लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 7 Jitendra Shivhare द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 7

लीव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा

जितेन्द्र शिवहरे

(7)

धरम अपने बारे में बता रहा था। नींद कब लगी उसे स्वयं पता नहीं चला। टीना भी गहरी नींद में चली गयी।

सुबह हो चूकी थी। धरम ने आंखें खोलकर घड़ी की ओर देखा। उसे आश्चर्य हुआ की सुबह के नौ बज चुके थे। टीना भी अब तक सोयी हुई थी। उसने टीना को हाथों के स्पर्श से हिलाया।

"टीना! टीना! उठो! टीना उठो।" धरम दोहरा रहा था।

टीना घबरा कर उठी।

"क्या हु धरम?" टीना ने पुछा।

"टीना हम सोते रहे गये। सुबह हो चुकी है। देखो।" धरम ने बताया।

"ओहहह माई गाॅड! ये कैसे हो गया? और वह बाबा टपाल! वह भी तो नहीं आये।" टीना ने पुछा।

"हां! समझ नहीं आया! उन्होंने रात बारह बजे तक आने को कहा था। कहीं वे दरवाजे से लौटकर तो नहीं चले गये।"

धरम ने आशंका व्यक्त करते हुये कहा।

"तुम उन्हें फोन करो और पुछो।" टीना ने धरम से कहा।

"हां! अभी फोन लगता हूं।" धरम अपने मोबाइल फोन से बाबा टपाल को फोन लगाने लगा। मगर बाबा टपाल का फोन स्वीच ऑफ था, धरम को यह ध्वनी सुनाई देने लगी। धरम और टीना चिंता में डुब गये। यदि वे रात में नहीं सोते तो सबकुछ ठीक हो सकता था। टीना ने किचन बेसिन में जाकर देखा। वहां जुठन के बर्तन रखे थे। इसका अर्थ था की निवेदिता की आत्मा रात में वहां आई थी।

"टीना! निराश नहीं होते। जो कल नहीं हुआ वो आज हो जायेगा। इसमें इतनी चिंता करने की कोई बात नहीं है।" धरम ने टीना को हिम्मत बंधाई।

"हां धरम! हो सकता है कुदरत ने हमें एक दिन और साथ मे रहने का अवसर दिया है ताकी कुछ पल हम दोनों साथ में जी सके।" टीना ने कहा।

"एक दिन नहीं टीना! देखना! हम दोनों सारी जिन्दगी एक साथ रहेगें। इस मुसीबत को हम दोनों मिलकर हरा देंगे।" धरम ने कहा।

धरम के आत्मविश्वास से भरे स्वरों ने टीना के चेहरे मुस्कान बिखेर दी।

पिछले कुछ दिनों की तरह आज का दिन नहीं था। आज टीना और धरम अपने अंदर एक नयी ऊजा का संचार होता देख रहे थे। ये उनकी एकता और परस्पर प्रेम की शक्ति का परिणाम था।

बाबा टपाल का फोन अब भी नहीं लग रहा था। देखते ही देखते शाम घीर आयी।

"बाबा टपाल के बिना हम दोनों ये काम कैसे पुरा करेंगे धरम?" टीना ने चिंता जताई।

"मैंने सोच लिया है टीना!" धरम ने कहा।

"क्या?" टीना ने पुछा।

"अब हम दोनों अकेले ही मिलकर इस काम को पुरा करेंगे!" धरम ने कहा।

"ठीक है धरम! मैं तुम्हारे साथ हुं।" टीना ने धरम के विचार पर सहमती जताते हुये कहा।

