँ कि आपने प्रह्लाद के साथ मेरे आने पर कोई एतराज़ नहीं किया।’

‘विमल जी, आप और प्रह्लाद जी जैसी दोस्ती आज के युग में कहाँ देखने को मिलती है? मैं खुशनसीब हूँ कि प्रह्लाद जी के कारण आपके भी दर्शन हो गये।’

प्रह्लाद - ‘रवि, अब चलें। खुलकर बातें करने के लिये अपने पास काफ़ी समय है।’

इसके पश्चात् वे स्टेशन से बाहर आये, टैक्सी ली और होटल पहुँच गये। रवि ने पूछा - ‘आप लोग चाय तो ले ही लोगे, सारी रात का सफ़र करके आये हो।’

प्रह्लाद - ‘हाँ, चाय पीकर ही स्नानादि करेंगे।’

नाश्ता करने के उपरान्त रवि ने पूछा - ‘अब क्या प्रोग्राम है?’

विमल - ‘रवि जी, हम दोनों तो पहली बार जयपुर आये हैं। घूमने-फिरने के लिये आये हैं। ऐतिहासिक नगरी है। कुछ ऐतिहासिक स्थल देख लेते हैं। बाक़ी जैसा आप गाइड करें।’

‘विमल, तुम प्रह्लाद के मित्र होने के नाते मेरे भी मित्र हुए। हमारी आयु भी लगभग बराबर-सी है। मैंने इनफॉर्मल होने की शुरुआत कर दी है। तुम भी ‘जी’ और ‘आप’ कहना छोड़ो, तभी इकट्ठे घूमने का आनन्द आयेगा।’

विमल को रवि का अपनत्व दिखाना बहुत अच्छा लगा। उसने कहा - ‘धन्यवाद।’

‘बात-बात पर ‘धन्यवाद’ भी नहीं।’

‘लगता है, प्रह्लाद की तरह मुझे भी तुम्हारे सामने सरेंडर कर देना चाहिए!’

प्रह्लाद ने उसकी पीठ पर हल्का-सा धौल जमाते हुए कहा - ‘अब ऊँट आया पहाड़ के नीचे। अब आयेगा जयपुर ट्रिप का आनन्द।’

दोनों मित्रों के आख़िरी संवाद सुनकर रवि का मुखमंडल आरक्त हो उठा। कुछ देर तक वह कुछ नहीं बोली। फिर उसने कहा - ‘मेरे विचार में अब हम सीधे आमेर दुर्ग देखने चलते हैं। यहाँ का सिटी पैलेस, जंतर-मंतर, बिरला मन्दिर, म्यूज़ियम आदि तुम लोग कल देख लेना, क्योंकि आमेर दुर्ग मैंने भी अब तक देखा नहीं और यहाँ का तो सब कुछ मैं देख चुकी हूँ।’

प्रह्लाद ने हँसते हुए कहा - ‘देखा विमल, तुमने ‘सरेंडर’ किया और रवि ने एक ही स्ट्रोक में तुम्हारी सारी प्लानिंग ध्वस्त कर दी।’

प्रथम बार मिलने वाले विमल के सामने प्रह्लाद द्वारा इस तरह की टिप्पणी करने पर रवि झेंप गयी। सोचने लगी, विमल की क्या प्लानिंग रही होगी? आख़िर उसने कहा - ‘सॉरी विमल, मुझे नहीं पता था कि तुमने पहले से कोई प्लानिंग की हुई है?’

‘रवि, ऐसा कुछ नहीं है। तुम बिल्कुल भी परेशान मत हो। प्रह्लाद ने तो बात मज़ाक़ में कही है।.... हमने सोचा था कि आज शहर में तुम्हारे संग घूम लेंगे और कल हम आमेर दुर्ग देखकर वछ अतिरिक्त ऑटो-रिक्शा तथा टैक्सियाँ कहीं से भी ली जा सकती हैं। रवि ने टैक्सी ली। आमेर पहुँचकर ड्राइवर ने पूछा - ‘आप लोग यहीं उतरोगे या गाड़ी ऊपर तक ले चलूँ।’

रवि - ‘हमें यहीं उतार दो।’ और मीटर देखकर पैसे देने लगी तो विमल ने अपनी जेब से पाँच सौ का नोट निकालकर ड्राइवर के आगे कर दिया। इससे पहले कि ड्राइवर विमल के हाथ से नोट पकड़ता, रवि ने कहा - ‘भइया, इनसे मत लेना। मैं दे रही हूँ।’

ड्राइवर समझदार था। चलते समय जब रवि ने उससे बात की थी तो उसने विमल से पैसे नहीं पकड़े। टैक्सी के जाने के पश्चात् रवि ने विमल को सम्बोधित करते हुए कहा - ‘विमल, जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हें जेब में हाथ डालने की ज़रूरत नहीं। तुम मेरे मेहमान हो।’

विमल ने मज़ाक़िया लहजे में उत्तर दिया - ‘रवि, बड़ी कड़ी पाबंदी लगा दी तुमने तो। यदि मुझे जेब से कुछ निकालना हुआ तो मुझे अपने मित्र की मदद लेनी पड़ेगी।’

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