लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 8 - अंतिम भाग Jitendra Shivhare द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 8 - अंतिम भाग

लीव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा

जितेन्द्र शिवहरे

(8)

"धरम! ये तुम्हें क्या हो गया है। जागो! ये पापीन हम दोनों को मारकर संसार में हा-हा-कार मचा देगी।" बाबा टपाल की आत्मा से ये आवाज़ें धरम को जगाने के लिए उठ रही थी। बाबा टपाल को निश्चित ही निवेदिता ने अपने वश में कर लिया था, मगर उसकी आत्मा अब भी स्वतंत्र थी। वह केवल धरम को दिखाई दे रही थी। धरम का मोह भंग हुआ। वह जागा। अपने पास में बैठी निवेदिता को देखकर वह उठ खड़ा हुआ। लेकिन निवेदिता के आगे उसकी एक न चली। उसने धरम को पुनः नीचे बैठा लिया। बाबा टपाल ने मंत्रोच्चारण जारी रखा। निवेदिता और धरम को अग्नि के सात फेरे लेने थे। उन्होंने पहला फेरा लिया। यह देखकर टीना की आंखों से आसूं रोके नहीं रुकते थे। बाबा टपाल की अदृश्य आवाज़ टीना के कानों में गुंजने लगी।

"फ्रिक मत करो बेटी। बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो, अच्छाई से हार ही जाती है। अपने मन को कमजोर मत होने दो। निवेदिता के हर कदम का जवाब हंसते मुस्कुराते दो। तन से भले ही हार जाओ किन्तु मन से मत हारना। तुम दोनों का ही प्यार जीतेगा। भरोसा रखो।"

यह प्रभावी आकाशवाणी सुनकर टीना के बोझील मन में रोशनी का दिपक जल गया। वह अपने मन को मजबुत करने में सफल हो ही गयी।

निवेदिता और धरम ने अग्नि के सात फेरे पुरे कर लिये। धरम को अब निवेदिता के गले में मंगलसुत्र पहनाना था। टीना ने मंगलसुत्र धरम के हाथों में स्वयं दिया। यह देखकर धरम चौंक गया। निवेदिता ने धरम को मंगलसुत्र पहनाने का इशारा किया। धरम ने निवेदिता को मंगलसुत्र पहना दिया। अब निवेदिता की मांग सिन्दूर से भरी जाना थी। धरम ने दिल पर पत्थर रखकर यह भी कर दिया। अब दोनों विधि-विधान से पति-पत्नी बन चूके थे। धरम का सिर झुका था। मानों वह टीना के सामने शर्मिंदा हो रहा था। निवेदिता धरम के बैडरूम में जाने के लिए मचल उठी। वह बैडरूम की तरफ तेजी से भागी। बैडरूम के दरवाजे पर अपना पहला पैर रखा ही था की दहलीज से आग भभक उठी। वह डरकर पीछे खड़ी हो गयी। धरम और टीना यह आश्चर्य से देख रहे थे। निवेदिता पुनः दरवाजे में प्रवेश करना चाहती थी मगर अब भी अग्नि रेखा की सीमा पार करना उसके वश में नहीं था।

"निवेदिता! इस टीना ने झुठ कहा था की उसने धरम को भुला दिया है। इसके भन में अब भी धरम ही है। जब तक टीना के मन से धरम हट नहीं जाता। तेरा बैडरूम के अंदर जाना असंभव है।" उस बुढ़े बुजुर्ग ने टीना से तेज़ आवाज़ में कहा। जो अग्नि कुण्ड के पास ही खड़ा था।

निवेदिता समझ गयी की टीना को समाप्त किये बिना वह बैडरूम के अंदर नहीं जा सकती क्योंकी टीना अपने जीते जी धरम का ख्याल स्वयं के मन-मंदिर से निकाल नही सकती। निवेदिता टीना की ओर लपकी। बाबा टपाल ने कहा- "भागो टीना! इससे बचो। वर्ना ये तुम्हें मार देगी।"

