Dilrash - 4 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

दिलरस - 4 - अंतिम भाग

दिलरस

प्रियंवद

(4)

‘क्या उससे सूजन ठीक हो जाती है?’

‘वह तो बिलकुल हो जाती है।’

‘लकड़ी की टाल वाले को जरूरत है... उसे बाद में सूजन आ जाती है।’

‘वह तो आएगी ही। उसने एक तोता पाल रखा है। जैसे तोता हरी मिर्च पकड़ता है, उस तरह वह औरत को पकड़ता है। सूजन तो आएगी ही।’

लड़के ने कभी तोते को हरी मिर्च पकड़ते नहीं देखा था। वह चुप रहा।

‘खैर तुम मुतवल्ली से मिल लो। तेल जरूर ले लेना। एक शीशी टाल वाले के लिए भी।’ लड़का उठ गया।

‘तुम एक दरख्वास्त दे दो। मां की बीमारी का हवाला दे देना। उसके पास आदमी रहते हैं। जब चाहे उन्हें भेज दे। मैं पेड़ पर चढ़ा दूंगा। दरख्वास्त लिख लोगे न?’ उसने लड़के को देखा। लड़का चुप रहा।

‘न लिख पाओ तो रुको। मेरा मुंशी आ रहा होगा। वह लिख देगा। उसकी फीस दे देना।’

‘मैं लिख लूंगा’ लड़के ने सिर हिलाया। वकील ने भी सिर हिला दिया। वे दोनों आदमी अब तक ऊब चुके थे, उन्होंने भी सिर हिलाया। लड़के ने उनकी ऊब देखी। वह जाली वाले कमरे से बाहर आ गया। बाहर आकर उसने एक बार फिर तने को देखा। उन पर फैलती शाखाओं को देखा। पत्ते बहुत तेजी से निकल रहे थे। अब वे तीन सौ हो गए थे। शाखाओं पर दौड़ती गिलहरी उनमें फंस रही थी।

*

लड़का वापस टूटे फव्वारे के पास आ गया। उसे भूख लग रही थी। कुछ ही देर में उसके पेट में आग लगने लगी।

मुसाफिरखाना दूर था। लड़के ने सोचा घर जाकर कुछ खा ले। वहीं बैठकर दरख्वास्त भी लिख लेगा।

घर लौटते समय लड़का फिर उसी गली से गुजरा। लौटते समय वह सोच रहा था कि मुतवल्ली के पास यह झूठ काम नहीं करेगा। बीमारी की बात करने पर हो सकता था कि मुतवल्ली उसे काले बिच्छू का तेल लगाने के लिए दे देता। कुछ दिन असर देखने के लिए कह सकता था। मरीज देखने घर भी आ सकता था। ‘दवा का असर नहीं हुआ तब पेड़ की डालें कटवा देगा’, वह यह कह सकता था। लेकिन तब तक पेड़ पत्तों से लद जाता। तब हो सकता था वह हरे-भरे पेड़ को काटने से इनकार कर देता। अगले पतझर तक सब कुछ टाल देता।

लड़का घर आ गया। तेज धूप में उसका चेहरा लाल हो रहा था। मां उसे दरवाजे पर ही मिल गई, उसकी सुबह की बातों से वह नाराज थी। लड़के को दुःख हुआ। लेकिन वह जानता था कि मां है। चुटकी में मान जाएगी। वह मां से लिपट गया।

‘पेट में आग जल रही है’ उसने अपना गाल मां के कंधे से रगड़ा।

‘कहां गया था सुबह से?’ मां ने कंधा हटाकर गुस्सा दिखाया।

‘लकड़ी की टाल’, लड़के ने फिर गाल कंधे से सटा दिया। इस बार मां ने नहीं हटाया।

‘क्यों?’