"ओके टीना। अब सुनो हमे करना क्या है!" धरम ने आज रात का अपना सारा प्लान टीना को कह सुनाया। टीना धरम की बातों पर सहमति देती जा रही थी। रात घीर आई थी। धरम और टीना खाना खाकर सोने जा पहूंचे। टीना आज अपने पुराने दिनों की बातें धरम से शेयर कर रही थी। ताकी दोनों को नींद न आ जाये। धरम ने रात एक बजे का अलार्म सेट कर रख दिया था। ताकी वह नींद आ भी जाये वह नियत समय पर उठ जाये। टीना ने बताया की उसके अमेरिकी काॅलेज में ऐसे बहुत से लड़के थे जो टीना को प्रपोज कर चूके थे। टीना ने स्टीफन नाम के युवक का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया था। क्योंकि स्टीफन काॅलेज में सबसे हाॅट था। स्टीफन टीना को अपना स्टेट सिम्बल समझता था। वह टीना पर अपना आधिकारिक आधिपत्य समझने लगा था। टीना को यह नांगवार गुजरा। टीना ने इस बात पर स्टीफन का विरोध किया और जल्दी दोनों का ब्रेकअप भी हो गया। स्टीफन के बाद टीना की जिन्दगी में पीटर आया। पीटर और स्टीफन दोनों परस्पर जानी दुश्मन थे। दोनों एक-दुसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। एक दिन काॅलेज कैम्पस में पीटर और स्टीफन की हाथापाई हो गयी। काॅलेज के सभी स्टूडेंट्स इस लडाई का आनंद लूट रहे थे। टीना से देखा नहीं गया। उसने स्टीफन और पीटर को लड़ाई करने से रोका। सबके सामने उसने दोनों की खूब खींचाई की। टीना की डांट को दोनों सुन रहे थे। कूछ ही देर में वे लोग वहां से चले गये। टीना के प्रभावी उद्बोधन ने पीटर को अधिक प्रभावित किया। एक दिन मौका पाकर पीटर ने टीना को प्रपोज कर दिया। मगर टीना स्टीफन से धौखा चूकी थी। उस पर स्वीटी और पीटर का हाल ही में ब्रेकअप हुआ था। यह सोचकर टीना ने पीटर के प्रेम प्रस्ताव को मना कर दिया। पीटर आसानी से हार मानने वाला नहीं था। उसने एड़ी-चोंटी का जोर लगा दिया टीना की हां के लिए। पुरे तीन महिने के बाद टीना ने पीटर के लिए हां की। वह भी तब जब पीटर ने आजीवन उसके प्रति वफादार रहने का वचन दिया। तब से ही पीटर और टीना साथ थे।

कहते-कहते टीना को नींद आने लगी। उसने धरम की ओर देखा। वह सो चूका था। टीना ने भी एक जम्हाई ली और सो गयी। कुछ ही देर में टीना भी गहरी नींद में चली गयी। बारह बजे की ध्वनि दीवार घड़ी से आने लगी। निवेदिता की आत्मा फ्लैट में प्रवेश कर चूकी थी। उसने किचन में रखे राशन के डब्बों से आवश्य सामान निकाला और खाना बनाने की तैयारी करने लग गयी। टीना की आत्मा भी किचन में आ चूकी थी। निवेदिता और टीना दोनों की आत्माओं में बहस छिड़ गयी। धरम अलार्म के पुर्व ही जाग चूका था। वह अलार्म बंद करना भूल गया था। दबे पांव वह किचन से कुछ दुरी पर जाकर छिप गया। वह टीना और निवेदिता की आत्मा के बीच बहस होती देख रहा था। निवेदिता खाना लेकर डाॅयनिंग टेबल पर आ गयी। वह खाना खाने में व्यस्त थी। धरम खड़े-खड़े अब भी चुपके-चुपके यह सब देख रहा था। तब ही रात एक बजे का अलार्म बजने लगा। धरम को आत्मग्लानी हुई की उसने बैडरूम से निकलने से पुर्व अलार्म बंद क्यों नहीं क्यों किया? निवेदिता सारा माजरा समझ चूकी थी। धरम दौड़कर बैडरूम के दरवाजे की तरफ भागा। मगर इससे पुर्व ही हवा में उड़ते हुये निवेदिता बैडरूम के दरवाजे के पास जा पहूंची। धरम एक दम निवेदिता के सामने खड़ा था। निवेदिता ने एक जोर की लात धरम के सीने पर दे मारी। वह दुर जा गिरा। टीना चिखी। वह धरम के पास आ गयी। निवेदिता हवा में उड़ते हुये धरम के पास आई। उसने टीना को बालों से पकड़ लिया। और जोर का धक्का दे मारा। टीना दीवार से जा टकराई। बैडरूम में सौ रही टीना का शरीर दर्द से कराह रहा था।

