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दिलरस - 3

दिलरस

प्रियंवद

(3)

‘नहीं... मुझे बहुत चाहिए। जितनी इधर हैं वे सब। साल भर की दवा बनानी है। पतझर साल में एक ही बार आता है। सूखी टहनियां तभी मिलती हैं। वैद्य जी के पास और भी मरीज आते हैं। उनके भी काम आएंगी।’

‘किसे चाहिए?’ दुकानदार ने जेब से पीतल की चुनौटी निकाली। तम्बाकू और चूना हथेली पर रखकर घिसने लगा।

‘क्या?’

‘दवा... तुम्हें बीमारी है।’

‘नहीं...।’ लड़का हड़बड़ा गया, ‘भाई को।’

‘क्या?’

‘वैद्य जी जानते हैं।’

‘तुम नहीं जानते?’

‘उन्होंने बताया नहीं।’

दुकानदार कुछ क्षण लड़के को देखता रहा फिर पुतलियों को आंखों के कोनों पर टिका कर पूछा :

‘कहां लगेगी?’

‘क्या?’

‘दवा।’

लड़के ने दुकानदार को देखा। उसकी आंखें थोड़ी सिकुड़ गई थीं। थोड़ी और सिकुड़ती तो बंद हो जातीं। होंठ हल्के-से फैल गए थे। थोड़े और फैलते तो हंसी बन जाती। उसने उन फैले होंठों के बीच में तम्बाकू दबाया :

‘देखना... अगर तुम्हारे भाई को फायदा हो तो मुझे भी बताना। मुझे भी तकलीफ रहती है। अक्सर बाद में सूजन आ जाती है।’

दुकानदार की बातों से लड़का अचकचा गया। ‘वकील के घर का रास्ता किधर से है’, उसने पूछा।

‘यहां से बाहर निकलकर दाएं घूमना। काले बिच्छू का तेल बेचने वाले बोर्ड की दुकान पर रुक जाना। वहां से सटी हुई गली में चले जाना। थोड़ी दूर जाने पर एक टूटा फव्वारा दिखेगा। उसके पीछे छोटा मंदिर है। सामने उसका घर है। फव्वारे से तुम्हें पेड़ का मोटा तना दिखेगा। उस पर हमेशा गीलापन रहता है... जैसे मस्त हाथी के माथे से मद निकलता है... उसी तरह। जो पेड़ सैकड़ों साल पुराने हो जाते हैं उनके तने से हमेशा आंसू बहते हैं। जैसे अंदर की आत्मा मुक्ति चाहती है। तुम्हें फव्वारे से उसके आंसू दिखेंगे। शायद वैद्य ने इसीलिए इस पेड़ की डालें मांगी हैं। उसने इसका तना देखा होगा। ये आंसू अमृत की बूंदों में बदल जाते हैं। पुरानी किताबों में लिखा है। पुराने लकड़हारे इसे जानते हैं।’ दुकानदार चुप हो गया। लड़के ने सिर हिलाया और टाल से बाहर आ गया।

टाल से बिच्छू के तेल की दुकान तक एक पतली गली जाती थी। लड़का उस गली में घुस गया। वह बहुत संकरी थी। उसमें धूप नहीं आती थी। गली में मकानों के छज्जे मिले हुए थे। उन पर रंगीन कपड़े लटक रहे थे। कुछ कपड़े ज्यादा लंबे थे। उसी समय सुखाए गए थे। उनकी बूंदें नीचे गिर रही थीं। दुकानें बंद थीं। गली में नीचे दुकान, ऊपर मकान थे। दुकानों के पटरों के नीचे कुत्ते नाली की ठंडक में दुबके हुए थे। लड़के ने गली पार की। गली पार करते हुए उसने भड़भूंजे, रंगरेज, कठपुतली, नट, चांदी का वरक और चमड़े का मशक बनाने वालों की दुकानें और घर पार किए। लड़का जब इन सबको पार कर रहा था उसके मन में ख्याल आया कि टाल वाले का झूठ यहां काम नहीं करेगा। पेड़ का तना वकील के घर में था। दवा के लिए डालों की जरूरत बताने पर, वह अपनी तरफ की डालें कटवा सकता था। बिच्छू के तेल की दुकान पर पहुंचने तक लड़के ने दूसरा झूठ सोच लिया।

