चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 7 राज बोहरे द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 7

चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 7

chanderi-jhansi-orchha-gwalior ki sair 7

यात्रा वृत्तांत

चन्देरी, कटी घाटी प्रसंग

लेखक

राजनारायण बोहरे

मैंने बच्चों को बताया कि तारीख 28 जनवरी 1528 केा बाबर ने राजा सांगा का दोस्त होने के कारण चंदेरी के राजा मेदिनीराय पर हमला कर दिया था। लेकिन बाबर बड़ा परेशान हो गया था। चंदेरी की जीतना आसान न था। चन्देरी के चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ थे केवल दो रास्ते ऐसे थे जिनसे होकर चन्देरी में प्रवेश किया जा सकता था, वहां मेदिनी राय की बहादुर सेना की टुकड़ियां बैठी हुई थी जिनके पास तीर कमान और बड़ी बड़ी चट्टानें रखी रहती थी जो नीचे ढ़ड़कती आती तो दुश्मन का काम तमाम कर देती थीं। तो मुगल सम्राट बाबर ने चंदेरी का पहाड़ीयों समेत चारों ओर से घेर लिया था और यह घेरा लम्बे समय तक पड़ा रहा था फिर मुगल सेना के चतुर कारीगरों ने किले की ठीक पीछे वाली पहाड़ी को रातोंरात काटकर एक बड़ा सा रास्ता बना कर अपनी सेना को चंदेरी में घुसने का रास्ता बना दिया था , जहां से बाबर की तोपसेना ने प्रवेश करके चंदेरी के किले पर तोप के गोलों की बौछार कर दी थी । तोप और गोला की लड़ाई हमारे देश के लिए एकदम नयी थी , गोलों ने किले में भारी तबाही मचाई जिसमें किला टूट गया और बहुत से सैनिक भी मारे गये थे। मेंदिनीराय और उसके साथी राजपूत सैनिक बडी वीरता पूर्वक लडे पर बाबर की विशाल सेना के सामने भला मेदिनि के मुट्ठी भर सेनिक भला क्या कर सकते थे । खूब मारकाट हुई और महल के एक दरवाजे से खून की बडी धारा बह निकली। इस दरवाजे को खूनी दरवाजा कहा जाता है। महल में रानी को पता लगा कि राजा हारने वाले हैं तो उन्होंने महल के पास एक कुण्ड में एक बहुत बड़े ढेर के रूप में रखी लकडियों में आग लगवा दी और रानी मणिमाला खुद तथा उसकी सहेलियां व सेविकाऐं को उस अग्नि कुड मे जीवित कूद गई। जब राजा हार जाये तो हमलावर सेना द्वारा की जाने वाली बदतमीजी और बेइज्जती से बचने के लिए खुद को जलाने की यह प्रथा राजपूतों मे जौहर के नाम से जानी जाती थी । खुद को जलाने की मैंन यह कथा सुनाई तो मेंरे साथ खडे सभी बच्चे सहम गये। अभिशेक ने सवाल किया कि जब राजपूत स्त्रीयों को बचपन से ही तलवार और भाला चलाना सिखाया जाता था तो वे आत्महत्या की वजह लड़ाई करके क्यों नहीं मरती थीं इस तरह खुद को आग के हवाले करने में कितनी पीड़ा होती होगी?

हमने बतया कि ऊपर ही थोडी ही दूर पर प्रसिद्ध गायक बैजु बावरा की समाधि बनी हुई है । बैजु बावरा प्रसिद्व गायक थे और मुगल सम्राट अकबर के दरबार मे जाकर उन्होने संगीत सम्राट तानसेन का हरा दिया था। उन्हीं बैजुबावरा का अंतिम समय चंदेरी में बीता। जब उनका देहांत हुआ तो किले के पास ही पहाड़ी पर उनकी समाधि बनाई गयी। छोटी और सुंदर इस समाधि क चबूतरे पर बैठकर हमे बड़ी शांति मिली।

पास में ही पहाड़ी के एक सिरे परएक सफेद चमकती हुई बहुत शानदार और कलात्मक कोठी बनी है, यह कोठी उस हिस्से तरफ बनाई गई है जिधर कि चंदेरी की पुरानी बस्ती दिखाई देती है। किला कोठी के नाम से प्रसिद्व सिंधिया राजाओं द्वारा बनायी गई कोठी को देख कर बच्चे ख्ूाब प्रसन्न हुए । ख्ंाडहरो के बीच सफेद चमकदार बनी यह कोठी इस समय अच्छे सरकारी विश्राम गृह के रूप में चल रही है। कोठी के बरामदे से खडे होकर जब हमने नीचे देखा तो चंदेरी की गलिया मुहल्ले मकान दिख रहेथे। ऊंचे पहाड से देखने पर चंदेरी की गलियां मुहल्ले मकान और सरकारी दफ्तर छोटे-छोटे डिब्बों जैसे दिखाई देते है। मैंने बच्चों को बताया कि पुराने जमाने में इस नगर में लाखों की जनसख्यां थी और आज पच्चीस -तीस हजार की आबादी का यह छोटा सा नगर राजा की राजधानी से हटकर साधारण गांव बना और आजादी के बाद समय के थपेड़ों को सहता हुआ अब तहसील बन गया था।

पहाडी के नीचे आनेपर हमने घडी देखी तो दोपहर का एक बज गया था। रेस्ट हाउस पहुचंे तो रसाईया ने हम सबका खाना बना दियाथा। हम लोगों ने भोजन किया और आराम करने लगे।

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साधन-दिल्ली मुम्बई के झांसी वाले रेल मार्ग पर बीना जंक्शन उतर कर यहां से रेल द्वारा अशोकनगर और वहां से बस द्वारा पहुंचा जा सकता हैा

चन्देरी तक पहुंचने के साधन-अशोकनगर, ललितपुर और शिवपुरी तीनों स्थान से बस चलती है या निजी किराये के टैक्सी वाहन

चंदेरी से ललितपूर की दूरी 34 किलामीटर है। ललितपुर रेलवे स्टेशन हमारे देश की दिल्ली भोपाल रेल लाईन पर झांसी के पास मौजुद है । चंदेरी से अशोंक नगर की दूरी 66 किलामीटर है ओर मुगांवली की दूरी 39 किलोमीटर। अशोकनगर और मुगांवली दोनो ही गुना जिला म0प्र0 की तहसीलें है। दोनो जगह रेल्वेस्टेशन है। चंदेरी पंहुचने के लिए ललितपुर, मुंगावली या अशोकनगर तीनो जगह में से किसी भी जगह से सड़क के रास्ते केा काम मे लाया जा सकता है। एक चौथा रास्ता चंदेरी से शिवपुरी के लिए भी है, यह सड़क मार्ग बामोर कलां, खनियाधाना-पिछोर ओर सिरसोद चौराहे से निकलता है। चंदेरी वर्तमान मे अलग तहसील है जो अशोकनगर जिले में आती है । यहॉं एक डिग्री कॉलेज दो इंटर कालेज और छः मिडिल स्कुल है। चंदेरी में विशिष्ट क्षेत्र प्राधिकारण गठित कियागया है। जिसका काम चंदेरी का विकास करना है।

ठहरने के लिए स्थान- चंदेरी में म0प्र0 पर्यटन विकास निगम का होटल ताना बाना, म0प्र0 लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह और 2 निजी होटल