Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 12 books and stories free download online pdf in Hindi

चंदेरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 12

चंदेरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 12

Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 12

यात्रा वृत्तांत

सावन भादों और हरदौल बैठका प्रसंग

जब हम रामराजा मंदिर के सामने से होते हुए हरदौल बैठका की तरफ जा रहे थे तो हमने देखा कि सामने की तरर्फ इंट चूना से बनी लगभग साठ फिट ऊॅंची दो मीनारें एकदम पास पास खड़ी दिख रही थी। पास में जाकर हमने देखा कि वहां पुरातत्व विभाग का एक परिचय बोर्ड लगा था। जिस पर लिखा था- सावन भादों।

पण्डित जी ने बताया कि ये साठ फिट ऊंची दो मीनारें राजा साहब ने किसी युद्ध के बाद अपने किन्ही दो वीर योद्वाओं की याद में स्मारक के रूप में बनाई गई होेंगी। जुलाई अगस्त में जब खूब बरसात होेती है उन महीनों के भारतीय विक्रम संवतसर के हिसाब से हिंदी नाम के दो महीने सावन और भादो होते हैं । मुझे लगा कि सावन भादों के महीने में आसमान मंे बिजली खूब चमकती है हो सकता है कि राजा साहब को यह आशंका रही हो कि आसमान से बिजली गिरने से रामराजा मंदिर और हरदौल की बैठका का नुकसान न हो जाये तो जैसे कि आजकल हर बिल्डिंग में तड़ित चालक ऊपर से नीचे तक लगा दिया जाता है वैसे ही आसपास की इन दो महत्वपूर्ण इमारतों को बचाने के लिए इन मीनारों को बनवा कर उसमें लोहे की छडे़ं सा दी गई होंगी और इसीलिए इसका नाम सावन भादों रखा गया होगा।

अब हम सावन भादों के बायीं ओर बनी चहारदीवारी में प्रवेश कर रहे थे । भीतर बांयी तरफआंगन मे ंजाने पर पता लगा दो मंजिला एक पुरानी इमारत बनी हुई थी। वहॉ लगे बोर्ड के मुताबिक इसमें न्यायालय के साथ लोक निर्माण विभाग का दफ्तर तथा नायब तहसीलदार का कार्यालय था। बीच मंे आंगन था और चारों तरफ फिर से एक चहार दीवारी थी। इस चहार दीवारी के भीतर जाने पर सामने की तरफ एक पालकीनुमा छोटी सी इमारत दिखी। इसका बीच हिस्सा गोल सा होकर खूब ऊंचा हैं। जब कि दोनांे तरफ का हिस्सा नीचा होता चला गया हैं। यहॉं एक बोर्ड लगाा था, जिस पर लिखा था- पालकी महल !

पण्डित जी ने बताया कि पालकी महल भी इन दिनों गेस्ट हाउस बना दिया गया है और यात्रियों के ठहरने के काम आता है ।

पालकी महल के पास से नीचे को जीना जाता हुआ दिख रहा था। इन सीड़ियों से उतरकर हम एक हरेभरे बगीचे में पहंुचे तो इस बगीचे के बायी आर एक और चहारदीवारी दिखी यहॉ लिखा था हरदौल का बैठका । हम लोग दरवाजे से चहार दीवारी के अंदर पॅहुचे तो वहॉ भी खूब हरियाली दिखी।

यह एक छोटा सा मैदान था। जिसके बीचों बिंच एक छायादार चबुतरा था। चबूतरा चारों ओर से खुला था। ऊपर छत पर लाल पत्थर लगाया गया था तथा ख्ंाबों पर बड़ी बारीक नक्काशी की गई थी। इस खुले बरामदे में चारों और फौव्वारे वाली पानी की चौड़ी पट्टी बनी थी । जिसमे कम गहरी नालियां दीवार तक लंबी खुली हुई बनी थी। नालियों के दोनांे ओर पैदल पत्थरों का रास्ता बना था। बीच मंे ख्ुाले बरामदे में एक खूब बड़ा पंलग और बिस्तर सजा हुआ था। पास ही घोडे़ पर सवार एक योद्वा की छोटीसी मूर्ती थी ं। यह बरामदा किसी जमाने में ओरछा के दीवान महामंत्री हरदौल की बैठक हुआ करती थी।

पण्डित जी ने कहा कि ‘कहा जाता है कि ओरछा के राजा जुझारसिंह ज्यादातर आगरा में मुगल स्रमाट के दरबार में रखते थे और राज्य का कामकाज उनके छोटे भाई हरदौल संभालते थे, जो राज्य के महामंत्री भी थे। हरदौल का शासन बड़ा कठोर था, वे गरीबांे के सच्चे मित्र थे तथा अत्याचारियों के वे बडे़ दुश्मन थे। इस कारण जनता में वे बडे़ लोकप्रिय थे। एक बार कुछ लोगों ने हरदौल को रास्ते से हटाने की योजना बनाई और जब राजा जुझार सिंह ओरछा लौटे तो उनसे चुगली कर दी कि हरदौल और जुझार सिंह की पत्नी के बीच मंे प्रेम संबध है और वे दोनों मिलकर राजा जुझार सिंह को खत्म करने की योजना बना रहे है । राजा ने आव देखा न ताव रानी से कहा कि यदि हरदौल और उसके बीच में कुछ खराब संबंध नही है तो और आपस में पवित्र सबंध हैं तो हरदौल को खाने में जहर दे दो । रानी तो हरदौल को अपना बेटा जैसा मानती थी, इस कारण यह सुन कर बड़ी दुखी हुई उन्होंने पति को बहुंत विश्वास दिलाया कि हरदौल उनकेबेटे जैसे हैं, लेकिन जुझार सिंह न माने । फिर पति की आज्ञा मानकर जुझारसिंह के पत्नी ने अपने बेटे जैसे देवर हरदौल के खाने में जहर मिला दिया और भोजन परोस दिया, जब हरदौल खाने लगे तो रानी रोने लगी

हरदौल ने रोने का कारण पूछा तो रानी ने सारी बात बता दी यह सुनकर हरदौल ने जहर मिला भोजन कर लिया।

कहतें हैं कि तबसे हरदौल की पूरे ओरछा साम्राज्य में पूजा होने लगी । हरदौल की बहन ने अपनी बेटी की शादी मंे हरदौल की समाधी पर जाकर न्योंता दिया तो हरदौल की दतिया में ब्याही गयी बहन कुंजावती की बेटी की शादी हंसी ख्ुाशी हो गई । तब सेे यह मान्यता होगई की हर घर में शादी होती तो लोग हरदौल को न्योता देना नही भूलते । आज भी हरदौल के बैठका मंे उनके पंलग क पास अनेकांे निमत्रण पत्र और ढेरो हल्दी रंगे चावल रखे होते हैं । बैठका के पास एक लडका बैठे हरदौल की मूर्ति के पास बैठा हुआ हरदौल की गाथा के कैसेट बेच रहाथा और एक छोटै से टेपरिकॉर्ड के माध्यम से वहां बहुत धीमी आवाज में हरदौल चरित्र का गायन हो रहा था। जिसमे हरदौल के त्याग और महानता का वर्णन किया गया था। जिसे वहॉं बैठे गांवो से आये तमाम स़़्त्री पुरूश दत्तचित्त होकर सुन रहे थे। स्त्रियां तो धार धार ऑसू बहाते हुए गीत सुनती जा रही थी। यह दृश्य देखकर बच्चे भी प्रभावित होगये। मैं उन सबको लेकर बाहर आ गया । दोपहर के बारह बज रहे थे। उन्हे भूख लग आई थी यह सेाचकर में भोजनालय तलाशने लगा ।

चौराहे पर जाकर हमने एक रेस्टोेरेंट में दाल रोटी चावल का भोजन किया ।

ओरछा- लगभग पांच सौ साल पहले मध्य भारत के बुन्देलखण्ड क्षेत्र की राजधानी रहा यह स्थान पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र है। यह दिल्ली-मुम्बई रेल लाइन के जंकशन झांसी से पंद्रह किलोमीटरदूर है।

साधन- झांसी से ओरछा के लिए सबसे सरल साधन बस और टैम्पा हैं। झांसी से ओरछा के लिए ऑटो टूसीटर भी चलते हैंऔर निजी कार टैक्सी भी चलती है। ओरछा नाम का रेल्वे स्टेशन झांसी से मउरानीपुर होते हुए मानिक पुर जाने वाली लाइन पर बस्ती से पंाच किलोमीटर दूर बनाया गया है।

ठहरने के साधन-ओरछा में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग मध्यप्रदेश सरकार के रेस्ट हाउस, मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम की तरफ से संचालित बेतवा कॉटेज की वातानुकलित कॉटेज और होटल शीश महल तथा बहुत सारे थ्री स्टार और सुविधायुक्त निजी होटेल हैं। आजकल तो ओरछा में बहुत से लोग अपने घर में एक कमरा वातानुकूलित बनवा कर सैलानियों को देने लगे हैं जिनमें रहकर विदेशी यात्री भारतीय ग्रामीणों का रहन सहन , खाना पीना, रसोई वगैरह निकट से देखते हैं।

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