"निवेदिता! तुम चाहती हो न कि धरम और मैं हमेशा के लिए अलग हो जाएं?" टीना ने पुछा।

"हां मैं यही चाहती हूं।" निवेदिता की आत्मा की आवाज़ में कर्कश स्वर था।

"फिर ठीक है। मुझे छोड़ दो। मैं धरम को हमेशा के लिए छोड़ कर चली चाऊंगी।" टीना बोली।

"मगर मुझे कैसे यकीन आयेगा। तुम औरतें अपने प्रियतम का साथ इतनी आसानी से नहीं छोड़ती।" निवेदिता बोली।

"सही कहा। मगर दुसरे के पति को अपना पति कभी स्वीकार नहीं करती।" टीना बोली।

"क्या मतलब?" निवेदिता ने पुछा।

"मतलब यह की अगर धरम और तुम्हारी शादी हो जाये और तुम दोनों साथ में सुहागरात भी मना लो तब मैं चाहकर भी धरम के पास दौबारा नहीं आ सकती। क्योंकी तब धरम तुम्हारा पति होगा और तुम उसकी पत्नी!" टीना बोली।

"कहीं तुम झुठ तो नहीं बोल रही?" निवेदिता ने पुछा।

"मौत के मुहाने बैठकर कोई झुठ नहीं बोलता निवेदिता! हम दोनों ने यह तय किया था की निवेदिता और धरम की शादी करवाई जायेगी। और इसके लिए हमने बाबा टपाल को भी बुलाया था वही तुम दोनों की शादी करवाने वाले थे।" टीना बोली।

"बाबा टपाल हा! हा! हा!" निवेदिता हंसने लगी।

"क्या हुआ! तुम हंस क्यों रही हो?" टीना ने पुछा।

"वो रहे तुम्हारे बाबा टपाल!" निवेदिता ने हाथों के इशारें से सामने की ओर देखने को कहा।

कुछ दुरी पर सामने बाबा टपाल आ खड़े हुये। वो भी जोरो की शैतानी हंसी हंस रहे थे। धरम को समझते देर न लगी की निवेदिता ने अपनी शैतानी शक्तियों के बल पर बाबा टपाल को भी अपने वश में कर लिया था। तब ही वह धरम और टीना को घर आने की सहमति देने के बावजूद नहीं आये। टीना और धरम के आश्चर्य की ये तो शुरूआत थी। उसके बाद उन्होंने वह देखा जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। एक वयोवृद्ध बाबा जिसे धरम और टीना ने एक रात खाना खिलाया था वह भी वहां आ चूका था। वह वृद्ध व्यक्ति, बाबा टपाल के बगल में आकर खड़ा हो गया। उसका चेहरा एकदम सफेद था। आखें लाल रंग से रंगी थी। दातों में कालापन साफ दिखाई दे रहा था। उसे देखकर कोई भी बता सकता था की वह भुत बन चुका है। घर में हाॅल के बीचों बीच अग्निकुण्ड निर्मित किया गया। जिसे बाबा टपाल और वह बुढ़ा भुत संजा संवार रहा था। निवेदिता दुर कुर्सी पर बैठी यह सब देख रही थी। उसने टीना को हुक्म दिया की वह अपने शरीर में प्रेवश कर यहां उसके पास जा आये। टीना उसे दुल्हन की तरह संजाने वाली थी। टीना ने ऐसा ही किया। वह बैडरूम के अंदर चली गयी। वह बेड पर सो रही टीना के शरीर में प्रवेश कर गयी। कुछ देर बाद टीना उठ चूकी थी। धरम हाॅल में ही से ये नज़ारा देख रहा था।

