लीव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा
जितेन्द्र शिवहरे
(6)
सुबह हो चूकी थी।
धरम बुरी तरह घायल था। टीना उसकी पीठ पर मरहम लगा रही थी।
"धरम! क्या जरूरत थी मुझे बचाने की। मुझे तो आदत हो गयी थी उसके हाथों मार खाने की।" टीना बोली। वह धरम के जख़्मों को देखकर निराश थी।
"अपने आंखों के सामने तुम्हें मार खाते कैसे देख सकता था।" धरम बोला।
"हां हां मोहल्ले के हीरो जो ठहरे।" टीना ने व्यंग कसा।
"मुझे तो बस तुम्हारा हिरो बनना है टीना। ओर किसी का नहीं।" धरम ने कहा।
"अब ज्यादा रोमांटिक होने की जरूरत नहीं है। ठीक से लेटे रहो। ये हल्दी का लेप तुम्हें जल्दी ही ठीक कर देगा।" टीना ने बताया।
"अरे! मगर तुमने ये लेप बनाना कहाँ से सीखा?" धरम ने पुछा।
"क्यों? यूट्यूब केवल खाना बनाना सिखाता है क्या?" टीना पुछा।
"ओह! तुम तो बहुत होशियार हो गयी हो।" धरम ने कहा।
"अब तुम्हारे साथ रहूंगी तो होशियार तो बन ही जाऊंगी न!" टीना बोली।
टीना ने धरम की पीठ पर लेप लगा दिया था।
"अच्छा तुम यही रूको। मैं हल्दी वाला दूध लेकर आती हूं।" टीना उठकर जाने लगी।
धरम ने उसका हाथ पकड़कर रोका।
"रूको टीना! यहाँ बैठो जरा।" धरम ने टीना से कहा। टीना धरम के पास ही बैठ गयी।
"क्या बात है धरम?" टीना ने पुछा।
"टीना! रात में जो कुछ भी हुआ वह हम दोनों ने देखा। अब हमें पता भी है कि निवेदिता का खात्मा कैसे हो सकता है।" धरम ने टीना का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा।
"हां धरम! मगर निवेदिता से शादी करेगा कौन? एक आत्मा के साथ शादी करने के लिए कौन राज़ी होगा?" टीना ने चिंता व्यक्त की।
"टीना। यह काम मुझे ही करना होगा।" धरम ने बताया।
"क्या! नहीं। ये नहीं हो सकता। मैं तुम्हें ऐसा करने की इज़ाजत हरगिस नहीं दूंगी।" टीना कठोर होकर बोली।
"देखो टीना! समझने की कोशिश करो।" धरम ने कहा।
"नहीं धरम। मैं तुम्हारी हर बात मानने के लिए तैयार हूं लेकिन ये नहीं। तुम्हे निवेदिता की आत्मा के साथ शादी करना मुझे किसी किमत पर गंवारा नहीं।" टीना उठकर खड़ी हो गयी।
"देखो टीना! हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है। हो सकता है इसे करने से हम उस निवेदिता को हरा दे।" धरम ने टीना से कहा।
"हो सकता है। धरम! होने को तो बहुत कुछ हो सकता है। वह तुमसे शादी करने बाद तुम्हें मुझसे दुर ले जा सकती है। फिर मैं किसके सहारे जिंदा रहूंगी?" टीना गुस्से में बोल रही थी।
"टीना ! हमारे इरादे साफ है। भगवान हमारी सहायता जरूर करेगा। उस निवेदिता की बुरे इरादों में हम उसे कभी कामयाब होने नहीं देंगे।" धरम ने कहा।
"धरम! हम ये जगह! ये देश! छोड़ कर कहीं ओर चले जायेंगे। मगर तुम मेरी जगह उसे अपने नाम का मंगल सुत्र पहनाओ, यह मुझे स्वीकार नहीं है। तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है। किसी ओर का नहीं।" कहते हुये टीना धरम के हृदय से लग गयी।
