चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 8
chanderi-jhansi-orchha-gwalior ki sair 8
यात्रा वृत्तांत
चन्देरी, - राजघाट बांध प्रसंग
लेखक
राजनारायण बोहरे
दोपहर तीन बजे हम लोग कटी घाटी देखने के लिए निकले। चंदेरी के किले के ठीक सामनें लगभग एक किलोमीटर दूर एक पहाडी को बीच से काटकर रास्ता बनाया गया है, इस पहाडी दर्रे कोही कटी घाटी कहते है। जिस पहाडी को काटा गया है वह पहाडी 250 फुट उंची है और यह काटा गया रास्ता 190 फुट लंबा है। रास्ते की चौड़ाई 39 फुट है और उचॉई 80 फुट है । चट्टान में एक 25 फुट उचॉं दरवाजा बनाया गया हैं। एक शिलालेख भी दीवार में लगा हुआ था। इससे पता लगा कि यह रास्ता सन्1490 मे सुल्तान गयासुद्दीन ने खूब धन खर्च करके बनवाया था। मैंने देखा कि वही पास में एक गधेरा श्रमिक गधा की पीठ पर टंगे बोरा में मिट्टी भर रहा था। मैं टहलता हुआ उसके पास गया और जैराम जी की कहकर उसका अभिवादन किया ।
गधेरे ने अपना काम छोड़ा और हाथ जोड़कर मुझे भी अभिवादन किया- जैराम जी की बाबूजी ।
मैंने उससे कटी घाटी के बारे में पूंछा तो उसने वही किवंदती सुनाई कि एक रात बाबर के सैनिकों ने भीतर ही भीतर पहाडी काटकर ली और सुबह सबेरे किले पर हमला कर दिया ।
मैने बच्चों से पूछा कोई गधे पर बैठना पंसद करेगा तो सब मुह बिदका कर जीप में जा बैठे। मैं भी जीप में बैठ गया और हम लोग शाम पॉच बजे चंदेरी छोड़ कर ललितपूर के लिए चल पडे ।
रेस्ट हाउस से चलते वक्त वहॉं का चौकीदार भी हमारे साथ जीप में बैठ गया और उसे ललितपूर जाना था। उसने चलते चलते बहुत सी बाते बताई । चंदेरी से ललितपूर की दूरी 34 किलामीटर है। ललितपुर रेलवे स्टेशन हमारे देश की दिल्ली भोपाल रेल लाईन पर झांसी के पास मौजुद है । चंदेरी से अशोंक नगर की दूरी 66 किलामीटर है । ओर मुगांवली की दूरी 39 किलोमीटर। अशोकनगर और मुगांवली दोनो ही गुना जिला म0प्र0 की तहसीलें है। दोनो जगह रेल्वेस्टेशन है। चंदेरी पंहुचने के लिए ललितपुर, मुंगावली या अशोकनगर तीनो जगह में से किसी भी जगह से सड़क के रास्ते केा काम मे लाया जा सकता है। एक चौथा रास्ता चंदेरी से शिवपुरी के लिए भी है, यह सड़क मार्ग बामोर कलां, खनियाधाना-पिछोर ओर सिरसोद चौराहे से निकलता है। चंदेरी वर्तमान मे अलग तहसील है जो अशोकनगर जिले में आती है । यहॉं एक डिग्री कॉलेज दो इंटर कालेज और छः मिडिल स्कुल है। चंदेरी में विशिष्ट क्षेत्र प्राधिकारण गठित कियागया है। जिसका काम चंदेरी का विकास करना है।
चंदेरी से निकलते निकलते हमने देखा कि लंबा मोड लेकर नीचे उतरती सड़क एकदम नीची हो गई है । जीप के ब्रेक लगाने के बावजूद नीचे खिसक रही थी।
इसके बाद सड़क बढिया शुरू हो गई थी । सड़क के दोनों ओर छायादार घने वृक्ष लगे हुए थे। कुछ दूर चलकर हमें सड़क किनारे एक गांव मिला। गांव का नाम था प्रानपुरा । मैंने यहॉ जीप रूकवाकर बच्चों की चाय पिलाई। पास में एक हाथ ठेला पर एक लडकी किसमिस जैसी सूखा फल बेच रही थी । अंशु ने पास जाकर पूछा तो पता चला कि वह चीज खिरनी नाम सूखा फल है, यह फल गर्मियों में आता है जो देखने में नीम की निम्बोली कीतरह पीला दिखता है, यह बहुंत मीठा होता है जिसमें से दूध की तरस रस निकलता है । इसके भीतर एक काली गुठली भी निकलती है । गांव के लोग खिरनी सुखा लेते हैं और बाद में बेचते रहतें है।
कुछ आगे चलकर हमारे दायं तरफ मिट्टी की बनी एक दीवार सी शुरू हो गई थी। यह बांध की दीवार थी, दीवार पर बच्चों ने पढ़ कर जोर से उच्चारण किया - राजघाट बांध!
