सुनीता जी के घर में खूब गहमागहमी थी। एक तरफ हलवाई लड्डू मठरी बना रहे था तो दूसरी ओर घर की सजावट के लिए फूल वाले आए हुए थे ।आज सुनीता जी की बेटी की मेहंदी की रस्म थी। तभी हलवाई ने आवाज दे उन्हें बुलाया और बोला "दीदी मिठाई बन गई है। आप भोग के लिए अलग से एक पत्तल निकाल लो।"
सुनीता जी भोग के लिए मिठाई लेकर जा ही रही थी। तभी उनके सास बोली " बहु शगुन की मिठाई है तुम रहने दो ।" उन्होंने अपनी बेटी मालती को आवाज लगाई और बोली "जा मालती लड्डू गोपाल जी को भोग लगा दे और उसके बाद अपने भाई की तस्वीर को भी भोग लगा देना।"
अपने पति का नाम सुन सुनीता जी का दिल भर आया लेकिन उन्होंने किसी तरह अपने आंसुओं को छुपा लिया। यह सब बातें उनकी बेटी कोमल भी सुन रही थी। उन्हें अपनी दादी की बात अच्छी नहीं लगी।
"बहु जाकर देख मेहंदी की तैयारियां सही से हो रही है । ढोलक आ गई क्या! मैं मोहल्ले की औरतों को न्योता दे कर आती हूं।"
सुनीता जी कमरे में सामने पति की तस्वीर देख इतनी देर से रोके हुए आंसूओं को और ना रोक सकी।वह बांध तोड़ते हुए बह निकले। उसे अचानक से अपने पति की वह बात याद आ गई। जब भी वह सिंदूर से मांग भरती तब वह हमेशा हंसते हुए कहते हैं "क्या तुम सिंदूर से पूरा माथा व सिर ढक लेती हो।"
आपकी लंबी उम्र के लिए करती हूं जी है यह सब।
अरे, कहीं नहीं जाने वाला मै । देखना हमेशा तुम्हारे साथ ही रहूंगा!
वह मन ही मन बोली देखो जी कितने झूठे निकले आप। छोड़ दिया ना साथ ।आपको कितनी जल्दी थी जाने की। आज घर मेहमानों से भरा पड़ा है लेकिन आप ही नहीं ।
तभी उसे लगा उसके पति कह रहे हो, कौन कहता है मैं चला गया। मैं तो तुम्हारे साथ ही हूं। रो मत अभी तो तुम्हें पूरा काम संभालना है और देखो हाथों पर अच्छी सी मेहंदी लगाना। तुम्हें पता है ना मुझे तुम्हारी मेहंदी रचे हाथ कितने पसंद थे।
कौन लगाने देगा मुझे मेहंदी और किसके लिए लगाऊंगी मैं मेहंदी। कहते हुए सुनीता जी फफक फफक कर रो पड़ी।
तभी पीछे खड़ी उनकी बेटी ने उन्हें गले लगाते हुए कहा "मम्मी चुप हो जाओ। अगर आप ऐसे रोओगी तो नहीं करनी मुझे शादी। मैं आपको अकेले छोड़कर नहीं जाऊंगी।"
"अरे पगली! रो कहां रही हूं। यह तो खुशी के आंसू है। हर मां बाप का सपना होता है कि उसकी बेटी डोली में बैठकर एक अच्छे घर परिवार जाएं। भगवान ने हमें यह शुभ दिन दिखाया है। चल मेहंदी वाला आता ही होगा।"
थोड़ी ही देर में घर ढोलक की थाप के साथ मेहंदी के गीत व संगीत से गूंजने लगा। " भाभी आप कहां काम में लगी हो। कोमल आपको बुला रही है।"
" हां ,हां आती हूं चलो।"
"हां बेटा, क्या काम था बोलो!"
" अपना हाथ आगे करो।"
" किसलिए?"
" करो तो। कितने सवाल करती हो मम्मी आप भी बच्चों की तरह।" यह कह कोमल ने सुनीता जी का हाथ पकड़ हथेली आगे करते हुए मेहंदी वाले को कहा "भैया पहले मेरी मम्मी को मेहंदी लगाओ, उसके बाद मैं लगाऊंगी।"
यह सुनते ही सुनीता जी ने अपना हाथ पीछे खींच लिया। "पागल हो गई है क्या। कैसी बातें कर रही है ।मैं मेहंदी कैसे लगा सकती हूं!"
"क्यों नहीं लगा सकती मम्मी आप मेंहदी!"
"बच्चों जैसी बात मत कर। सब पता है तुझे!"
"हां मुझे पता है तभी कह रही हूं । पापा को कितने पसंद थे ना आपके मेहंदी रचे हाथ । शादी में हर काम आप उनकी पसंद को ध्यान में रखकर कर रहे हो कि वह होते तो इस काम को ऐसे करते , वैसे करते। तो यह क्यों नहीं मम्मी! आपके सूने हाथ देख क्या पापा खुश होंगे!"
"तुझे पता है ना हमारे समाज में विधवा औरतें मेहंदी नहीं लगाती। लोग क्या कहेंगे?"
"आप को समाज की चिंता है। मेरी और पापा की नहीं। इतना तो मुझे भी पता है मम्मी आपको मेहंदी लगाना कितना पसंद है तो क्यों दूसरों के लिए अपनी और हमारी खुशियों का गला घोट रही हो। मेरी शादी में सबके हाथों में मेहंदी लगे और आपके हाथ सूने रहे । कभी नहीं। अगर आप मेहंदी नहीं लगाओगे तो मैं भी नहीं रचाऊंगी मेहंदी।"
"यह क्या जिद है ।अम्मा जी आप ही समझाइए , इसे!"
"बहु मैं क्या समझाऊं। जो हम इस बुढ़ापे में ना समझ सके हमारी बच्ची ने इतनी सी उम्र में हमें समझा दिया। सही कह रही है मेरी पोती। मुझे समाज की नहीं, अपनी बहू व पोती की खुशियां प्यारी है। क्यों हम चाहते हैं कि पति की मृत्यु के बाद एक औरत हमेशा दुख में ही डूबी रहे। अपने सारे शौक त्याग दे। क्या उसका अपना अस्तित्व व भावनाएं नहीं। यह तो हम लोगों ने नियम बना दिया हैं। वरना क्या हमें छोड़ कर जाने वाला हमारा प्रियजन कभी ये चाहेगा कि उसका परिवार हमेशा उसे याद कर दुखी रहे । उन्हें दुख पहुंचाने की वह सोच भी सकता है। जीते जी जब हम अपने परिवार को हमेशा खुश देखना चाहते है तो मृत्यु उपरांत क्या उन्हें यूं घुट घुट कर जीता देख , उसकी आत्मा को शांति मिलेगी।"
कह अपने आंसू पोंछते हुए उन्होंने सुनीता जी का हाथ मेहंदी वाले के आगे कर दिया। सुनीता जी की आंखों से आंसू बह निकले। उनको देख वहां बैठी सभी औरतों की आंखें नम हो गई।
सरोज ✍️
स्वरचित व मौलिक