टीना के स्वर कुछ नर्म अवश्य थे। मगर अब भी धरम की बात मानने में वह आनाकानी कर रही थी। धरम को विश्वास था की आज नहीं तो कल, वह टीना को इस बात के लिए राजी कर लेगा।
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आसमान में काले बादल छा गये। अचानक जोरदार आंधी और तुफान आने लगा। पेड़ों के लहराने की आवाज़े गुंज रही थी। देखकर लगता था बारिश होने वाली थी। पहले कुछ हल्की बूंदाबांदी आरंभ हुयी। जो धीरे-धीरे बढ़कर बारिश का रूप ले चूकी थी। टीना ने बालकनी में सुखाये कपड़े जल्दी-जल्दी उठाकर घर के अंदर किये।
धरम बालकनी में खड़ा होकर प्री-मानसुन की बारिश का आनंद ले रहा था।
लाइट जा चूकी थी। फ्लैट में गर्मी का अनुभव हो लगा था। टीना भी बालकनी में आकर बाहर का नज़ारा देखने लगी। यकायक उसके मन में एक बात सुझी। उसने धरम का हाथ पकड़ा और उसे छत पर चलने का आग्रह किया। धरम वहां नहीं जाना चाहता था। मगर टीना की जिद के आगे धरम हार गया। टीना और धरम फ्लैट की छत पर आ गये। धरम टावर के नीचे ही खड़ा रहा। वह पानी में भीगना नहीं चाहता था। मगर टीना तो बारिश के गिरते हुये पानी में भीगने पहूंच गयी। उसने अपने दोनों हाथों को हवा में फैला दिया। घुम-घुम कर वह बारिश का आनंद ले रही थी। बीच-बीच में वह धरम को इशारों से अपने पास बुलाती। मगर धरम वही टाॅवर के नीचे खड़ा रहा। जब बहुत बार कहने पर भी धरम नहीं आया तब टीना उसके पास पहूंची। उसने धरम का हाथ पकड़ लिया और जबरदस्ती गिरते पानी में भीगने पर विवश किया।
"आ जाओ धरम! जिन्दगी का क्या भरोसा! कल हो न हो।" टीना ने कहा।
टीना के इन वाक्यों ने धरम को सन्न कर दिया। वह सोचने पर विवश था। धरम ने टीना की बात मान ली। अब वह भी वर्षा के पानी में भीगने का आनंद ले रहा था। धरम और टीना वर्षा के पानी में पुरी तरह भीग चूके थे। टीना ने धरम को अपने साथ नृत्य करने को कहा। मगर धरम ने कहा कि उसे नाचना नहीं आता। इस बात पर टीना खुलकर हंसी। वह बोली कि यहां कौनसा डांस काॅम्पटीशन हो रहा है जो उसका नाच देखकर प्रतियोगिता से उसे बाहर निकाल दिया जायेगा। इस बात पर धरम भी हंस पढ़ा। उसने भी अपनी दोनों बाहें हवा में फैला दी। वह अपने आपको मौसम के प्रति समर्पित करना चाहता था। टीना ने उसका एक हाथ अपनी कमर पर रखा और दुसरे हाथ को अपने दायें में रखकर कपल नृत्य की पोज बनाई। टीना उसे नृत्य करना सीखा रही थी। वह एक कदम पीछे लेती फिर धरम को अपने साथ आने को कहती। अगली स्टेप में धरम अपना एक पैर पीछे लेता। तत्पश्चात् टीना उसके साथ चलती। यहां धरम अवश्य कुछ स्टेप्स लेना भूल जाता। मगर टीना ने हार नहीं मानी। वह लगातार धरम को आगे-पीछे पैरों की कदमताल अनुसार चलने को प्रैरित करती। कुछ ही मिनटों में धरम के पैरों के स्टेप्स ठीक-ठीक उठने लगे थे। आधे घण्टे के संयुक्त अभ्यास से दोनों सुव्यवस्थित कपल डांस करना सीख गये। धरम टीना का हाथ पकड़कर उसे वही खड़ी-खड़ी चारों ओर घुमा देता। इस