चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 6 राज बोहरे द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 6

चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 6

chanderi-jhansi-orchha-gwalior ki sair 6

यात्रा वृत्तांत

चन्देरी नवखंडा महल प्रसंग

लेखक

राजनारायण बोहरे

जागेश्वरी देवी का मंदिंर आधी पहाड़ी पर चढ़ जाने के बाद बीच में बना है। यह मंदिर एक गुफा में बना है लेकिन यह गुफा भी खूब लम्बी-चौड़ी है। जाने किस सदी में पहाड़ के सख्त पत्थर को काटकर खूब बड़ी गुफा निकाल ली गई है , जिसमें एक बड़ा बरामदा तथा एक मंदिर निकाला गया है। सैकड़ों वर्ष पहले जागेश्वरी देवी की प्रतिमा भी चट्टान काटकर बनाई गई है। पहाड में बन गयी छत से लगातार बून्द-बून्द कर पानी रिस रहा था, जिसके ठीक नीचे एक शिवलिंग स्थापित हैं, और पानी की बूंन्दें लगातार उनका अभिशेक स्नान कराती रहती थी। इस मंन्दिर में बड़ी शंाति थी अनेक लोग बरामदे में बैठे इस शान्ति का आनन्द ले रहे थे।

मंदिर के पास से ही पहाडी के ऊपर जाने के लिए सीड़ियां बनी हैं। यह सीडियां कुछ टूटी-फूटी हैं इसलिए बच्चों के साथ हम दूसरे रास्ते से पहाडी पर चढे़। पहाड़ के ऊपर खूब बड़ा मैदान था, मैदान यानि ऐसा मैदान जिसमें तालाब था, समाधियां थीं और महल और किला भी। एकदम नीले और साफ-स्वच्छ पानी का तालाब देखकर हम आश्चर्य चकित हो गये, तालाब इन दिनों पानी से पूरा भरा नहीं था, कुछ खाली था।

तालाब के पास में ही किला बना था। किले की दीवारें यहाँ-वहाँ से खंडित थी और कर्इं कमरो की छतें आ गिरी थी। किले की दीवारो में पुराने जमाने का पिछला घुना भी बना हुआ है । पूरातत्व विभाग ने वहॉं बोर्ड लगा रखा है जिसमें इस किले को कीर्ति दुर्ग नाम से बताया गया था। चन्देरी के लोग बोलचाल में लोग इसे नवखंडा महल कहते हैं।

कीति दुर्ग के पास ही हवा महल था। यह महल अठारहवीं सदी में बुन्देला राजा सगंराम शाह ने बनवाया था। सन 1606 मे मुगल सम्राट जहॉगीर ने चंदेरी को जीत लिया था और यहां अपने समर्थक मुगल सरदारों की सेना की टुकड़ी यहां रख दी थी। चन्देरी को ओरछा के बुन्देला साम्राजय से अलग करते हुए एक अलग राज्य बनाकर उसका राजा रामसिंह बुदेला को बना दिया था। रामसिंह के बाद उनका बेटा राजा बना और बाद में उसके वंशज राज करते रहे। बाद में वहॉं के राजा को हराके सिंधिंया के सेनापति जाम वेपटिस्ट ने चंदेरी पर कब्जा कर लिया । सिंधियाओं का चंदेरी पर कब्जा सन् 1811 ईसवी से लेकर सन् 1948 तक बना रहा । सन् 1947 में देश आजाद हो गया तो चंदेरी भी भारतीय गणतंत्र का एक हिस्सा बन गई।

नवखण्डा महल के पास एक बडी बावडी ही है जिसमें बहुत सारी राख भरी दिखाई देती है । पास में बोर्ड लगा से जानकारी मिली कि-यह जौहर कुण्ड है! बाप रे, जौहर कुण्ड यानि कि इस कुण्ड में हजारों क्विंटल लकड़ियां जला कर धधकती आग में जीते जी कूद कर किले में रहने वाली रानियों और उनकी सखी-सहेलियों व सेविकाओं ने सामूहिक रूप से खुद का जला कर आत्महत्या कर ली थी ।

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साधन-दिल्ली मुम्बई के झांसी वाले रेल मार्ग पर बीना जंक्शन उतर कर यहां से रेल द्वारा अशोकनगर और वहां से बस द्वारा पहुंचा जा सकता हैा

चन्देरी तक पहुंचने के साधन-अशोकनगर, ललितपुर और शिवपुरी तीनों स्थान से बस चलती है या निजी किराये के टैक्सी वाहन

चंदेरी से ललितपूर की दूरी 34 किलामीटर है। ललितपुर रेलवे स्टेशन हमारे देश की दिल्ली भोपाल रेल लाईन पर झांसी के पास मौजुद है । चंदेरी से अशोंक नगर की दूरी 66 किलामीटर है ओर मुगांवली की दूरी 39 किलोमीटर। अशोकनगर और मुगांवली दोनो ही गुना जिला म0प्र0 की तहसीलें है। दोनो जगह रेल्वेस्टेशन है। चंदेरी पंहुचने के लिए ललितपुर, मुंगावली या अशोकनगर तीनो जगह में से किसी भी जगह से सड़क के रास्ते केा काम मे लाया जा सकता है। एक चौथा रास्ता चंदेरी से शिवपुरी के लिए भी है, यह सड़क मार्ग बामोर कलां, खनियाधाना-पिछोर ओर सिरसोद चौराहे से निकलता है। चंदेरी वर्तमान मे अलग तहसील है जो अशोकनगर जिले में आती है । यहॉं एक डिग्री कॉलेज दो इंटर कालेज और छः मिडिल स्कुल है। चंदेरी में विशिष्ट क्षेत्र प्राधिकारण गठित कियागया है। जिसका काम चंदेरी का विकास करना है।

ठहरने के लिए स्थान- चंदेरी में म0प्र0 पर्यटन विकास निगम का होटल ताना बाना, म0प्र0 लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह और 2 निजी होटल