She cares for you books and stories free download online pdf in Hindi

वो परवाह करती है तुम्हारी

रीमा काम करके बैठी ही थी कि उसकी मम्मी का फोन आ गया| फोन पर बात करते हुए वह बोली "मम्मी अभी तो आई थी मैं एक महीने पहले| इतनी जल्दी नहीं आया जाता| अच्छा चलो अगले महीने आने की कोशिश करती हूं| " कह उसने फोन रख दिया|
"क्या दीदी, आपकी मम्मी आपको बुला रही है तो चले क्यों नहीं जाते?"
"जाने का तो मेरा भी मन करता है, पर क्या करूं! एक तो छुट्टी नहीं, दूसरा इन सबको खाने के लिए दिक्कत हो जाती है| "
"कोई नहीं, कई बार वैसे भी तो आप लोग बाहर से मंगाकर खाते हो| ज्यादा नहीं सुबह जाकर शाम को आ जाना| पर अपनी मम्मी को जरूर मिल आओ| "
"तुझे बड़ी मां की फिक्र हो रही? तू कितनी बार जाती है मिलने के लिए अपनी मां से? बता तो जरा!" रीमा ने अपनी कामवाली से कहा|
"मेरी तो मां ही नहीं है, बहुत याद आती है मुझे उनकी| बहुत छोटी थी कोई सात आठ साल की, तभी गुजर गई थी| दादी ने पाल पोस कर बड़ा किया है।" कहते हुए उसकी आंखों से आंसू निकल आए|
"बहुत दुख हुआ तुम्हारी मां के बारे में जान कर | "

फिर आंसू पोछते हुए वह बोली "दीदी छुट्टियां पड़ी हुई हैं| आप भी घर पर हो तो मैं 10 -15 दिनों के लिए अपने गांव जा रही हूं| दादी बहुत बार बुलाती है, जा ही नहीं पाती| "

"हां ठीक है, मैं संभाल लूंगी| तू हो आ, तेरे आने के बाद मैं भी चली जाउंगी मम्मी से मिलने" रीमा ने कहा|
रीमा अध्यापिका थी| छोटा सा परिवार था उसका| दस साल का बेटा, 15 साल की बेटी अवनी व पति| इस समय गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी तो बच्चे देर तक सोते या टी वी में लगे रहते| आज सुबह भी उसकी अपनी बेटी से इसी बात पर बहस हुई | वह उसे समझाते हुए बोली

"अवनी इस बार तुम्हारे बोर्ड एग्जाम है, उन पर ध्यान दो| क्या हमेशा टीवी में लगी रहती हो"
यह सुन वह गुस्सा होते हुए बोली " क्या मम्मी आप हमेशा अनपढ़ों की तरह से बातें करती हो| बंदिश लगाती हो| मेरी सारी फ्रेंड्स फेसबुक व इंस्टाग्राम पर है और आप मुझे फोन को हाथ भी नहीं लगाने देती हो| सबके अपने पर्सनल फोन है और आप अपना फोन देते हुए भी इतनी निगरानी रखते हो| सारी फ्रेंड्स मेरा कितना मजाक उडाती हैं पता है आपको! पता नहीं आप कौन से जमाने में जी रहे हो| "
" बेटा यह सब मैं तुम्हारी भलाई के लिए ही कर रही हूं| तुम्हारा भी अपना फोन होगा लेकिन समय तो आने दो| अभी तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो| दोस्तों का क्या है| वह तो कुछ भी कहेंगे| तुम्हें अपनी मां पर विश्वास नहीं है क्या!"

" रहने दो, आपको विश्वास है मुझ पर | लगता है जैसे जेल में जी रहे हैं हम| " कह, वह गुस्से से उठ कर चली गई| उसकी बातें सुन रीमा उदास हो गई|

तभी उसकी काम वाली भी आ गई| अंदर आते हुए उसने सारी बातें सुन ली थी| रीमा ने जल्दी से अपना मूड़ ठीक कर, उससे पूछा "अरे सरला तू तो 10 दिन बाद आने वाली थी | इतनी जल्दी कैसे आ गई | मन नहीं लगा क्या तेरा गांव में !" रीमा की बात सुन, वह बोली "दीदी मन तो बहुत लग रहा था लेकिन चाची ने जीने ही नहीं दिया|"