स्टेप्स को दोनों ने कई बार दोहराया। टीना एकल नृत्य भी अच्छा करती थी। उसने भरतनाट्यम नृत्य की विभिन्न मुद्राएं कर धरम को प्रभावित कर दिया। धरम उसके चारों तरफ पैदल चलकर घूम रहा था। टीना नृत्य करने में खौ चूकी थी। जब वह थककर चूर हो गयी तब धरम ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया। वह उसे लेकर छत के चारों घुमा। टीना की आंखे बंद थी। धरम के चेहरे से गिर रहा बारिश के पानी सीधे टीना के ऊपर गिर रहा था। टीना ने अपनी आंखें खोली। उसने धरम के गले में अपनी बाहों का हार पहना रखा था। धरम एक टक उसे ही निहारे जा रहा थे। टीना भी अपने धरम को ही देख रही थी। टीना ने अपने हाथों पर दबाव दिया। वह अपने होठों को धरम के गालों तक पहूंचाना चाहती थी। इसमें वह सफल भी हो गयी। ठण्डी पानी की बरसात में टीना के गर्म होंठों को अपने गालों पर स्पर्श पाकर धरम उत्तेजित हो गया। टीना के चुम्बन के बदले धरम ने भी उसे गार पर चुम्बन दिया। अब टीना पुनः धरम की ओर
बढ़ी। उसने धरम के माथे को चूमा। धरम ने भी ऐसा ही किया। उसने टीना के मस्तक को चूम लिया। टीना अब धरम के होठों की तरफ बढ़ रही थी। धरम भी उत्साहित था। वह भी इसका जवाब देने के लिए तैयार ही था। मगर यह क्या! धरम की आंखे बंद करवाकर वह धरम की गोद से ऊतर गयी। उसने धरम के बगल में जोरदार गुजगुदी कर दी। जिससे धरम ने टीना की पकड़ स्वतः ही ढीली कर दी। टीना धरम को छेड़कर यहां-वहां भागने लगी। धरम भी कम न था। वह टीना के पीछे-पीछे भाग। मगर टीना आसानी से हाथ में आने वाली नहीं थी। वह छत के चारों तरफ भाग रही थी। धरम उसे पकड़ भी लेता तो टीना उसे चकमा देकर छूट जाती।
फिर वह समय भी आ ही गया जब टीना पुरी तरह से धरम की चंगूल में आ चूकी थी। अब वह भाग नहीं सकती थी। धरम ने टीना को पीछे कमर से पकड़ रखा था। धरम के होंठ टीना की गर्दन पर सरपट दौड़ रहे थे। टीना की आंह निकल पड़ी। वह अपने बायें हाथ से धरम के सिर को स्वंय की ओर दबावपुर्वक खींच रही थी। टीना का दायां हाथ अपनी पेट की नाभी पर जमे धरम के हाथों पर के ऊपर था। धरम ने टीना की नाभी पर अपने हाथ की पकड़ मजबुत कर दी। वह टीना की गर्दन को दोनों तरफ से चूम रहा था। टीना की आंखें बंद थी। उसने स्वयं को धरम के हाथों में सौंप दिया था।
"अरे! जवानों बारिश बंद चूकी है। अब प्यार की बारिश घर के अंदर करो।" एक बुजुर्ग ने दुसरी छत से आवाज़ लगायी। उन्होंने धरम और टीना को प्रेमालाप करत देख लिया था।
टीना सहम गयी। वह छिटककर धरम से दुर हो गयी। धरम भी असहज था। वह यहां-वहां देखने लगा। टीना ने आसपास देखा। अपनी-अपनी छतों से बहुत से लोग टीना और धरम को देख रहे थे। टीना शरमाते हुये नीचे भाग गयी। धरम भी उसके पीछे-पीछे नीचे आ गया।
टीना कपड़ बदलकर चाय बनाने किचन में चली गयी। धरम अपने बाल सुखा रहा था। छत पर हुयी उस घटना को सोच-सोच दोनों मंद-मंद मुस्करा रहे थे।
