पीली साड़ी Abha Yadav द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पीली साड़ी


"मां,इस बर्ष आपने मेरा अट्ठारहवां जन्मदिन मनाया था न?"
"अरे,तुमने केक काटा तुम्हें नहीं पता."रोशनी हँसकर बोली.
"मुझे तो याद है.बस,यह जानना चाहती थी कि आपको पता है कि मैं बालिग हो गई हूँ."
"बालिग होने का ख्याल कैसे आया?कहीं कोई लड़का तो पंसद नहीं आ गया."रोशनी मजाक के मूड़ में आ गई.
"नहीं, मां,बालिग होने का मतलब मैं हर अच्छी बुरी परिस्थिति का सामना कर सकती हूं. और...."कहते -कहते रूक गई, बसना.
"और ...और क्या?"रोशनी की निगाहें बसना के चेहरे पर टिक गई. उसके टोस्ट पर जैम लगाते हाथ रूक गये.
"और आपके साथ हुए अन्याय के लिए लड़ सकती हूं. सुप्रीम कोर्ट तक जाऊँगी, आपके अधिकारों के लिए."बसना का स्वर तेज था.
'अरे,अभी तो तू ला फस्ट ईयर में ही है. अभी से मुक्दमेंबाजी."रोशनी हँस दी.
"ममा,मैं मजाक नहीं कर रही हूं. आज मैं सच जानकर ही रहूंगी."बसना स्वर वैसा ही था.
"कौन सा सच?"रोशनी ने नासमझी से पूँछा.
"पापा कहां हैं?न तुम मांग भरती हो और न सफेद पहनती हो.हमेशा पीली साड़ी में दिखती हो.मुझे यह भी नहीं पता मेरे पापा कहां हैं, कौन हैं, तुम सुहागिन हो या ....."कहते-कहते रूक गई बसना.
रोशनी के चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आयीं. उसकी आँखों से आँसू झरने लगे.
मां के आँसुओं ने बसना की आवाज धीमी कर दी.वह उठकर मां के पास आयी.उन्हें कुर्सी पर बैठाकर पास ही बैठ गई. उनका हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाती रही. फिर धीरे से बोली-"मां,मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहती थी. आपकी खामोशी मुझे पागल कर देती है. मैं आपकी बेटी हूँ. आपकी ही रहूंगी. भले ही पापा ने आपको धोखा दिया हो."
"नहीं, उन्होंने हमें कोई धोखा नहीं दिया. उनके विश्वास से ही मैं तुम्हें इतना बड़ा कर पायीं हूँ."रोशनी तड़प कर बोली.
"आश्चर्य होता है, तुम्हारे विश्वास पर.पापा का एक फोटो तक नहीं घर में.कोई निशानी तक नहीं. और तुम उन्हें खुदा माने हुए हो."बसना का स्वर कटु हो गया.
"वह मेरे लिए खुदा ही हैं. कल लाल किले पर मैं तुम्हें उनसे मिलवाऊँगी."सपाट शब्दों में कहकर रोशनी फिर से टोस्ट पर जैम लगाने लगी.
"इस बार पापा झंडा फहराने आयेंगे?"बसना के स्वर में व्यंग्य था.
"सुबह सात बजे हम लोग घर से निकल जायेगें."रोशनी का स्वर गम्भीर था.

***
लालकिले पर झंडा फहराने के बाद सम्मानों और पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम शुरू हुआ.
तभी ,माईक पर स्वर गूंजा-"श्रीमती रोशनी सतेंद्र..."
रोशनी तेजी से उठी ओर बसना की ओर देखे बिना ही आगे बढ़ गई.
बसना हैरानी से देख रही थी. राष्ट्रपति ने शाल ओढ़ाकर मां का सम्मान किया. साथ ही कोई लिफाफा और फोटो उन्हें दिया. वह बैठी न रह सकी. उत्सुकता वश खड़ी हो गई.
वापस आकर रोशनी ने फोटो और लिफाफा बसना को थमा दिया-"यह तुम्हारे पापा सतेंद्र..."
"ममा,पापा सैनिक..?"
"हां लेह में लापता सैनिकों में उनका नाम था. उनकी बाड़ी नहीं मिली...."
कुछ रूककर रोशनी फिर बोली-"हम लोग साथ पढ़ते थे. अपनी मर्जी से शादी की थी.सतेंद्र के मां-बाप नहीं थे.उनकी विधवा चाची और उनका बिगडैल सतेंद्र का हम उम्र बेटा. जिसे कोई अपनी लड़की देने को तैयार न था.बस,यही सतेंद्र का परिवार था....
.....सतेंद्र के लापता होने पर वह अपने बेटे राघव से शादी का दबाव बनाने लगीं. वह भी मेरे आसपास बुरी नियत से मड़राने लगा.तुम मेरे पेट में थीं. सतेंद्र के प्यार की निशानी.
मैं वहां से भागकर देहली अपनी सहेली सलोनी के पास भागकर आ गई. उसने मुझे सहारा दिया. कालेज में नौकरी दिलवायी.मैं राघव का मुकाबला नहीं कर सकती थी. तुम्हें भी उसकी नजरों में नहीं लाना चाहती थी. इसीलिए अब तक तुम्हें कुछ नहीं बताया."कहकर रोशनी चुप हो गई.
"और यह पीली साड़ी?"बसना ने धीरे से पूँछा.
"जब सतेंद्र लेह गए थे, मैं पीला साड़ी ही पहने थी. जाते हुए सतेंद्र ने कहा था-"तुम पर पीला रंग बहुत फबता है. साक्षात सरस्वती लगती हो. यही रंग पहना करो.इसके बाद कोई दूसरा रंग पहन ही न सकी."कहकर रोशनी चुप हो गई.
इस बार उसकी आँखों में आँसू नहीं थे.चेहरे पर गर्व था.एक सैनिक की पत्नी होने का.

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Abha yadav
7088729321