दुकान से सटी हुई गली से लड़का अंदर चला गया। टूटे फव्वारे पर पहुंचकर लड़के को पेड़ का तना दिख गया। पेड़ के तने से आंसू गिर रहे थे। पीले रंग की नीची चहारदीवारी वाला घर था वह। बाहर वकील का नाम लिखा था। लोहे का दरवाजा बंद था। लड़के ने छत से इस घर में गाय बंधी देखी थी। भूसे के ढेर देखे थे। यह दीवार, यह दरवाजा नहीं देखा था। दीवार के पीछे उसे गाय के रंभाने की आवाज सुनाई दी। तभी दरवाजा खोलकर एक आदमी बाहर आया। वह हरे रंग का चौकोर खानों वाला अंगोछा लपेटे था। लड़के ने अंगोछे से उसे पहचान लिया। इसे लपेटकर गाय का दूध निकालते हुए उसने कई बार छत से उसे देखा था। वह दरवाजे पर खड़ा था। उसके हाथ में ताजे निकाले दूध की बाल्टी थी। लड़का उसके पास गया :

‘वकील साहब से मिलना है।’

उसने लड़के को ऊपर से नीचे तक देखा फिर सिर हिलाकर अंदर जाने का इशारा किया। लड़का दरवाजे से अंदर चला गया। अंदर घुसने पर एक रास्ता कुछ दूर तक बिलकुल सीधा जाता था। उसके दोनों ओर बैंगनी पफूलों वाले पौध्े लगे थे। एक बाएं हाथ पर घूम गया था। वहां वह एक जालीदार कमरे से होता हुआ आगे चला गया था। एक खुली जगह को तारों वाली जाली से घेरकर बैठने की जगह बनाई गई थी। उस जाली पर भी वकील के नाम की पट्टी लटक रही थी। अंदर प्लास्टिक की कुर्सियां पड़ी थीं। एक छोटी मेज के पीछे ऊंट के चमडे़ वाली ऊंची कुर्सी थी। वह वकील की थी। प्लास्टिक की कुर्सियों पर दो आदमी बैठेे थे। वे वकील का इंतजार कर रहे थे। लड़का भी एक कुर्सी पर बैठ गया। वह भी इंतजार करने लगा।

लड़के ने उस रास्ते को आगे जाते हुए देखा। वही आगे जाकर दीवार के पीछे घूम गया था। पेड़ का तना वहीं था। गाय वहीं थी। आदमी वहीं दूध निकालता था। लड़के का मन हुआ कि उस जगह पर जाकर अपनी छत देखे, जैसे लड़की आंगन से देखती है। लड़के का मन हुआ कि उस जगह पर जाकर पेड़ के गीले तने को छुए। उसके अंदर रोती हुई आत्मा से बात करे। बंदर की तरह उस पर चढ़कर उन शाखाओं तक चला जाए जो लड़की के आंगन तक गई थीं। वहां से देख लेगा कि लड़की अंदर किसे रोटी खिलाती है। लड़की को भी बहुत पास से देख लेगा। बंदर की तरह डाल से चिपककर उसे कपड़े सुखाते, रोटियां ले जाते, नल पर पंजे धोते देख लेगा। उसके अंदर यह इच्छा हूक की तरह उठी। इतनी तेज कि वह उठकर खड़ा हो गया। दोनों आदमियों ने उसे देखा। वे समझे वकील आ रहा है। वे भी खड़े हो गए। लड़के ने उन्हें खड़े होते देखा तो चुपचाप बैठ गया। उसे घूरते हुए वे भी बैठकर बातें करने लगे।