"ये लो धरम! चाय!" डायनिंग टेबल पर चाय रखते हुये टीना बोली।
धरम ने चाय का कप हाथ में ले लिया। वह टीवी ऑन कर टीवी के सामने बैठ गया। देश- दुनिया का हाल जानकर धरम ने मुवी का चैनल लगा दिया। जैसे-जैसे शाम ढल रही थी, टीना और धरम के चेहरे पर मायुसी के भाव धीरे-धीरे ऊभर रहे थे।
"नहीं धरम! मेरा मन नहीं मान रहा। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो?" टीना बोल रही थी।
"मुझे अब तक कुछ नहीं हुआ टीना। इसका मतलब समझती हो! इसका मतलब है की कोई न कोई शक्ति तो है जो मेरी उस निवेदिता से रक्षा कर रही है।" धरम ने बताया। वह चाय का आखिर घुट पी चूका था। उसने कप टेबल पर रख दिया।
"शक्ति! कैसी शक्ति?" टीना ने पुछा।
"तुम्हारे प्यार की शक्ति! देखो! मैं जब-जब भी संकट में पड़ा, उस बुरी आत्मा से मुझे तुमने ही बचाया। तुम्हारी आत्मा यह भी जानती है कि उस निवेदिता का अंत कैसा होगा। इससे एक बात तो साफ है। वो ये कि निवेदिता की मुक्ति हम दोनों के हाथों ही होना है।" धरम ने कहा।
"और अगर उसने तुमसे शादी करने के बाद तुम्हें अपने साथ ही रख लिया तब?" टीना बोली।
"टीना! जीना-मरना हमारे हाथ में नहीं है। अगर निवेदिता की आत्मा के हाथों हमारा मरना लिखा है तो फिर हम कहीं भी छिप छाये वह हमें ढुंढ निकालेगी। और यदि हमारा जीवन शेष है तो वह हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती।" धरम बोला।
टीना अब चूप थी। धरम ने उसे कंधों से पकड़कर हिम्मत बंधाई। उसने टीना को समझाया कि यदि धरम से शादी करने के बाद निवेदिता की आत्मा शांत होकर चली जाती है तब अन्य लोगों को भी कितना फायदा होगा। न जाने कितने ही लोग निवेदिता के प्रकोप से बच जायेंगे। टीना ने न चाहते हुये भी इस बात की स्वीकृति दे दी। धरम ने फोन पर बाबा टपाल को यह जानकारी दे दी। बाबा टपाल ने विवाह संबंधी आवश्यक सामग्री धरम के यहां भिजवा दी। उन्होंने वादा किया की देर रात वे धरम के फ्लैट पर आयेंगे। बाबा टपाल, निवेदिता से छुटकारा दिलाने में उनका सहयोग अवशय करेंगे।
टीना ने अपनी कुछ अच्छी साड़ियां और मेकअप का सामान बाहर निकाल लिया। धरम की दुल्हन निवेदिता को आज टीना ही तैयार करने वाली थी। धरम ने अपने मन को पुरी तरह से मना लिया था। आखिर बार उसने घर फोन पर बात कर की। उसने टीना से भी कहा की वह अपने परिवार के लोगों से बाथ कर ले। परिस्थितियों का भरोसा नहीं। आने वाला कल कौन देख पायेगा, कौन नहीं! कहा नही जा सकता था।
रात होने वाली थी। टीना बुझे मन से खाना बना रही थी। धरम ने टीना का उत्साह बनाये रखने के लिए उसे खाना बनाने में मदद की। धरम और टीना उसी तरह खाना बना रहे थे जिस तरह उन्होंने पहली बार खाना बनाया था। धरम ने टीना के गाल पर आटा मल दिया। टीना खुश होने का नाटक कर रही थी। उसकी आंखें भीग चूकी थी। टीना ने भी धरम के गालों पर आटा लगा दिया। धरम हंस रहा था। मगर उसकी आंखों में भी पानी था। बोझिल मन से दोनों ने खाना बना लिया।