टीना सतर्क हो गयी। निवेदिता उसकी ओर लपकी ही थी कि टीना नीचे झुककर आगे की ओर भाग गयी। वह बैडरूम के अंदर प्रवेश करना चाहती थी। मगर धरम उसके आगे खड़ा हो गया।

"नहीं टीना। अब ओर नहीं। अब हम डरकर भागेंगे नहीं। मुकाबला करेंगे।" धरम ने कहा।

उसके चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था। टीना ने उसका हाथ पकड़ लिया। निवेदिता उन दोनों के सामने खड़ी थी। उसने टीना को अपनी लात दे मारी। टीना के साथ-साथ धरम भी दुर जा गिरा। यह देखकर निवेदिता आगबबूला हो गयी। उसका पति किसी ग़ैर औरत के लिए उसका विरोध कर रहा था।

"तुम्हें शर्म नहीं आती। अपनी पत्नी के सामने किसी पराई औरत का हाथ थामे खड़े हुये हो।" निवेदिता धरम से कह रही थी। वह टीना का हाथ धरम के हाथों से छुड़वाना चाहती थी। उसने पुरी कोशिश की मगर वह दोनों के हाथों से अलग-अलग नहीं कर पा रही थी। बाबा टपाल ने एक बार फिर भविष्यवाणी की- "टीना! निवेदिता के गले में लटक रहा मंगलसुत्र निकाल लो। और धरम से कहो की वह तुम्हारे गले में इसे पहना दे। इससे निवेदिता टीना का कुछ बिगाड़ नही सकेगी। टीना ने ऐसा ही किया। निवेदिता उन दोनों के पास ही खड़ी होकर दोनों को अलग-अलग करने की असफल कोशिश कर रही थी। मौका पाकर टीना ने निवेदिता के गले से उसका मंगलसुत्र निकाल लिया और धरम को दे दिया। धरम ने अपने हाथों से वह मंगलसुत्र टीना को पहना दिया। मंगलसुत्र का इतना प्रभाव इतना गहरा था कि निवेदिता टीना को छू भी नहीं पा रही थी। निवेदिता इससे और अधिक क्रोधित हो गयी। अब वह धरम पर टुट पड़ी। निवेदिता ने धरम को अपने हाथों के प्रहार से दुर जा फेंका। धरम कराह उठा। टीना की चीख निकल गयी। निवेदिता को धरम यहाँ से वहां हवा में उछाल रही थी। उसने टीना से कहा की अपना मंगलसुत्र निकालकर फेंके अन्यथा वह धरम को इसी तरह सज़ा देती रहेगी। टीना हार गयी। वह धरम को इस तरह तड़पता हुआ नहीं देख सकती थी। उसने अपने गले से मंगलसुत्र निकालकर पास की टेबल पर रख दिया। निवेदिता ने धरम को छोड़ दिया। उसका क्रोध अब टीना पर कहर बनकर बरस रहा था। टीना को बुरी तरह घायल कर निवेदिता ने उसका प्राणान्त करने का विचार किया। वह टीना के अध-भरे शरीर के पास पहूंची। निवेदिता ने टीना का गला पकड़ लिया।

"निवेदिता, इसे छोड़ दो। मैं तुम्हें अपने साथ बैडरूम के अंदर ले चलता हूं।" धरम ने कहा।

निवेदिता सोच में पड़ गयी।

"अरे हां! मैंने यह तो सोचा ही नहीं। अपने पति के साथ तो मैं कहीं भी जा सकती हूं। हूंsssअं!" कहते हुये निवेदिता ने टीना को छोड़ दिया।

"इसे भी देखने दो। आज टीना के सामने हम दोनों अपनी सुहागरात मनायेंगे। हाहाहा।" निवेदिता हंसते हुये बोली।