‘दोस्त के घर में हवन है। उसके लिए लकड़ियां लेनी थीं।’ लड़के ने झूठ बोल दिया। लड़के को अचानक ध्यान आया कि वह बहुत सहजता से झूठ बोल रहा है। इतना कि उसे सोचना भी नहीं पड़ रहा। हवन की बात से मां खुश हो गई। वह अंदर आ गई। लड़का भी पीछे-पीछे आया। मां रसोई में आई उसने लड़के के लिए मखाने की खीर और हरे चने बनाए थे। लड़का फर्श पर बैठ गया। मां ने उसके सामने थाली रख दी। खुद भी सामने बैठ गई। लड़का मखाने और हरे चने खाने लगा। खाकर उसे दरख्वास्त लिखनी थी। उसने वकील से कह दिया कि लिख लेगा, लेकिन उसने कभी दरख्वास्त नहीं लिखी थी।

‘तुम दरख्वास्त लिख सकती हो?’ उसने मां से पूछा। मां को भगवान के नाम दरख्वास्त लिखते उसने कई बार देखा था।

‘क्यों?’ मां ने उसे देखा, ‘किसे लिखवानी है?’

‘मैंने सुबह छत से देखा, सामने पेड़ के बीच से अपने टेलीफोन के तार आए हैं। पेड़ पर पत्ते आने लगे हैं। कुछ ही दिनों में वे तारों को ढक लेंगे। उन पर ओस रुकेगी तो उसकी नमी तारों में पहुंच जाएगी। उससे फोन खराब हो सकता है। पत्तों से नहीं भी हुआ तो जब फूल आएंगे तब होगा। फूल से कपास उड़ेगी। तारों पर चिपक जाएगी...।’ लड़के ने घबराहट में ढेर सारे चने मुंह में भर लिए थे। इतना बोलकर वह धीरे-धीरे उन्हें चबाने लगा।

‘क्या फोन बंद हो जाएगा?’ मां चिंतित हो गई। वह अपनी मां से फोन पर रोज एक बार बात करती थी।

‘बंद न भी हो, तो भी लगेगा जैसे फोन के ऊपर कोई सिसकियां ले रहा है। कुछ सुनाई नहीं देगा।’

‘हां सिसकियों में बोला हुआ सुनाई नहीं देता।’

मां चिंतित थी। उसकी मां जब फोन पर सिसकियां लेती थी, वह कुछ समझ नहीं पाती थी।

‘तुम खा लो मैं दरख्वास्त लिख देती हूं...।’

लड़का खुश हो गया। उसने जल्दी में मखाने की खीर पी ली। चने निगल लिए। उठ गया। मां उठकर कमरे में आ गई। लड़के ने उसे कागज कलम दिया। बताया कि दरख्वास्त मुतवल्ली के नाम लिखनी है कि वह इस पेड़ की उन शाखाओं को कटवा दे जो तारों के पास हैं। मां दरख्वास्त लिखने बैठ गई। लड़का लड़की को देखने छत पर चला गया। आंगन खाली था। लड़की को उसके आने की कोई उम्मीद नहीं थी।

लड़के को भी लड़की के दिखने की कोई उम्मीद नहीं थी। फिर भी बिना उम्मीद की एक उम्मीद थी। तभी ऊपर से एक हवाई जहाज शोर करता गुजरा। जहाज देखने के लिए लड़की दौड़ती हुई आंगन में आई। जहाज आंगन से छत की तरफ आ रहा था। जहाज को देखते हुए लड़की की निगाह छत पर गई। उसने जहाज देखना छोड़ दिया। वह लड़के को देखने लगी। वह नंगे पांव भागी आई थी। धूप तेज थी। आंगन की ईंट पर उसके तलुए जलने लगे। वह खड़ी थी, पर जल्दी-जल्दी पैर बदल रही थी। इस धूप में आंगन में यूं ही खड़ी हुई वह डर रही थी। डर... तलुओं की जलन से वह देर तक नहीं रुकी। हाथ उठाकर उसने इशारा किया और चली गई। लड़का खुश हो गया। उसने पेड़ को देखा। चार सौ तीस पत्ते हो गए थे।

आंगन का नल थोड़ा ढक गया था। लड़की अगर पांव धोती तो उसके पंजे नहीं दिखते। शाखाएं नहीं कटीं तो इसी तरह एक रोज लड़की भी नहीं दिखेगी। लड़का उदास हो गया। उसकी उदासी इतनी बढ़ी कि वह घबरा कर नीचे उतर आया। मां ने दरख्वास्त लिख दी थी। बिना कुछ पढे़ उसने कागज जेब में रखा और तेजी से बाहर निकल गया।