डाॅयनिंग टेबल पर खाना संज चूका था। टीना ने धरम को खाना खाने के आमंत्रित किया। धरम बैठ चूका था। टीना चावल में दाल मिलाकर उसे प्लेट में चम्मच से घुमा रही थी। उसका मन कहीं ओर था। धरम भी गहरी सोच में डुबा था। दिवार पर टंगी घड़ी ने रात के दस बजाये। तब जाकर धरम की निद्रा टुटी। टीना मगर अब भी गुमसुम थी। धरम ने पुनः खुद को तैयार किया। वह समझ गया यदि वो ही इतना निराश रहेगा तो टीना को कौन संभालेगा? उसने अपने हाथों से रोटी का कोर तोड़ा और उसे सब्जी में डुबाकर टीना के मुंह के आगे किया। टीना धरम को देख रही थी। उसे आभास था कि धरम उसे ऐसा मायुस देखकर दुखी है। उसने अपना मुंह खोलकर धरम के हाथों पहला निवाला खा लिया। अब टीना ने चम्मच में दाल चावल भरकर धरम को खिलाये। इस तरह दोनों एक-दुसरे को अपने-अपने हाथों से भोजन खिला रहे थे।
खाना खाना खा-पीकर धरम बालकनी में टहलने आ गया। टीना ने खाने के बर्तन किचन के वाॅश बेसिन में रख दिये। वह भी धरम के पास आकर बालकनी में आ गयी। दोनों की नज़रे सड़क पर थी। जहां से अब भी कुछ छोटे-बड़े वाहन गुजर रहे थे। आसपास के ऊचें-ऊंचे मकानों में बिजली धीरे-धीरे ऑफ हो रही थी। ग्यारह बजे का समय हो चूका था। धरम ने टीना के कंधे पर अपना हाथ रख दिया। यह टीना के लिए बहुत बड़ा संबल था। धरम के निकट होने पर टीना अपने आप को ताकतवर समझती थी। धरम ने उसे वह आंतरिक शक्ती दी थी जिसे पाकर वह निवेदिता की बुरी आत्मा से लड़ने को तैयार हो गयी थी। धरम भी टीना को अपनाकर बिलकुल बदल चूका था। बात-बात पर गुस्सा करने वाला धरम अब धीर-गंभीर था। वह हर बात का पक्ष और विपक्ष देखने के बाद ही उस पर अपना मत रखता था। वह टीना को अपने प्राणों से भी अधिक प्रेम करने लगा था। टीना के लिए वह कुछ भी कर सकता था। दोनों के आपसी सभी गुण मिल चुके थे। वे परस्पर अपना पुरा जीवन गुजारने के लिए तैयार थे।
आपसी प्रेम की शक्ति के बल पर ही वे दोनों निवेदिता से टक्कर लेने वाले थे। दोनों निवेदिता का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। आज बिस्तर पर पड़े-पड़े दोनों की आंखों से नींद गायब थी। रात बारह बजे का समय हुआ। मगर नींद थी की जो आज धरम और टीना से आज रूठ चूकी थी। धरम ने टीना को सोने की कोशिश करने को कहा। क्योकि टीना के सोने के बाद ही वह निवेदिता की आत्मा को देख सकेगा। अन्यथा नहीं। मगर बहुत कोशिश करने के बाथ भी टीना को निंद नहीं आई। तब धरम ने एक युक्ति निकाली। वह टीना से यहां-वहां की बातें करने लगा। वह अपने उन दिनों की बात टीना को बताने लगा जब वह टीना से नहीं मिला था। टीना के मिलने के पहले धरम बहुत बे-बाक था। उसके आस पड़ोसी उससे घृणा जरूर करते थे। मगर कोई सरकारी काम या ऐसा कोई काम जो उनसे नहीं होता, वे लोग धरम से करवाने आते। यह वही लोग थे जो अपने बच्चों को धरम जैसा नहीं बनने की सलाह दिया करते थे। उनका दो मुंहा पन देखकर धरम को बड़ा