"क्यों चाची का क्या मतलब!"
"अरे वह दादी के साथ ही रहती है ना! उठते बैठते हमेशा ताने देती। खाना भी दूभर कर दिया था, दीदी| दादी ने रोते हुए मुझसे कहा, बिटिया जा तू अपने घर ही जा| इसलिए दीदी मैं तो आ गई वापस| हम तो चाची को अपनी मां जैसा ही मानते थे लेकिन उसने कभी हमें अपने बच्चे नहीं माना| सच में दीदी मां, मां होती हैं| बचपन में भी चाची अपने बच्चों को तो पढ़ने भेज देती और मुझे घर के कामों में लगा देती | किसी तरह दादी ने मुझे लड़ झगड़ कर भेजा भी तो वहां पर मेरी संगति ही गलत लड़कियों से हो गई| मैं अक्सर स्कूल से भाग जाती या फिर टीवी देखती| इस सब का नतीजा यह निकला कि मैं फेल हो गई|
चाची तो इन सब की फिराक में ही थी| उसको बहाना मिल गया| चाचा से कह मेरा नाम कटवा दिया और फिर मुझे कभी स्कूल ना भेजा| मैं भी अपनी करनी पर बहुत पछताई| मुझे फिर अपनी मां याद आई| सच अगर वह होती तो क्या मेरी एक गलती पर मुझे घर थोड़ी ना बैठ देती| मुझे समझाती ना| अब दीदी मैं कभी गांव नहीं जाऊंगी| दादी ने कहा है कि फोन पर ही मुझसे बात कर लिया करेंगी| "
अंदर बैठी अवनि, सरला की यह सारी बातें सुन रही थी| उसकी कही बातें कहीं ना कहीं उसके दिल को झकझोर रही थी|
सरला जब उसके कमरे में सफाई करने आई तो वह बोली "क्या आंटी इतनी बड़ी होकर भी आपको अपनी मां की इतनी याद आती है| बहुत प्यार करती थी क्या आपसे| "

"हां बिटिया करती थी लेकिन दिखाती नहीं थी| बहुत फिक्र करती थी| कहती थी, कुछ पढ़ ले नहीं तो हमारी तरह ही मजदूरी करेगी लेकिन मैं तो दूसरी दुनिया में रहती थी ना | उस समय तो मां-बाप की बातें सबको ही बुरी लगती है | बाद में जाकर समझ आता है कि मां बाप जैसा हमारा शुभचिंतक और परवाह करने वाला इस दुनिया में और कोई नहीं| अगर मेरी मां जिंदा होती तो शायद लड़ झगड़ कर मुझे समझाती लेकिन स्कूल से नाम न कटवाती| हमारी ही गलती होती है जो चीज हमारे पास होती है| उसकी हम कदर नहीं करते और मां तो भगवान होती हैं| जो अपने बच्चे का कभी बुरा नहीं सोच सकती|" कह सरला सफाई करती हुई वहां से निकल गई|

अब तो अवनी को अपनी पिछली सारी बातें याद आ रही थीं कि कैसे वह अपनी मम्मी के समझाने पर उनको ही उल्टा सीधा बोल देती थी|सच! कहती तो मम्मी उसके हमेशा भले के लिए ही है ना| हे भगवान! कैसे वह अपनी मां के साथ इतना बुरा बिहेव करती रही| सोचकर उसकी आंखों में आंसू आ गए|
तभी रीमा अंदर उसके लिए नाश्ता लेकर आई| अपनी मां को देख अवनी दौड़कर उनसे लिपट गई और बोली

"सॉरी मम्मी मैं अब तक आपसे बहुत ही गलत बिहेव करती आई हूं|आपको समझने की बजाय हमेशा आपकी बातों का गलत मतलब निकाला है| मेरे इस व्यवहार पर भी आप मुझे डांटने की बजाए हमेशा मुस्कुराती रही क्योंकि आपको मेरी परवाह थी। यह मुझे आज समझ में आया।
मम्मी , मैं प्रॉमिस करती हूं कि जो आप कहोगी, वही मैं करूंगी| मैं आपको फिर से, आपकी प्यारी बेटी बनकर दिखाऊंगी| क्या आप मुझे माफ करोगी!"

यह सुन रीमा ने उसे गले लगा लिया और बोली "तुम तो सदा से ही मेरी प्यारी व समझदार बेटी हो, लेकिन थोड़ा सा रास्ता भटक गई थी| लेकिन मुझे प्यारा पूरा विश्वास था मेरी बेटी कभी भी कोई गलत कदम नहीं उठा सकती|"
दोस्तों, कैसी लगी आपको मेरी है यह रचना? पढ़कर इस विषय में अपने अमूल्य विचार जरूर दें|

सरोज ✍️

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED