लीव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा
जितेन्द्र शिवहरे
(5)
सुबह की पहली किरण के साथ ही टीना की नींद खुल गयी। धरम भी जाग चूका था। रात को हुये घटनाक्रम की परछाई दोनों के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी।
"धरम! मुझे लगता है हमें घरवालों को सबकुछ बता देना चाहिए।" टीना ने धरम से कहा।
"नहीं टीना! इससे वे लोग घबरा जायेंगे।" धरम बोला।
"फिर हम ये घर छोड़ देते है।" टीना ने अगला रास्ता सुझाया।
"इससे क्या निवेदिता से हम बच जायेंगे। नहीं। वह हमें ढुंढ ही लेगी।" धरम बोला।
"फिर तुम ही बताओ। हम इस चुड़ेल से कैसे बचे?" टीना बौखला गयी थी।
"मुझे लगता है कि हमें किसी तांत्रिक की मदद लेनी चाहिए।" धरम ने सलाह दी।
"मगर ये तो ओर भी खतरनाक हो सकता है। निवेदिता की आत्मा को पता चला की हम किसी तांत्रिक को यहाँ बुला रहे है तब वह और भी खुंखार हो सकती है।" टीना ने बताया।
"हां! यह बात भी सही है। अच्छा! टीना रात को तुमने मूझे बैडरूम में चले जाने को कहा था और कहा था की वह निवेदिता वहां नहीं आ सकती। यह तुमने किस बिनाह पर कहा?" धरम ने टीना से पुछा।
"मुझे नहीं पता धरम! मेरी जुबान से वह सब कैसे निकला? कुछ पता नहीं।" टीना ने असमर्थता जतायी।
"मगर तुम्हारी बात सही निकली। मैं जैसे ही बेडरूम में आया निवेदिता की आत्मा इसके अंदर नहीं आ सकी। उसने तुम्हें भी छोड़ दिया।" धरम ने कढ़ीयों को जोड़कर कहा।
"इसका तो एक ही हल टीना!" धरम ने कहा।
"मुझे एक बार फिर निवेदिता के सामने आना होगा?" धरम ने कहा।
"पागल हो गये हो क्या? तुम एक बार बच गये! बार बार नहीं बच सकते। वह बहुत खतरनाक है।" टीना ने कहा।
"नहीं टीना। अगर वह इतनी ही ताकतवर होती तो हमें अब तक मार देती। हम अब तक जिंदा है इसका मतलब यह है कि हम अब भी उससे छुटकारा पाने के लिए कोशिश कर सकते है।" धरम ने कहा।
"मगर मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती धरम!" टीना ने धरम के गालों पर हाथ रखते हुये कहा।
"तुमने ही तो कहा था कि हमारे प्यार में बहुत शक्ति है टीना। निवेदिता जैसी कितनी ही बुरी आत्माएं आ जाये तो भी वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।" धरम ने टीना को सांत्वना देते हुये कहा।
"मगर•••?" टीना बोली।
"अगर मगर कुछ नहीं टीना। ये लड़ाई हम दोनों की है। इसे हमें ही मिलकर लड़ना है। अब जो भी हो। हमें उस निवेदिता की आत्मा को बता देना है कि हम उससे डरते नहीं। जीत हमारी ही होगी।" धरम ने कहा।