लड़का उनकी बातें सुनने लगा। वे रामलीला मैदान को खरीदना चाहते थे। वकील ने उनको बताया था कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि उस जमीन के मालिक खुद दशरथ पुत्र भरत हैं। सैकड़ों साल पुराने दस्तावेज में इसके मालिक ने जमीन उनके नाम कर दी थी। अब सिर्फ भरत ही इसे बेच सकते हैं। उनके दस्तखत के बगैर जमीन नहीं बेची जा सकती। वकील ने उनको समझाया था कि एक ही तरीका है कि तुम सिद्ध कर दो कि भरत की मृत्यु हो चुकी है और तुम उनके वंशज हो। वकील ने यह भी कहा था कि वे लोग पहले नहीं हैं जो इस जमीन को लेना चाहते हैं। बहुत लोग पहले भी कोशिश कर चुके हैं। अंग्रेज भी कर चुके हैं। उसी समय यह पता चला था कि जमीन के मालिक भरत जी हैं। इसीलिए पिछले एक सौ तीस सालों से ‘भरत मिलाप’ इसी मैदान पर होता है। भरत मिलाप हर साल होता है, इसलिए भरत अब जीवित नहीं हैं, यह सिद्ध नहीं किया जा सकता। वे अब सूर्यवंशी भरत के झूठे दस्तखत की कोई साजिश लेकर आए थे।

दरवाजे पर खांसने की आवाज करता हुआ वकील घुसा। खांसने की आवाज करते हुए घुसना उसने मुगल बादशाहों के आने की घोषणा करने से सीखा था। वे दोनों खड़े हो गए। लड़का भी खड़ा हो गया। वकील सीधे चमड़े की कुर्सी पर बैठ गया। वे दोनों भी बैठ गए। लड़का भी बैठ गया। लड़के ने वकील को देखा। वह मोटा था। उसका पेट ज्यादा बाहर निकल आया था। वकील ने लड़के को देखा। वह समझा लड़का उनके साथ है। वह उनकी तरफ झुक गया। उन्होंने इशारे से उसे रोक दिया। लड़का उनकी बातें सुन सकता था। बाहर जाकर उनका भेद खोल सकता था।

‘पहले इनका काम कर दें’ उनमें से एक बोला। वकील फिर पीछे मुड़कर कुर्सी की पीठ से चिपक गए। वह चुपचाप लड़के को देख रहा था। उसके चेहरे की खाल कसी हुई थी। उसे लड़के का आना या खुद लड़का अच्छा नहीं लग रहा था। लड़का लड़खड़ा गया :

‘मैं पीछे रहता हूं। मेरे छत से आपकी गाय दिखती है।’ लड़का चुप हो गया। पीछे रहने या गाय की बात सुनकर वकील का चेहरा मुलायम हो गया। वह मुस्कुराया। लड़के की हिम्मत लौट आई, ‘आपके घर में कत्थई फूलों वाला पेड़ है, वही जिसके तने से आंसू निकलते हैं। वह पेड़ ऊपर बहुत दूर तक फैला है। यहां से नहीं दिखेगा। मेरी छत से दिखता है। पतझर के कारण अभी उसमें पत्ते नहीं हैं... पर अब आने शुरू होने वाले हैं। फिर उसमें फूल आएंगे, बहुत सारे बड़े फूल... उनसे कपास के रेशे निकलते हैं। मेरी मां को उनसे तकलीफ होती है। जब हवा मेरे घर की तरफ चलती है तो उन फूलों की गंध और कपास के रेशे मेरे घर तक आ जाते हैं... खिड़कियों से अंदर रसोई तक। मां की सांस फूलने लगती है। डाॅक्टर ने कहा है कि उसे इन फूलों की गंध से, कपास के रेशों से बचाना जरूरी है।’ लड़का एक सांस लेकर चुप हो गया। वकील मुस्कुराता हुआ सुन रहा था। उसे लंबे बयान सुनने की आदत थी। वे दोनों भी सुन रहे थे।

‘पत्ते आना शुरू हो चुके हैं। फूल भी आएंगे। हवा भी चलने लगी है। इस मौसम से हवा भी पेड़ से होती हुई मेरे घर की तरफ आती है?’