"जाओ! धरम! तुम भी तैयार होकर आओ।" निवेदिता ने कहा।

"मगर मेरे पास दुल्हे के कपड़े नहीं है।" धरम बोला।

"मुझे पता था। इसलिए मैं तुम्हारे लिए दुल्हे के कपड़े लेकर आयी हूं।" निवेदिता ने कहा।

"इसका मतलब तुम्हें सब पता है?" धरम ने आश्चर्य से पुछा।

"मैं शैतानी आत्मा हूं धरम! मुझे सब पता होता है। मुझे तुम्हारे और टीना के बीच जो बातें हुयी थी, वह सब पता है।"

निवेदिता बोली।

"तुम फिर भी हमारे कहे अनुसार चल रही हो?" धरम ने कहा।

"मैं तुम्हारे कहे अनुसार नहीं चल धरम! बल्कि तुम दोनों मेरी योजना अनुसार चल रहे हो?" निवेदिता बोली।

"क्या मतलब?" धरम ने पुछा।

"मतलब ये की मैंने ही तुम्हारे मन में इस बात की प्रेरणा उत्पन्न की थी की तुम्हारी शादी मेरे साथ हो। इस कार्य से मुझे मुक्ति मिलेगी । मगर ऐसा नहीं है। जैसे ही तुम्हारी शादी मुझसे हो जायेगी, धर्मपत्नी के नाते तुम्हारे शरीर और आत्मा पर मेरा अधिकार हो जायेगा। तुम्हें मारकर मैं अमर हो जाऊंगी। शरीर तुम्हारा होगा और आत्मा निवेदिता की। बस फिर क्या! मैं हर उस प्रेमी जोड़े को सबक सीखाऊंगी जो एक-दुसरे से झुठा प्यार करते है। एक-दुसरे को धोखा देते है।" निवेदिता बोली।

"मगर इससे तुम्हें क्या फायदा होगा?" धरम ने पुछा।

"शांति और शक्ति! जो भी लवर अपने प्रेमी से धोखा कर रहा है मैं उसे मारकर उसके शरीर पर अपना अधिकार कर लुंगी। इस तरह मेरे पास बहुत से गुलामों की टीम खड़ी हो जायेगी। जो प्यार में धोखा करने वाले प्रेमियों को सज़ा देंगी। जितने धोखेबाज प्रेमी मरेंगे मैं उतनी ताकतवर बनती रहूंगी।" निवेदिता बोली।

"किसी को मारना या सज़ा देने का अधिकार तुम्हें किसने दिया? तुम कोई भगवान नहीं हो निवेदिता!" धरम ने कहा।

"भगवान हूsssअं! कौन भगवान? इस ज़माने का असली भगवान वही है जिसके हाथों में शक्ति है। मेरे पास शैतानी शक्ति है। इसलिए यहां की भगवान मैं ही हूं।" निवेदिता दहाड़ रही थी।

"ये तुम्हारा अभिमान है निवेदिता! भगवान तो वही एक है जिसने मुझे, तुम्हें हम सभी को बनाया है। वही सर्वशक्तिमान है।" धरम ने कहा।

"तुमने भगवान की शक्ति कभी नहीं देखी जबकी मेरी ताकत यथार्थ में देख रहे हो! फिर भी भगवान को मान रहे हो।" निवेदिता बोली।

"जिसके आगे सब हार जाते है उसकी शक्ति के आगे तुम भी हार जाओगी निवेदिता!" धरम बोला।

"मैं कभी नहीं हारूंगी धरम! तुम्हें अपना बनाकर मुझे सबसे शक्तिशाली बनने से अब कोई नहीं रोक सकता।" निवेदिता बोली।

"एक बैडरूम के अंदर तुम्हारी शक्ति कोई काम की नहीं करती! उस पर इतना घमण्ड करती हो।" धरम बोला।