आनंद आता। यदाकदा वह उन लोगों इस बात पर कटाक्ष भी कर दिया करता था। ऐसे में उन लोगों का ईगो कभी हर्ट नहीं हुआ। वे लोग वही अपने परम्परागत तरीको से धरम का स्वागत करते। धरम ने अपने इन्हीं पड़ोसियों के कारण कितनी ही मार पीट की। उनके विरूध्द उठने वाली हर आवाज़ को दबाया। यहां तक की धरम पर मार-पीट और गुण्डागर्दी के प्रकरण भी दर्ज हुये। वह लाॅकअप भी गया। मगर अपनी नेकी और ईमानदारी से कभी समझौता नहीं किया। वह कभी लोककल्याण के कार्यों से पीछे नहीं हटा।
टीना धरम की बातों में दिलचस्पी ले रही थी। वह धरम के साथ ही उन पलों को जीने की कोशिश करने लगी। जो धरम ने कभी जीये थे। धरम ने टीना को यह भी बताया की किस तरह मोहल्लें और आसपास की लड़कीयां उसकी बैड ब्वाॅय की छवी पर मरती थी। कितनी ही लड़कीयां धरम को प्यार करने लगी थी। वे धरम की एक हां पर अपना सबकुछ छोड़ कर उसके साथ भागने को तैयार थी। क्योकि धरम को वहां के लोग नापासंद करते थे। मगर धरम ने कभी किसी स्थानीय लड़की को भाव नहीं दिया। न ही उसने कभी उन दीवानी लड़कीयों के भरोसे का कभी फायदा उठाया।
नीमा एक ऐसी ही लड़की थी। वह धरम की अदा पर फिदा थी। उसने अपने घर पर विद्रोह कर दिया था। उसका अमिट निश्चय था की शादी करेगी तो धरम से ही वर्ना नहीं करेगी। नीमा के माता-पिता नीमा की जिद के आगे झुक गये। वे लोग धरम को अपना दामाद मानने के लिए तैयार भी हो गये मगर धरम ने नीमा से शादी करने से मना कर दिया। धरम की ना सुनकर नीमा आगबबूला हो गयी। उसने जह़र खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की। धरम को पुलिस गिरफ्तार कर ले गयी। मगर धरम डरा नहीं। उसने पुलिस के सामने अपना मजबुत पक्ष रखा। धरम ने कहा की उसने कभी नीमा से प्यार किया ही नहीं। हंसी-मजाक को नीमा प्यार समझ बैठी इसमें उसका कोई दोष नहीं है। नीमा की नासमझी के कारण वह उससे शादी करने जैसा बहुत बड़ा निर्णय दबाव में नहीं ले सकता। टीना ने धरम से पुछा कि फिर क्या हुआ? क्या पुलिस ने उसे छोड़ दिया? और नीमा का क्या हुआ? धरम ने बताया की पुलिस उस पर दबाव बना रही थी। उनका मत था कि धरम नीमा से शादी कर मामला यही खत्म कर दे। मगर धरम की प्रभावी इच्छा शक्ति के आगे किसी की एक न चली। सभी लोग हार गये। धरम के विरूध्द कोई सबुत नहीं था। केवल नीमा के बयान के आधार पर उसे जेल में ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जा सकता था। अंततः वह जेल से छुटकर घर आया। उसने नीमा से मिलकर उसे समझाया। धरम ने कहा की प्यार कभी जबरदस्ती नहीं किया जाता। अगर वह नीमा से शादी कर भी ले तो उन दोनों का रिश्ता ज्यादा समय तक टीक नहीं पायेगा। क्योंकि दबाव और अनिच्छा के संबंध कुछ समय बाद टुट जाते है। अतः नीमा, धरम को भुलकर अपने माता-पिता के कहे अनुसार शादी कर ले। धरम की बातों का नीमा पर असर हुआ। वह धरम की बात मान गयी। उसने अन्यत्र शादी कर ली। धरम ने उसे माफ कर दिया।