*

मुसाफिरखाना शहर के बीच में था। बरसात के दिनों में जब नदी घाट की ऊपरी सीढि़यों को डुबो देती थी और नावें उलटी करके रख दी जाती थीं और पुल से गुजरने वाली रेलगाडि़यों में बैठे लोग नदी में जार्ज पंचम और विक्टोरिया के सिक्के फेंकते थे, उन दिनों मुसाफिरखाना भरा रहता था। आस-पास से या दूर-दराज से भी लोग मेलों में आते थे, मुर्दनी में आते थे। शादियों में आते थे, फसल कटने पर, मन्नत पूरी होने पर आते थे। नदी सूखती गई। मुसाफिरखाने की दीवारों मे दरारें पड़ गईं। कोनों में मकड़ियों ने जाले बना लिए। छत पर हरे पत्तों वाले पौधे उग आए। मुसाफिरखाने को रुपए देने वाले घर खुद भूखे हो गए। लोगों ने भी फसलों, बीमारियों, मुर्दनी और मन्नतों में आना छोड़ दिया। आजादी के बाद इसमें दफ्तर खोल दिए गए। जन्म लेने और मरने की खबर का दफ्तर, टीके लगाने, मरे जानवर उठाने का, गुमशुदाओं को ढूंढ़ने का दफ्तर खुल गया। बाहर इनकी पट्टियां लगी थीं। पहले वह हवा में लटकीं फिर टूटकर नाली में गिर गईं। इसी मुसाफिरखाने में वक्फ का दफ्तर था।

लड़का मुसाफिरखाने की तीन टूटी सीढ़ियां चढ़कर ऊंचे दरवाजे से अंदर गया। अंदर एक खुली जगह के चारों ओर चौकोर गलियारा था। उसके साथ कमरे बने थे, कमरों के बाहर नाम की पट्टियां लटक रही थीं। गलियारे के एक कोने में दो घड़ों में पानी रखा था। एक घड़े के ऊपर हैंडल वाली छोटी-सी लुटिया रखी थी। गलियारे के बाहर की खुली जगह में क्यारियां थीं। उनमें पौधे थे।

पहला बड़ा कमरा ही वक्फ का था। लड़का कमरे में गया। बड़ी-सी मेज के पीछे दोहरे बदन का एक आदमी बैठा था। वह मुतवल्ली था। उसके सामने की कुर्सी पर एक आदमी था। उसकी कुर्सी के साथ की दो कुर्सियां खाली थीं। मुतवल्ली ने लड़के को देखा। कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। लड़का कुर्सी पर बैठ गया। वे दोनों बातें करने लगे। लड़के ने कमरे में नजर दौड़ाई। मुतवल्ली के पीछे की दीवार के दोनों सिरों पर लंबी खिड़कियां बनी थीं। एक से धूप आ रही थी। कमरे में उसी की रोशनी थी। उसी रोशनी में खिड़कियों की सलाखों का भूरा जंग चमक रहा था। नीचे की धूल भी। दूसरी खिड़की के पीछे सड़क दिख रही थी। सड़क पर दरगाह पर चढ़ाने वाली चादर के चारों कोने पकड़कर लड़के पैसे मांग रहे थे। एक मदारी जमूरे को जमीन पर लिटाने की तैयारी कर रहा था। बांसुरी बजाता एक आदमी कंधे पर ढेर-सी बांसुरी, रंगीन गुब्बारे, गुलेल, रंगीन लट्टू, कागज के जानवर लटकाए जा रहा था। एक लड़की और लड़का उसकी धुन पर नाचते हुए उसके पीछे जा रहे थे।

बिच्छू के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते’, मुतवल्ली के सामने बैठा हुआ आदमी बोल रहा था। मुतवल्ली बहुत ध्यान से सुन रहा था।