टीना के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। धरम ने एक योजना बनाकर उसे बता दी। वह जानता था कि निवेदिता उसे हानि पहूंचाने जरूर आयेगी। टीना भगवान की तस्वीर के सामने हाथ जोड़े खड़ी हो गयी। धरम भी भगवान से प्रार्थना करने लगा की आज की रात सबकुछ ठीक से जाये। विचारों के भंवरजाल और कशमकश से भरा दिन जैसे-तैसे बित गया। देर शाम तांत्रिक बाबा टपाल धरम के यहां आये। टपाल बाबा ने घर में कदम रखा ही था की बुरी आत्मा ने उन्हें उछाल कर पुनः घर के बाहर फेंक दिया। वे दिवार से टकरा कर बेहोश हो गये। धरम ने उनके मुख पर पानी का छिड़काव कर उन्हें जगाया।
"अद्भुत! ये आत्मा तो बहुत शक्तिशाली है। मुझे घर में प्रवेश नहीं करने दे रही है।" बाबा टपाल ने धरम से कहा।
"बाबा! अब कैसे होगा?" धरम ने डरते हुये कहा।
"कोई बात नहीं बेटा। हमने उसकी शक्ति का अनुमान ही नहीं लगाया था। युं ही घर के अंदर घुस गये। अब हम अपना कवच लेकर अंदर जायेंगे।" बाबा टपाल ने धरम से कहा।
"कवच?" टीना ने पुछा। वह भी फ्लैट के बाहर आ चूकी थी।
"हां बेटा! कवच!" कहते हुये बाबा टपाल कुछ मंत्रोच्चारण करने लगे। कुछ ही देर में बाबा पुनः घर में सकुशल प्रवेश कर गये। निवेदिता की आत्मा अब चाहकर भी टपाल बाबा को घर के अंदर आने से रोक न सकी।
बाबा टपाल पुरे घर का संघनता से निरीक्षण कर रहे थे। पहले वे हाॅल में आये। यहां की दीवारों से लेकर छत तक को बड़ी बारीकी दे देखा। उसके बाद वे किचन में गये। फिर बैडरूम और अंत में बालकनी को देखा।
पुनः हाॅल में आकर सोफे पर बैठ गये। धरम और टीना भी उनके सामने बैठ गये।
"बेटा धरम! निवेदिता की आत्मा इस घर में है, इसमें हमें कोई संदेह नहीं है। उसने तुम दोनों को ही नहीं, आसपास रह रहे रहवासियों को भी खतरा है।" बाबा टपाल ने कहा।
"बाबा! ये बात हम जानते है। हमें उस निवेदिता की आत्मा से छुटकारा कैसे मिलेगा, आप ये बताओ।" धरम ने पुछा।
"हां बाबा! वह हमें बहुत परेशान कर रही है। कोई रास्ता निकालो जिससे की वह शांत होकर यहां से लौट जाये।" टीना ने पुछा।
"बेटी! मुझे पता है। तुम दोनों एक-दुसरे से बहुत प्रेम करते है। और तुम्हारा प्रेम ही उस बुरी आत्मा को शांत करेगा।" बाबा टपाल बोले।
"मगर बाबा! ये सब होगा कैसे?" धरम ने अगला प्रश्न पुछा।
"तुम्हे एक बार पुनः उस आत्मा के सामने आना होगा। वह क्या चाहती है! उसी के मुंह उगलाना होगा? जब तक हमें पता नहीं होगा कि उसकी संतुष्टि किसमें में है, हम उसे आसानी से भगा नहीं सकते।" बाबा टपाल ने कहा।
"मगर इसमें बहुत बड़ा जोखिम है बाबा!" टीना ने कहा।
"जानता हूं! मगर एक-दुसरे के खातीर तुम लोगों को ये जोखिम उठाना ही पड़ेगा।" बाबा टपाल ने पुछा।
"बाबा! आप रहोगे न!" टीना ने पुछा।
"नहीं बेटी! मेरे यहां रहने पर तुम लोगों पर संकट और बड़ सकता है। मैं अपनी सुरक्षा कर सकता हूं मगर तुम लोगों की नहीं।" बाबा टपाल ने कहा।
धरम और टीना एक-दुसरे का मुंह ताकने लगे।
"अच्छा बेटा! चलता हूं। निवेदिता की आत्मा जो कहे मुझे फोन पर बता देना। निश्चय ही कोई न कोई हल अवश्य निकलेगा। भगवान तुम दोनों को उस आत्मा से लड़ने की शांती प्रदान करे।" बाबा टपाल ने कहा। बाबा उठकर चले गये।
धरम और टीना पुनः विचारो के संकट में थे। टपाल बाबा से जो उम्मीद उन दोनों ने लगा रखी थी वो पुरी नहीं हुई।
टीना मायुस होकर सोफे पर पुनः बैठ गयी। धरम उसे देखकर समझ गया। टीना निराश थी।
"मायुश नहीं होते टीना।" धरम ने टीना के कंधे पर हाथ रखते हुये कहा।
टीना ने नज़र उठाकर धरम की ओर देखा।
"मैंने तुम्हें पहले ही कहा था। यह लड़ाई को हम दोनों को ही लड़ना है। और जीतना भी है।" धरम ने कहा।
"तुम ठीक कह रहे हो धरम!" टीना ने सहमती देते हुये कहा।
"तो ठीक है टीना। हम उस निवेदिता की आत्मा से मरते दम तक लड़ेगे। धरम ने टीना से कहा।
"हां धरम! अब जीयेंगे तो एकसाथ और मरेंगे तो एक साथ।" टीना ने उत्साहित होकर कहा।
दोनों एक बार फिर गले मिलकर एक-दुसरे को संबल प्रदान कर रहे थे।
रात होने लगी थी। टीना और धरम ने खाना खाया और कुछ देर टीवी देखने का मन बनाया। इस दौरान दोनों ने अपने-अपने परिवार से फोन पर बात की। धरम ने ध्यान रखा की परिवार के सदस्यों को निवेदिता की आत्मा के विषय में कुछ न पता चले। टीना का भी यही प्रयास था। उसने भी अपने पिता को कुछ नहीं बताया।
धरम बैडरूम में दाखिल हुआ। टीना पहले से बैड पर बैठी थी। वह अपने मोबाइल पर व्यस्त थी। टीना ने पिंक कलर का नाइट सुट पहन रखा था। बैडरूम की हल्की सफेद रोशनी में टीना का खुबसूरत यौवन धरम को आकर्षित कर रहा था। वह अपने मन पर नियंत्रण रखते हुये बिस्तर पर लेट गया। टीना उसके एकदम बगल में ही थी। उसके बदन से आती इत्र की सुगंध धरम के नथुनों से सीधे मन में प्रवेश कर रही थी। धरम चाहता था की वह और टीना एक बार फिर एक हो जाये। मगर टीना की सहमति आवश्यक थी। यदि पहल टीना की तरफ से हो तब ही वह आगे बढ़े। मगर टीना थी की आज कुछ बोल ही नहीं रही थी। वह मोबाइल में इस कदर घुसी थी की उसे अपने पास बैठे धरम का ख़याल ही नहीं आया। धरम मछली की तड़प रहा था। वह बार-बार टीना की तरफ देखकर उसे अपना ध्यान दिलाना चाहती था। टीना की हल्की मुस्कराहट ये बता रही थी वह सबकुछ जानते हुते भी अनजान बनने का स्वांग रच रही थी।
"टीना!" धरम ने आवाज़ लगायी। धरम का हृदय जोरों का धड़क रहा था। उसके तन-बदन में आग लगी थी।
"हूअं।" टीना ने बिना धरम की ओर देखे ही कहा।
"टीना।" धरम ने पुनः कुछ जोर से पुकारा।
"हूंअं! सुन रही हूं बोलो।" टीना बोली।
"जाने दो।" धरम ने कहा। वह तकिया सीधा कर पीठ के बल लेट गया।
"क्या हुआ बोलो न!" टीना ने अब धरम की और देखा।
धरम को कुछ संकेत मिले। वह पुनः बैठ गया
"टीना! क्यों न! आज की रात••••" कहते हुये धरम रूक गया।
"हां हां बोलो! आज की रात क्या?" टीना ने पुछा।
"क्या तुम अब भी नहीं समझी?" धरम ने पुछा।
"नहीं मैं अब भी नहीं समझी।" टीना कहा।