निवेदिता ने धरम का हाथ पकड़ लिया। वह जोरों का अट्टहास कर रही थी। टीना बेसुध अवश्य थी। मगर उसकी आंखें खुली थी। वह धरम के साथ खड़ी निवेदिता को देख रही थी। बाबा टपाल को वह बुढ़ा बुजुर्ग विभिन्न तरह की यातनाएं दे रहा था। क्योँकि बाबा टपाल धरम और टीना को बीच-बीच में निवेदिता की कमजोरीयां बता रहा था। बुढ़ा बुजुर्ग निवेदिता की आत्मा के आदेश पर बाबा टपाल को दण्डित करने में व्यस्त था। धरम की आस टुटती जा रही थी। उसने टेबल पर रखा मंगलसुत्र उठा लिया। निवेदिता की आत्मा उत्साहित थी। वह चाहती थी की धरम उसे यह मंगलसुत्र जल्दी से जल्दी पहना दे ताकी वह उसके साथ बैडरूम के अंदर जा सके।

"नहीं धरम! इसे मंगलसुत्र मत पहनाना! वरना निवेदिता बहुत ताकतवर हो जायेगी।" बाबा टपाल ने धरम से कहा। उन्होंने अब खुलकर निवेदिता के विरूद्ध विद्रेह कर दिया।

"झुमा! मार डाल इसे। अब इसकी हमें कोई जरूरत नहीं।" निवेदिता ने उस बुढ़े बुजुर्ग से कहा। उसका नाम झुमा था।

झुमा जोरो की हंसी हंसते हुये बाबा टपाल की तरफ बढ़ रहा था। बाबा टपाल उसे चकमा देकर यहां-वहां भागने लगे। टीना अधमिची आंखों से यह सब देख रही थी। धरम ने निवेदिता से विनती की वह बाबा टपाल को छोड़ दे। मगर निवेदिता पर धरम की इस विनती का कोई असर नहीं हुआ। वह जल्दी से जल्दी बाबा टपाल को मृत देखना चाहती थी। झुमा ने बाबा टपाल को पकड़ ही लिया। झुमा ने बाबा टपाल का गला पकड़ लिया। बाबा टपाल छटपटाने लगे। उनकी सांस उखड़ रही थी। वे धरम और टीना की और देख रहे थे। उन्होंने हाथ उठाकर दोनों को आशिष दी। उनका दम निकलने ही वाला था की टीना उठी और तेजी से झुमा के हाथों पर टुट पड़ी। अचानक हुये इस हमले से झुमा दुर जा गिरा। वह सम्भल पाता इससे पहले ही पास रखे चाबुक से वह झुमा पर लगातार प्रहार करने लगी। झुमा हंसने लगा। क्योँकि इस प्रहार का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। उसने लेटे हुये ही अपने सामने खड़ी टीना को लात दे मारी। टीना छिटक कर नीचे गिरने ही वाली थी। धरम अपने दोनों हाथों में मंगलसुत्र थामे खड़ा था। टीना का सिर स्वतः ही उस मंगलसुत्र में प्रवेश कर गया। कुदरत भी यही चाहती थी। टीना के गले में मंगलसुत्र माला की तरह झुल रहा था। निवेदिता यह देखकर आगबबूला हो गयी। उसने टीना को दण्डित करना चाहा। मगर सम्मुख खड़ा झुमा दहाड़ा-- "अब देर न कर निवेदिता। टीना के शरीर में घुसकर अपने दिल की ख्वाहिश पुरी कर ले।"