‘सच तो यह है कि जानवरों के बारे में भी नहीं जानते। इनके अंदर अनमोल खजाने छुपे होते हैं। उनके बारे में भी नहीं जानते। उनकी खाल, उनके जहर, उनकी लार, उनकी नीचे की गोलियां, नाखून, बाल तक में हर बीमारी का इलाज है। जिस दिन इंसान जानवरों के अंदर छुपी इस ताकत को जान लेगा, सब कुछ बदल जाएगा। न कोई बूढ़ा होगा, न मरेगा। मकड़ी के जाले का तार, बिच्छू का जहर।’ वह आदमी फर्श तक झुका। झोले के अंदर से कांच की बड़ी शीशियां निकालकर मेज पर रखीं, ‘मेरे पुरखे जानते थे। तभी सैकड़ों सालों से लोग हमारे पास आते हैं। अब रेगिस्तान के इस बिच्छू को देखिए। दुनिया का सबसे जहरीला जानवर है। इसकी दुम देखिए... हमेशा धनुष की तरह ऊपर उठी रहती है। डंक मारने को तैयार। रेगिस्तानी लोमड़ी, कंगारू, चूहा तक इसके जहर से नहीं बचते। इसमें तेल बहुत कम होता है, पर जितना होता है अमृत समझिए। और इसे देखिए।’ उसने एक और बड़ी शीशी आगे बढ़ाई, ‘पहाड़ों की चट्टानों में रहने वाला। रूम के लोग अपने चोगे का एक हिस्सा इसके जहर से रंगवाते थे। कभी अचानक मरना पड़े तो उसे चाट लेते थे। बहुत से लोग इस तरह मरे हैं। मैंने तो सुना है कि सुकरात को भी इसी का जहर दिया गया था।’

लड़का भी मेज पर झुककर बिच्छू दखने लगा। उसने पहले कभी बिच्छू नहीं देखा था। कांच की बड़ी शीशी में बंद होने के बाद भी वह डरा रहा था। उसकी खाल बटी हुई रस्सी की तरह और चमकीली थी। लड़के ने इतना गहरा काला रंग कभी नहीं देखा था। न बादलों में, न लड़की के बालों में, न शहतूत में। लड़के ने सिर उठाकर मुतवल्ली को देखा। उसकी आंखें खुशी से चमक रही थीं।

‘पर मुझे जिंदा नहीं चाहिए’, वह बोला।

‘वह मैं दूंगा भी नहीं’, उस आदमी ने शीशियां वापस झोले में रख लीं।

‘मार कर ही दूंगा... तेल आप निकालिएगा।’

उसने एक बार लड़के को देखा फिर उठ गया।

‘बाकी बातें शाम को दुकान पर करूंगा। तब तक मैं मेडिकल काॅलेज जा रहा हूं। वहां भी इनकी जरूरत है।’

‘पर उन्हें ये मत देना।’

‘नहीं... उन्हें तो दुम निकले हुए मामूली बिच्छू दूंगा जो मारे-मारे फिरते हैं। ये आपके लिए रहेंगे।’ उसने पायजामे का नाड़ा खोलकर बांधा फिर झोला कंधे पर लटकाकर चला गया।

‘हां’, मुतवल्ली अब लड़के की ओर मुड़ा।

लड़के ने जेब से दरख्वास्त निकाल कर उसे दी। मुतवल्ली ने मेज पर रखा चश्मा आंखों पर चढ़ाया। दरख्वास्त पढ़ी। चश्मा उतारकर मेज पर रखा। चश्मे के पास कागज रखा। लड़के को देखा, फिर हंसा।

‘कमाल है! एक पेड़ की डालों से इतनी दुश्मनी... जैसे वह बिच्छू हो! अभी कुछ देर पहले इन्हीं डालों को काटने की एक दरख्वास्त और आई है।’ उसने दराज खोली और एक कागज निकालकर लड़के के सामने रख दिया।

*

उस पतझर में लड़के ने पांच झूठ बोले। उस पतझर में लड़की ने कितने बोले पता नहीं, पर पत्ते आने से पहले पेड़ की शाखाएं कट गईं।

***

अन्य रसप्रद विकल्प