"रहने दो! जब तुम समझी ही नहीं तब कहने से क्या मतलब? चलो सोते है! गुड नाइट।" धरम ने कहा। उसके चेहरे पर मायुसी के भाव थे। वह पुनः लेट गया। उसने टीना की तरफ पीठ कर ली।
"धरम! मैं सब समझती हूं।" टीना ने धरम की पीठ पर हाथ रखते हुये कहा।
धरम उत्साहित होकर पुनः उठ बैठा।
"तो फिर ये न समझने का नाटक क्यों कर रही थी।" धरम ने पुछा।
"धरम! तुम भी न! जब तुम्हारी इच्छा हो तब मैं तुरंत राज़ी हो जाऊ। और जब मेरा मन करता है तब घोड़े बेचकर सो जाते हो।" टीना ने मन की भड़ास निकाली।
"साॅरी! अब आगे से ऐसा नहीं होगा।" धरम ने कहा।
"ठीक है। जाओ माफ किया।" टीना ने कहा।
"तो फिर मुझे परमिशन है••?" धरम ने पुछा।
"अफकोर्स स्टूपीट टूट पड़ो।" टीना ने कहा।
धरम ने लपक कर टीना को अपने आगोश में भर लिया।
टीना भी धरम से लिपट गयी। धरम उसे चूम रहा था।।आनंद का प्रत्येक क्षण टीना बराबरी से लुट रही थी। धरम की गरम श्वांस टीना को अत्यधिक उत्साहित कर देती। टीना ने धरम के गालों को चूमा। वह धरम को अपना सर्वस्व देना चाहती थी। धरम ने टीना की बेकलेस पीठ पर अपने ओठ रख दिये। टीना सिहर उठी। उसकी आंहे पुरे बैडरूम में गुंज रही थी। वह धरम के सीने पर अपना मुंह छिपाना चाहता था। मगर धरम ने उसका मुंह अपने दोनों हाथों में थाम लिया। होठों से होठों की जोरदार भिंडत हुई। जिसमें धरम और टीना दोनों ही बड़ी बुरी तरह घायल हुये। रात चरम पर थी। इन दोनों का समागम भी चरम पर था। अंततः कुछ समय के बाद दोनों शांत होकर अलग-थलग पड़ गये। देखते ही देखते दोनों ही नींद के आगोश में चले गये।
रात के बारह बजे का समय हो रहा था। निवेदिता एक बार फिर किचन में खाना बनाने लगी। टीना गहरी नींद में थी। जबकी किचन से आ रही आहटों से धरम की नींद टुट गयी। उसने टीना को अपने सीने से अलग किय। वह उठकर बैडरूम से बाहर आया। बैडरूम के बायी तरफ किचन था। जहां से बर्तन घटकाने और खाना बनाने संबंध विभिन्न तरह की आवाज़े आ रही थी। धरम हाॅल के एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। जहां से सोती हुयी टीना उसे साफ दिखाई दे रही थी। वह किचन में काम कर निवेदिता को भी आराम से देख पा रहा था। कुछ देर बाद टीना की आत्मा शरीर से अलग हुई और किचन की तरफ गयी। जहां दोनों में फिर एक बार जोरदार बहस चल पड़ी। टीना निवेदिता की आत्मा को अपने किचन में से चले जाने का कह रही थी। मगर इसके लिए निवेदिता तैयार नहीं थी। उसका कहना था की अब यह किचन और घर उसका है। घर छोड़कर तो टीना को जाना होगा। दोनों की बहस बढ़ती ही जा रही थी। मगर निवेदिता खाना खाने के पुर्व किसी भी तरह की हाथापाई नहीं करना चाहती थी। निवेदिता ने खाना बना लिया था। थाली में अपने लिए भोजन परोस कर वह हाॅल की बायी तरफ डायनिंग टेबल के पास आ गयी। निवेदिता खाना खाने बैठ गयी थी। उसके पीछे टीना भी वहां आ गयी। वह डाॅयनिंग टेबल के पास ही खड़ी होकर निवेदिता को भला-बुरा सुनाने लगी। निवेदिता चुपचाप भोजन कर रही थी। टीना का निवेदिता के विरूद्ध भाषण भी जारी था। निवेदिता ने भोछन पुरा किया और भोजन की थाली किचन बेसिन में रख दी। पानी पीने के बाद वह टीना के पास आई। उसने एक जोरदार तमाचा टीना के गाल पर जड़ दिया। टीना दुर जा गिरी। धरम यह देखकर विचलित हो गया। वह टीना को बचाना चाहता था। इसलिए वह टीना के पास दौड़कर पहूंचा।
"अच्छा! तु फिर आ गया। आज तु जिन्दा नहीं बचेगा धरम!" निवेदिता चिखी।
"धरम! यहां क्यों आ गये। भागों! जल्दी बैडरूम के अंदर चले जाओ।" टीना बोली। वह जमींन पर बैठी थी। धरम उसे पकड़कर बैठा था।
"नहीं टीना। हम कब तक इससे बुरी आत्मा से बचकर भागते रहेंगे? अब और नही। हमें इसका सामना करना ही होगा।" धरम ने टीना की आत्मा से कहा।
"पागल मत बनो धरम! निवेदिता एक शक्तिशाली आत्मा है। उसे हराना आसान नहीं है।" टीना बोली।
"जानता हूं। मगर नामुमकिन भी नहीं है। तुम मुझे बताओ। इसे कैसे खत्म किया जा सकता है?" धरम ने पुछा।
तब तक निवेदिता की आत्मा धरम के पास आ चूकी थी।
"मुझे खत्म करने का सोच रहा है। इससे पहले मैं ही तुझे खत्म किये देती हूं।" निवेदिता बोली। उसने धरम का गला पकड़ लिया। निवेदिता उसे गला पकड़कर गगन की ओर ऊंचा उठा चूकी थी। टीना निवेदिता के पैर पकड़ कर धरम को छोड़ने की विनती कर रही थी। निवेदिता ने अपने पैर को हवा में उछाल दिया। टीना हवा में उड़ती हुयी दुर जा गिरी। उधर बैडरूम में सोयी टीना दर्द के मारे कराह रही थी। निवेदिता ने धरम को भी हवा में उछालकर डाॅयनिंग टेबल पर फेंक दिया। टेबल चकनाचूर हो गयी। धरम को बहुत चोटें आयी। वह भी दर्द से कराह रहा था।
"धरम जाओ! नहीं तो ये तुम्हें मार देगी।" टीना पुनः चिखी।
"नहीं टीना! मैं तब तक नही जाऊँगा जब तक तुम मुझे ये नहीं बता देती की निवेदिता का अंत कैसे होगा? उसकी आत्मा को मुक्ति कैसे मिलेगी?" धरम ने पुछा।
"ठीक है मैं बताती हूं।"टीना कह पाती इससे पुर्व ही निवेदिता ने चाबुक निकालकर टीना को मारना शुरू कर दिया। टीना चिल्ला रही थी। धरम से देखा नहीं गया। वह दौड़ते हुये टीना के उपर जा गिरा। अब कोड़े की मार धरम के शरीर पर पड़ने लगी।
"टीना जल्दी बताओ।" धरम बोला।
"निवेदिता की आत्मा को तब ही मुक्ती मिलेगी जब उसकी आत्मा के साथ कोई शादी करेगा। और उसके साथ सुहागरात मनायेग। इससे निवेदिता की बरसों पुरानी ख़वाहिश पुरी हो जायेगी। जिससे उसे मोक्ष मिलेगा।" टीना बोली
निवेदिता अब भी धरम को मार रही थी। टीना ने हाथों से धरम को धकेल दिया। धरम बुरी तरह घायल था। हिम्मत कर वह बैडरूम के अंदर चला गया।
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