सौरभ और सन्नी की इच्छा थी कि बांध की दीवार पर चढकर पानी का नजारा लिया जाये। मैंने अनुमति देदी और जीप रूकवाके मैं ख्ुद भी उनके साथ बांध पर चढने लगा नीचे से उपर एक पगडण्डी सी बनीथी। जिस पर चढना कठिन था। उपर जाकर तो हमारी ऑखे ही फैल गई, दूर-दूर तक पानी ही पानी था। समुद्र सा लग रहा था राजघाट बांध । हवा की वजह से पानी की लहरे आ आ के बांध पर टक्कर मार रही थी । राजघाट पर पानी ठाठें मार रहा था। हन्नी, प्रिंयका और अंशू तो बोल उठे बापरे कितना पानी ।
हवा ठडी लग रही थी। हम लोग कछ देर बाद नीचे उतर आये और ललितपुर की दिशा मे बढ चले। चंदेरी के बारह किलो मीटर चलने के बाद राजघाट बांध की मुख्य दीवार यानि कि वह जगह आयी जहां से बेतवा नदी बह रही थी और ठीक उस जगह सींमेंट और पत्थर की खूब मोटी दीवार बनाके बेतवा नदी की मख्य धारा रोकी जा रही थी। दूर से हमने देखा कि सैकड़ों मजदूर पूरी तत्परता से दीवार बनाने में जुटे थे । वहॉं बड़ा शोरगुल था। खूब बडे़ बडे़ मोटे खंभे बन चुके थे, जब बीच की खाली जगहो में लोहे का जाल फंसा के सीमेंट ,रेत मिटृटी को मिलाकर गीली गीली कोक्रंकीट भरी जा रही थी ।
पता नही कितनी देर तक हमवह दृश्य देखते रहे और बच्चों को याद दिलाने पर वहॉ से चले । ललित पुर पहुचते पॅहुचते ष्शाम के सात बज गये थे ।
ललितपुर से हम लोग झांसी की दिशा में चल पड़े। सड़क किनारे बने माइलस्टोन पर लिखा था- झांसी 90 किलो मीटर!
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साधन-दिल्ली मुम्बई के झांसी वाले रेल मार्ग पर बीना जंक्शन उतर कर यहां से रेल द्वारा अशोकनगर और वहां से बस द्वारा पहुंचा जा सकता हैा
चन्देरी तक पहुंचने के साधन-अशोकनगर, ललितपुर और शिवपुरी तीनों स्थान से बस चलती है या निजी किराये के टैक्सी वाहन
चंदेरी से ललितपूर की दूरी 34 किलामीटर है। ललितपुर रेलवे स्टेशन हमारे देश की दिल्ली भोपाल रेल लाईन पर झांसी के पास मौजुद है । चंदेरी से अशोंक नगर की दूरी 66 किलामीटर है ओर मुगांवली की दूरी 39 किलोमीटर। अशोकनगर और मुगांवली दोनो ही गुना जिला म0प्र0 की तहसीलें है। दोनो जगह रेल्वेस्टेशन है। चंदेरी पंहुचने के लिए ललितपुर, मुंगावली या अशोकनगर तीनो जगह में से किसी भी जगह से सड़क के रास्ते केा काम मे लाया जा सकता है। एक चौथा रास्ता चंदेरी से शिवपुरी के लिए भी है, यह सड़क मार्ग बामोर कलां, खनियाधाना-पिछोर ओर सिरसोद चौराहे से निकलता है। चंदेरी वर्तमान मे अलग तहसील है जो अशोकनगर जिले में आती है । यहॉं एक डिग्री कॉलेज दो इंटर कालेज और छः मिडिल स्कुल है। चंदेरी में विशिष्ट क्षेत्र प्राधिकारण गठित कियागया है। जिसका काम चंदेरी का विकास करना है।
ठहरने के लिए स्थान- चंदेरी में म0प्र0 पर्यटन विकास निगम का होटल ताना बाना, म0प्र0 लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह और 2 निजी होटल