निवेदिता समझ गयी। उसने अपनी शक्ति का आह्वान किया। वह हवा में उड़ने लगी। कुछ ही देर में वह टीना के शरीर में समा गयी। टीना सिहर उठी। वह अपने शरीर में निवेदिता की आत्मा को सह नहीं पा रही थी। निवेदिता और टीना एक ही शरीर में थे। जहां उनकी आपसी उठा-पटक जारी थी। निवेदिता की आत्मा धरम को बैडरूम में ले जाना चाहती थी। मगर उसी शरीर मे टीना की आत्मा भी थी जो निवेदिता का भरपूर विरोध कर रही थी। धरम ने टीना के शरीर से दुरी बना ली। उसके पास कुछ समय था। जिसका उपयोग वह निवेदिता की आत्मा से बचने के उपाय ढुंठने में कर सकता था। वह दौड़कर बाबा टपाल के पास पहूंचा। उनकी सांसे अभी भी चल रही थी। मगर वे मुर्छित थे। धरम ने उन के मुंह पर पानी छिड़का। बाबा टपाल की आंखे खुल गयी। उन्होंने देखा निवेदिता की आत्मा टीना के शरीर में थी। दोनों में द्वंद चल रहा था। झुमा वही खड़ा था। वह आवश्यकता पड़ने पर निवेदिता की मदद करने के तत्पर नज़र आ रहा था।

"धरम! टीना की जान खतरे में है। वह ज्यादा समय तक निवेदिता की शक्तिशाली आत्मा से मुकाबला नहीं कर सकेगी।" बाबा टपाल ने कहा।

"आप ही बताईये बाबा! मैं क्या करूं? मैं टीना के लिए कुछ भी कर सकता हूं।" धरम ने कहा।

"तुम्हें मरना होगा?" बाबा टपाल ने सीधे कह दिया।

"क्या?" धरम चौंका।

"हां धरम! ये दोनों तुम्हारे लिए लड़ रही है। तुम ही नहीं रहोगे तो इनका लड़ना बेकार हो जायेगा। निवेदिता की आत्मा स्वतः शांत हो जायेगी।" बाबा टपाल ने कहा।

"मगर बाबा! मैं मर गया तो टीना भी जिंदा नहीं रहेगी। वह अपने आप को खत्म कर लेगी। और फिर निवेदिता तो जिंदा ही रहेगी न! हमारे बाद भी वह लोगों को परेशान करती रहेगी।" धरम ने कहा।

"मगर मुझे इसके अलावा अन्य कोई भी उपाय दिखाओ नहीं देता।" बाबा टपाल ने कहा।

"बाबा! कोई न कोई उपाय तो हमें ढुंठना ही होगा। इस बुरी आत्मा से संसार को मुक्ति मिलना ही चाहिए।" धरम ने कहा।

निवेदिता की आत्मा टीना के शरीर में थी। दोनों में आंतरिक द्वंद चरम पर था। कभी सोफे पर तो कभी कुर्सी पर टीना का शरीर गुड़क रहा था। टीना के शरीर में निवेदिता की आत्मा प्रवेश तो कर गयी थी किन्तु उसके पवित्र शरीर से निकल रही ज्वाला वह सह नहीं पा रही थी। झुमा प्रतिक्षा में था। वह टीना के शरीर पर प्रहार करना चाहता था। मगर उस शरीर में उसकी स्वामिनी निवेदिता भी थी। झुमा का प्रहार निवेदिता को भी अहित कर सकता था। बाबा टपाल ने यह दृश्य देखकर समझ गये थे। उन्होंने अग्नि कुण्ड में आहुतियां देना आरंभ कर दिया। धरम उन्हीं के कहे अनुसार यज्ञ में आहुति डाल रहा था। बाबा टपाल ने जलती अग्नि कुण्ड में अपना हाथ डाल दिया। धरम यह देखकर आश्चर्यचकित था। बाबा ने यज्ञ से निकाली भभूति धरम को देकर कहा की कुमकुम में इसे मिलाकर टीना के माथे पर लगा दे। इससे टीना को बल मिलेगा और वह निवेदिता की दुष्ट आत्मा को परास्त कर सकेगी। धरम ने ऐसा ही किया। उसने यज्ञ की राख को कुमकुम में मिला दिया। थाली में वह मिश्रण लेकर टीना के शरीर की तरफ बढ़ रहा था। मगर सामने झुमा दिवार बनकर खड़ा हो गया। उसने धरम से वह थाली छिनना चाही। मगर धरम चतुराई से उससे बचने में सफल हो गया। निवेदिता की आत्मा जान चुकी थी ये भभूति यदि टीना के शरीर पर लगा दी गयी तब वह कमजोर पड़ जायेगी। वह धरम से खुद को बचाने लगी। मगर धरम उसके पीछे-पीछे भागने लगा। इतने में झुमा वहां आ पहूंचा। उसने थाली में लात मार दी। जिससे थाली ऊंचाई पर जाकर पुनः नीचे आने लगी। थाली में रखा कुमकुम और भभूति का मिश्रण हवा में फैलता हुआ टीना के सिर पर आ गिरा। इस मिश्रण से स्वतः ही टीना की मांग भर गयी। भभूती का कुछ हिस्सा झुमा और धरम पर आ गिरा। झुमा के शरीर पर भभूती का विपरीत प्रभाव पड़ा। वह मारे दर्द के कराहने लगा। वह बाबा टपाल के चरणों में जा गिरा।