‘तुम्हे कैसे पता?’ वकील अब बोला। उसकी अवाज खुरदुरी थी। जैसे किसी पत्थर पर रस्सी घिसी जा रही हो।

‘क्या?’

‘यही... कि हवा इधर से तुम्हारे घर की ओर चलेगी।’

‘इस मौसम में यही होता है। उसमें खुले बालों की, सांवले खरगोश की, रोटियों की महक होती है।’ लड़के को अचानक लड़की याद आ गई।

‘इससे हवा के चलने की दिशा कैसे पता लगती है?’ लड़का लड़खड़ा गया।

‘उधर घरों में यह सब होता है।’

‘घरों से हवा कभी मेरे घर की तरफ भी चलती होगी?’

‘जी।’

‘लेकिन मुझे तो कभी रोटियों की, खुले बालों की या सांवले खरगोश की गंध नहीं आई?’

लड़के ने सिर झुका लिया। उसके बयान में गलती पकड़कर वकील खुश हो गया।

‘खैर... तो?’

‘अगर आप पेड़ की केवल उन डालों को कटवा दें जो मेरी छत से दिखती हैं तो फूलों की गंध और कपास के रेशे नहीं आएंगे।’

‘पर पेड़ तो मेरा नहीं है।’

‘आपके घर में है।’

‘घर भी मेरा नहीं है।’

लड़के ने असमंजस में उसे देखा।

‘यह सारी जमीन वक्फ की है। सारे घर भी उसी के हैं। इनका मालिक मुतवल्ली है। इन घरों के बारे में कोई भी फैसला वही ले सकता है।’

‘यह क्या होता है?’

‘क्या।’

‘जो अभी आपने बोला।’

‘तुम इतना ही समझ लो कि वक्फ मतलब ट्रस्ट और मुतवल्ली मतलब बड़ा ट्रस्टी। मुतवल्ली की मर्जी के बगैर कुछ नहीं हो सकता। तुमने बाहर दीवार पर पीला रंग देखा होगा? उसी ने करवाया है। गाय भी उसी ने बंधवाई है। दरवाजे पर दूध की बाल्टी लिए कोई आदमी मिला था? उसी का है। दूध भी उसी का है। उसके घर जा रहा था। मैं तो बाजार से खरीदता हूं। यह पेड़ भी उसी का है। इसकी डालें कटवाने के लिए तुम्हें उससे बात करनी पड़ेगी।’

‘वह कहां मिलेंगे?’

‘दूर नहीं है। मुसाफिरखाने के अंदर उसका दफ्तर है। वहां सुबह बैठता है। अभी चले जाओ। मिल जाएगा।’

‘बाद में?’

‘तुमने रास्ते में काले बिच्छू के तेल की दुकान देखी थी न?’

‘हां।’

‘उसी की है। बाद में वह काले बिच्छू खरीदता है... उनका तेल निकलवाता है। शीशियों में बंद करवाता है... उसका तेल बहुत मुफीद है, बहुत बिकता है। तुमने कोशिश की कभी?’

मेज पर कोहनियां रखकर वह थोड़ा आगे झुक गया।

‘किस बात की?’

‘मां की बीमारी के लिए इस तेल का इस्तेमाल करने की? हो सकता है उन्हें फायदा हो जाए। पेड़ न कटवाना पडे़। तुम चाहो तो मैं मुतवल्ली से बात कर लूंगा। वह इस बीमारी के लिए किसी नायाब बिच्छू का तेल बना देगा। उसके पास ऐसे बहुत बिच्छू हैं। उनका तेल वह बेचता नहीं है, अपने लिए रखता है। कई बीमारियों में इस्तेमाल करता है।’

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