"कुछ ही पलों में वो बैडरूम भी मेरा होगा। वहां तुम और टीना के सिर्फ शरीर ही नहीं मिलते बल्कि तुम दोनों की आत्मामों का मिलन होता है। और यह पवित्र मिलन ही मुझे वहां आने से रौकता है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, तुमसे शादी करने के बाद मैं तुम्हारी पत्नी हो जाऊंगी और आसानी से उस बैडरूम में दाखिल हो सकूंगी। फिर तुम्हारे साथ सुहागरात मनाकर सर्वशक्तिशाली हो जाऊंगी।" निवेदिता बोली। उसकी हंसी पुरे हाॅल को गुंजायमान कर रही थी।

"मगर ये कैसा हो सकता है! हम दोनों को मिलन कैसे संभव है। तुम एक आत्मा हो और मैं एक इंसान! हमारा परस्पर शारीरिक स्पर्श संभव नहीं है।" धरम ने दलील दी।

"उसकी चिंता तुम मत करो। एक बार हमारी शादी हो जाये उसके बाद मैं टीना को मारकर उसके शरीर में प्रेवश कर जाऊंगी। बस! फिर तुम्हें उतना ही मज़ा आयेगा जितना टीना के साथ सोने में आता है। हा! हा! हा!" टीना हंस रही थी।

"तुम्हारी इतनी हिम्मत! मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोडूंगा।" कहते हुये धरम टीना को मारने के लिए दौड़ा। वह निवेदिता का गला पकड़ना चाहता था। मगर निवेदिता एक आत्मा थी। वह चाहती जिसे नुकसान पहूंचा सकती थी मगर उसे कोई चाहकर भी पकड़ नहीं सकता था। निवेदिता ने उसे फूंक मार दी। फूंक मारते ही धरम दूर जा गिरा।

धरम के पास अब कोई चारा नहीं था। टीना और धरम निवेदिता के फेंके हुये जाल में बुरी तरह फंस चूके थे। अब न चाहते हुये भी उन्हें निवेदिता की बातें माननी थी। टीना की आंखों में आसुं थे। वही धरम भी टीना के लिए चिंतित था। निवेदिता टीना को जल्दी ही मारने वाली थी। यह जानते हुये भी टीना उसे सोलह श्रृंगार से संजा-संवार रही थी। लाल साड़ी पहनकर वह निवेदिता की दुष्ट आत्मा बिल्कुल इंसानी दुल्हन लग रही थी। जिसे देखकर कोई भी मोहित हो जाये। निवेदिता ने अपने सौन्दर्य का ऐसा जाल फेंका जिसमें धरम उलझ गया। निवेदिता के चेहरे में धरम को टीना का ही चेहरा दिखाई दे रहा था। इसलिए वह सम्मोहित था। अब वह किसी तरह का विरोध नहीं कर रहा था। टीना यह देखकर आश्चर्य चकित थी। उसने धरम को झंझोड़ कर अपनी ओर देखने के लिए प्रेरित किया मगर सम्मोहित धरम ने टीना को हाथों से दुर खदेड़ दिया। वह निवेदिता की आत्मा के पास पहूंच गया। वह निवेदिता के गले लग गया। निवेदिता का चेहरा टीना की तरफ था। वह शैतानी मुस्कुराहट बिखेर रही थी। टीना यह देखकर दुःखी थी। उसे आभास हो रहा था की अवश्य ही कुछ गल़त होने वाला है। निवेदिता का हाथ थामे धरम अग्नि कुण्ड के पास जा पहूंचा। दोनों नीचे बैठ गये। देखते ही देखते कुण्ड में अग्नि में स्वतः प्रज्वलित हो गयी। बाबा टपाल ने मंत्रोच्चारण आरंभ कर दिया। वह बुढ़ा बुजुर्ग धरम और निवेदिता पर पुष्पों की बरसात करने लगा।