"बाबा! इस पीड़ा से मुझे आजाद करो। वर्ना मैं मर जाऊंगा।" झुमा रोते-चिल्लाते बाबा टपाल से प्रार्थना कर रहा था।

"तुम मर तो बहुत पहले ही गये थे। आज तो मुक्ति का दिन है।" बाबा टपाल ने कहा। बाबा टपाल ने झुमा के सिर पर हाथ रख दिया। कुछ ही समय में अति व्याकुल झुमा शांत हो गया। उसकी आत्मा हवा में उड़ान भर चूकी थी। झुमा को आज मोक्ष मिल चूका था।

निवेदिता अब भी टीना के शरीर में संघर्ष कर रही थी। कुछ ही देर में निवेदिता की आत्मा टीना के शरीर से छिटकर दुर जा गिरी। टीना के लिए बहुत शांति का विषय था। वह लम्बी-लम्बी सांसे ले रही थी। निवेदिता जमीन पर तड़प रही थी। उसकी चीखों से टीना और धरम के दिल पिघल गया।

"बाबा! इसे मुक्त करो।" टीना ने कहा।

"हां बेटा! निवेदिता की मुक्ति का समय आ गया है।" बाबा टपाल ने कहा। उन्होंने अग्नि कुण्ड के पास रखे त्रिशुल को उठा लिया। वे निवेदिता को त्रिशुल घोंपकर मोक्ष देना चाहते थे।

"बाबा! रूकीए! निवेदिता भले ही बुरी आत्मा थी। मगर उसकी और मेरी शादी हुई है। धर्म के अनुसार अब वह मेरी पत्नी है।" धरम ने बाबा टपाल से कहा।

धरम की निवेदिता के प्रति चिंता देखकर बाबा टपाल और टीना भाव विभोर थे। स्वयं टीना की आंखें नम थी। वह टीना और धरम के प्यार की शक्ति पहचान गयी थी। उसने अपनी हार मान ली। निवेदिता ने बाबा टपाल के हाथों से त्रिशूल लेकर अपने पेट में समाहित कर लिया। यह देखकर धरम उसे बचाना दौड़ा। टीना भी उसके पीछे-पीछे भागी। लेकिन तब तक बहुत देय हो चुकी थी। निवेदिता की आत्मा को मोक्ष मिल चुका था। वह धुआं में परिवर्तित होकर आकाश मार्ग में कहीं गुम हो गयी। धरम और टीना ने बाबा टपाल का आशीर्वाद लिया। लॉकडाउन भी समाप्त हो गया था। धरम और टीना दोनों ही अपने-अपने परिवार से मिलने को आतुर दिखाई दे रहे थे। बुराई की हार हुई थी और दोनों का प्यार जीत चूका था। टीना धरम के हृदय से लगकर अपने सुनहरे भविष्य के सपने देखने लगी। टीना को पाकर धरम स्वयं को संपूर्ण होता हुआ अनुभव कर रहा था। सामान से भरा बेग उठाकर दोनों अपने-अपने घर की ओर चल दिये।

समाप्त

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प्रमाणीकरण- उपन्यास मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। उपन्यास प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।

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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे