Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 11 books and stories free download online pdf in Hindi

चंदेरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 11

चंदेरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 11

Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 11

यात्रा वृत्तांत

चतुर्भज मंदिर प्रसंग

राम राजा मंदिर के बाहर आने पर हमने देखा कि बायीं ओर के टीले पर ऊंचे ऊंचंे शिखरों वाला पुराने समय का बना हुआ एक विशाल मंदिर दिख रहा था। पूॅंछने पर पता चला कि यह चतुभर््ुाज मंदिर है। मंदिर के सामने बनी चौड़ी सीढ़ियां चढके हम मंदिर के सामने बने खुले चबूतरे तक तक पॅहुचें तो मंदिर की ऊंचाई और कलाकारी से बनाई गई गुम्बदों व झरोखों, खिड़कियों को देखके मुग्ध होगये। हमने देखा कि मंदिर की छतंे तीस फिट से ज्यादा ऊंची और गुम्बद यानि कि पतले होते हुए उपर चले जाने वाले शिखर चालीस फुट तक उंचे थे।

मंदिर में सामने खूब चौड़े और मेहराब दार दरवाजों वाला खुला हुआ बरामदा जैसा था। लग नही रहाथा कि हम किसी मंदिर में हैं या महल में। जाने कितनी छोटी छोटी गुम्बदंे और भूल भूलैयों से भरी शानदार छत थी, जहॉ जाने के लिए छोटी छोटी सीढ़ियां बनी हुई थी। बच्चे इन सीढ़ियों पर चढ़ कर छुपा छुपी खेलने लगे। मैं ध्यान से मंदिर की शिल्प कला को देखने लगा। मैंने देखा कि मंदिर की मेहराबों के उपर, छत एवं दीवारांे ंपर कमल के फूल वाले बेलबूटांे की खुदाई की गई थी और भीतर से देखने पर शिखर की पूरी ऊंचाई तक का हिस्सा दिखाई देता था। जो साठ फिट से ज्यादा ही ऊंचा था। जो एक छोटी कोठी में बना हुआ थंा। पूॅछने पर पता चला कि इसी जगह चतुर्भज विष्णु की पृतिमा रखी थी। जिसे केाई चोर चुरा ले गया था।

चतुर्भज मंदिर के ठीक सामने राजमहल दिखता था। वहॉ मौजूद एक ग्रामीण पण्डित जैसे दिखने वाले सज्जन से मैंने पूछा कि ठीक सामने महल होने का क्या मतलब है तो उन्होंने बताया कि रानीसाहिबा रामचद्र जी की पूजन करती थीं, और सुबहउठते ही रामंचंद्र भगवान के दर्शन करना चाहतीथी सो उन्होने अपनेू महल में एक विशेश खिड़की इस मंदिर की मूर्ति को प्रणाम करने के लिए बनवाई थी। जिसमें रानी अपने महल से यहां दर्शन करने का विचार था लेकिन इस मंदिर में कभी रामचद्र यानि किरामराजा की मूर्ति नही ंरखी गयी।

फिर उन्होंने हमे कथा सुनाई कि यह मंदिर जो चतुर्भुज मंदिर कहलाता है पहले रामचंद्र भगवान के लिए बनवाया गया था, लेकिन जब रानीसाहिबा अयोध्या से मूर्ति लेकर आयीं तब तक यह मदिर तैयार नही था तो रानी साहिब ने अपने निवास वाले महल में वे मूर्ति रख ली और पूजन करने लगी। जब यह मंदिर बन कर तैयार हो गया तो रानी का प्रेरणा हुई कि अब रामचंद्र जी की मूर्ति अपनी जगह से उठेगी नहीं, वहीं रानी निवास में रहेंगी, इस नये बने मंदिर में कोई और मूर्ति बिठा दी जाये । फिर चतुर्भज विश्णु जी की मूर्ति इस मंदिर में बिठाई गई और मंुदिर का नाम चतुर्भुज मंदिर कहलाने लगा। यह भी पता लगा कि यहां ओरछा में अब कोई मनुश्य का राज्य नहीं होगा बल्कि स्वयं रामचंद्र जीका राज्य होगा। इसीलिए यहां रामचंद्र जी का राम राजा कहा जाता है।

अभिशेक ने पूछा ‘ पण्डित जी यह बताओ कि यहां का मंदिर दोपहर बारह बजे तक क्यों बंद हो जाता है, फिर सीधा रात आठ बजे खुलता है, ऐसा तो कहीं नही है।’

पण्डित जी मुस्काये और बोले ‘ यह तो राम राजा का निवास स्थान है भैया हरों, राम राजा का इजलास यानि राजदरबार तो अयोध्या के कनक भवन में लगता है, जो कि दोपहर बारह बजे खुलता है, तो ऐसा नियम बनाया गया है कि सुबह आठ बजे से दोपहर बारह बजे तक यहां मंदिर खुलेगा और बारह बजे यहां बंद होते ही अयोध्या के कनक भवन में मंदिर खुल जायेगा जो रात आठ बजे तक खुला रहेगा, वहां आठ बजे बंद होते ही यहां रात आठ बजे खुल जायेगा। ’

बच्चोंसहित मुझे भी यहां के रामचंद्र जीका नाम रामराजा होने और सुबह से बारह बजे तक मंदिर खुलने का यह रहस्य सुन कर खूब अचरज और खुशी हुई । हमने उन पण्डितजी से कहा कि आप ही चल कर हमको बाकी जगहों के बारे में जानकारी प्रदान करें। पण्डितजी बड़ी खुशी से हमारे साथ जाने का तैयार हो गये।

मंदिर के बरामदे से उतरके हम लोग फिर चबूतरे पर आगये । अब हम हरदौल बैठका की ओर चल पडे़ थे। जो कि रामराजा मंदिर के दांयी तरफ की इमारत मंे था।

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ओरछा- लगभग पांच सौ साल पहले मध्य भारत के बुन्देलखण्ड क्षेत्र की राजधानी रहा यह स्थान पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र है। यह दिल्ली-मुम्बई रेल लाइन के जंकशन झांसी से पंद्रह किलोमीटरदूर है।

साधन- झांसी से ओरछा के लिए सबसे सरल साधन बस और टैम्पा हैं। झांसी से ओरछा के लिए ऑटो टूसीटर भी चलते हैंऔर निजी कार टैक्सी भी चलती है। ओरछा नाम का रेल्वे स्टेशन झांसी से मउरानीपुर होते हुए मानिक पुर जाने वाली लाइन पर बस्ती से पंाच किलोमीटर दूर बनाया गया है।

ठहरने के साधन-ओरछा में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग मध्यप्रदेश सरकार के रेस्ट हाउस, मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम की तरफ से संचालित बेतवा कॉटेज की वातानुकलित कॉटेज और होटल शीश महल तथा बहुत सारे थ्री स्टार और सुविधायुक्त निजी होटेल हैं। आजकल तो ओरछा में बहुत से लोग अपने घर में एक कमरा वातानुकूलित बनवा कर सैलानियों को देने लगे हैं जिनमें रहकर विदेशी यात्री भारतीय ग्रामीणों का रहन सहन , खाना पीना, रसोई वगैरह निकट से देखते हैं।

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